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Amarnath

Lahrein

  • Author Name:

    Amarnath

  • Book Type:
  • Description: सामाजिक सरोकारों को लेकर अत्यन्त सचेत कथाकार अमरकान्त के इस उपन्यास के केन्द्र में क़स्बाई परिवेश की साधारण घरेलू महिलाएँ हैं जो धीरे-धीरे पुरुषप्रधान पारिवारिक व्यवस्था में अपनी अस्मिता और स्थिति के प्रति सजग होती हैं। उनका यह सफ़र शुरू होता है उस वक़्त जब मुहल्ले में किराये पर रहने वाला एक आत्ममुग्ध व्यक्ति बरसों से गाँव में छोड़ी अपनी पत्नी को लेकर आता है। यह सीधी-सादी ग्रामीण स्त्री बस एक सवाल से वहाँ की सुखी-सन्तुष्ट स्त्रियों को ‌झिंझोड़ देती है—‘ख़ूब कहती हो बहिनी, कहीं सुहागिन स्त्री का नाम पूछता है कोई? नाम लेकर बुलाता है भला?’ इस सवाल का जवाब किसी से नहीं बन पाता। वे सोचने लगती हैं कि वाक़ई, अपने ही विवाहित जीवन में, अपने ही परिवार में उनका नाम कैसे ग़ायब हो गया! यहीं से शुरू होता है उनका आत्म-चिन्तन जो पहले अकेले-दुकेले और फिर नियमित बैठकों तक जाता है और एक संस्था के रूप में फलीभूत होता है। अपनी पहचान को लेकर सजग होती स्त्रियों की विचारोत्तेज कथा है यह कृति।
Lahrein

Lahrein

Amarnath

199

₹ 159.2

Rampur Ki Ramkahani

  • Author Name:

    Amarnath

  • Book Type:
  • Description: रामपुर की रामकहानी बदलते भारत और खासतौर से वैश्वीकरण के बाद हो रहे तीव्र विकास और उसकी दिशा की कहानी है। विकास के उस दिशा की कहानी है, जिसकी ओर बढ़ते हुए मंजिल तो दूर, हमें पथ भी कहीं नजर नहीं आता। ‘पटरी पर पढ़ाई, मुल्ला की तावीज, भउजी, कृषि संस्कृति की समाधि, जद्दू पंडित का कुनबा, जाति जाति में जाति, अथ यज्ञोपवीत भंजन कथा, ठेके पर हरिनाम’ आदि संस्मरणों के इस संग्रह में छह दशकों का क्रमिक और प्रामाणिक इतिहास पूरी ईमानदारी के साथ रोचक शैली में अंकित है। ये संस्मरण, सत्यकथाएँ हैं। शैली आत्मकथात्मक है। कथा के सूत्र जोड़ने के लिए जहाँ बहुत जरूरी है, वहीं कल्पना का सहारा लिया गया है।
Rampur Ki Ramkahani

Rampur Ki Ramkahani

Amarnath

350

₹ 280

Hindi Aalochana ka Aalochanatmak Itihas

  • Author Name:

    Amarnath

  • Book Type:
  • Description: ‘हिन्दी आलोचना का आलोचनात्मक इतिहास’ हिन्दी आलोचना का इतिहास है, लेकिन ‘आलोचनात्मक’। इसमें लेखक ने प्रचलित आलोचना की कुछ ऐसी विसंगतियों को भी रेखांकित किया है, जिनकी तरफ आमतौर पर न रचनाकारों का ध्यान जाता है, न आलोचकों का।

    उदाहरण के लिए हिन्दी साहित्य के आलोचना-वृत्त से उर्दू साहित्य का बाहर रह जाना; जिसके चलते उर्दू अलग होते-होते सिर्फ एक धर्म से जुड़ी भाषा हो गई और उसका अत्यन्त समृद्ध साहित्य हिन्दुस्तानी मानस के बृहत काव्यबोध से अलग हो गया। कहने की जरूरत नहीं कि आज इसके सामाजिक और राजनीतिक दुष्परिणाम हमारे सामने एक बड़े खतरे की शक्ल में खड़े हैं। सुबुद्ध लेखक ने इस पूरी प्रक्रिया के ऐतिहासिक पक्ष का विवेचन करते हुए यहाँ उर्दू-साहित्य आलोचना को भी अपने इतिहास में जगह दी है।

    आधुनिक गद्य साहित्य के साथ ही आलोचना का जन्म हुआ, इस धारणा को चुनौती देते हुए वे यहाँ संस्कृत साहित्य की व्यावहारिक आलोचना को भी आलोचना की सुदीर्घ परम्परा में शामिल करते हैं, और फिर सोपान-दर-सोपान आज तक आते हैं जहाँ मीडिया-समीक्षा भी आलोचना के एक स्वतंत्र आयाम के रूप में पर्याप्त विकसित हो चुकी है।

    कुल इक्कीस सोपानों में विभाजित इस आलोचना-इतिहास में लेखक ने अत्यन्त तार्किक ढंग से विधाओं, प्रवृत्तियों, विचारधाराओं, शैलियों आदि के आधार पर बाँटते हुए हिन्दी आलोचना का एक सम्पूर्ण अध्ययन सम्भव किया है। अपने प्रारूप में यह पुस्तक एक सन्दर्भ ग्रंथ भी है और आलोचना को एक नए परिप्रेक्ष्य में देखने का वैचारिक आह्वान भी।

Hindi Aalochana ka Aalochanatmak Itihas

Hindi Aalochana ka Aalochanatmak Itihas

Amarnath

1695

₹ 1356

Hindi Aalochana Ki Paaribhashik Shabdavali

  • Author Name:

    Amarnath

  • Book Type:
  • Description: आधुनिक हिन्‍दी आलोचना की आयु भले ही सौ-सवा सौ वर्ष हो किन्‍तु उसने इतनी तेज़ी से डग भरे कि इस अल्प अवधि में ही दुनिया की किसी भी दूसरी समृद्ध भाषा से होड़ लेने में सक्षम है।

    आज हिन्‍दी आलोचना में जो पारिभाषिक शब्द प्रचलित हैं, उनके मुख्यतः तीन स्रोत हैं। उनमें सबसे प्रमुख स्रोत हमारा संस्कृत काव्यशास्त्र है, जिसकी समृद्धि तद्युगीन विश्वसाहित्य में अतुलनीय है। हिन्‍दी आलोचना की समृद्धि के पीछे उसकी अपनी यही विरासत है। दूसरा स्रोत यूरोप का साहित्यशास्त्र है, जिससे हमारे लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष से सम्‍बन्‍ध हैं। पिछले कुछ दशकों में उदारीकरण और भूमंडलीकरण के चलते यूरोप से अनेक नए पारिभाषिक शब्द हिन्‍दी में आए हैं, जिन्हें हिन्‍दी ने पूरी उदारता से ग्रहण किया है। इसी के साथ हिन्‍दी आलोचना ने अनेक शब्द स्वयं भी विकसित किए हैं।

    इस समृद्धि के बावजूद हिन्‍दी आलोचना में प्रचलित बहुतेरे पारिभाषिक शब्दों की अवधारणा को रेखांकित करनेवाली पुस्तक की कमी लगातार महसूस की जा रही थी। समकालीन हिन्‍दी आलोचना की इस अनिवार्य आवश्यकता को पूरी करनेवाली यह अकेली पुस्तक है—हिन्‍दी साहित्य के सुधी अध्येताओं के लिए अनिवार्यतः संग्रहणीय।

Hindi Aalochana Ki Paaribhashik Shabdavali

Hindi Aalochana Ki Paaribhashik Shabdavali

Amarnath

1395

₹ 1116

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