Mughal Badshahon Ki Hindi Kavita
Author:
Manager PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
यह आश्चर्यजनक लगेगा, लेकिन तथ्य है, कि बाबर से लेकर बहादुरशाह जफ़र तक, लगभग सभी मुग़ल बादशाह शायर और कवि भी थे; और उन्होंने फ़ारसी-उर्दू में ही नहीं, ब्रजभाषा और हिन्दी में भी काव्य-रचना की।</p>
<p>यह पुस्तक प्रमाण है कि जिस भी बादशाह को राजनीति और युद्धों से इतर सुकून के पल नसीब हुए, उन्होंने कवियों-शायरों को संरक्षण देने के अलावा न सिर्फ़ कविताएँ-ग़ज़लें लिखीं, अपने आसपास ऐसा माहौल भी बनाया कि उनके परिवार की महिलाएँ भी काव्य-रचना कर सकें। लिखित प्रमाण है कि बाबर की बेटी गुलबदन बेगम और नातिन सलीमा सुल्ताना फ़ारसी में कविताएँ लिखती थीं। हुमायूँ स्वयं कवि नहीं था, लेकिन काव्य-प्रेम उसका भी कम नहीं था। अकबर का कला-संस्कृति प्रेम तो विख्यात ही है, वह फ़ारसी और हिन्दी में लिखता भी था। ‘संगीत रागकल्पद्रुम’ में अकबर की हिन्दी कविताएँ मौजूद हैं। जहाँगीर, नूरजहाँ, फिर औरंगजेब की बेटी जेबुन्निसाँ, ये सब या तो फ़ारसी में या फ़ारसी-हिन्दी दोनों में कविताएँ लिखते थे। कहा जाता है कि शाहजहाँ के तो दरबार की भाषा ही कविता थी। दरबार के सवाल-जवाब कविता में ही होते थे। दारा शिकोह का दीवान उपलब्ध है, जिसमें उसकी ग़ज़लें और रुबाइयाँ हैं। अन्तिम मुग़ल बादशाह जफ़र की शायरी से हम सब परिचित हैं। उल्लेखनीय यह कि उन्होंने हिन्दी में कविताएँ भी लिखीं जो उपलब्ध भी हैं।</p>
<p>कहना न होगा कि हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक डॉ. मैनेजर पाण्डेय द्वारा सम्पादित यह संकलन भारत में मुग़ल-साम्राज्य की छवि को एक नया आयाम देता है; इससे गुज़रकर हम जान पाते हैं कि मुग़ल बादशाहों ने हमें क़िले और मक़बरे ही नहीं दिए, कविता की एक श्रेष्ठ परम्परा को भी हम तक पहुँचाया है।
ISBN: 9788126729456
Pages: 135
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Usi Ke Naam
- Author Name:
Alok Yadav
- Book Type:

-
Description:
ख़ुशफ़िक्र शाइर आलोक यादव से मेरा तअल्लुक़ उतना ही पुराना है जितना ख़ुद उनका ग़ज़ल से। तक़रीबन तीन साल क़ब्ल ग़ज़ल से मुताल्लिक़ बुनियादी मालूमात और मुनासिब मशवरों के लिए उन्हें किसी की तलाश थी। उनकी यह तलाशो-जुस्तजू हमारे तअल्लुक़ का सबब बनी।
उनके पास क़ाबिलियत भी है और सलाहियत भी, हस्सास दिल भी है और दुनिया को उसके तमाम रंगों के साथ देखनेवाली नज़र भी। उनकी शायरी में ख़ुलूसो-मोहब्बत के जज़्बों, समाजी क़द्रों, आला उसूलों और इनसानी रिश्तों का एहतराम भी है और ज़ुल्म, जब्र, नाइंसाफ़ी और इस्तहसाल के ख़िलाफ़ मोह्ज़्ज़ब एहतिजाज भी। उनके अशआर एक तरफ़ उर्दू से उनके वालिहाना लगाव का ऐलान करते नज़र आते हैं तो दूसरी तरफ़ हिन्दी से उनके मज़बूत रिश्ते और गहरी रग़बत के ग़म्माज़ भी हैं।
अपने शेरी सफ़र के इब्तिदाई दौर ही में अगर कोई इस तरह के चन्द अशआर कहने में कामियाब हो जाए तो उसे अपने शेरी मुस्तक़बिल के ताबनाक होने की उम्मीद बाँधने में झिझक नहीं होती।
हदे-ईमान से आगे मैं जाना चाहता हूँ पर
अभी ईमान आधा है, अभी लग़्ज़िश अधूरी है
मेरे लिए हैं मुसबित ये आईनाख़ाने
यहाँ जमीर मेरा बेनक़ाब रहता है
ख़ुदा करे मंज़िलों की तरफ़ उठनेवाला उनका पहला क़दम ‘उसी के नाम’ ख़ातिख़्वाह पज़ीराई हासिल करे और उनके हौसलों के चराग़ कभी मद्धम न हों।
—अकील नोमानी
Pratinidhi Kavitayen : Vishnu Khare
- Author Name:
Vishnu Khare
- Book Type:

-
Description:
विष्णु खरे एक विलक्षण कवि हैं—लगभग लासानी। एक ऐसा कवि जो गद्य को कविता की ऊँचाई तक ले जाता है और हम पाते हैं कि अरे, यह तो कविता है! ऐसा वे जान-बूझकर करते हैं—कुछ इस तरह कि कविता बनती जाती है—कि गद्य छूटता जाता है। पर शायद वह छूटता नहीं—कविता में समा जाता है। ...वे लम्बी कविताओं के कवि हैं—जैसे मुक्तिबोध लम्बी कविताओं के कवि हैं। पर दोनों में अन्तर है। मुक्तिबोध की लम्बाई लय के आधार को छोड़ती नहीं—धीरे-धीरे वह कम ज़रूर होता गया है। विष्णु खरे गद्य की पूरी ताक़त को लिए-दिए चलते हैं—उसे तोड़ते-बिखेरते हुए, बीच-बीच में संवाद का सहारा लेते और जहाँ-तहाँ उसे डालते हुए चलते हैं और लय को न आने देते हुए।
किसी चीज़ को शब्दों में ज़िन्दा कर देना एक कवि की सिफ़त है और विष्णु खरे के पास वह जादू है।
—केदारनाथ सिंह
Gramya
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

- Description: ‘ग्राम्या’ में मेरी ‘युगवाणी’ के बाद की रचनाएँ संगृहीत हैं। इनमें पाठकों को ग्रामीणों के प्रति केवल बौद्धिक सहानुभूति ही मिल सकती है। ग्राम जीवन में मिलकर, उसके भीतर से, ये अवश्य नहीं लिखी गई हैं। ग्रामों की वर्तमान दशा में वैसा करना केवल प्रतिक्रियात्मक साहित्य को जन्म देना होता। 'युग', 'संस्कृति' आदि शब्द इन रचनाओं में वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए प्रयुक्त हुए हैं, जिसे समझने में पाठकों को कठिनाई नहीं होगी; ‘ग्राम्या’ की पहली कविता 'स्वप्न पट' से यह बात स्पष्ट हो जाती है।
Araj-Nihora
- Author Name:
Prakash Uday
- Book Type:

- Description: अगर आप भोजपुरी की मौजूदा सांस्कृतिक मुख्यधारा के साथ आलोचनात्मक सम्बन्ध विकसित करते हुए भोजपुरी जातीयता की पुनर्खोज करना चाहते हैं, अगर आप जीवन-संघर्षों के रस में सनी-पगी भोजपुरी की दूसरी परम्परा से अपने को जोड़ते हैं, अगर आप दया और घृणा के ध्रुवों के बीच विकसित होते इस इलाक़े के जीवन से कोई साबक़ा रखते हैं, तब यह संग्रह आपके ही लिए है।
Coffee Cafe
- Author Name:
Rashmi Tarika
- Book Type:

- Description: This book has no description
Pratinidhi Shairy : Akbar Allahabadi
- Author Name:
Akbar Allahabadi
- Book Type:

-
Description:
1851 की जंगे–आज़ादी में हिन्दुस्तानियों की हार के बाद उर्दू अदब में शुरू होनेवाले रेनासाँ में ‘अकबर’ इलाहाबादी का नाम सफ़े–अव्वल के शायरों में गिना जाता है। धर्म पर आधारित इस रेनासाँ की सारी विशेषताएँ ‘अकबर’ के यहाँ पूरी स्पष्टता के साथ देखी जा सकती हैं।
‘अकबर’ के कलाम की एक विशेषता और भी है। उन्होंने अपनी शायरी की शुरुआत संजीदा रवायती शायरी के साथ की थी। वही गुलो–बुलबुल, वही साग़ रो–मीना, वही शीरीं–फ़रहाद, वही शमा और परवाना रवायती शायरी के सारे प्रतीक ‘अकबर’ की शुरुआती शायरी में नज़र आते हैं। लेकिन अकबर इसी रवायत पर क़ायम रहे होते तो तय है कि वे मामूली दर्जे के सैकड़ों शायरों में बस एक होते।
लेकिन ख़ुशनसीबी कि ऐसा नहीं हुआ। जल्द ही अकबर ने अपनी एक अलग राह बना ली और वे हास्य–व्यंग्य के पहले प्रमुख शायर के रूप में जल्वागर हुए। यूँ तो जाफ़र, मीर, सौदा, ग़ालिब और दूसरे शायरों के यहाँ हास्य और व्यंग्य की सुन्दर छटाएँ देखने को मिलती हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी बाक़ायदा हास्य–व्यंग्य का शायर नहीं कहा जा सकता। ये ‘अकबर’ थे जिन्होंने उर्दू शायरी में अपनी बात कहने के लिए हास्य–व्यंग्य का सहारा लिया और एक ऐसी नई रवायत की बुनियाद डाली जो आज तक फल–फूल रही है।
विचारधारा के स्तर पर देखें तो पश्चिमी ज्ञान–विज्ञान और पश्चिमी सभ्यता का जितना भारी विरोध ‘अकबर’ के यहाँ दिखाई देता है, उतना किसी और शायर के यहाँ नहीं दिखाई देता। इसी तरह ‘अकबर’ धार्मिक और सामाजिक सुधार के भी विरोधी थे। बदलते हुए हालात में ‘अकबर’ की शिकस्त लाज़मी थी और कहीं हास्य के साथ और कहीं दु:ख के साथ उन्होंने अपनी इस शिकस्त का इज़हार भी किया है। लेकिन इस नकारात्मक पहलू के अन्दर जो सकारात्मक तत्त्व मौजूद हैं, सावधानी के साथ उनकी निशानदेही किए बिना ‘अकबर’ के साथ इंसाफ़ करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।
Pagdandiyan Gawah Hain
- Author Name:
Atma Ranjan
- Book Type:

- Description: Collection of Hindi Poems by Atma Ranjan. Awarded by Sutra Samman
Aankhein
- Author Name:
Sara Shagufta
- Book Type:

-
Description:
पाकिस्तान में उर्दू की शायरात शायरी के मैदान में शायरों से कहीं आगे निकल गई हैं, जिसकी मिसाल दुनिया भर में किसी देशकाल में नहीं मिलेगी। उन शायरात में जो पोस्ट-मॉडर्न कहलाती हैं, उनमें सारा शगुफ़्ता, अज़रा अब्बास, किश्वर नाहीद, नसरीन अंजुम भट्टी, अनूपा, तनवीर अंजुम और शाइस्ता हबीब के नाम ज़्यादा नुमायाँ हैं। लेकिन सारा शगुफ़्ता इनमें सब से ऊपर हैं। ‘सुपर पोएटेस’ या ‘क्वीन ऑफ़ पोएटिक्स’ के तौर पर वह चमत्कार से कम नहीं। ...पढ़ने वाले मेरी राय से इत्तिफ़ाक़ करेंगे कि इतनी आला शायरी पश्चिम में भी नहीं हो रही। यह शायरी हालाँकि आज की पोस्ट-मॉडर्न रिवायत की तरह सुगठित नहीं लेकिन असर-अंगेज़ी में अपना जवाब नहीं रखती, और आला सतह की शायरी को भी कहीं पीछे छोड़ जाती है।
—मुबारक अहमद, आँखें (उर्दू) के फ़्लैप से
सारा जिस तरह की ज़िन्दगी गुज़ारती थी, ज़हनी सतह पर ख़ुद भी उसे पसंद नहीं करती थी। इसीलिए हमेशा अपराध-भाव से भरी रहती थी। उसकी शायरी में इसी अपराध-भाव की झलक नज़र आती है। ऐसी ज़िन्दगी को वह ख़ुद से चिमटाये हुए चलती थी... एक नज़्म में वह कहती है : मुझे रोटी दो, और फिर गाली दो।
—अतिया दाऊद, ‘सारा मेरी दोस्त’ से
...सारा शगुफ़्ता के नाम और उसकी शायरी को दूसरे समकालीन शायरों और उनकी रचनाओं के साथ ब्रैकेट नहीं किया जा सकता। यह तो ज़रूर है कि उसने ज़्यादातर नज़्में नस्री नज़्म के रूप में लिखीं लेकिन उसकी नस्री शायरी पिछले तीन दशकों (1960 के बाद) से अब तक की नस्री शायरी से बिलकुल अलग नज़र आती है। उसकी शब्दावली की बनावट बेमिसाल है। हम उसकी शायरी की विषय-वस्तु पर बात करें तो उसकी आँखें सब से अहम समयकाल—चरम-जीवन से चरम-मृत्यु तक फैली है। कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप में सारा शगुफ़्ता के सिवा कोई ऐसी औरत नज़र नहीं आती जिसने शायरी और अदब के माध्यम से इस इन्तहा पर पहुँच कर सच—बल्कि नंगा सच—बोला हो।
—अहमद हमीश, मशहूर शायर और ‘आँखें’ (उर्दू) के प्रकाशक
Khurduri Hatheliyan
- Author Name:
Anamika
- Book Type:

-
Description:
अनामिका की कविताएँ एक व्यापक अर्थ में गहरे वात्सल्य और हँसमुख दोस्त-दृष्टि की सधी अभिव्यक्तियाँ हैं। स्त्री के लेंस से वृहत्तर समाज की क्लिष्ट विडम्बनाएँ देखती-समझती इन कविताओं में एक महीन-सी परिहास वृत्ति भी है, गम्भीर क़िस्म की एक क्रीड़ाधर्मिता–सत्य को समग्रता में समझने की ईमानदार कोशिश!
लोकरंग में रची-बसी इस समाद्रित स्त्री कवि की शब्द और बिम्ब-सम्पदा के स्रोत अनन्त हैं। यहाँ लोकजीवन का कोई अनूठा प्रसंग विश्व-साहित्य के किसी मार्मिक प्रसंग की उँगली पकडक़र उसी तरंग में उठता है जिसमें चेखव की ‘तीन बहनें’ उठती थीं। मिलकर देखे एक सपने का तबोताब है इनमें!
मुहावरे, कहावतें, पढ़ा-सुना-भोगा हुआ– सब कुछ एक अलग कौंध में उजागर करती इन कविताओं में स्त्री-भाषा अपने पूरे ठस्से के साथ अपनी अलग-सी उपस्थिति दर्ज करती है।
Kammo Matiyarin
- Author Name:
Mukesh Dubey
- Book Type:

- Description: Book
Dhoop Ke Liye Shukriya Ka Geet Tatha Anya Kavitayen
- Author Name:
Mithilesh Kumar Rai
- Book Type:

- Description: यथार्थ के अनुभवमूलक अन्वेषण और संवेदना के नए धरातल के कारण युवा कवि मिथिलेश कुमार राय के इस संग्रह की कविताएँ अलग से आकर्षित करती हैं। ग्रामीण जीवन के यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए अब तक जो फ्रेम हिंदी कविता में बने या बनाए गए, ये कविताएँ उन ढाँचों या चौकठों से बाहर की कविताएँ हैं। हिंदी में ग्रामीण जीवन के चित्रण को लेकर बनी बद्धमूल धारणाओं को और नई अवधारणाओं को विकसित करने का उपक्रम 1990 के बाद से निरंतर होता रहा है। फिर भी, मिथिलेश की कविताओं को पढ़ते हुए एक सुखद आश्चर्य होता है कि लोक जीवन के बारे में अब भी इतना कुछ, इतना नया, इतना अनूठा और इतना मार्मिक भी; कहने को बचा रह गया था। संग्रह की पहली ही कविता 'लक्ष्मी देवी उपले बढिय़ा थोपती है' की शुरुआती पंक्तियाँ द्रष्टव्य है— लछमी देवी उपले बढिय़ा थोपती हैंसम्मान के पर्चे पर इनका भी नाम चढऩा चाहिए महोदयलछमी देवी सानी इतना अच्छा लगाती हैंकि नाद जब ख़ाली हो जाता हैभैंसें तभी गर्दन ऊपर करती हैंसंग्रह में एक कविता है—'चावल लेने पड़ोसी के घर दौड़ती हैं स्त्रियाँ।' इस तरह की कविता में प्राय: अभाव का चित्रण होता है, लेकिन मिथिलेश लिखते हैं कि चावल, चीनी, चायपत्ती आदि माँगने जाने वाली स्त्रियाँ पड़ोसियों के साथ नेह-छोह के रिश्तों को जुगाने के लिए भी जाती हैं। ज़ाहिर है, कहन का यह नया ढंग यथार्थ की नई समझ के चलते ही आया है। निस्संदेह लोक अस्मिता की नई पहचान के कारण युवा कवि का यह संग्रह अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज करने में सफल होगा। —मदन कश्यप
Himalaya Ne Pukara
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
- Book Type:

- Description: गहरी और सक्रिय राजनीतिक चेतना से सम्पन्न ‘हिमालय ने पुकारा’ की कविताएँ उस भारतीय जन का आह्वान करती हैं जिसके पास साहस भी है और शौर्य का इतिहास भी, लेकिन वह कभी अध्यात्म तो कभी अतिरिक्त सहिष्णु भाव के चलते सम्मुख मौजूद परिस्थितियों को अनदेखा कर जाता है। पुस्तक की भूमिका में नेपाली जी एक कथा के माध्यम से इस ओर इशारा भी करते हैं और तत्कालीन राजनीतिक हालात का हवाला देते हुए सच्चे सैनिक की तरह आम जन-गण को संगठित होकर उठ खड़े होने के लिए प्रेरित करते हैं।कह दो कि हिमालय तो क्या पत्थर भी न देंगे| लद्दाख की क्या बात है बंजर भी न देंगे आसाम हमारा है रे मर कर भी न देंगे जिस दौर की ये कविताएँ हैं, उसकी पृष्ठभूमि में चीन और भारत का संघर्ष है, इसलिए कई कविताओं-गीतों में उसकी स्पष्ट छवियाँ दिखाई देती हैं। लेकिन जो चीज इन्हें आज भी पुनः-पुनः पठनीय बनाती है, वह है कवि की मनीषा और काव्यात्मक सामर्थ्य। वे छन्द को एक शस्त्र की तरह इस्तेमाल करते हैं, और अपने भावों को भी कहीं अस्पष्ट नहीं होने देते। यह सन्तुलन आज के कवियों के लिए खास तौर पर अनुकरणीय है।
Pratinidhi Kavitayen : Ibne Insha
- Author Name:
Ibne Insha
- Book Type:

- Description: उर्दू के सुविख्यात शायर इब्ने इंशा की प्रतिनिधि ग़ज़लों और नज़्मों की यह पुस्तक हिन्दी पाठकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के समान है। हिन्दी में वे कबीर और निराला तथा उर्दू में मीर और नज़ीर की परम्परा को विकसित करनेवाले शायर हैं। जीवन का दर्शन और जीवन का राग उनकी रचनाओं को बिलकुल नया सौन्दर्य प्रदान करता है। उर्दू शायरी के प्रचलित विन्यास को उनकी शायरी ने बड़ी हद तक हाशिए में डाल दिया है। अब्दुल बिस्मिल्लाह के शब्दों में कहें तो इंशाजी उर्दू कविता के पूरे जोगी हैं। हालाँकि रूप-सरूप, जोग-बिजोग, बिरहन, परदेशी और माया आदि का काव्य-बोध इंशा को कैसे प्राप्त हुआ, यह कहना कठिन है, फिर भी यह असन्दिग्ध है कि उर्दू शायरी की केन्द्रीय अभिरुचि से यह अलग है या कहें कि यह उनका निजी तख़य्युल है। दरअस्ल भाषा की सांस्कृतिक और रूपगत संकीर्णता से ऊपर उठकर शायरी करनेवालों की जो पीढ़ी 20वीं सदी में पाकिस्तानी उर्दू शायरी में तेज़ी से उभरी थी, उसकी बुनियाद में इंशा सरीखे शायर की ख़ास भूमिका थी।
Dhoomil Ki Shreshth Kavitayan
- Author Name:
Brahma Dev Mishra +1
- Book Type:

- Description: ‘धूमिल की श्रेष्ठ कविताएँ’ अत्यन्त प्रखर और हिन्दी काव्य-जगत में नई हलचल पैदा करनेवाले सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ की कविताओं का प्रथम सम्पादन है। एक लम्बी भूमिका के साथ सम्पादकों ने उनकी श्रेष्ठ कविताओं का चयन किया है, साथ ही भाषा के माध्यम से गाँव को शहर की होड़ में लानेवाले कवि की कविताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी भी प्रस्तुत की है। लक्ष्य, धूमिल की अनगढ़ भाषा और नए मुहावरे को पाठकों तक सहजता से पहुँचाना है। सम्पादकों की दृष्टि में धूमिल का सर्जनात्मक व्यक्तित्व उनकी कविता में सक्रियता से मुखर है। ‘धूमिल को उनके कथ्य और भाषा के स्वीकृत स्वरूप के लिए जानना चाहिए, न कि प्रयोगात्मक शैलीकार के रूप में।’
Phir Kabhi Aana
- Author Name:
Sitakant Mahapatra
- Book Type:

-
Description:
ओड़िया के वरिष्ठ कवि सीताकान्त महापात्र का यह संग्रह मृत्यु के विरुद्ध जीवन की हठ और प्रकृति में निबद्ध जीवन की अलग-अलग सम्भावनाओं का आख्यान है। जीवन के मौन क्षणों को भाषा में अंकित करते हुए वे इन कविताओं में जिस तरह जिजीविषा की नि:शब्द बोली को स्वर देते हैं वह अद्भुत है। चाहे यमराज से दोस्ताना बातें करते हुए उन्हें फिर कभी आने के लिए कहना हो या पृथिवीवासी वृक्षविरोधी यमदूतों को सम्बोधित वृक्ष-संहिता की कविताओं में बिंधा वृक्षालाप, और संग्रह की अन्य कविताएँ, सीताकान्त जी मनुष्य और प्रकृति से बने समवेत लोक की उत्तरजीविता की कामना को मंत्र की तरह जपते हैं।
“कल नहीं रहूँगा मैं/कुआँ-कुआँ का स्वर सुनाई दे रहा होगा/नन्ही मुस्कान होगी उसकी/फूल होंगे, मधुमक्खियाँ होंगी/ईश्वर उस बच्चे की मुस्कान देख तब भी आशान्वित होंगे।”
मरण के ऊपर जीवन की सम्भावनाओं को धन की तरह संचित करती ये पंक्तियाँ एक बड़े कवि की ओर से अपने आगे आनेवाले समय को शुभ आमंत्रण की तरह प्रकट होती हैं। एक अन्य कविता में वे कहते हैं :
“कितनी ख़ुशी से/इन्तिज़ार करती है लॉन की घास/दो नन्हे पैरों को चूमने का/फूलों के गमले गिर जाने का/तरह-तरह के रंग पहचाने जाने के लिए/रंग-बिरंगी दवा की गोलियाँ/पन्नी की क़ैद से मुक्त हो बाहर आने को।”
लेकिन धरती के जीवन को किसी परालोक का उपहार वे नहीं मानते। मनुष्य की संघर्ष-शक्ति और अपनी दुनिया आप सिरजने, बचाने और बढ़ाने की उद्दाम इच्छा को वे दैवी शक्ति से स्वतंत्र एक सत्ता के रूप में रेखांकित करते हैं, और जिस तरह यम को वापस जाने के लिए कहते हैं उसी तरह देवताओं को भी सुना देते हैं कि हमारे उद्धार के लिए नहीं, आप अवतार लेकर आते हैं, तो अपनी किसी परेशानी के कारण आते होंगे।
“स्वर्ग की चकाचौंध से चौंधियाकर/दीर्घ तनु, दिव्य रूप देवता गण/उससे अधीर हो भाग आते हैं हमारे बीच/धरातल के अँधेरे में/...दो, उन्हें अपना साथी बनने दो।”
Bagh Duhne Ka Kaushal
- Author Name:
Raman Kumar Singh
- Book Type:

- Description: हिन्दी की समकालीन कविता में कुछ समय से आए बदलाव अभी ठीक से परिभाषित नहीं किए गए हैं, लेकिन यह निर्विवाद है कि वह काव्य-पीढ़ियों से आगे की, जीवन के ज़्यादा विस्तारों को देखती-पहचानती हुई कविता है। अपने पूर्वज कवियों का विवेक उसके अनुभव-संसार में उपस्थित है लेकिन उसकी संवेदना बिलकुल नई और अपनी है। इस संवेदना में यह जानने की बेचैनी है कि समाज, मानव-सम्बन्ध और राजनीति में हमने क्या-क्या खोया है, कौन-सी दुनियाएँ हमसे छूट गई हैं और हमारी मूलभूमि का, हमारी स्थानीयता का क्या हाल है। आश्चर्य नहीं कि रमण कुमार सिंह अपने पहले कविता-संग्रह ‘बाघ दुहने का कौशल’ की ज़्यादातर कविताओं में बार-बार उस जीवन को जाँचते-परखते लौटते हैं जो हमारे पीछे रह गया है और जिसकी जर्जरता और उदासी हमारा पीछा करती रहती है। एक सहज, गँवई यथार्थ और उसका जादू जो अब हमारा अतीत है और हमारे सामने फैले शहरी निम्न-मध्यवर्गीय यथार्थ के आपसी तनाव भी इन कविताओं की अन्तर्वस्तु बनाते हैं और उस ‘लुटेरे समय’ की छवियाँ उभारते हैं जो ‘दादी की लोरियों’ और ‘बुजुर्गों की लाठी’ से लेकर ‘आकाश की नीलिमा’ तक को छीन रहा है और जिसके प्रति विरोध दर्ज करना जरूरी है, अन्यथा वह हमारी अभिव्यक्ति को भी नष्ट कर दे सकता है। रमण कुमार सिंह की कविताओं में हमारे लोकजीवन का जर्जरित होता स्वरूप बहुत शिद्दत से व्यक्त हुआ है। वे एक तरफ उस संसार की बची-खुची चीजों, परम्पराओं और सम्बन्धों को कविता की स्थायी स्मृति की तरह बचा लेना चाहते हैं तो दूसरी तरफ उस युवक की बेचैनी के पास भी जाते हैं जो लोक में प्रवेश करते बाजार, टूटती चौपाल और डरावने हो रहे पनघट और राजनीति के सत्ता-समीकरणों का साक्षी है और इस यथार्थ को बदल पाने में असमर्थ है। ‘गुजरे हुए बाबा से संवाद’ इसी तरह की एक मार्मिक कविता है जिसमें आज की पीढ़ी का एक प्रतिनिधि अपने पूर्वज को ग्रामीण संस्कृति का मौजूदा हाल सुनाते हुए उस सपने के बारे में पूछता है जिसे देखते-देखते वे अन्ततः सो गए थे। गौरतलब यह है कि यथार्थ बदल रहा है लेकिन स्वप्न भी जीवित है। दरअसल रमण की कविता उम्मीद और नाउम्मीद के बीच कई तरह के रिश्तों की पहचान की दस्तावेज है और कई बार वे ‘देश-परदेस’ को भी इसी रूप में पहचानते हैं। ‘बाघ दुहने का कौशल’ की रचनाएँ हमें उस सरल और मासूम संसार में ले जाती हैं जो वास्तविकता में टूट रहा है, लेकिन हमारे स्वप्नों में साबुत है। भाषा की ताज़गी और शिल्प की लोक-लय के साथ गँवई-शहरी जीवन के विकल रूप रमण की कविताओं के केन्द्रीय बयान हैं जिनमें संवेदना की स्थानिकता का संगीत भी सुनाई देता है। मंगलेश डबराल
Granthi
- Author Name:
Sumitranandan Pant
- Book Type:

-
Description:
महाकवि सुमित्रानंदन पंत के शब्दों में ‘ग्रंथि’ उनकी कविता के अतुकान्त का सौन्दर्य स्वरूप खंडकाव्य है। यह रचना जनवरी 1920 में लिखी गई और पहली बार 1929 में प्रकाशित हुई। पंत जी की महत्त्वपूर्ण काव्य-रचना ‘उच्छ् वास की तरह ही यह कथात्मक कृति है। कथा-भाग बहुत थोड़ा है पर स्पष्ट है।
Jatayu, Rugova Aur Anya Kavitayein
- Author Name:
Sitanshu Yashashchandra
- Book Type:

-
Description:
भारतीय कविता के शीर्षस्थ प्रतिनिधि सितांशु यशश्चन्द्र की मूल गुजराती कविताओं को हिन्दी अनुवाद में पढ़ते हुए लगता है कि हमारी कविता वास्तव में विश्व कविता को एक नया आयाम एवं स्वर दे रही है जो अतिआधुनिक भाव-संवेदन का संवहन करती हुई भी ठेठ भारतीय मिथकों और पौराणिक भूमि में मूलबद्ध है। सितांशु यशश्चन्द्र आज के मनुष्य और जीवन का संधान करते हुए सुदूर अतीत में जाते हैं और उन सर्वनिष्ठ तत्त्वों का उत्खनन करते हैं जो जटायु से लेकर इब्राहीम रुगोवा तक व्याप्त है। और ये तत्त्व हैं जिजीविषा, जीने की लालसा और संघर्ष का अपार ताब और सतत प्रतिरोध जिसके दो उज्ज्वल प्रतिनिधि हैं पौराणिक जटायु और समकालीन रुगोवा और इनके मध्य अनेकानेक स्त्री-पुरुष, नदी-पहाड़ और समस्त ब्रह्मांड—‘मगरमच्छों को मरने न देना नदी/तुम्हारे जल को जीवित रखने का अब कोई और उपाय बचा नहीं है’ तथा 'पूस की रात को बिना चुनौती दिये यूँ जीतने नहीं देना है'।
यह एक भयानक लोक है जहाँ ‘नदी के पास पानी भी नहीं जिसे कहा जा सके सचमुच पानी’ और जहाँ बड़वानल के उजियारे में दिखता है पानी, जहाँ ‘हवा को जलाने वाली बिजली गिरती है’। सितांशु जी ने हमारे समय की त्रासदी और विद्रूप को अत्यन्त तीव्र एवं अप्रत्याशित बिम्बों में पुंजीभूत किया है—‘वहाँ उस तरफ पानी में से उठाई गई बगुले की चोंच में/तड़पती मछलियाँ/कुछ ही पलों में बगुलों के पंखों की सफेदी में बदल जाएँगी’। स्थिति की भयावहता का हिला देने वाला बिम्ब है—‘हरे पेड़ को देखकर लगता है/कि यह सूख गया होता तो कुछ ईंधन मिलता/ऐसा समय है यह’। और इस समय की शिनाख्त के लिए कवि पास की मलिन बस्ती से लेकर चे गेवारा, हो ची मिन्ह और यूसुफ मेहरअली तक जाता है। वह एक ऐसा कवि है जो ‘बिना ढक्कन की कलम’ लिए पूरी पृथ्वी पर चलता जा रहा है ताकि तत्काल हर हरकत, हर जुंबिश को दर्ज किया जा सके। यहाँ पूर्वज भी हैं, परदादा, परदादी, पत्नी, बेटा, बेटी विपाशा, गाय, जीव-जन्तु और ‘सारा का सारा ब्रह्मांड एकदम सटा हुआ सा’—‘तारा-पगडंडियाँ’ और ‘ऐसी रोशनी जो अँधेरे की चमड़ी छीलकर रख देती है’। सितांशु यशश्चन्द्र ब्रह्मांड-बोध के कवि हैं जिसकी चरम अभिव्यक्ति ‘महाभोज’, ‘तारे’ और ‘लगभग सटकर’ सरीखी कविताओं में होती है जब लगता है कि ‘इस स्वर लीला में धीरे-धीरे मैं अपनी मानव भाषा भूलता जा रहा हूँ’। इस खगोलीय प्रसार के बावजूद, स्मृति के अर्णव-प्रसार के बावजूद यहाँ हर वस्तु की निजता और विलक्षणता स्थापित और समादृत है जिसका एक उदाहरण ‘हर चीज दो, दो’ है। यह बेहद नाजुक और मसृण संवेदों की कविता है। सितांशु जी सूक्ष्म और विराट दोनों को एक साथ देख सकते हैं यहाँ छोटा से छोटा कम्पन भी समस्त ब्रह्मांड की अभिव्यक्ति है और हर घटना का प्रभाव-प्रसार आकाश-गंगा तक।
यह न तो निचाट वक्तव्यों की कविता है न अवरयथार्थवादी मुद्राओं की। भारतीय काव्य की परम्परा में यह उपमाओं, रूपकों और बिम्बों के माध्यम से हर आम और खास को सम्बोधित है। क्योंकि गांधी जी का आग्रह था कि खेतों में काम करने वाले, कुएँ से पानी खींचने वाले कोशिया मजदूर भी समझ सकें ऐसी कविता लिखनी चाहिए; यह कवि के सौन्दर्यशास्त्र का एक मूल संकल्प है। इसीलिए यह गहरे राजनैतिक आशयों की भी कविता है। पूरे संग्रह में अनवरत बेचैनी और छटपटाहट है और स्वाधीनता के लिए संघर्ष। ये कविताएँ अनुभवों को केवल प्रकाशित ही नहीं करतीं, बल्कि विश्लेषित करते हुए एक तार्किक उपसंहार तक ले जाने का उद्यम करती हैं। सम्भवत: यही कारण है कि इस कविता की गति सर्पिल और कई बार तो वलयाकार है, भावों-विचारों का ऐसा गुम्फन जो पाठक को भी अपने भँवर में खींच लेता है—
मेरी कविता जैसी दूसरी कोई जगह
मेरे पास कहीं बची नहीं रह गई
जहाँ मतभेद या मनमेल को लेकर
खुलकर बात हो सके
सितांशु यशश्चन्द्र की कविता ऐसी ही सार्वजनिक जगह है—उदार, प्रशस्त और निर्बन्ध। और साथ ही नितान्त निजी और एकान्त। शायद इसीलिए ‘मुझे इसके घर में घर जैसा लगता है’।
—अरुण कमल
Ghazale Akhil ki
- Author Name:
Akhilesh Nigam 'Akhil'
- Book Type:

-
Description:
ग़ज़ल की धारा गंगाजल की तरह होती है जो उसमें डुबकी लगाने वाले को पूर्णतया भाव-विभोर कर देती है, दिलो-दिमाग को तरो-ताज़गी देती है तथा नकारात्मक विचारों को दूर कर उसे सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।
यह ग़ज़ल कृति ग़ज़ल सम्बन्धी तमाम विशिष्टताओं से अभिमंडित है। ग़ज़लों में कहीं प्रेम व सौन्दर्य की सघन अनुभूतियाँ हैं तो कहीं बनते-बिगड़ते नए समाज की क्रूरता आक्रामकता, अवसरवादिता, बाज़ारवाद व ढेर सारी असंगतियाँ हैं। ग़ज़लों में प्रतिवाद के प्रखर स्वर विद्यमान हैं। जो ग़ज़लें सामाजिक बिडम्बनाओं में डूबी हैं उनमें प्रस्तुत तीक्षता एक विशिष्ट मिज़ाज को प्रकट करती है। ऐसी ग़ज़लों की भाव भूमि निराली ही नहीं प्रभावोत्पादी भी है। ग़ज़लों में भाषा की सादगी के साथ-साथ उनमें अर्थ की गहराई भी है। ग़ज़लों में सहज अभिव्यक्ति पर बल दिया गया है। भले ही उसमें अन्य भाषाई शब्दावली प्रयुक्त जाए।
ग़ज़लों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने की पुरजोर कोशिश की गयी है। सर्व धर्म समभाव, नशा मुक्त समाज की स्थापना, कन्या भ्रूण हत्या का विरोध, पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध अभियान, मानवता के सन्देश के साथ-साथ उत्साहपूर्वक जीवन जीने की बात ग़ज़लों में विद्यमान है।
मीरा याज्ञिक की डायरी
Lamhe Zindagi Ke
- Author Name:
Prahlad Narayan Mathur
- Book Type:

- Description: 'लम्हे जिंदगी के' कविता पुस्तक, सामाजिक विषयों पर स्वयं लेखक की कविताओं का संकलन है। 'पिता क्या होता है' इसका अहसास पिता बनने के बाद ही होता है, यह इस कविता के माध्यम से बेहतरीन तरीके से बतलाया है। इस कविता के अलावा पिता पर बहुत-सी भावनात्मक कविताओं का समावेश है जैसे 'पिता', 'पिता का प्यार', 'पिता की डांट' एवं 'सूरज से पिता' इत्यादि। माँ पर भी दिल को छू लेने वाली बहुत-सी कविताएँ हैं। 'माँ को कभी सोते देखा नहीं' कविता में एक बच्चे का माँ के प्रति अथाह प्रेम को मर्मस्पर्शी तरीके से दर्शाया है। कोरोना ने समाज के हर तबके को बहुत गम दिये हैं। बहुत लोगों ने अपनों को खोया है। कविताओं के माध्यम से कोरोना के प्रति अपनी भावनात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। एक छोटे बच्चें की भावना को जो करोना के कारण लंबे समय से स्कूल नहीं जा पा रहा है, बहुत सुंदर तरीके से पेश किया है। दोस्तों पर लिखी कविताएँ भी बेमिसाल है। उपरोक्त पुस्तक में प्रत्येक कविता दिल को छू जाने वाली तथा आम आदमी के जीवन का प्रतिबिम्ब है। यह हर उम्र के व्यक्तियों के पढ़ने योग्य है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...