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Surendra Pratap

Morchebandi

  • Author Name:

    Surendra Pratap

  • Book Type:
  • Description: मोर्चेबन्दी’ उपन्यास जीवन और समाज के कई मोर्चो की कथा है जिसमें निजी और राजनीतिक मोर्चे हैं। मुख्य रूप से इस उपन्यास में भाषा समस्या को उठाया गया है। यह उपन्यास अंग्रेजी हटाओ पर आधारित है जिसमें अंग्रेजों से भारतीय भाषाओं की टकराहट है। भाषा की समस्या एक जटिल और विवादास्पद समस्या है। भारत में आज भी राष्ट्रभाषा का मुद्दा सुलझ नहीं पाया। मोर्चेबन्दी में अंग्रेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं में सरकारी काम-काज की भाषा बनाने की प्रबल मांग है।

    मोर्चेबन्दी का समूचा आन्दोलन गाँधीवादी समाजवादी मूल्यों आदर्शों पर आधारित है। इस उपन्यास में भाषा के अतिरिक्त छात्रों की अन्य समस्याओं शिक्षा-परीक्षा ढाँचे में अमूल-चूल परिवर्तन, सभी विश्वविद्यालयी समितियों में साझेदारी, पुस्तकालय का आधुनिकीकरण, बुकबैंक, शिक्षा ऋण, मुफ्त चिकित्सा, छात्र न्यायालय, मैरेज ब्यूरो सेंटर, शिक्षा के लिए फेलोशिप, रोजगार की गारंटी या बेरोजगारी भत्ता आदि का उल्लेख किया गया है।

Morchebandi

Morchebandi

Surendra Pratap

225

₹ 180

Patrakarita Ka Mahanayak : Surendra Pratap Singh

  • Author Name:

    Surendra Pratap

  • Book Type:
  • Description: “तो ये थीं ख़बरें आज तक, इन्तज़ार कीजिए कल तक।” एसपी यानी सुरेन्द्र प्रताप सिंह के कई परिचयों में यह भी एक परिचय था। दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम ‘आज तक’ के सम्पादक रहते हुए एसपी सिंह सरकारी सेंसरशिप के बावजूद जितना यथार्थ बताते रहे, उतना फिर कभी किसी सम्पादक ने टीवी के परदे पर नहीं बताया।

    एसपी ‘आज तक’ के सम्पादक ही नहीं थे। अपने दमखम के लिए याद की जानेवाली ‘रविवार’ पत्रिका के पीछे सम्पादक सुरेन्द्र प्रताप सिंह की ही दृष्टि थी। ‘दिनमान’ की ‘विचार’ पत्रकारिता को ‘रविवार’ ने खोजी पत्रकारिता और स्पॉट रिपोर्टिंग से नया विस्तार दिया। राजनीतिक-सामाजिक हलचलों के असर का सटीक अन्दाज़ा लगाना और सरल, समझ में आनेवाली भाषा में साफ़गोई से उसका खुलासा करके सामने रख देना, उनकी पत्रकारिता का स्टाइल था। एक पूरे दौर में पाखंड और आडम्बर से आगे की पत्रकारिता एसपी के नेतृत्व में ही साकार हो रही थी।

    शायद इसी वजह से उन्हें अभूतपूर्व लोकप्रियता मिली और कहा जा सकता है कि एसपी सिंह पत्रकारिता के पहले और आख़िरी सुपरस्टार थे। यह बात दावे के साथ इसलिए कही जा सकती है क्योंकि अब का दौर महानायकों का नहीं, बौने नायकों और तथाकथित नायकों का है। एसपी जब-जब सम्पादक रहे, उन्होंने कम लिखा। वैसे समय में पूरी पत्रिका, पूरा समाचार-पत्र, पूरा टीवी कार्यक्रम, उनकी ज़ुबान बोलता था। लेकिन उन्होंने जब लिखा तो ख़ूब लिखा, समाज और राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए लिखा।

    जन-पक्षधरता एसपी सिंह के लेखन की केन्द्रीय विषयवस्तु है, जिससे वे न कभी बाएँ हटे, न दाएँ। इस मामले में उनके लेखन में ज़बर्दस्त निरन्तरता है। एसपी सिंह अपने लेखन से साम्प्रदायिक, पोंगापंथी, जातिवादी और अभिजन शक्तियों को लगातार असहज करते रहे। बारीक राजनीतिक समझ और आगे की सोच रखनेवाले इस खाँटी पत्रकार का लेखन आज भी सामयिक है।

    यह सुरेन्द्र प्रताप सिंह की रचनाओं का पहला संचयन है। 

Patrakarita Ka Mahanayak : Surendra Pratap Singh

Patrakarita Ka Mahanayak : Surendra Pratap Singh

Surendra Pratap

250

₹ 200

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