Kanhaiya Singh
Udar Islam Ka Soophi Chehara
- Author Name:
Kanhaiya Singh
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Book Type:

- Description: सूफ़ियों का प्रेम-दर्शन मानवीय प्रेम से लेकर ईश्वरीय प्रेम तक प्रसार पाता है। जायसी के अनुसार ‘मानुस प्रेम भएउ बैकुंठी। नाहिंत काह छार एक मूठी।’ इस उदात्त प्रेम और उसकी आभा से आलोकित इन कवियों की प्रेम-गाथाओं का मर्म समझने के लिए उनके सिद्दान्तों के क्रमिक विकास और उनकी सैद्धान्तिक प्रेम-दृष्टि को समझना आवश्यक होता है। इस पुस्तक में सूफ़ी दर्शन का क्रमिक विकास दिखाया गया है। इस क्रम में देखा गया है कि सूफ़ी दर्शन (तसव्वुफ़) पर भारतीय वेदान्त दर्शन का प्रभाव है। मुसूर-अल-इलाज, इब्बुल अरबी, अब्दुल करीम-अल-जिली के विचार तो पुर्णतः वेदान्त सम्मन थे। इसे उनके कथनों के उद्धरण द्वारा प्रतिपादित किया गया है। अहं ब्रह्मास्मि के वेदान्तिक सूत्र का अनुवाद ही अनलहक है। ईश्वर-जीव की एकता के सिद्दान्त की सूफ़ियों ने ‘वहदतुल वजूद’ कहा था। इसका विरोध कर परवर्ती सूफ़ियों ने ‘वहदतुल शहूद’ का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। यह एक रोचक अध्ययन इस पुस्तक में सर्वप्रथम मूल स्रोतों के आधार पर प्रस्तुत हुआ है। साथ ही ‘सूफ़ीमत’ के सिद्धान्तों, सम्प्रदायों तथा विशेषताओं को हिन्दी के सूफ़ी कवियों के उद्धरणों के साथ प्रस्तुत किया गया है। ‘सूफ़ीमत’ को समझने के लिए यह पुस्तक विद्वानों और विद्यार्थियों दोनों के लिए उपयोगी है।
Udar Islam Ka Soophi Chehara
Kanhaiya Singh
Swami Ramanand
- Author Name:
Kanhaiya Singh
-
Book Type:

- Description:
स्वामी रामानन्द एक युगपुरुष थे। चौदहवीं शताब्दी में उन्होंने दक्षिण भारत से भगवान विष्णु की भक्ति को रामभक्ति के रूप में लाकर प्रतिष्ठित किया और विपरीत प्रतीत होने वाली दो धाराओं में समन्वय और सामंजस्य स्थापित किया।
उन्होंने निर्गुण और सगुण भक्ति के समन्वय का कार्य किया। उनके अनुसार ये दोनों ही भक्तिमार्ग विधेय हैं। इन दोनों को जोड़ने का सेतु उनका 'राम-नाम' का मंत्र बना। नाम का जप करना निर्गुण और सगुण दोनों ही मार्गों के कवियों ने स्वीकार किया।
स्वामी जी ने यह कहा कि ब्राह्मण शूद्र सहित चारों वर्ण के लोग भक्ति के अधिकारी हैं। उनके द्वारा समन्वय के सम्बन्ध में कहा गया -
'जाति पाँति पूछै नहिं कोई। हरि को भजै सो हरि का होई।'
उनके अनुसार पुरुष की भाँति स्त्री भी भक्ति की कारिणी है।
स्वामी जी ने इस प्रकार अपने समन्वय और सामंजस्य के द्वारा एक प्रबल-सबल राष्ट्र- निर्माण की वह भूमिका बनाई जो भारत को एक भव्य-दिव्य भारत बनाकर विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित कर सकती है।
Swami Ramanand
Kanhaiya Singh
Kali Mitti Par Pare Ki Rekha
- Author Name:
Kanhaiya Singh
-
Book Type:

- Description:
डॉ. कन्हैया सिंह जी अपने यशस्वी जीवन के 85वें वर्ष पूर्ण कर 86वें वर्ष में प्रवेश करने के अवसर पर प्रकाशित यह ग्रन्थ पूरे देश के विद्वानों से प्राप्त पत्र-पुष्प है। अल्प समय में इतनी बड़ी संख्या में विद्वानों ने अपने आलेख भेजे हैं जो डॉ. कन्हैया सिंह जी की कीर्ति और साहित्यिक सक्रियता का परिणाम है। राजस्थान के माननीय राज्यपाल
श्री कलराज मिश्र, उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गोवा की पूर्व राज्यपाल माननीय मृदुला सिन्हा, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष, डॉ. कमल किशोर गोयनका के आलेख ने इस ग्रन्थ की गरिमा को बढ़ाया है। हिन्दी के अनेक यशस्वी साहित्यकारों और आलोचकों के साथ ही युवा लेखकों की भागीदारी ने भी इसे महत्त्वपूर्ण बनाया है।डॉ. कन्हैया सिंह जी का जीवन और उनके द्वारा रचित समस्त साहित्य को केन्द्र में रखते हुए इस पुस्तक को पाँच खंडों में संयोजित किया गया है—‘जीवन पर्व : संघर्ष एवं साधना का उज्ज्वल इतिहास’ पहला खंड है। जिसमें विभिन्न लेखकों द्वारा लिखे गए संस्मरण और
डॉ. कन्हैया सिंह जी के जीवन सम्बन्धी आलेख हैं। पुस्तक का द्वितीय खंड ‘सृजन पर्व : विचार एवं वैभव का ताना-बाना’ है, जिसमें डॉ. सिंह के सृजनात्मक साहित्य को केन्द्र में रखकर लिखे गए आलोचनात्मक लेखों का संकलन किया गया है। इस पुस्तक के तृतीय खंड ‘भाषा पर्व : अक्षर-अक्षर भेद’ में डॉ. कन्हैया सिंह जी के पाठ-सम्पादन एवं भाषाविज्ञान सम्बन्धी कार्यों पर लिखे गए समीक्षात्मक लेखों को संयोजित किया गया है। ‘संस्कृति पर्व : समष्टि का रचनात्मक उछाह’ जो कि पुस्तक का चतुर्थ खंड है, में डॉ. कन्हैया सिंह जी द्वारा किए गए सूफ़ी साहित्य, सन्त साहित्य तथा इतिहास लेखन विषयक कार्यों की समीक्षा है। पुस्तक का पाँचवाँ और अन्तिम खंड ‘चिट्ठी-विट्ठी : हाल-ए-ज़ुबानी और’ है। इसमें हिन्दी जगत के विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यकारों, समाजसेवियों और प्रमुख राजनेताओं का डॉ. कन्हैया सिंह जी के साथ पत्र-व्यवहार एवं उन पर लिखित आलेख सम्मिलित हैं। साथ ही डॉ. कन्हैया सिंह जी का साक्षत्कार भी इसी खंड में संगृहीत है।यह पुस्तक हिन्दी के अध्येताओं के लिए हिन्दी पाठानुसन्धान, सूफ़ी साहित्य, सन्त साहित्य, भाषाविज्ञान तथा डॉ. कन्हैया सिंह जी के सम्पूर्ण रचना-संसार को एक साथ समझने में अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है।
Kali Mitti Par Pare Ki Rekha
Kanhaiya Singh
Sansmarnon Ka Alok
- Author Name:
Kanhaiya Singh
-
Book Type:

- Description:
वैसे तो साहित्य की सभी विधाओं का महत्त्व है, पर उनमें प्रत्यक्ष अनुभूति के साथ ही कल्पना की उड़ान भी सम्मिलित होती है। इसके विपरीत संस्मरण में वास्तविक अनुभव और सत्यानुभूतियों का ही समुच्चय होता है। इसलिए यह विधा अधिक विश्वसनीय होने के कारण प्रेरणादायी भी होती है।
बहुत से प्रतिष्ठित संस्मरण-लेखक कुर्सी उछालने और दाग ढूँढ़कर अपने संस्मरणों को मसालेदार बनाते हैं। लेखक ने अपने इन संस्मरणों में इस प्रवृत्ति से बचने का प्रयास किया है। महापुरुषों और महान साहित्यकारों के गुणों और प्रेरणादायी प्रसंगों की ही चर्चा इस पुस्तक में की गई है। संस्मरण प्रायः उन्हीं व्यक्तियों के हैं जिनका प्रत्यक्ष दर्शन और साक्षात्कार लेखक को हुआ। अपवादस्वरूप रामचन्द्र शुक्ल और अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के संस्मरण सुने और लिखे प्रसंगों से लिए गए हैं। इन संस्मरणों में जीवन्तता और बड़े लोगों के उदार, निरहंकार और उदात्त जीवन की झलकियाँ हैं। प्रेरणादायी तीन सन्तों, कई साहित्यकारों और समाजसेवी महानुभावों के संस्मरण इस पुस्तक में सम्मिलित किए गए हैं जो इतिहास की अमूल्य धरोहर बन सकते हैं।
Sansmarnon Ka Alok
Kanhaiya Singh
Path Sampadan Ke Siddhant
- Author Name:
Kanhaiya Singh
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Book Type:

- Description: प्राचीन कवियों के पाठों का जैसा वैज्ञानिक सम्पादन चाहिए, वैसा हिन्दी में कम हुआ है। जायसी और तुलसी के पाठ-सम्पादन के महत्त्वपूर्ण कार्य हुए हैं। अन्य कवियों के पाठों के अभी इतने सन्तोषजनक परिणाम नहीं मिले हैं। भाषा विषयक शोध, ऐतिहासिक शोध तथा रचनाकार की साहित्यिक सैद्धान्तिक समालोचना के लिए सर्वप्रथम उसकी रचना का मूलपाठ स्थिर होना आवश्यक होता है। इस पुस्तक में पाठ-सम्पादन के सिद्धान्त और अन्य सहायक विषयों की चर्चा की गई है।
Path Sampadan Ke Siddhant
Kanhaiya Singh
Hindi Pathanusandhan
- Author Name:
Kanhaiya Singh
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Book Type:

- Description:
‘हिन्दी पाठानुसन्धान’ का यह दूसरा संस्करण है। ऐसे शुष्क विषय की पुस्तक का दूसरा संस्करण होना इस बात का प्रमाण है कि यह पुस्तक पाठानुसन्धान के क्षेत्र के विद्यार्थियों द्वारा पसन्द की गई। कई विश्वविद्यालयों में एम.ए. के विशेष प्रश्न-पत्र में पाठालोचन पढ़ाया जाता है तथा हिन्दी एम.फिल.
में इसका एक अनिवार्य प्रश्न-पत्र है। इस शोध-ग्रन्थ में हिन्दी सम्पादन का इतिहास मुद्रण के पूर्व से आधुनिक काल तक दिया गया है।
पांडुलिपियों के लेखक भी अपने ढंग से कई प्रतियों का मिलान और पाठान्तर देते थे। मुद्रण प्रारम्भ होने पर पहले तो पांडुलिपि को जैसा का तैसा छाप देना प्रारम्भ हुआ और बाद में विद्वानों ने उपलब्ध सभी प्रतियों में से सबसे उपयुक्त लगनेवाला पाठ देते थे। ग्रियर्सन के समय से यह कार्य परिश्रमपूर्वक सम्पादन में देखा गया और बहुत सी कृतियाँ सुन्दर पाठ की सामने आईं।
1942 से डॉ. माता प्रसाद गुप्त ने पश्चिमी देशों की वैज्ञानिक पद्धति से पाठ-सम्पादन का कार्य शुरू किया और अनेक विद्वानों ने इसे अपनाया भी। इन सभी महत्त्वपूर्ण सम्पादनों का आलोचनात्मक अध्ययन इस पुस्तक में किया गया है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसके सम्बन्ध में लेखक को पत्र लिखा था कि इस दिशा में हिन्दी में बहुत कम काम हुआ है, आपने एक अभाव की पूर्ति की है।
Hindi Pathanusandhan
Kanhaiya Singh
Aalochana Ke Pratyay Itihas Aur Vimarsh
- Author Name:
Kanhaiya Singh
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Book Type:

- Description:
आलोचक किसी कृति के सौन्दर्य-विमर्श में उसके मर्म से लेकर उसके रूप-विन्यास, शब्द संयोजन, अलंकृति आदि तत्त्वों की तलाश में एक नई सृष्टि का सर्जना करता है। संस्कृत में एक उक्ति है :
पंडित या आलोचक ही काव्य के रस को जानता है और 'रस' में ही सौन्दर्य और लावण्य है। काव्य-रस या काव्य-सौन्दर्य का भोक्ता तो कोई भी सहृदय पाठक होता है पर उसका विशिष्ट भोक्ता और उस भोज्य को पचाकर उसके सौन्दर्य की वस्तु-व्यंजना से लेकर उसकी बारीक अन्तरंग परतों को उद्घाटित करने का काम आलोचक करता है। आलोचना में प्रचलित समाज-विमर्श, मनोविमर्श, दलित-विमर्श, नारी-विमर्श आदि सभी विमर्शों का केन्द्रीय तत्त्व सौन्दर्य-विमर्श ही है।
भारतीय कला-दृष्टि, रस-दृष्टि रही है। यह दृष्टि भाववादी दृष्टि ही नहीं, महाभाववादी दृष्टि है। यह महाभाव ही हमारी आलोचना के आर्ष चिन्तन से लेकर अद्यतन वैचारिकी का केन्द्र बिन्दु है। हमने प्रत्यक्ष गोचर से लेकर उसमें अन्तर्निहित सूक्ष्म चेतन सौन्दर्य का विशेष चिन्तन किया। उपनिषद में ‘सत्यधर्म’ के प्रसंग में कहा गया है कि बाह्य जगत सुन्दर तो है, पर उस सुन्दर स्वर्णपात्र की आभा के आवरण के भीतर सत्यधर्म का प्रभावमय सूर्य छिपा है।
Aalochana Ke Pratyay Itihas Aur Vimarsh
Kanhaiya Singh
Gorakhnath : Jeevan Aur Darshan
- Author Name:
Kanhaiya Singh
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Book Type:

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महायोगी गोरखनाथ नौवीं-दसवीं शताब्दी में अवतरित हुए। उन्होंने पतंजलि के योगसूत्रों के आधार पर अपनी योग-साधना का प्रतिपादन किया तथा स्वयं उसकी साधना से सिद्धि प्राप्त की थी। बुद्ध के बाद गोरखनाथ ही भारत में सच्चे लोकनायक हुए। उनका प्रभाव राजमहल से झोपड़ियों तक पड़ा था। अछूत और अन्त्यज के लिए उन्होंने अपने पंथ का द्वार खोल दिया था। कई महत्त्वपूर्ण योगी ऐसी ही जातियों से निकले और बहुत से अन्य धर्मावलम्बी भी योगमार्ग पर अग्रसर हुए। इस प्रकार उन्होंने जाति, पन्थ और सम्प्रदाय की रूढ़ियों को तोड़कर सामाजिक समरसता का मार्ग प्रशस्त किया। साथ ही ब्रह्मचर्य, वैराग्य और साधना द्वारा योगमार्ग को प्रशस्त किया।
उनका प्रभाव, उनके समय से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक के समाज और साहित्य पर सम्पूर्ण भारत में पड़ा। उनके क्रियात्मक योग की प्रक्रिया और शब्दावली आदि का सभी भाषाओं के सन्त कवियों और सूफ़ी कवियों ने प्रयोग किया है। गोरखनाथ के योग का जादू को आज सारा विश्व स्वीकर कर रहा है। योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह योग आज के विश्व-मानव समाज के लिए महायोगी गोरखनाथ की अमूल्य देन है।