Manager Pandey
Soor Sanchyita
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- Description: सूर-साहित्य के अध्ययन, मनन और विश्लेषण से चिन्तनशील मानस को सहज ही यह निष्कर्ष प्राप्त हो जाता है कि सूरदास में जन-जीवन के मूल तत्त्वों का ज्ञान और भक्ति की भावना का बोध इस प्रकार समन्वित है कि सम्पूर्ण सूर-साहित्य में व्यक्ति है और समाज भी, राग है और विराग भी, भावविह्वल हृदय है और चिन्तनशील मस्तिष्क भी। उसमें गृहस्थ और साधु तथा भक्त और भावुक सबकी भावना और आदर्श का समन्वय है। सूर-साहित्य की सीमा में प्रवेश करनेवाले प्रत्येक सहृदय को उसमें उसके मन एवं आत्मा की आत्मीय भंगिमाएँ मिलेंगी, उसमें अतीत की झाँकी, वर्तमान का सम्बल और भविष्य का आदर्श प्राप्त होगा। सूरदास ने जीवन के विभिन्न उदात्त पक्षों का उद्घाटन कर उन्हें काम्य और कमनीय बना दिया है तथा सम्पूर्ण रागों का कृष्णार्पण कर उन्हें दिव्य आभा से मंडित कर दिया है।
Soor Sanchyita
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Dara Shukoh : Sangam Sanskriti Ka Sadhak
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दारा शुकोह भारत के इतिहास का एक विशिष्ट पात्र है। यह मुग़ल शहज़ादा अपने समय में जितना प्रासंगिक था, उससे कहीं अधिक प्रासंगिकता उसकी हमारे समय में है। इसकी अहम वजह है दारा की विचार-दृष्टि और उसके अनुरूप किये गये उसके कार्य। वह भारतीय समाज में संगम-संस्कृति को विकसित करना चाहता था। संगम-संस्कृति से उसका आशय इस्लाम और हिन्दू धर्म-दर्शनों की आपसी एकता से था। अपने विचारों को ज़ाहिर करने के लिए उसने दो किताबें लिखीं, बावन उपनिषदों और भगवद्गीता का फ़ारसी में अनुवाद किया, इस्लाम और हिन्दू धर्म-दर्शनों के तुलनात्मक अध्ययन की शुरुआत की तथा सूफ़ी साधना और साधकों से जन-सामान्य को परिचित कराने के लिए पाँच और किताबें लिखीं। वस्तुतः वह ख़ुद एक सूफ़ी साधक और हिन्दी, फ़ारसी का शायर था और उसकी शायरी में भी तौहीद की मौजूदगी है।
सत्ता-संघर्ष के ब्योरों से भरे मध्यकालीन इतिहास में दारा शुकोह अपवाद ही था जिसके लिए सत्ता से अधिक ज़रूरी अध्ययन-मनन करना और भारत में संगम-संस्कृति की जड़ें मज़बूत करना था। धार्मिक-आध्यात्मिक उदारता से भरे अपने विचारों की क़ीमत उसे जान देकर चुकानी पड़ी।
प्रख्यात आलोचक मैनेजर पाण्डेय की यह पुस्तक न सिर्फ़ वर्तमान दौर में दारा शुकोह की प्रासंगिकता को नये सिरे से रेखांकित करती है, बल्कि उस संगम-संस्कृति की ज़रूरत पर भी ज़ोर देती है जिसका आकांक्षी वह था। इसमें दारा के कठिन जीवन-संघर्ष और असाधारण सृजन-साधना को सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया गया है।
Dara Shukoh : Sangam Sanskriti Ka Sadhak
Manager Pandey
Mughal Badshahon Ki Hindi Kavita
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यह आश्चर्यजनक लगेगा, लेकिन तथ्य है, कि बाबर से लेकर बहादुरशाह जफ़र तक, लगभग सभी मुग़ल बादशाह शायर और कवि भी थे; और उन्होंने फ़ारसी-उर्दू में ही नहीं, ब्रजभाषा और हिन्दी में भी काव्य-रचना की।
यह पुस्तक प्रमाण है कि जिस भी बादशाह को राजनीति और युद्धों से इतर सुकून के पल नसीब हुए, उन्होंने कवियों-शायरों को संरक्षण देने के अलावा न सिर्फ़ कविताएँ-ग़ज़लें लिखीं, अपने आसपास ऐसा माहौल भी बनाया कि उनके परिवार की महिलाएँ भी काव्य-रचना कर सकें। लिखित प्रमाण है कि बाबर की बेटी गुलबदन बेगम और नातिन सलीमा सुल्ताना फ़ारसी में कविताएँ लिखती थीं। हुमायूँ स्वयं कवि नहीं था, लेकिन काव्य-प्रेम उसका भी कम नहीं था। अकबर का कला-संस्कृति प्रेम तो विख्यात ही है, वह फ़ारसी और हिन्दी में लिखता भी था। ‘संगीत रागकल्पद्रुम’ में अकबर की हिन्दी कविताएँ मौजूद हैं। जहाँगीर, नूरजहाँ, फिर औरंगजेब की बेटी जेबुन्निसाँ, ये सब या तो फ़ारसी में या फ़ारसी-हिन्दी दोनों में कविताएँ लिखते थे। कहा जाता है कि शाहजहाँ के तो दरबार की भाषा ही कविता थी। दरबार के सवाल-जवाब कविता में ही होते थे। दारा शिकोह का दीवान उपलब्ध है, जिसमें उसकी ग़ज़लें और रुबाइयाँ हैं। अन्तिम मुग़ल बादशाह जफ़र की शायरी से हम सब परिचित हैं। उल्लेखनीय यह कि उन्होंने हिन्दी में कविताएँ भी लिखीं जो उपलब्ध भी हैं।
कहना न होगा कि हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक डॉ. मैनेजर पाण्डेय द्वारा सम्पादित यह संकलन भारत में मुग़ल-साम्राज्य की छवि को एक नया आयाम देता है; इससे गुज़रकर हम जान पाते हैं कि मुग़ल बादशाहों ने हमें क़िले और मक़बरे ही नहीं दिए, कविता की एक श्रेष्ठ परम्परा को भी हम तक पहुँचाया है।