Manjul Bhagat
Bisaat : Teen Bahanen Teen Aakhyan
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Manjul Bhagat +1
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‘बिसात : तीन बहनें तीन आख्यान’ एक अनूठी कथा-कृति है। कथा-साहित्य में विख्यात मंजुल भगत, मृदुला गर्ग और अचला बंसल तीनों सगी बहनें हैं। मंजुल भगत अब हमारे बीच नहीं हैं। मृदुला गर्ग व अचला बंसल निरन्तर सक्रिय हैं। तीनों के लेखन की पृथक् पहचान होने के बावजूद कुछ सूत्र ऐसे हैं जिन पर साझा अनुभवों के विविध रंग दिख जाते हैं। मृदुला गर्ग के शब्दों में, ‘तीनों के काफ़ी अनुभव साझा रहे। ज़िन्दगी में कितने ऐसे किरदार थे, जिनसे तीनों का साबका पड़ा। कितने ऐसे हालात थे, जिनका तीनों ने नज़ारा किया! साझा अनुभवों, किरदारों और अहसास ने हमारे भावबोध को गढ़ा और अन्य अनुभवों की तरह, वे भी कभी-न-कभी, किसी-न-किसी रूप में हमारी रचना के आधार बने। रचना जब-जब हुई, निजी अहसास से गढ़ी, मौलिक थी। हर लेखक का नज़रिया अपना अलग था। फिर भी साझा अहसास और अनुभव की गूँज, उसमें साफ़ ध्वनित होती थी। कह सकते हैं, हमने एक ही विषय पर आधारित रचना की पर रचना के दौरान, रचनात्मकता के दबाव में, रचना ने अपना विषय, कुछ हद तक बदल लिया।’ इन तीनों बहनों के बीच नाना की उपस्थिति एक ऐसा ही बहुअर्थपूर्ण अनुभव था। इस अनुभव से तीन रचनाओं ने आकार लिया। मृदुला गर्ग ने ‘वंशज’ उपन्यास रचा। मंजुल भगत ने ‘बेगाने घर में’ और अचला बंसल ने ‘कैरम की गोटियाँ’ कहानियाँ लिखीं। तीनों रचनाओं में अलग-अलग तरह से महसूस किया गया यथार्थ रचनाकारों की निजता के साथ व्यक्त हुआ। ‘बिसात : तीन बहनें तीन आख्यान’
में वंशज, ‘बेगाने घर में’ और ‘कैरम की गोटियाँ’ एक साथ उपस्थित हैं। तीनों को एक साथ पढ़ना वस्तुतः प्रीतिकर और विचारोत्तेजक हैं। जैसे एक ही जीवन-सत्य के तीन आयाम।
Bisaat : Teen Bahanen Teen Aakhyan
Manjul Bhagat
Anaro
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- Description: ''कहाँ गया गंजी का बाप?...दिल डूब रहा है...अनारो, तू डूब चली...उड़ चली तू...अनारो, उड़ मत...धरती? धरती कहाँ गई?...पाँव टेक ले...हिम्मत कर...थाम ले रे...नन्दलाल! हमें बेटी ब्याहनी है!...यहाँ तो दलदल बन गया!...मैं सन गई पूरी की पूरी...हाय! नन्दलाल...गंजी...छोटू!'' महानगरीय झुग्गी कॉलोनी में रहकर कोठियों में खटनेवाली अनारो की इस चीख़ में किसी एक अनारो की नहीं, बल्कि प्रत्येक उस स्त्री की त्रासदी छुपी है जो आर्थिक अभावों, सामाजिक रूढ़ियों और पुरुष अत्याचार के पहाड़ ढोते हुए भी सम्मान सहित जीने का संघर्ष करती है। सौत, ग़रीबी और बच्चे; नन्दलाल ने उसे क्या नहीं दिया? फिर भी वह उसकी ब्याहता है, उस पर गुमान करती है और चाहती है कि कारज-त्यौहार में वह उसके बराबर तो खड़ा रहे। दरअसल अनारो दु:ख और जीवट से एक साथ रची गई ऐसी मूरत है, जिसमें उसके वर्ग की सारी भयावह सच्चाइयाँ पूँजीभूत हो उठी हैं।
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