Kashinath Singh
Hansa Karo Puratan Baat
- Author Name:
Kashinath Singh
-
Book Type:

- Description:
‘हंसा करो पुरातन बात’ कथाकार-उपन्यासकार काशीनाथ सिंह के साक्षात्कारों का संकलन है। इस किताब में उनके 1989 से 2022 तक के साक्षात्कार हैं। साक्षात्कारों को प्रकाशन-क्रम से रखा गया है ताकि पाठक उनकी रचनात्मक और वैचारिक यात्रा को प्रामाणिकता के साथ समझ सकें।
काशीनाथ जी से जुड़ा वह हर सवाल यहाँ मौजूद है जिसमें एक पाठक की जिज्ञासा हो सकती है। ये सभी साक्षात्कार वे हैं जो उनकी पूर्व-प्रकाशित दोनों पुस्तकों, ‘गपोड़ी से गपशप’ और ‘बातें हैं बातों का क्या’ में नहीं हैं। ‘परिशिष्ट’ में ऐसे साक्षात्कार हैं जिनमें सीधे-सीधे सवाल-जवाब की पद्धति नहीं है, लेकिन साक्षात्कारकर्ता या पत्र-पत्रिका ने उन्हें ‘बातचीत’ या ‘बातचीत पर आधारित’ कहा है। इन साक्षात्कारों में ‘सदी का सबसे बड़ा आदमी’ कहानी के प्रति उनका मोह दृष्टिगोचर होता है। ‘काशी का अस्सी’ को वे अपना सर्वश्रेष्ठ उपन्यास तथा ‘अपना मोर्चा’ को भूमिका मात्र मानते हैं। सामासिक संस्कृति की पक्षधरता और मनुष्यता में उनका विश्वास भी प्रकट होता है। कहानी लेखन में बदलाव, कहानी से संस्मरण की ओर शिफ्ट होने के कारण, देश-विदेश-छात्र राजनीति एवं वर्तमान लेखन पर उनके विचार इन साक्षात्कारों में अभिव्यक्त हैं।
Hansa Karo Puratan Baat
Kashinath Singh
Batein Hain Baton Ka Kya
- Author Name:
Kashinath Singh
-
Book Type:

- Description: पिछले पचास साल की हिन्दी कहानी में अनेक बड़े लेखकों के साथ जिन कहानीकारों का नाम अग्रणी रहा और जिन्हें पाठकों ने लगातार पसन्द किया उनमें काशीनाथ सिंह प्रमुख हैं। काशीनाथ सिंह अपने लेखन के लिए लोक से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। वे जीवन का महत्त्व समझने वाले कथाकार हैं। सीधी-सच्ची बात कहने के लिए कला की कृत्रिमता उन्हें कभी पसन्द न आई और तभी उनकी कलम से काशी का अस्सीजैसी कालजयी कृति भी सम्भव हुई। लेखक के संसार को जानने-समझने के लिए ही नहीं वरन् उसकी कला के रहस्य को भी समझने के लिए उससे किए गए संवादों का महत्त्व है। काशीनाथ सिंह से समय-समय पर किए गए संवादों के इस संग्रह को वस्तुत: बतकही की संज्ञा अधिक समीचीन होगी क्योंकि काशीनाथ सिंह उस लोक के कथाकार हैं जो विचारों की आवाजाही में विश्वास रखता है। यहाँ संकलित लगभग दो दर्जन संवाद काशीनाथ सिंह के व्यक्तित्व और उनके सृजन सरोकारों को उजागर करने वाले हैं। विचारधारा, राजनीति और समाज की व्यापक बहसें और सवाल इन संवादों को धार देते हैं तो गद्य की कला का मर्म भी इन संवादों को उल्लेखनीय बनाता है। उनके लेखन के उत्तरार्ध में आई अनेक कृतियों यथा रेहन पर रग्घू, महुआ चरित और उपसंहार पर यहाँ अनेक संवाद हुए हैं। इन सबसे अलहदा और ऊपर है बनारस की बोली-बानी में काशीनाथ सिंह की बतकही। सीधी-सच्ची बातें और न हुआ तो दरेरा देकर कह देने का आत्मविश्वास। यह बतकही हमारे संवादहीनता से भरे समय में आत्मीय गपशप का विरल सुख है। इस गपशप में कथाकार अपने साथ पाठक को वैसे ही साथ लिए बैठा है जैसे गाँव में बर्फीली हवाओं में अलाव तापते हुए लोग सुख-दुःख की बात करते हैं। आइए, इस बतकही में शामिल होते हैं और बातों का आनन्द लेते हैं।
Batein Hain Baton Ka Kya
Kashinath Singh
Sadi Ka Sabse Bada Admee
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description:
इस संग्रह में शामिल कहानियों के बारे में स्वयं लेखक का यह कहना कि, ‘ये कहानियाँ आपके पास आ रही हैं—उठने-बैठने के लिए, बोलने-बतियाने के लिए, संग-साथ के लिए'—उतनी ही सार्थक टिप्पणी है जितनी कि ये कहानियाँ। अपनी रचना की जनपक्षीय भूमिका के प्रति आश्वस्त रचनाकार ही ऐसी आत्मीय बात कह सकता है।
समकालीन हिन्दी कथाकारों में काशीनाथ सिंह का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अपने कथा-पात्रों को न तो उनके सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विकासक्रम से काटकर प्रस्तुत किया है और न ही रचना पर बौद्धिक या कलात्मक कुहासे की चादर ढकी है। अपने समाज और अपने लोगों से गहरे प्यार और उनकी तमाम ख़ामियों-ख़ूबियों की बेबाक समझ से पैदा हुई ये कहानियाँ हमें अभिभूत कर लेती हैं। साथ ही हम न सिर्फ़ अपने इर्द-गिर्द को बल्कि स्वयं को भी ज़्यादा ईमानदारी से पहचानने लगते हैं।
संक्षेप में कहें तो बातचीत का एक सहज अन्दाज़, जिसमें विषयगत परिवेश और उसके जटिलतर अन्तर्विरोध
उजागर होते चले आते हैं, इन कहानियों की एक ख़ास ख़ूबी है।
Sadi Ka Sabse Bada Admee
Kashinath Singh
Patta Patta Boota Boota
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description:
काशीनाथ सिंह ने कई विधाओं में रचना की है। यह उनकी अभी तक असंकलित रचनाओं का संग्रह है जिसमें उनकी कुछ कहानियों के साथ कुछ अन्य गद्य रचनाओं को शामिल किया गया है। इनमें से कुछ कहानियों को काशीनाथ जी ने ख़ारिज के खाते में डाल रखा था। लेकिन किसी भी रचनाकार की संरचना को पूरी तरह समझने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी उन रचनाओं को भी पढ़ा जाए, जिन्हें वह ख़ुद महत्त्वपूर्ण नहीं मानता। कई बार ऐसा भी होता है कि अपनी जिन चीज़ों को लेखक बहुत अहमियत नहीं देता, वे वास्तव में पाठकों के लिए बहुत महत्त्वर्ण साबित होती हैं। सम्भव है कि इनमें भी आपको कुछ ऐसी रचनाएँ दिख जाएँ।
काशीनाथ सिंह लोक-बोध से सम्पन्न रचनाकार रहे हैं। वे चीज़ों को वहाँ से देखने के हिमायती हैं जहाँ हम खड़े होते हैं, वहाँ से नहीं जहाँ से देखने का रिवाज चल निकलता है और हर कोई जिसे या तो फ़ैशन के चलते या पोलिटिकल करेक्टनेस के कारण अपनाने लगता है।
इस पुस्तक में शामिल रचनाओं में हमें उनकी अपनी दृष्टि से देखी हुई चीज़ें मिलती हैं जो हमें आगे अपनी दृष्टि विकसित करने, अपने पक्ष को परिभाषित करने का आधार देती हैं। इस पुस्तकीय प्रस्तुति का उद्देश्य काशीनाथ सिंह की पचास वर्षों के व्यापक कालखंड में बिखरे रचना-स्फुलिंगों को एकत्रित करना और उनके उस लेखक को समझना है जो इस बीच बना, साथ ही उसके बनने की प्रक्रिया को भी।
Patta Patta Boota Boota
Kashinath Singh
Kahni Upkhan
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description:
सुप्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह पिछले चालीस वर्षों से हिन्दी कथा में सक्रिय और तरो-ताज़ा हैं। उन्होंने अपने लेखन के ज़रिए पाठकों की नई जमात तैयार की है—युवाओं की जमात ‘अपना मोर्चा’ लिखकर और साहित्य से कोई सरोकार न रखनेवाले सामान्य पाठकों के संस्मरण और ‘काशी का अस्सी’ लिखकर। लेकिन ऊपर से आरोप यह कि उन्होंने साहित्य की कुलीनता की धज्जियाँ उड़ाई हैं। इसके एवज़ में उन्होंने गालियाँ भी खाई हैं, उपेक्षाएँ भी झेली हैं और ख़तरे भी उठाए हैं। यह यों ही नहीं है कि कथा-कहानी में आनेवाली हर युवा पीढ़ी काशी को अपना समकालीन और सहयात्री समझती रही है। ऐसा क्यों है—यह देखना हो तो कहनी उपखान पढ़ना चाहिए।
कहनी उपखान काशी की सारी छोटी-बड़ी कहानियों का संग्रह है—अब तक की कुल जमा-पूँजी। मात्र चालीस कहानियाँ। देखा जाना चाहिए कि वह कौन-सी ख़ासियत है कि इतनी-सी पूँजी पर काशी लगातार कथा-चर्चा में बने रहे हैं और आलोचकों के लिए भी ‘अपरिहार्य’ रहे हैं।
काल और काल से छेड़छाड़ और मुठभेड़—पहचान है काशी की कहानियों की। काल के केन्द्र में है सामाजिक और आर्थिक विसंगतियों से घिरा आदमी—कभी अकेले, कभी परिवार में, कभी समाज में। इस आदमी से मिलना यानी कहानियों को पढ़ना हरी-भरी ज़िन्दगी के बीच चहलक़दमी करने जैसा है। न कहीं बोरियत, न एकरसता, न मनहूसियत, न दुहराव। उठने-गिरने, चलने-फिरने, लड़ने-हारने में भी हँसी-ठट्ठा और व्यंग्य-विनोद। ज़िन्दादिली कहीं भी पाठक का साथ नहीं छोड़ती। जियो तो हँसते हुए, मरो तो हँसते हुए—यही जैसे जीने का नुस्खा हो पात्रों के जीवन का।
जैसे-जैसे ज़़िन्दगी बदली है, वैसे-वैसे काशी की कहानी भी बदली है—अगर नहीं बदला है तो कहानी कहने का अन्दाज़। जातक, पंचतंत्र और लोकप्रचलित कथाशैलियाँ जैसे उनके कहानीकार के ख़ून में हैं। कई कहानियाँ तो चौपाल या अलाव के गिर्द बैठकर सुनने का सुख देती हैं।
आइए, वह सुख आप भी लीजिए ‘कहनी उपखान’ पढ़कर। कहनी (कहानी) और उपखान (उपाख्यान) कहकर तो काशी ने लिया है, आप भी लीजिए पढ़कर, क्योंकि काशी को पढ़ना ही सुनना है।
Kahni Upkhan
Kashinath Singh
Aahatein Sun Raha Hun Yadon Ki
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

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काशीनाथ सिंह कहानियाँ, उपन्यास, नाटक और आलोचना लिखकर और कथाकार के रूप में ख्याति अर्जित कर संस्मरणों की दुनिया में आए। सम्भवत: इसीलिए उनके संस्मरण अन्तत: स्मृति-कथाएँ हैं। कथा, जिसमें गल्प का तत्व कभी भी यथार्थ के सामने निस्तेज और प्रभावहीन नहीं होता। ऐतिहासिक व्यक्तियों और वास्तविक घटनाओं के इर्द-गिर्द बुने जाने पर भी उनमें रचनात्मकता और कल्पना के पहलू ऐसे मिले-जुले होते हैं कि वे कभी भी ‘यथार्थ’ को ‘भारी’, ‘ठोस’ और ‘पत्थर’ सा नहीं बनने देते। यहाँ ‘यथार्थ’ एक जीवित पाखी की तरह ‘गल्प’ के पंख लगाकर जीवन के महा-आकाश में उड़ता है। कहानी-उपन्यास से संस्मरण की ओर आने का एक लाभ यह भी हुआ है कि कहानी-उपन्यास बुनते-गढ़ते हुए जो सीखें कथाकार काशीनाथ सिंह को मिली थीं, वे यहाँ भी काम आ सकी हैं।
काशीनाथ सिंह के संस्मरणों में वास्तविकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उनमें एक ख़ास तरह की स्पष्टता, साहसिकता और बेबाकी पैदा की है। भोजपुरी की शक्ति, जो उनकी कहानियों में, संयत भाव से प्रकट होती थी, उनके संस्मरणों में खुलकर प्रकट होती है। बनारसीपन ने इन संस्मरणों के गद्य को जीवन का आईना बना दिया। हरिशंकर परसाई और नामवर सिंह—गद्य में काशीनाथ सिंह के आदर्श मालूम पड़ते हैं। इसीलिए उनके संस्मरणों की संरचना में करुणा और व्यंग्य अन्तर्भुक्त हैं। इन दोनों गद्यकारों की तरह उनकी भाषा बतकही के अत्यन्त निकट चली जाती है। छोटे-छोटे वाक्य, कौतुक और खिलंदड़ापन उनकी भाषा में भीतर तक विन्यस्त है। बनारसीपन इन सबको एक नया रंग देता है ।
‘आहटें सुन रहा हूँ यादों की’ स्मृति-कथाओं की किताब है। इस पुस्तक में ‘याद हो कि न याद हो’ के पहले संस्करण के बाद प्रकाशित छोटे-बड़े 18 संस्मरण शामिल हैं। पुस्तक के पहले खंड के संस्मरण निजी जीवन के इर्द-गिर्द घूमते हैं। दूसरे खंड में काशीनाथ सिंह के निकट जनों–गुरु बच्चन सिंह, बड़े भाई नामवर जी के परम मित्र वकील साहेब उर्फ नागेंद्र सिंह, आलोचक-मित्र-संगठक प्रो. कमला प्रसाद, मित्र-कथाकार दूधनाथ सिंह, मित्र–भाषाविज्ञानी श्री राम अधार सिंह और कमउम्र मित्र सिने विशेषज्ञ श्री प्रह्लाद अग्रवाल पर केन्द्रित संस्मरण हैं।
काशीनाथ सिंह के इन संस्मरणों से गुजरते हुए सहज ही आभास होता है कि वास्तविक देश के सामानान्तर स्मृति एक देश है!
Aahatein Sun Raha Hun Yadon Ki
Kashinath Singh
Pratinidhi Kahaniyan : Kashinath Singh
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description: साठोत्तरी पीढ़ी के जिन प्रगतिशील कथाकारों ने हिन्दी कहानी को नई ज़मीन सौंपने का काम किया, काशीनाथ सिंह का नाम उनमें विशेष महत्त्व रखता है। इस संग्रह में उनकी बहुचर्चित कहानियाँ शामिल की गई हैं। ध्वस्त होते पुराने समाज, व्यक्ति-मूल्यों तथा नई आकांक्षाओं के बीच जिस अर्थद्वन्द्व को जन-सामान्य झेल रहा है, उसकी टकराहटों से उपजी, भयावह अन्तःसंघर्ष को रेखांकित करती हुई ये कहानियाँ पाठक को सहज ही अपनी-सी लगने लगती हैं। इनमें हम वर्तमान राजनीतिक ढाँचे के तहत पनप रही मूल्य-भ्रंशता को भी देखते हैं और जीवन-मूल्यों की पतनशील त्रासदी को भी महसूस करते हैं। समकालीन यथार्थ की गहरी पकड़, भाषा-शैली की सहजता और एक ख़ास क़िस्म का व्यंग्य इस सन्दर्भ में पाठक की भरपूर मदद करता है। वह एक प्रगतिशील मूल्य-दृष्टि को अपने भीतर खुलते हुए पाता है, क्योंकि काशीनाथ सिंह के कथा-चरित्र विभिन्न विरोधी जीवन-स्थितियों में पड़कर स्वयं अपना-अपना अन्तःसंघर्ष उजागर करते चलते हैं और इस प्रक्रिया में लेखकीय सोच की दिशा सहज ही पाठकीय सोच से एकमेक हो उठती है।
Pratinidhi Kahaniyan : Kashinath Singh
Kashinath Singh
Ghar Ka Jogi Jogda
- Author Name:
Kashinath Singh
-
Book Type:

- Description:
‘गरबीली गरीबी वह’ के बारे में
अद्भुत रचना है काशी का संस्मरण—जिस ऊष्मा, सम्मान और समझदार संयम से लिखा गया है, वह पहली बार तो अभिभूत कर लेता है। मैं इसे नामवरी सठियाना-समारोह की एक उपलब्धि मानता हूँ। साथ ही मेरी यह राय भी है कि अगर ऐसी क़लम हो तो हिटलर को भी भगवान बुद्ध का अवतार बनाकर पेश किया जा सकता है। (मज़ाक़ अलग) व्यक्तित्व के अन्तर्विरोधों पर भी कुछ बात की जाती तो शायद और ज़्यादा जीवन्त संस्मरण होता!
—राजेन्द्र यादव
घर का जोगी जोगड़ा के बारे में
काशीनाथ सिंह का आख्यानक उनके रचनात्मक गद्य की पूरी ताक़त के साथ सामने आया है। काशी के पास रचनात्मक गद्य की जीवन्तता है—गहरे अनुभव-संवेदन हैं। उनकी भाषा को लेकर और अभिव्यक्ति भंगिमाओं को लेकर काफ़ी कुछ कहा गया है, परन्तु जो बात देखने की है, वह यह है कि अपनी ज़मीन और परिवेश से काशी का कितना गहरा रिश्ता है। संस्मरण को जीवन्त बना देने का कितना माद्दा है। काशी पूरी ऊर्जा में बहुत सहज होकर लिखते हैं और जब ‘भइया’ सामने हों तो वे अपनी रचनात्मकता के चरम पर पहुँचते हैं और महत्त्वपूर्ण के साथ-साथ तमाम मार्मिक और बेधक भी हमें दे जाते हैं।
—डॉ. शिवकुमार मिश्र।
Ghar Ka Jogi Jogda
Kashinath Singh
Upsanhar
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description:
‘उपसंहार’ में कृष्ण के जीवन के अन्तिम दिनों की कथा कही गई है जो जितनी मार्मिक है उतनी ही उद्वेलक भी। यह जितनी कृष्ण की कथा है उतनी ही द्वारका के बनने और बिगड़ने की भी। कृष्ण ‘महाभारत’ के सर्वप्रमुख चरित्र हैं—योगेश्वर, युगन्धर, लीला-पुरुष, पूर्णावतार और ईश्वर। द्वारका उनकी देन है, उनकी सृष्टि। लेकिन महाभारत जैसे महायुद्ध के उपरान्त इसी द्वारका में कृष्ण का एक और रूप दिखलाई पड़ता है। यह रूप ईश्वरीय अलौकिकता से दूर एक ऐसे मनुष्य का है जिसकी असाधारण उपलब्धियों के पीछे खड़ी विफलताएँ अब एक-एक कर सामने आ रही हैं।
जिस द्वारका को उन्होंने अपने मन-प्राण से साकार किया था, वही तिनका-तिनका बिखर रहा है। जिस कृष्ण के विराट रूप के सामने कुरुक्षेत्र में अठारह अक्षौहिणी सेना दृष्टि खो बैठी थी, वही कृष्ण अब अवश नज़र आते हैं। आख़िर क्या है जय का सच्चा अर्थ? क्या तमाम सफलताएँ अन्ततोगत्वा विफलता में ही तिरोहित होती हैं? मानवीय जीवन के ऐसे अनेक मूलभूत प्रश्नों पर ‘उपसंहार’ उपन्यास नए सिरे से प्रकाश डालता है। अपने संक्षिप्त कलेवर के बावजूद इसका स्वर महाकाव्यात्मक है। ‘महाभारत’ के बारे में कहा जाता है कि जो कुछ दुनिया में है, वह ‘महाभारत’ में है और जो उसमें नहीं है, वह कहीं नहीं है। ‘उपसंहार’ पढ़कर इस कथन की सत्यता को भी समझा जा सकता है।
Upsanhar
Kashinath Singh
Apna Morcha
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description:
काशीनाथ सिंह का नाम सामने आते ही उस तैराक का चित्र आँखों के सामने तैर जाता है, जो एक चढ़ी हुई नदी में, धारा के विरुद्ध हाथ-पाँव मारता चला आता हो। ‘अपना मोर्चा’ स्वयं में इसकी सर्वश्रेष्ठ गवाही है। यह मोर्चा प्रतिरोध की उस मानसिकता का बहुमूल्य दस्तावेज़ है जिसे इस देश के युवा वर्ग ने पहली बार अर्जित किया था। एक चेतन अँगड़ाई इतिहास की करवट बनी थी—जब विश्वविद्यालय से टूटा हुआ भाषा का सवाल, पूरे सामाजिक-राजनीतिक ढाँचे का सवाल बन गया था और आन्दोलनों की लहरें जनमानस को भिगोने लगी थीं।
हम क्यों पढ़ते हैं? ये विश्वविद्यालय क्यों? भाषा केवल एक लिपि ही क्यों, जीवन की भाषा क्यों नहीं? छात्रों, अध्यापकों, मज़दूरों और किसानों के अपने-अपने सवाल अलग-अलग क्यों हैं? व्यवस्था उन्हें किस तरह भटकाकर तोड़ती है? एक छोटी-सी कृति में इन सारे सवालों को उछाला है काशीनाथ सिंह ने। इनके जवाबों के लिए लोग ख़ुद अपनी आत्मा टटोलें, यह सार्थक आग्रह भी इस कृति का है।
Apna Morcha
Kashinath Singh
Kashi Ka Assi
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description: ज़िन्दगी और ज़िन्दादिली से भरा एक अलग क़िस्म का उपन्यास। उपन्यास के परम्परित मान्य ढाँचों के आगे प्रश्नचिह्न। ‘अस्सी’ काशीनाथ की भी पहचान रहा है और बनारस की भी। जब इस उपन्यास के कुछ अंश ‘कथा रिपोर्ताज’ के नाम से पत्रिकाओं में छपे थे तो पाठकों और लेखकों में हलचल-सी हुई थी। छोटे शहरों और क़स्बों में उन अंक विशेषों के लिए जैसे लूट-सी मची थी, फ़ोटोस्टेट तक हुए थे, स्वयं पात्रों ने बावेला मचाया था और मारपीट से लेकर कोर्ट-कचहरी की धमकियाँ तक दी थीं। अब यह मुकम्मल उपन्यास आपके सामने है जिसमें पाँच कथाएँ हैं और उन सभी कथाओं का केन्द्र भी अस्सी है। हर कथा में स्थान भी वही, पात्र भी वे ही—अपने असली और वास्तविक नामों के साथ, अपनी बोली-बानी और लहज़ों के साथ। हर राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मुद्दे पर इन पात्रों की बेमुरव्वत और लट्ठमार टिप्पणियाँ काशी की उस देशज और लोकपरम्परा की याद दिलाती हैं जिसके वारिस कबीर और भारतेन्दु थे। उपन्यास की भाषा उसकी जान है—भदेसपन और व्यंग्य-विनोद में सराबोर। साहित्य की ‘मधुर मनोहर अतीव सुन्दर’ वाणी शायद कहीं दिख जाए!
Kashi Ka Assi
Kashinath Singh
Yaad Ho Ki Na Yaad Ho
- Author Name:
Kashinath Singh
-
Book Type:

- Description:
काशीनाथ जी ने संस्मरण को अकेले जितना दिया है किसी एक विधा को कोई एक क़लम बिरले ही दे पाती है। धर्मोचित श्रद्धा जिनकी ध्वजवाहक है, उन तमाम भीनी-भीनी भावनाओं में रसी-बसी, चीमड़-सी विधा उनके यहाँ आकर खेलने लगती है। किसी को याद करके वे न तो कोई शास्त्र-सम्मत ऋण चुकाते हैं, न उसके छिद्रों से अपनी महानता पर रोशनी फेंकते हैं, वे उस व्यक्ति, उस स्थान, उस समय को उसकी हर सिलवट समेत भाषा में रूपान्तरित करते हैं, और कुछ ऐसे कौशल से कि उनका विषयगत भी वस्तुगत होकर दिखाई देता है।
इस जिल्द में चित्रित हजारीप्रसाद द्विवेदी, धूमिल, त्रिलोचन, नामवर सिंह, अस्सी, बनारस और इन सबके साथ लगा-बिंधा वह समय आपको कहीं और नहीं मिलेगा। आप ख़ुद भी उन्हें उस तरह नहीं देख सकते जिस तरह इन संस्मरणों में उन्हें देख लिया गया है।
यह भाषा, जो अपनी क्षिप्रता में फ़िल्म की रील को टक्कर देती प्रतीत होती है, आपको सिर्फ़ चित्र नहीं देती, पूरा वातावरण देती है जिसमें और सब चीज़ों के साथ आपको देखने का तरीक़ा भी मिलता है। इन संस्मरणों को पढ़कर हम जान लेते हैं कि अपने किसी समकालीन को देखें तो कैसे देखें, अपने जीवन में रोज़-रोज़ गुज़रनेवाली किसी जगह को जिएँ तो कैसे जिएँ और अपने समय को उसकी औक़ात बताते हुए भोगें तो कैसे भोगें।
Yaad Ho Ki Na Yaad Ho
Kashinath Singh
Rehan Par Ragghu
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description:
‘रेहन पर रग्घू’ प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया में जो निर्मम ध्वंस हुआ है — तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है — उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है ‘रेहन पर रग्घू’। यह उपन्यास वस्तुतः गाँव, शहर, अमेरिका तक के भूगोल में फैला हुआ अकेले और निहत्थे पड़ते जा रहे समकालीन मनुष्य का बेजोड़ आख्यान है।
उपन्यास में केन्द्रीय पात्र रघुनाथ की व्यवस्थित और सफल ज़िन्दगी चल रही है। सब कुछ उनकी योजना और इच्छा के मुताबिक़। अचानक कुछ ऐसा घटित होता है कि उनके जीवन का अर्जित यथार्थ इतना महत्त्वाकांक्षी, आक्रामक, हिंस्र हो जाता है कि मनुष्यता की तमाम सारी आत्मीय, कोमल अच्छी चीजे़ं टूटने, बिखरने, बरबाद होने लगती हैं। इस महाबली आक्रान्ता के प्रतिरोध का जो रास्ता उपन्यास के अन्त में अख़्तियार किया गया, वह न केवल विलक्षण और अचूक है, बल्कि ‘रेहन पर रग्घू’ को यादगार व्यंजनाओं से भर देता है।
‘रेहन पर रग्घू‘ नए युग की वास्तविकता की बहुस्तरीय गाथा है। इसमें उपभोक्तावाद की क्रूरताओं का विखंडन है ही, साथ में शोषित-प्रताड़ित जातियों के सकारात्मक उभार और नई स्त्री की शक्ति एवं व्यथा का दक्ष चित्रांकन भी है। दरअसल ‘रेहन पर रग्घू’ में वास्तविकताओं, चरित्रों, लोकेल, उपकथाओं आदि का ऐसा सधा हुआ अकाट्य अन्तर्गुम्फन है कि उसे एक प्रौढ़ रचनात्मकता के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए। देशज सच्चाइयों, कल्पना, काव्यात्मकता, झीनी दार्शनिकता का सहमेल उपन्यास को मूल्यवान आभा से समृद्ध बनाता है।
—अखिलेश
Rehan Par Ragghu
Kashinath Singh
Aadminama
- Author Name:
Kashinath Singh
-
Book Type:

- Description: ‘आदमीनामा’ इमरजेंसी के बाद प्रकाशित काशीनाथ सिंह का एक बहुचर्चित संग्रह है। इसमें समाज, राजनीति, भूख, बेरोज़गारी, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, अर्थ का अवमूल्यन, क्रान्तिकारिता के नाम पर छल, आपातकाल का तांडव, प्रतिबद्धता, प्रतिरोध आदि का जो जीवन्त यथार्थ है, वह अपने समय का बड़ा बयान है जिससे लोकतांत्रिक परिप्रेक्ष्य में बहुत कुछ समझा और सीखा जा सकता है। देखा जा सकता है कि इस संग्रह में अपनी क़िस्सागोई के लिए काशीनाथ सिंह के पास जो दृष्टि और भाषा की धार है, वह किस तरह ज़मीनी और सरोकारपूर्ण है। और इस बात का सशक्त उदाहरण हैं ये कहानियाँ—‘सूचना’, ‘निधन’, ‘‘माननिय’ होम मनिस्टर के नाम’, ‘आदमी का आदमी’, ‘मीसाजातकम्’, ‘लाल किले के बाज’, ‘मुसइ चा’, ‘सुधीर घोषाल’ आदि। इस संग्रह का एक बड़ा आकर्षण है ‘कहानी की वर्णमाला और मैं’। इसमें काशीनाथ सिंह ने अपने रचना-विकास को जिस ईमानदारी और आत्मीयता के साथ व्यक्त किया है, वह अनुकरणीय तो है ही, एक मिसाल भी कि जीवन और क़लम के बीच न फ़र्क़ ठीक, न फाँक। कोई दो राय नहीं कि अपने आस्वाद में ही नहीं, नई साज-सज्जा में भी ‘आदमीनामा’ संग्रह पाठकों के लिए एक बार पुन: उपलब्धि साबित होगा!
Aadminama
Kashinath Singh
Mahuacharit
- Author Name:
Kashinath Singh
-
Book Type:

- Description:
वरिष्ठ कथाकार काशीनाथ सिंह का उपन्यास ‘महुआचरित’ जीवन के अपार अरण्य में भटकती इच्छाओं का आख्यान है। मध्यवर्गीय समाज की सच्चाइयों को लेखक ने विशिष्ट कथा-रस के साथ प्रकट किया है। यह उपन्यास जिस शिल्प में अभिव्यक्त हुआ है, वह कथा-संसार में एक नया प्रस्थान निर्मित करता है। छोटे-बड़े किंचित् असमाप्त अपूर्ण वाक्य संकेतों की ओर उन्मुख विवरण और बहुअर्थी बिम्ब इस रचना को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। महुआ की सहेली है उसके मकान की छत जहाँ वह खुलती, खिलती और खेलती है। यह कल्पना ही अपने आपमें अनूठी और व्यंजक है।
कहना न होगा कि ‘महुआचरित’ को ‘वृत्तान्त का अन्त’ करती कथा-रचना के रूप में रेखांकित किया जा सकता है।
अस्सी साल के स्वतंत्रता सेनानी पिता की पुत्री महुआ की देहासक्ति से विवाह तक की यात्रा और फिर उसमें जागता अस्मिता-बोध—इस कथा को लेखक ने समुचित सामाजिक सन्दर्भों के साथ प्रस्तुत किया है। स्त्री-विमर्श की अनुगूँज के बावजूद यह प्रश्न आकार लेता है, ‘ऐसा क्या है देह में कि उसका तो कुछ नहीं बिगड़ता/लेकिन मन का सारा रिश्ता-नाता तहस-नहस हो जाता है।’
सघन संवेदना और सर्वथा नवीन संरचना से समृद्ध ‘महुआचरित’ उपन्यास निश्चित रूप से पाठकों की आत्मीयता अर्जित करेगा।
Mahuacharit
Kashinath Singh
Log Bistron Per
- Author Name:
Kashinath Singh
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Book Type:

- Description: खाँटी माटी के कथाकार हैं काशीनाथ सिंह। कथा साहित्य में ‘अकहानी’, ‘सचेतन कहानी’, ‘समान्तर कहानी’ आदि आन्दोलनों के काल से गुज़रे काशीनाथ सिंह ने भीड़ में होते हुए अपनी लीक स्वयं बनाई है। जो लोक रचा है उसका यथार्थ अपनी भाषा, शिल्प, कथ्य और दृष्टि में विश्वसनीय तो है ही, विलक्षण भी है। एक सेवानिवृत्त व्यक्ति की नज़र से देखी-लिखी गई कहानी ‘सुख’ सामाजिक यथार्थ को व्यक्त करनेवाली एक अलग कहानी है तो ‘संकट’ एक ऐसे फौजी चरित्र की कथा जो अपनी वासना की पूर्ति न होने पर कई मानसिक तनावों में घिरता और घेरते चला जाता है। ‘एक बूढ़े की कहानी’ एक नाबालिग लडक़ी से बलात्कार की बेहद मार्मिक कथा है। ‘चोट’ में जाति के अहं को जिस पैनी दृष्टि के साथ रचा गया है, वह बदलते युग में वर्ण से जुड़ी कई गिरहों को खोलने में मदद करती है। जबकि ‘सुबह का डर’ मनुष्यता और पुलिसिया आतंक के बीच फँसे लोगों के डर के संजाल की कहानी है। देखें तो, काशीनाथ सिंह के दो संग्रहों ‘लोग बिस्तरों पर’ और ‘सुबह का डर’ से शामिल कहानियों की इस एक जिल्द में ‘बैलून’ जैसी प्रेम कहानी है तो मौत के प्रति चिन्ता और चिन्तन के खोखलेपन से पर्दा हटाती ‘चायघर में मृत्यु’ जैसी कहानी भी। ‘आखिरी रात’ में दाम्पत्य जीवन के आर्थिक तनाव की कथा है, ‘अपने घर का देश’ में बदलते मूल्यों का गहन अंकन तो निरन्तर छीजती संवेदना का एक त्रासद रूप रचती पुस्तक की शीर्षक कहानी ‘लोग बिस्तरों पर’। निस्सन्देह, काशीनाथ सिंह का यह कहानी-संग्रह महत्त्वपूर्ण ही नहीं, अपने समय की एक दस्तावेज़ भी है।
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Kashinath Singh
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