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Kailash Wankhede

Sulgan

  • Author Name:

    Kailash Wankhede

  • Book Type:
  • Description: समकालीन हिन्दी कहानी में भाषा का ऐसा संवेदना से पगा सुललित प्रयोग इधर अकसर देखने में नहीं आता जैसा कैलाश वानखेड़े के यहाँ मिलता है।

    वे कहानी के पात्रों को मंज़िल तक पहुँचाकर अपने कथा-सूत्र को समेटने की जल्दी में नहीं रहते। इसके बजाय पाठक को कुछ समय उस वातावरण में रहने देते हैं, जहाँ वे उसे लेकर गए हैं। आसपास का प्राकृतिक और नागरिक परिवेश उनकी भाषा में एक पात्र की तरह ही साकार होता चलता है।

    गहरी संवेदना, विषयों की बहुविधता, और संवेदना के गहरे सरोकारों के लिए भी उनके कथाकार को विशेष रूप से जाना जाता है।

    इस संकलन में कैलाश वानखेड़े की नौ कहानियाँ हैं—‘उन्नति जनरल स्टोर्स’, ‘जस्ट डांस’, ‘ज़िन्दगी और प्यास', ‘गोलमेज’, ‘उस मोड़ पर’, ‘कँटीले तार’, ‘खापा’, ‘काली सडक़’ और ‘हल्केराम’। अपने कथ्य, भाषिक प्रांजलता और सघन सामाजिक मानवीय संवेदनाओं के लिए ये कहानियाँ लम्बे समय तक याद रखी जाएँगी।

Sulgan

Sulgan

Kailash Wankhede

125

₹ 100

Ujla Andhera

  • Author Name:

    Kailash Wankhede

  • Book Type:
  • Description: उजला अँधेरा उपन्यास को पढ़ना एक ऐसे सच के सामने होना है जिससे पूरी व्यवस्था मुँह चुराती रही है। सामाजिक-व्यवस्था का वह सच जिसने आज़ाद भारत के उस सपने को निरर्थक कर दिया जो इस देश के नागरिकों को समता, स्वतंत्रता और उजाले का आश्वासन देता था।

    वह सच है जाति जो हर तरह की सामाजिक-आर्थिक प्रगति को ठेंगा दिखाती हुई हमारे समाज में आज भी जहाँ की तहाँ बनी हुई है। तीन पीढ़ियों के दुःख-दर्द और बदलाव के संघर्षों से रचा हुआ यह पूरा उपन्यास अपने आप में एक तीखा सवाल है जिसे जाति के यथार्थ से आँख मिलाते हुए पूछा गया है। यह उपन्यास पूछता है कि भारत के लोग आज भी एक समान नागरिकता बोध और व्यवहार के अभ्यस्त क्यों नहीं हो पाए हैं; कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी समाज के एक बड़े हिस्से को अपने जन्म, विवाह एवं मृत्यु संस्कारों और उत्सवों को अपने ढंग से मनाने का अधिकार क्यों नहीं मिला; कि यह कैसी व्यवस्था है जिसमें सार्वजनिक सड़क को भी कुछ लोग अपनी निजी सम्पत्ति समझते हैं और चाहते हैं कि कौन उस पर चलेगा, कौन नहीं ये भी वे तय करें? और सबसे बड़ा यह सवाल कि एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र की सरकारें भी क्यों जाति की इस लक्ष्मण रेखा को नहीं लाँघ पातीं? ऐसे तमाम सवालों से उपन्यास के पात्र टकराते हैं। बदलाव की बेचैनी हो या बराबरी के सपने, वे यहाँ एक सुलगती हुई आँच में धीरे-धीरे पकते हैं और सघन सामूहिकता के साथ दर्ज होते हैं। हमारे समय और समाज को समझने के लिए एक ज़रूरी उपन्यास.

Ujla Andhera

Ujla Andhera

Kailash Wankhede

299

₹ 239.2

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