Shriprakash Mishra
Stri Vimarsh Ki Jameen
- Author Name:
Shriprakash Mishra
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Book Type:

- Description: स्त्री-विमर्श यूरोप के लिए चाहे जितना पुराना हो, अध्ययन के स्तर पर भारत के लिए अभी नया क्षेत्र है। इसने पिछली सदी के अन्तिम दो दशकों में जोर पकड़ा है। इस विषय पर जहाँ अंग्रेजी में अच्छी पुस्तकों की भरमार है, हिन्दी में प्रचुर सामग्री उपलब्ध होने के बावजूद एक व्यवस्थित रूप से लिखी पुस्तक शायद ही मिलती हो। उम्मीद है इस कमी को यह पुस्तक 'स्त्री-विमर्श की ज़मीन' पूरी करेगी। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय इसका प्रमाण है। वहाँ पश्चिम में हुए चिन्तन और आन्दोलन के साथ-साथ भारत में हुए चिन्तन, अध्ययन और प्रयास का खुलासा है। इस पुस्तक का पाठक-समाज में भरपूर स्वागत होगा, ऐसी उम्मीद है।
Stri Vimarsh Ki Jameen
Shriprakash Mishra
Jo Bhula Diye Gaye
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Shriprakash Mishra
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चौरी चौरा कांड को कांग्रेसियों ने इतिहास के बाहर कर दिया कि उसके कारण गांधी जी ने अपना आन्दोलन वापस ले लिया था। क्रान्तिकारियों ने उसे बाहर कर दिया, क्योंकि उसमें किसी नामी-गिरामी क्रान्तिकारी ने हिस्सा नहीं लिया था। अंग्रेज़ों ने बाहर कर दिया, क्योंकि वह उनकी सत्ता को सीधे ललकार गया। दु:खद यह कि उसे जन ने भी बाहर कर दिया, जबकि वह सबाल्टर्न की दृष्टि से हुआ आज़ादी की लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप था। फिर उसकी स्मृति कुछ लोगों के मन में हमेशा गूँजती रही है और नई पीढ़ी के लोग उससे जुड़े लोगों के बारे इधर काफ़ी जिज्ञासु दिखते हैं।
इस उपन्यास में उनकी कथा के साथ-साथ गोरखपुर के इलाक़े में प्रान्त और राष्ट्र से जुड़कर यह आज़ादी की लड़ाई 1920 से लेकर 1942 तक कैसे चली थी, उसकी एक झलक यहाँ मिलेगी, वहाँ के सामाजिक जीवन की तमाम छवियों के साथ।
उत्तर-पूर्व को लेकर लिखनेवाले श्रीप्रकाश मिश्र के लेखन में यह उपन्यास एक नया मोड़ इंगित करता है, जो पाठकों को कई तरह से पसन्द आएगा।
Jo Bhula Diye Gaye
Shriprakash Mishra
Europe Ke Adhunik Kavi
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Shriprakash Mishra
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Book Type:

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हिन्दी के तमाम पाठक यूरोप की कविता और कवियों को इक्का-दुक्का तथा अपर्याप्त अनुवादों से जानते हैं। इससे वहाँ के कवियों के बारे में उनकी जानकारी आधी-अधूरी ही रहती है। श्रीप्रकाश मिश्र ने करीब साठ कवियों पर अलग-अलग लगभग पूरी जानकारी इस पुस्तक में समाहित की है, जिससे इस कमी की काफ़ी पूर्ति हो सकेगी। उन्होंने एक भाषा के कवियों को उनके कालक्रम के अनुसार एक साथ रखा है और उस सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि की भी जानकारी दी है जिसमें उनकी कविताओं ने जन्म लिया है। यूरोप की आधुनिकतावादी कविताओं की सामान्य विशेषताओं और स्वयं आधुनिकतावाद पर स्वतंत्र अध्याय उस कविता सम्बन्धी जानकारी को और समृद्ध करते हैं। वे स्वयं कवि हैं और
कवि पर उनकी एक निजी दृष्टि है—इसका भी प्रमाण इस पुस्तक में मिलता है। उम्मीद है, यूरोप की कविता के तमाम पाठकों को यह पुस्तक बड़ी उपादेय होगी।
Europe Ke Adhunik Kavi
Shriprakash Mishra
Bahas Ke Muddey
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Shriprakash Mishra
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इस पुस्तक में आजकल चल रहे बहस के मुद्दों पर लेख संकलित है। ये मुद्दे लम्बे समय से बने रहे हैं, किन्तु केन्द्र में अभी आए हैं। 2014 से पहले राजनीति पर समाज हावी रहता था, उसके बाद समाज पर राजनीति हावी हो गई है। इसका आरम्भ आपातकाल के दौरान ही हो गया था पर वर्चस्व अब बना है। जब समाज हावी था, तब समाजवाद निश्चित अर्थव्यवस्था, धर्मनिरपेक्षता, समानता, स्वतंत्रता, दलितवाद, पिछड़ावाद, आदिवासी विमर्श, स्त्रीवाद आदि का बोलबाला था। (इसमें आदिवासी विमर्श का पूरा विकास नहीं हो पाया था, अब हो रहा है।) अयोध्या की घटना के बाद सांस्कृतिक राष्ट्रवाद आया और उससे जुड़े तमाम दीगर मुद्दे। अब माना जाने लगा है कि कोई एक बात वर्चस्व बनाकर चल सकती है तो वह है ‘हिन्दुत्व’। उसके लिए निर्वचन और उत्तर सत्य का सहारा लिया जा रहा है। भुला दिया जा रहा है कि इस बहुलता वाले देश में कोई बात देशकाल-परिस्थिति के अनुसार प्रमुख तो हो सकती है, ‘डॉमिनेंट’ नहीं।
इधर सरकार बदलने के बाद जो बहस के मुद्दे पीछे चले गए थे, वे फिर केन्द्र में आ गए हैं और कुछ नए मुद्दे उभर आए हैं। ऐसे ही नौ मुद्दे, जैसे हिन्दुइज्म, हिन्दुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सामाजिक अभियंत्रण, उत्तर सत्य का प्रभाव, विकास का गुजरात मॉडल, जनजातीय विमर्श का आधार वग़ैरह की चर्चा इस पुस्तक में है। वहाँ जो तर्क-वितर्क रखे गए हैं, वे पाठकों को प्रबुद्ध तो करेंगे ही, अपना पक्ष चुनने में भी मदद करेंगे। उम्मीद है, यह पुस्तक प्रबुद्ध और सामान्य दोनों ही तरह के पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
Bahas Ke Muddey
Shriprakash Mishra
Uttaradhunik Avadharnayen
- Author Name:
Shriprakash Mishra
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Book Type:

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अक्सर कहा जाता है कि कल्पनाशील लेखन करनेवाले हिन्दी के रचनाकार वस्तुगत ढंग से गम्भीर लेखन नहीं कर पाते। यदि करते भी हैं तो विवाद वाले मुद्दों पर स्पष्ट स्टैंड नहीं लेते। इस धारणा को ख़ारिज करती है श्रीप्रकाश मिश्र की यह पुस्तक ‘उत्तरआधुनिक अवधारणाएँ’।
श्रीप्रकाश मिश्र हमारे समय के महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों में से एक हैं। इस पुस्तक में उत्तर-आधुनिकता, उत्तर-साम्यवाद, उत्तर-प्राच्यवाद, उत्तर-उपनिवेशवाद, स्त्रीवाद, विचारधारा, निर्वचन, भूमंडलीकरण, राष्ट्रवाद, जनतंत्र, संस्कृति, न्याय, सामाजिक अभियंत्रण, लोकलुभावनवाद आदि पर अच्छी तरह से विवेचित लेख हैं, व्याख्यान हैं। वे एक स्पष्ट स्टैंड लेकर चलते हैं और लेखक की स्पष्टवादिता दर्ज करते हैं।
उम्मीद है, यह पुस्तक पाठकों के ज्ञान और चिन्तन को समृद्ध करेगी।
Uttaradhunik Avadharnayen
Shriprakash Mishra
Rooptilli Ki Katha
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Shriprakash Mishra
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Book Type:

- Description: प्रस्तुत उपन्यास मेघालय बसनेवाली ख़ासी जनजाति के सांस्कृतिक जीवन पर आधारित है। इसका कालखंड वह समय है जब एक तरफ़ अँग्रेज़ उन्हें ईसाई बनाने में लगा था तो आसपास का हिन्दू नेतृत्व उन्हें हिन्दू बनाने में। जनजाति दोनों से बचकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखना चाह रही थी। उससे उत्पन्न संघर्ष की गाथा इस कृति में एक बढ़िया कहानी के माध्यम से उभरकर आई है। इसके पन्नों से गुज़रते हुए लगता है कि हम उस जीवन को न केवल देख रहे हैं, वरन् उसे जी भी रहे हैं। वहाँ की धूप, पानी, पहाड़, नदी, वायु, धरती, पेड़, पशु अपने समस्त सौन्दर्य, तेज, वेग और जीवन्तता के साथ मौजूद हैं, जिन्हें हम अपनी प्राणवायु में भरते चलते हैं। कवि होने के नाते लेखक का गद्य हमें बहुत आकृष्ट करता है।
Rooptilli Ki Katha
Shriprakash Mishra
Nadi Ki Toot Rahi Deh Ki Awaz
- Author Name:
Shriprakash Mishra
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- Description: यह उपन्यास ज़मीन से जुडी समस्या पर आधारित है और इस मामले में यह प्रेमचन्द्, रेणु, शिवप्रसाद सिंह आदि की रचनाओं की आगे की कड़ी के रूप में दिखेगा, एक सर्वथा अपरिचित क्षेत्र और परिस्थिति में अवस्थित। यहाँ असम के लोगों का जीवन अपने पूरे सांस्कृतिक वितान के साथ तथा उसका टकराव अन्य संस्कृतियों के साथ जो बहिरागतों के आने के कारण बना है, उभरकर चित्रित हुआ है। वहाँ का आम आदमी अनुभव करता है कि वह अपने ही वतन में अल्पसंख्यक होता जा रहा है। अपने मध्यवर्गीय चरित्र के कारण सरकारें उसका समाधान निरन्तर टालती रहती हैं। परिणामस्वरूप इंसरजेंसी और आतंकवाद वहाँ के जीवन का अंग बन जाता है। लड़ते हुए लोगों का एक पूरा जीवन बीत जाता है, पर एक अदना-सा ज़मीन का टुकड़ा हस्तगत नहीं हो पाता। आज जो राष्ट्रीय नागरिकता पंजी और नए नागरिक विधान की बहस चल रही है, उसकी रुनझुन उपन्यासकार ने काफ़ी पहले अनुभव कर ली है। यह पूरा वृत्तान्त एक सुन्दर कहानी के माध्यम से इस उपन्यास में आया है। श्रीप्रकाश मिश्र निम्न मूलतः कवि हैं। इसलिए उनका प्रकृति का, मनुष्य के स्वभाव का, नौकरशाहों और राजनेताओं के व्यवहार का वर्णन एक खूबसूरत भाषा में हुआ है। यह उपन्यास पाठकों को कई तरह से समृद्ध करेगा।
Nadi Ki Toot Rahi Deh Ki Awaz
Shriprakash Mishra
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