Pratap Gopendra
Sangam Teere
- Author Name:
Pratap Gopendra
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Book Type:

- Description: इस पुस्तक में सिविल सेवा में रत अभ्यर्थियों के संघर्ष का जीता-जागता चित्र प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास और संस्मरण की भूमध्य रेखा पर फिसलती-सरकती एक सहज-सरल कृति है जो स्वयं में सुनहरे भविष्य के लिए संघर्ष करने वाले किशोर-युवा पीढ़ी के अन्तर्द्वन्दों, वेदनाओं, छोटी-छोटी खुशियों को समेटे हुए, धुप्प अंधकार में मार्ग खोजती उनकी अदम्य जीजीविषा को अतीव रोचकता और स्पष्टता से प्रस्तुत करती है। एक ऐसा आख्यान, जहाँ सिविल सेवाओं की तैयारी करने वालों की अनजानी दुनियाँ पूरी विश्वसनीयता के साथ उपस्थित होती है।
Sangam Teere
Pratap Gopendra
Chandrashekhar Azad : Mithak Banam yatharth
- Author Name:
Pratap Gopendra
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Book Type:

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असहयोग आन्दोलन के स्थगन से निराश युवा गुप्त संगठनों से जुड़कर अपनी विचारधारा एवं कार्यक्रमों के द्वारा ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिलाने लगे। इन संगठनों में ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ यानी एच.एस.आर.ए. का स्थान सर्वोपरि है और उतना ही विशिष्ट है— एच.एस.आर.ए. के शीर्षस्थ नेता अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद का स्थान। मिथकों के ढेर में दबी क्रान्तिकारी विचारधारा भारत के आधुनिक इतिहास लेखन में जितनी दुर्बोध बनी हुई है, उतना ही अज्ञात है आज़ाद का जीवन। सुदूर भाबरा के जंगलों में भील समुदाय के बीच पला-बढ़ा सामान्य शिक्षा-दीक्षा और साधारण शक्ल-ओ-सूरत का एक निर्धन बालक, काशी आकर कैसे एक प्रचण्ड राष्ट्रभक्त में विकसित हुआ और अन्तत: अपनी आहुति देकर राष्ट्र का अभिमान बन गया, इसे समझे बिना स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को पूर्णत: नहीं समझा जा सकता।
यह कृति विश्वसनीय एवं प्राथमिक अध्ययन स्रोतों के गहन विश्लेषण के आधार पर चन्द्रशेखर आज़ाद के जीवन को और सम्पूर्ण क्रान्तिकारी विचारधारा को मिथकों से अलग कर ऐतिहासिक सन्दर्भों में समझने का एक विनम्र प्रयास है।
Chandrashekhar Azad : Mithak Banam yatharth
Pratap Gopendra
1857 Ke Amar Nayak Raja Jailal Singh
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Pratap Gopendra
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अखण्ड राष्ट्र के रूप में संगठित होने के पूर्व भारतवर्ष ने साहस एवं उत्सर्ग की अनगिनत परीक्षाएँ दी हैं। धीरोदात्त वीरों ने सैकड़ों वर्षों की आततायी शोषणकारी राज्य व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए अदम्य संघर्ष किये हैं। इन संघर्षो को इतिहास के अनेक स्वनाम-गुमनाम नायकों ने शक्ति एवं नेतृत्व प्रदान किया है। सूचना क्रान्ति के इस युग में ऐसी शख्सियतों व उनकी अमर कृतियों की खोज कर दिग्-दिगन्त तक उनका उद्घोष किया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी को जीवन संघर्ष में अडिग रहने की प्रेरणा तो मिले ही, स्वतन्त्रता का मूल्य भी उनके हृदयों में दृढ़ता से स्थापित हो सके। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राजा जयलाल सिंह ऐसे ही देदीप्यमान नक्षत्र हैं जिन्हें समय के बादलों ने आच्छादित कर रखा है। सत्तावनी क्रान्ति का एक ऐसा किरदार जिसने ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध व्यक्तिगत शौर्य का परिचय देते हुए न केवल प्रत्यक्ष युद्ध लड़े वरन सम्पूर्ण भारतवर्ष में क्रान्तिकारियों की आश्रयस्थली बने शहर लखनऊ में पूरे युद्ध-तन्त्र का संचालन व प्रबन्धन करते हुए अन्तिम नवाबी सरकार के मन्दराचल को कूर्मावतार बन अपनी पीठ पर धारण किया। स्वतन्त्र भारत का भव्य प्रासाद नींव के जिन कीर्त्ति स्तम्भों पर खड़ा है, निःसन्देह राजा जयलाल सिंह उनमें से एक हैं।
यह पुस्तक उनके व्यक्तित्व एवं उत्सर्गपूर्ण कृतित्वों को जानने-समझने का एकमात्र प्रामाणिक दस्तावेज है।