Rajwanti Mann
Chandrashekhar Azad Viveksheel Krantikari
- Author Name:
Rajwanti Mann +1
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Book Type:

- Description: ‘चन्द्रशेखर आज़ाद : विवेकशील क्रान्तिकारी’ प्रत्येक भारतीय के लिए एक अनिवार्य पाठ्य-पुस्तक की तरह है। चन्द्रशेखर आज़ाद ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में महानायक की भूमिका निभाई। सच्चे अर्थों में उनका तन-मन-धन भारतमाता की सेवा में समर्पित रहा। वे आज़ाद जिए और अन्त तक पुलिस के हाथ न आए। आज़ाद ने अपने साहसी व्यक्तित्व से आज़ादी के देशव्यापी अभियान को क्रान्ति की अद्भुत गरिमा प्रदान की। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर असंख्य युवाओं ने क्रान्ति के मार्ग पर क़दम बढ़ाए। सरदार भगत सिंह के साथ तो आज़ाद का विशेष लगाव था। इस पुस्तक के अनुसार, ‘भगत सिंह को आज़ाद केवल पार्टी के एक सदस्य के नाते ही नहीं देखते थे, बल्कि उन्हें अपने भाई की तरह, अपने परिवार के व्यक्ति की तरह मानते और अत्यधिक स्नेह करते थे।’ सत्य तो यह है कि आज़ाद को प्रत्येक क्रान्तिकारी में अपना ही रूप दिखाई देता था। प्रस्तुत पुस्तक अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के जीवन-वृत्तान्त के साथ उनके युग की महान गाथा रेखांकित करती है। समकालीन सन्दर्भों में यह पुस्तक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो उठती है।
Chandrashekhar Azad Viveksheel Krantikari
Rajwanti Mann
Bhagat Singh Ko Fansi : Vol. 2
- Author Name:
Rajwanti Mann +1
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Book Type:

- Description: यह पुस्तक ‘भगत सिंह को फांसी-1’ का ही दूसरा भाग है। इसमें लाहौर साज़िश केस के दौरान हुई 457 गवाहियों में से महत्त्वपूर्ण गवाहियों के तो पूर्ण विवरण दिए गए हैं, जबकि शेष गवाहियों के तथ्य-सार दिए गए हैं। शहीद सुखदेव ने इस दस्तावेज़ का बारीकी से अध्ययन किया था और उनके द्वारा अंकित की गई टिप्पणियों का उल्लेख सम्बन्धित गवाहियों के ब्योरे में किया गया है। यहाँ यह कहना भी प्रासंगिक है कि इस ऐतिहासिक दस्तावेज़ को पहली बार प्रकाशित किया जा रहा है, जिसके द्वारा पाठकों को अनेक विचित्र तथ्य जानने का अवसर प्राप्त होगा। ज़िक्र योग्य है कि ये गवाहियाँ विशेष ट्रिब्यूनल के समक्ष 5 मई, 1930 से 26 अगस्त, 1930 तक हुई थीं जबकि इससे पूर्व 10 जुलाई, 1929 से 3 मई, 1930 तक मुक़दमा विशेष मजिस्ट्रेट की अदालत में चला था।
Bhagat Singh Ko Fansi : Vol. 2
Rajwanti Mann
Jalianwala Bagh Ki Karahein : Pratibandhit Hindi Sahitya
- Author Name:
Rajwanti Mann
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- Description: ग़ुलामी के दौरान पंजाब पर अकल्पनीय अत्याचार के प्रतिवाद में रचित तथा ब्रिटिश शासन द्वारा प्रतिबन्धित और ज़ब्त रचनाएँ ‘जलियाँवाला बाग़ की कराहें’ पुस्तक जलियाँवाला बाग़ के नरसंहार की अतिशय वेदना और अंग्रेज़ी जुल्मों की व्यथा-कथा है जिसे हिन्दुस्तानियों ने अपनी आत्मा पर झेला, अपनी आँखों से देखा और साहित्यकारों ने अपनी क़लम से उकेरा। यह जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए लिखा गया साहित्य है जो एक सदी तक अन्वेषकों की नज़रों से लगभग छिपा रहा। इन रचनाकारों ने अंग्रेज़ी राज की प्रताड़नाएँ सहते हुए औपनिवेशिक काल की त्रासद स्थितियों को कलमबद्ध किया। रचनाएँ मौखिक यात्रा करती हुईं जन-चेतना के उद्देश्य तक पहुँचती रहीं। पुस्तक में कुल नौ अध्याय हैं जिनमें जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के बाद रचित वे नाटक, कविताएँ, दोहे, ठुमरी, लावणी, क़व्वाली, ग़ज़ल आदि सम्मिलित हैं जो अलग-अलग पुस्तिकाओं में प्रकाशित हुईं। लगभग सभी विधाओं में रचित यह साहित्य जलियाँवाला बाग़ की पृष्ठभूमि से लेकर हर छोटी-बड़ी घटना, अंग्रेज़ों की क्रूरता, जुल्म और यातनाओं, लोगों की बेबसी, लाचारी, सामाजिक दशा-दुर्दशा का निर्भीक और वास्तविक विवरण प्रस्तुत करता है तो दूसरी तरफ़ साहस से उठ खड़े होने का आह्वान भी करता है। इनमें नृशंस हत्याओं के साथ-साथ हरे-भरे पेड़-पौधों की उखड़ी-जली छालों, घास चरती हुईं गाय-भैंसों का चरते-चरते मारे जाना, तोते, कोयल और मैना आदि पक्षियों तक का भी गोलियों से डरकर मरने का मार्मिक चित्रण है। इन रचनाओं की सत्यता पर कोई सन्देह इसलिए नहीं किया जा सकता कि आधिकारिक ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में भी किसी न किसी रूप में इनका ज़िक्र है और इतिहास की पुस्तकों में भी इन्हें प्राय: उसी रूप में अभिव्यक्त किया गया है।
Jalianwala Bagh Ki Karahein : Pratibandhit Hindi Sahitya
Rajwanti Mann
Bhagat Singh Ko Fansi : Vol. 1
- Author Name:
Rajwanti Mann +1
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- Description: भगत सिंह को फाँसी-1 यह कैसे हुआ कि मामूली हथियारों से लैस कुछ नौजवानों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी पाया गया, जिसके चलते उन्हें उम्रकैद और फाँसी की सजा हुई! ‘युद्ध’, जो उन्होंने लड़ा हालाँकि ‘‘यह युद्ध उपनिवेशवादियों व पूँजीपतियों के विरुद्ध लड़ा गया।’’ और जो ‘‘ न ही यह हमारे साथ शुरू हुआ और न ही यह हमारे जीवन के साथ खत्म होगा।’’ और, मात्र 30 महीने की उल्लेखनीय अवधि में 8-9 सितम्बर 1928 को ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन’ की स्थापना के साथ शुरू होकर, यह सम्पन्न हो गया। विश्वास से भरपूर भगत सिंह के शब्द थे, कि ‘‘मैं अपने देश के करोड़ों लोगों की ‘इंकलाब जिंदाबाद’ की हुंकार सुन पा रहा हूँ। काल-कोठरी की मोटी दीवारो के पीछे बैठे हुए भी मुझे कहै कि यह नारा हमारे स्वतंत्राता संघर्ष को प्रेरणा देता रहेगा।’’ इस पुस्तक में प्रस्तुत है इसका प्रथमद्रष्टया विवरण।