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Malay

Likhane Ka Nakshhatra

  • Author Name:

    Malay

  • Book Type:
  • Description: मलय की कविता एक सृष्टि रचने की तरह लगती है। इसलिए उसके पाठ को पूरी तरह समझकर अर्थवस्तु की संगति खोजी जा सकती है। उसका पाठ पेचीदा है। यह एक पूरा नाट्य-व्यापार है जो चाक्षुष माध्यमों के मुक़ाबले अपनी ध्वनियों से टक्कर लेता है। कविता के इस पाठ का वस्तु की संश्लिष्टता से गहरा सम्बन्ध है। यह सामान्य कथन की कविता है भी नहीं। इस कविता का ठाठ जटिल है। यह गहरी और मज़बूत जड़ों वाली, व्यापक प्रशाखाओं में विकसित होनेवाली अनन्त संघर्षों से युक्त परम्परा का विनम्र स्वीकार भी है। यह स्वीकार पंच महाभूतों और इन्द्रियों के चर-अचर तक व्यापक है। संवाद की ललक का ऐसा व्यापक विस्तार कविता में कम ही देखने को मिलता है। एक अर्थ में मलय की कविता दृश्य बिम्बात्मक है। चाक्षुष प्रत्यय फंतासी बनकर खड़ा होता है।

    आज के युग-सत्य कविता को वाचाल नहीं बनाते। मलय का काव्य-विवेक तमाम जीवनानुभूतियों से एक साथ टकराता है। अनुभव की चिनगारियाँ इस कविता में साफ़-साफ़ चमकती हैं। छोटे-छोटे दृश्य-बिम्ब व्यापक धरातल पर अपनी गतिशीलता में इतने क्रियाशील होते हैं कि निरन्तरता का एक नया द्वन्द्व उभरता है। मलय की कविता एक स्पन्दनशील जगत् की कविता है। यहाँ प्रत्येक शब्द सक्रिय है, उसकी क्रियाशीलता उसके व्यवहार से जानी जाती है। इस कविता में कुछ भी आरोपित नहीं है : न प्रगति, न प्रयोग। कवि अपनी कविता का स्रोत जीवन को मानता है। जहाँ भी, जैसा भी वह है, कविता का विषय है। अपनी सुदीर्घ रचना-यात्रा में मलय की कविता भटकी नहीं है। मलय की कविताओं की यह छठी पुस्तक है।

    मलय की ये कविताएँ बन्धनों से मुक्ति के लिए सामूहिक प्रयासों की सार्थकता का स्वीकार हैं। कवि के सामने मेहनतकश समाज की अपार दु:ख-गाथाएँ हैं। इन गाथाओं के दु:ख को इन कविताओं में सुना जा सकता है।

    —वीरेन्द्र मोहन

Likhane Ka Nakshhatra

Likhane Ka Nakshhatra

Malay

150

₹ 120

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