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Ilachandra Joshi

Manimala

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: पं. इलाचन्द्र जोशी की रचनात्मक प्रतिभा से परिचित लोग यह भली-भाँति जानते हैं कि पाठ-सम्मोहन को वे उपन्यास का सर्वश्रेष्ठ गुण मानते हैं। सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं वरन् उत्सुकता, चमत्कार और कहानी कहने की मनोरंजक प्रक्रिया पर वे विशेष ध्यान देते हैं।

    ‘मणिमाला’ नामक इस उपन्यास में उनकी रचना-प्रकृति के सारे गुण एक साथ विद्यमान हैं। अपने आस-पास के जीवन से बिलकुल अलग, दूर मसूरी के एक होटल में वे एक दूसरे आदमी द्वारा सुनी हुई कहानी को लिपिबद्ध करके पाठक की उत्सुकता को जाग्रत करते हैं और एक जिप्सी लड़की को उपन्यास का मुख्य पात्र बनाकर उपन्यास को एक ऐसा आयाम देते हैं कि पाठक साँस बाँधकर ‘आगे क्या हुआ’ सोचता हुआ उपन्यास समाप्त कर देता है।

    हिन्दी उपन्यास को लोकप्रिय बनाने में जिन उपन्यासकारों की भूमिका है, उसमें जोशी जी का नाम सर्वोपरि है और उनके अनेक महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में ‘मणिमाला’ उनकी रचनाशीलता के समस्त गुणों का आईना है।

Manimala

Manimala

Ilachandra Joshi

250

₹ 200

Rituchakra

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: इलाचन्द्र जोशी हिन्दी के अत्यन्त प्रतिष्ठित उपन्यासकार थे। उनके प्राय: सभी उपन्यासों का गठन हमारे समाज के जिन पात्रों के आधार पर हुआ है, वे मनोवैज्ञानिक सार्थकता के लिए सर्वथा अद्वितीय हैं। प्रस्तुत उपन्यास ‘ऋतुचक्र’ एक अत्यन्त रोचक रोमांचक उपन्यास है जिसमें सुरम्य पहाड़ी प्रकृति के अन्तर्प्राणों में छिपे आनन्द-कोष के मूलतत्त्वों का उद्‌घाटन, आज के रेगिस्तानी जीवन की विश्वव्यापी धूल और धुएँ के भीतर से हरियाली के बिखरे हुए बीजों की खोज, सामूहिक पागलपन के विरुद्ध वैयक्तिक आत्मा के विद्रोह का परिचित्रण, रोमांस की एकदम नई और मौलिक परिकल्पना, रोमांचक रोमांसों के रहस्यों की मार्मिक अन्तरकथा, युग-जीवन की विसंगतियों की कहानी इत्यादि तथ्यों का विस्तृत वर्णन किया गया है। एक प्रभावी और महत्त्वपूर्ण कृति।
Rituchakra

Rituchakra

Ilachandra Joshi

995

₹ 796

Kavi Ki Preyasi

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: ‘कवि की प्रेयसी’ एक काल्पनिक उपन्यास है जिसमें प्रसिद्ध उपन्यासकार इलाचन्द्र जोशी ने अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से अपने ही एक परिचित मित्र के पूर्व जन्म की कहानी का चित्रण किया है। इसमें वर्णित प्रसंगों की सटीकता प्रमाणित करने के लिए किसी पुरातत्त्वेत्ता की दृष्टि को व्यर्थ प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है। इस उपन्यास में पात्रों के मनोभावों को बड़ी सटीकता और सघनता से लिखा गया है जिससे कोई भी संवेदनशील पाठक अछूता नहीं रह सकता। अन्त:बाह्य जीवन के संघर्ष व रोमांचकता से परिपूर्ण सार्थकता को प्रस्तुत करनेवाला यह उपन्यास पाठकों को शुरू से अन्त तक बाँधे रखने में सक्षम है।
Kavi Ki Preyasi

Kavi Ki Preyasi

Ilachandra Joshi

400

₹ 320

Jahaj Ka Panchhi

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: इलाचन्द्र जोशी हिन्दी के अत्यन्त प्रतिष्ठित उपन्यासकार थे। उनके प्राय: सभी उपन्यासों का गठन हमारे मध्यवर्गीय समाज के जिन पात्रों के आधार पर हुआ है, वे मनोवैज्ञानिक सार्थकता के लिए सर्वथा अद्वितीय है। ‘जहाज़ का पक्षी’ एक ऐसे मध्यवर्गीय नवयुवक के परिस्थिति-प्रताड़ित जीवन की कहानी है, जो कलकत्ता के विषमताजनित घेरे में फँसकर इधर-उधर भटकने को विवश हो जाता है, किन्तु उसकी बौद्धिक चेतना उसे रह-रहकर नित-नूतन पथ अपनाने को प्रेरित करती है। ऐसा कौन-सा काम है, जो उसने अपने अन्तस की सन्तुष्टि के लिए न अपनाया हो। जीवन की उदात्तता का पक्षपाती होते हुए भी वह ‘जहाज़ का पंछी’ के समान इत-उत भटककर फिर अपने उसी उद्दिष्ट पथ का राही बन जाता है, जिसे अपनाने की साध वह अपने अन्तर्मन में सँजोए हुए
    था।

    ‘जहाज़ का पंछी’ में आज के सुशिक्षित किन्तु महत्त्वाकांक्षी तथा बौद्धिक चेतना से आक्रान्त बहुत से नवयुवक अपनी ही जीवनकथा अंकित पाएँगे। यह एक दर्पण है, जिसमें हम अपने तरुण वर्ग और नागरिक जीवन की झाँकी पा सकते हैं।

Jahaj Ka Panchhi

Jahaj Ka Panchhi

Ilachandra Joshi

300

₹ 240

Sanyasi

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: इलाचन्द्र जोशी मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद को अपने लेखन का विषय बनानेवाले ऐसे प्रमुख लेखक थे, जिनकी कृतियों की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है। यह उपन्यास ‘संन्यासी’ इस बात का एक महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है। आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया यह उपन्यास सामाजिक और प्रगतिशील तत्त्वों की उपादेयता से पूर्ण एक ऐसा चरित्र प्रश्न उपन्यास है जो पुरुष और स्त्री के द्वन्द्व–अन्तर्द्वन्द्व का अपने समय की व्यापकता में विश्लेषण और विवेचन प्रस्तुत करता
    है।

    ‘संन्यासी’ युवा प्रेम के अन्तर्लोक का एक अद्भुत आख्यान है, जिसके ज़रिए लेखक का उद्देश्य पितृसत्तात्मक समाज की उस संरचना पर प्रहार भी करना है, जो मनुष्य के निर्माण में अतीत की ख़ामियों के साथ ऐसी भूमिका निभाता है कि कुछ भी अछूता नहीं रह जाता, यहाँ तक कि प्रेम भी। और इसी जटिलता को सुलझाने के लिए लेखक ने उपन्यास में जैसे ख़ुद त्रासदियों को जीते हुए अपना भूगोल पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ रचा है।

    अपनी तमाम ख़ूबियों के बीच ‘संन्यासी’ संवेदना, सौन्दर्य और दृढ़ता की प्रतीक अपनी नायिकाओं शान्ति और जयन्ती के कारण सदा अविस्मरणीय बने रहनेवाला उपन्यास है। भाषा में अद्भुत कलात्मक चेतना के साथ रची गई इस कृति की पठनीयता बार–बार एक नए आस्वाद को जन्म देती है।

Sanyasi

Sanyasi

Ilachandra Joshi

350

₹ 280

Gypsy

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: यह उपन्यास अपनी भाषिक संरचना से कथा-उद्देश्य की ज़मीन पर जिस तरह आन्तरिक और बाह्य क्रियात्मकता के साथ रचा गया है, वह अपने-आप में एक उदाहरण है, और यह उदाहरण उपन्यासकार इलाचन्द्र जोशी की एक बड़ी विशेषता है।

    इस उपन्यास की धुरी है एक ख़ानाबदोश लड़की जिसके कथा-आयतन में सम्मोहन, प्रेम, चेतना, कुंठा और उत्तेजना, फिर तमाम स्थितियों तथा संघर्षों की विस्तृत और अन्तहीन घटनाएँ अपनी गहरी जड़ों के साथ मानव-सभ्यता में अपना कालबोध प्रतीत होती हैं। उपन्यास में लेखक ने स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान का कैनवस रचते व्यक्ति, समाज-वर्ग और धर्म, विचार, व्यवस्था तथा राजनीति के बीच की खाइयों और उसकी परिणति-प्रक्रिया पर भी अपनी पैनी नज़र बनाए रखी है।

    बहुमुखी प्रतिभा के विशिष्ट रचनाकार इलाचन्द्र जोशी ने जिस दृष्टि और कलात्मकता के साथ अपनी इस कृति में अपने पात्रों के मनोलोक और उनके अपने बाहरी संसार से टकराव को सघनता से रचा है, उससे कोई भी संवेदनशील पाठक अछूता नहीं रह सकता।

Gypsy

Gypsy

Ilachandra Joshi

225

₹ 180

Pret Aur Chhaya

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: अज्ञात चेतना का मनोविज्ञान अभी तक शैशव अवस्था से आगे नहीं बढ़ पाया है। यूरोप के मनोवैज्ञानिकों ने इस ओर क़दम बढ़ाया है, पर अभी तक वे प्रारम्भिक सीढ़ी भी तय नहीं कर पाए हैं। मेरे मन में यह दृढ़ विश्वास है कि यह सब विद्वानों का मूलगत विज्ञान भारतीय क्षेत्र में ही चरम उन्नति प्राप्त कर सकेगा। अन्तश्चेतना की रहस्यमयता की ओर भारतीय दार्शनिकों का झुकाव उपनिषदों के युग से लेकर आज तक बराबर जारी रहा है। उपनिषदों के युग में हमने उस अगाध रहस्यमयता का महान आभास पाया है। अब उसी रहस्योन्मुखता की प्रवृत्ति को नया रूप देकर अन्तर्दृष्टि और विवेक से पूर्ण समन्वय से हम भारतीयों को इस तथ्य के अनुसन्धान में जुट जाना होगा कि अज्ञात चेतना के पाताललोक में स्थित अतल नरक के विश्लेषण द्वारा बाह्य-जीवन-तत्त्वों के साथ उन नारकीय (किन्तु मूल) जीवन-तत्त्वों का समुचित समन्वय स्थापित करके मानव-जगत में किन उपायों से आपेक्षिक स्वर्ग की स्थापना की जा सकती है। इस ओर का कोई भी प्रयास, चाहे वह कैसा ही क्षीणतम और असंख्य दोषों से पूर्ण क्यों न हो, उपेक्षणीय नहीं होना चाहिए—स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।
Pret Aur Chhaya

Pret Aur Chhaya

Ilachandra Joshi

200

₹ 160

Nirvasit

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: प्रस्तुत उपन्यास की कथा का आरम्भ उस समय से होता है जब द्वितीय महायुद्ध अपनी प्रारम्भिक अवस्था में था और उसकी छाया भारत में पूरी तरह से नहीं पड़ी थी। तब मध्यवर्गीय समाज के जीवन से रोमान्स की रंगीनी एकदम उठ नहीं गई थी। इसमें सन्देह नहीं कि उस रंगीनी को युद्धजनित प्रतिक्रिया की विभीषिका का अस्पष्ट आभास किंचित् म्लान करने लगा था, पर अभी उस म्लान छायाभास ने सघन रूप धारण नहीं किया था।

    एक ओर मध्यवर्गीय समाज अभी तक उसी युग की भावनाओं, संस्कारों और मान्यताओं से बँधा हुआ था जब प्रथम महायुद्धजनित प्रतिक्रियाओं की पूर्ण समाप्ति के बाद प्रतिदिन के जीवन की साधारण सुख-सुविधाओं में एक प्रकार की ऊपरी स्थिरता-सी मालूम होने लगी थी, और यद्यपि समाज के भीतर-ही-भीतर स्वयं उसके अज्ञात में—आग निरन्तर धधकती चली जा रही थी।

    कहानी जब द्वितीय स्थिति पर पहुँचती है, तब एक ओर सन् बयालीस के अगस्त आन्दोलन का दमनचक्रपूर्ण सघन वातावरण भारतीय आकाश को भाराक्रान्त किए हुए था। दूसरी ओर महायुद्ध की प्रतिक्रिया का परिपूर्ण प्रकोप पूरे प्रवेग से देश की जनता के ऊपर टूट पड़ा था। केवल पूँजीपति और ज़मींदा़र वर्ग को छोड़कर और सभी वर्ग इन दो पाटों के बीच में बुरी तरह पिसने लगे थे।

    उपन्यास की तीसरी और अन्तिम स्थिति तब आती है जब द्वितीय महायुद्ध तो समाप्त हो जाता है, किन्तु समाप्ति के साथ ही अणु-बम के आविष्कार द्वारा तृतीय महायुद्ध के छायापात की सूचना भी दे जाता है।

    उपन्यास के नायक का जीवन उन तीनों परिस्थितियों से होकर गुज़रता है। उन तीनों परिस्थितियों में, अपने संघर्षमय जीवन के बीच में, वह किन-किन और किस प्रकार के पात्रों तथा यात्रियों के सम्पर्क में आता है, जीवन के किन जटिल-जाल-संकुल पथों से होकर विचरण करता है, किन-किन घटना-चक्रों का सामना उसे करना पड़ता है और उनकी क्या-क्या और कैसी प्रतिक्रियाएँ उसके भीतर होती हैं, इन्हीं सब बातों का चित्रण करने का प्रयत्न इस उपन्यास में किया गया है।

Nirvasit

Nirvasit

Ilachandra Joshi

175

₹ 140

Lajja

  • Author Name:

    Ilachandra Joshi

  • Book Type:
  • Description: कमलिनी (सेक्रेटरी का यही नाम था) इस ढंग से मुस्कराने लगी जैसे वह मेरे दिल की सब बातें ताड़ गई हो। बोली, “ऐसे गुणवान पुरुष को स्त्रियों की महफ़िल में लाना क्या ख़तरे की बात नहीं है?” मैंने पूछा, “ख़तरा कैसा?” “अरी पगली, समझती नहीं? तेरे अनुमोदित और इच्छित पुरुष की आँखें जब इतनी अलबेली नारियों पर दौड़ेंगी तो क्या फिर वह तेरी परवाह करेगा?” “दुर। कहके मैंने, गुस्से में आकर उसकी पीठ पर एक धौल जमा दी। पर उसकी इस बात से मेरे हृदय में भय का संचार होने लगा। कमलिनी ने कहा, “अच्छी बात है। मुझे कोई एतराज़ नहीं। पर मैं सावधान किए देती हूँ। पीछे पछताना पड़ेगा।" यूनिवर्सिटी के लड़कों और प्रोफ़ेसरों के साथ कमलिनी की बड़ी घनिष्ठता थी। बहुत सम्भव है, उन लोगों के स्वभाव से परिचित होने पर वह पुरुषों की प्रकृति से अभिज्ञ हो चुकी थी। उसकी बात से कुछ भय होने पर भी मुझे विशेष चिन्ता नहीं हुई। मुझे अपने रूप-गुण का बड़ा घमंड था। किसी व्यक्ति को मुझे छोड़कर अन्यत्र जाने का लोभ हो सकता है, यह आशंका मेरे हृदय में उत्पन्न नहीं हो सकती थी।

    —इसी पुस्तक से।

Lajja

Lajja

Ilachandra Joshi

150

₹ 120

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