Ranjit
Aamool Kranti Ka Dhwaj-Vahak Bhagatsingh
- Author Name:
Ranjit
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Book Type:

- Description: भगतिंसह को यदि मार्क्सवादी ही कहना हो, तो एक स्वयंचेता या स्वातंत्र्यचेता मार्क्सवादी कहा जा सकता है। रूढ़िवादी मार्क्सवादियों की तरह वे हिंसा को क्रान्ति का अनिवार्य घटक या साधन नहीं मानते। वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं—‘क्रान्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है। वह बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नहीं है।’ अन्यत्र वे कहते हैं—‘हिंसा तभी न्यायोचित हो सकती है जब किसी विकट आवश्यकता में उसका सहारा लिया जाए। अहिंसा सभी जन-आन्दोलनों का अनिवार्य सिद्धान्त होना चाहिए।’ आज जब भगतसिंह के समय का बोल्शेविक ढंग समाजवाद मुख्यत: जनवादी मान-मूल्यों की निरन्तर अवहेलनाओं के कारण, समता-स्थापन के नाम पर मनुष्य की मूलभूत स्वतंत्रता के दमन के कारण, ढह चुका है, यह याद दिलाना ज़रूरी लगता है कि स्वतंत्रता उनके लिए कितना महत्त्वपूर्ण मूल्य था। स्वतंत्रता को वे प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार घोषित करते हैं। क्योंकि वे अराजकतावाद के माध्यम से मार्क्सवाद तक पहुँचे थे, इसलिए स्वतंत्रता के प्रति उनके प्रेम और राजसत्ता के प्रति उनकी घृणा ने उन्हें कहीं भी मार्क्सवादी जड़सूत्रवाद का शिकार नहीं होने दिया।
Aamool Kranti Ka Dhwaj-Vahak Bhagatsingh
Ranjit
Sampradayikta Ka Zahar
- Author Name:
Ranjit
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Book Type:

- Description: इस पुस्तक में महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद, आचार्य नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश नारायण, डॉ. भीमराव आंबेडकर, डॉ. राममनोहर लोहिया, शहीदे आज़म भगतसिंह, किशन पटनायक, गणेशशंकर विद्यार्थी, प्रेमचन्द, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मस्तराम कपूर, विभूति नारायण, पुरुषोत्तम अग्रवाल, असगर अली इंजीनियर, राजकिशोर, डॉ. रमेन्द्र, डॉ. राम पुनियानी, तस्लीमा नसरीन, मधु किश्वर, इरफ़ान इंजीनियर आदि के लेख संकलित हैं। स्पष्ट है कि इसमें स्वाधीनता से पूर्व और स्वाधीनता के बाद के भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या के बदलते हुए रूपों और फैलते हुए आयामों पर, भारतीय मनीषा ने जो भी कुछ सोचा है, एक प्रकार से उसका निचोड़ आ गया है। हिन्दी में शायद ही कोई और ऐसी पुस्तक हो, जिसमें इतने व्यापक फ़लक पर इस समस्या को रखकर देखा गया है। अन्त में देवी प्रसाद मिश्र की कविता के द्वारा हमारे सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग को, हमारे आम नज़रिये की रौशनी में, मर्मस्पर्शी, प्रस्तुति ने, सोने में सुहागे का काम किया है। अपने विषय की एक अपरिहार्य पुस्तक।