Kavi Ki Preyasi
Author:
Ilachandra JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
‘कवि की प्रेयसी’ एक काल्पनिक उपन्यास है जिसमें प्रसिद्ध उपन्यासकार इलाचन्द्र जोशी ने अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से अपने ही एक परिचित मित्र के पूर्व जन्म की कहानी का चित्रण किया है। इसमें वर्णित प्रसंगों की सटीकता प्रमाणित करने के लिए किसी पुरातत्त्वेत्ता की दृष्टि को व्यर्थ प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है। इस उपन्यास में पात्रों के मनोभावों को बड़ी सटीकता और सघनता से लिखा गया है जिससे कोई भी संवेदनशील पाठक अछूता नहीं रह सकता। अन्त:बाह्य जीवन के संघर्ष व रोमांचकता से परिपूर्ण सार्थकता को प्रस्तुत करनेवाला यह उपन्यास पाठकों को शुरू से अन्त तक बाँधे रखने में सक्षम है।
ISBN: 9789352211067
Pages: 200
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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पहले उपन्यास का भोला-भाला पार्थ यहाँ पर्याप्त वयस्क हो चुका है। वह न सिर्फ़ समाज की थोथी नैतिकता की अँधेरी गलियों में दुबके गे समुदाय की दुनिया को खुली आँखों से देख रहा है, बल्कि उनके हित में एक निर्णायक संघर्ष की तैयारी भी कर रहा है।
कहने की ज़रूरत नहीं कि हिन्दी में वैकल्पिक यौन-व्यवहार के माध्यम से सामाजिक और मानवीय सहिष्णुता की तलाश का यह पहला प्रयास है। सवाल बहुत सीधा है कि स्वतंत्रता और समता के अलम्बरदार हमारे तथाकथित लोकतांत्रिक समाज में कुछ लोगों को सिर्फ़ उनके ‘सेक्सुअल प्रिफ़ेरेंस’ के कारण ही क्यों समाज की घृणा और क़ानून की क्रूरता का पात्र बना दिया जाता है? लेकिन जवाब इतना सीधा नहीं है, क्योंकि न हममें इतना नैतिक साहस है और न इतनी इंसानियत।
यह उपन्यास भी इसका जवाब नहीं देता, यह उसकी ज़िम्मेदारी भी नहीं है, वह बस इस सवाल के पीछे छिपे हमारे ख़ूँख़्वार और दानवी चेहरों को उघाड़ता है। वह बताता है कि हम क्या हैं, हमारी नैतिक पवित्रता क्या है, हमारी न्याय व्यवस्था क्या है और हमारी पुलिस क्या है, और इस तरह इस सवाल के जवाब की अनिवार्यता को रेखांकित करता है।
Krishnavtar : Vol. 3 : Paanch Pandav
- Author Name:
K. M. Munshi
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Description:
पौराणिक चरित्रों को आधार बनाकर अनेक श्रेष्ठतर आधुनिक उपन्यासों की रचना करनेवाले सुप्रसिद्ध गुजराती कथाकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का भारतीय कथा-साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान है। अपनी कृतियों में उन्होंने सुदूर अतीत का जो विस्तृत जीवन-फलक प्रस्तुत किया है, वह जितना विराट् है उतना ही आकर्षक, साथ ही वह वैज्ञानिकता की कसौटी पर भी खरा उतरता है।
मुंशी जी का ‘कृष्णावतार’ एक वृहत् उपन्यास है—सात खंडों में विभक्त। ‘पाँच पाण्डव’ तीसरे खंड का हिन्दी रूपान्तर है। अन्य खंडों की ही तरह अगर यह परस्पर सम्बद्ध है तो अपने आपमें एक पूरी कथा भी है। पाँचों पाण्डवों के जन्म, विकास और संघर्षों-उपलब्धियों की इस रोचक-रोमांचक गाथा में आर्यावर्त्त के महान नायक श्रीकृष्ण की विलक्षण ऐतिहासिक भूमिका बड़ी कलात्मकता से रेखांकित हुई है। पुराकालीन आर्यों की संघर्षशील गतिविधियों, नागों की अरण्य-संस्कृति और ‘राक्षस’ नाम से पुकारे जानेवाले प्रस्तरयुगीन मानवों की आदिम जीवनचर्या के जीवन्त चित्र इसमें पूरी तरह से मुखर हैं।
Jahaj Ka Panchhi
- Author Name:
Ilachandra Joshi
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Description:
इलाचन्द्र जोशी हिन्दी के अत्यन्त प्रतिष्ठित उपन्यासकार थे। उनके प्राय: सभी उपन्यासों का गठन हमारे मध्यवर्गीय समाज के जिन पात्रों के आधार पर हुआ है, वे मनोवैज्ञानिक सार्थकता के लिए सर्वथा अद्वितीय है। ‘जहाज़ का पक्षी’ एक ऐसे मध्यवर्गीय नवयुवक के परिस्थिति-प्रताड़ित जीवन की कहानी है, जो कलकत्ता के विषमताजनित घेरे में फँसकर इधर-उधर भटकने को विवश हो जाता है, किन्तु उसकी बौद्धिक चेतना उसे रह-रहकर नित-नूतन पथ अपनाने को प्रेरित करती है। ऐसा कौन-सा काम है, जो उसने अपने अन्तस की सन्तुष्टि के लिए न अपनाया हो। जीवन की उदात्तता का पक्षपाती होते हुए भी वह ‘जहाज़ का पंछी’ के समान इत-उत भटककर फिर अपने उसी उद्दिष्ट पथ का राही बन जाता है, जिसे अपनाने की साध वह अपने अन्तर्मन में सँजोए हुए
था।‘जहाज़ का पंछी’ में आज के सुशिक्षित किन्तु महत्त्वाकांक्षी तथा बौद्धिक चेतना से आक्रान्त बहुत से नवयुवक अपनी ही जीवनकथा अंकित पाएँगे। यह एक दर्पण है, जिसमें हम अपने तरुण वर्ग और नागरिक जीवन की झाँकी पा सकते हैं।
Ek Parivartan Aisa Bhi
- Author Name:
Arunimaa
- Book Type:

- Description: Arunima is an 18-year-old teenager who wrote all these poems that many people might relate with. It is not about her life. It is about what she thinks that people feel but can’t express.
Basharat Manzil
- Author Name:
Manzoor Ehtesham
- Book Type:

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Description:
...एक उपन्यास जो लगभग दिल्ली ही के बारे में है—पुरानी यानी सन् 47 से पहले की दिल्ली।
मेरी कहानी 15 अगस्त, 1947 तक घिसटती नहीं जाती, उससे पहले ही ख़त्म हो जाती है। हाँ, यक़ीनन जो कुछ भी उसमें होना होता है, वह इस तारीख़ से पहले ही हो-हुआ चुकता है।
एक व्यक्ति और उसके परिवार की कहानी जो एक ज़माने में हर जगह था। शायरी से लेकर सियासत यानी तुम्हारे शब्दों में हक़ीक़त से लेकर फ़साने तक, हर जगह। लेकिन आज जिसका उल्लेख न तो साहित्य में है, न इतिहास में। संजीदा सोज़ और बशारत मंज़िल की कहानी। बिल्लो और बिब्बो की कहानी। ग़ज़ल की कहानी। इन तीनों बहनों की माँ, अमीना बेगम की कहानी। सोज़ की दूसरी पत्नी, जो पहले तवायफ़ थी और उसके बेटे की कहानी। सारी कहानियों की जो एक कहानी होती है, वह कहानी। मेरी और तुम्हारी कहानी भी उससे बहुत हटकर या अलग नहीं हो सकती। न है।
चावड़ी बाज़ार? —मैंने कहना शुरू किया था—चलो, यहाँ से अन्दाज़न उलटे हाथ को मुड़कर क़ाज़ी के हौज़ से होते हुए सिरकीवालों से गुज़रकर लाल कुएँ तक पहुँचो। उसके आगे बड़ियों का कटरा हुआ करता था। वहाँ से आगे चलकर नए-बाँस आता था। वह सीधा रास्ता खारी बावली को निकल गया था। नुक्कड़ से ज़रा इधर ही दाएँ हाथ को एक गली मुड़ती थी। वह बताशोंवाली गली थी। एक ज़माने में वहाँ बताशे बनते आँखों से देखे जा सकते थे। बाद में वहाँ अचार-चटनी वालों का बड़ा मार्केट बन गया था। मार्केट के बीच से एक गली सीधे हाथ को मुड़ती थी। थोड़ी दूर जाकर बाईं तरफ़ एक पतली-सी गली उसमें से कट गई थी। इस गली में दूसरा मकान बशारत मंज़िल था : पुरानी तर्ज़ की लेकिन नई-जैसी एक छोटी हवेलीनुमा इमारत। एक ज़माने में वह मकान अपने-आप में एक पता हुआ करता था मगर फिर वीरान होता गया। कुछ लोग उसे आसेबज़दा समझने लगे, दूसरे मनहूस। आज तो यक़ीन के साथ यह भी नहीं कह सकते कि वह अपनी जगह मौजूद है या नहीं।
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