Gopal Singh 'Nepali'
Umang-3
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
-
Book Type:

- Description: जितने कवि हिन्दी के काव्याकाश में चमकते हुए दीख पड़े, सौन्दर्य के सुख-स्पर्श जादू से जिन्होंने मन को वशीभूत कर लिया तथा प्रकाश और दृष्टि दी, श्री गोपाल सिंह नेपाली उन्हीं में से एक हैं। —सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ सोई उमंग उठ जाग, जाग जीवन से क्यों इतना विराग भावों की मादकता, मोहकता, आशा, विश्वास और महत्वाकांक्षाओं से भरी ‘उमंग’ की ये कविताएँ गोपाल सिंह नेपाली की काव्य-विशेषताओं को एक अलग आलोक में प्रकाशित करती हैं। अपनी तरफ से इन कविताओं की भाव-भूमि का परिचय देते हुए नेपाली जी बताते हैं कि कविता के इस रूप तक आने से पहले वे ब्रजभाषा की कोमल-कान्त पदावली, उमर खय्याम की हाला और उर्दू शायरी की उदासी तक भी होकर आए, लेकिन कविता का जो रूप उन्हें जँचा वह यही है जो उनके इन गीतों और कविताओं में साकार हुआ। कविता का यह रूप उमंग का है, प्रेरणा का है, समकालीन यथार्थ को समझने, उसे अंकित करने और उसमें परिवर्तन की चाह का है। प्रकृति को सम्बोधित उनके गीत-कविताएँ हमें अपने स्थूल व सूक्ष्म संसार को सुदूर अन्तरिक्ष के भीतर तक खोलने को आमंत्रित करते हैं, और सामाजिक सन्दर्भों की कविताएँ फौरन हालात को बदल देने को प्रेरित करती हैं। ‘किरण’ कविता की यह पंक्तियाँ चलती है कितना मन्थर तिरछी विद्युत-रेखा सी/आती है वह मेरे घर नक्षत्र-लोक की वासी कितनी कोमलता से हमें अखिल सृष्टि से जोड़ देती हैं। इस संग्रह की सभी कविताएँ इसी तरह आपकी चेतना को आयत्त कर लेती हैं।
Umang-3
Gopal Singh 'Nepali'
Himalaya Ne Pukara
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Gopal Singh 'Nepali'
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- Description: गहरी और सक्रिय राजनीतिक चेतना से सम्पन्न ‘हिमालय ने पुकारा’ की कविताएँ उस भारतीय जन का आह्वान करती हैं जिसके पास साहस भी है और शौर्य का इतिहास भी, लेकिन वह कभी अध्यात्म तो कभी अतिरिक्त सहिष्णु भाव के चलते सम्मुख मौजूद परिस्थितियों को अनदेखा कर जाता है। पुस्तक की भूमिका में नेपाली जी एक कथा के माध्यम से इस ओर इशारा भी करते हैं और तत्कालीन राजनीतिक हालात का हवाला देते हुए सच्चे सैनिक की तरह आम जन-गण को संगठित होकर उठ खड़े होने के लिए प्रेरित करते हैं।कह दो कि हिमालय तो क्या पत्थर भी न देंगे| लद्दाख की क्या बात है बंजर भी न देंगे आसाम हमारा है रे मर कर भी न देंगे जिस दौर की ये कविताएँ हैं, उसकी पृष्ठभूमि में चीन और भारत का संघर्ष है, इसलिए कई कविताओं-गीतों में उसकी स्पष्ट छवियाँ दिखाई देती हैं। लेकिन जो चीज इन्हें आज भी पुनः-पुनः पठनीय बनाती है, वह है कवि की मनीषा और काव्यात्मक सामर्थ्य। वे छन्द को एक शस्त्र की तरह इस्तेमाल करते हैं, और अपने भावों को भी कहीं अस्पष्ट नहीं होने देते। यह सन्तुलन आज के कवियों के लिए खास तौर पर अनुकरणीय है।
Himalaya Ne Pukara
Gopal Singh 'Nepali'
Neelima
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
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Book Type:

- Description: प्रकृति और मानवता, ये दो बिन्दु गोपाल सिंह नेपाली के कवि-मन की स्थायी धुरी रहे हैं—एक तरफ प्रकृति में निहित असीम सौन्दर्य और सम्भावनाएँ, दूसरी तरफ पराधीनता, विषमता, शोषण और अभावों के बीच डूबती-उतराती-हाँफती मनुष्यता। उनकी कविताओं में ये दोनों ही सरोकार प्रबल रूप में अपनी उपस्थिति जताते हैं। ‘नीलिमा’ में संग्रहीत कविताओं में ये दोनों भाव देखे जा सकते हैं। ‘गगन भी नील नयन भी नील’ इस संग्रह की पहली कविता है। इस कविता में आई तुलनात्मक भावधारा को नेपाली जी अपने लिए किंचित नई एवं भिन्न मानस-क्षितिज की वस्तु मानते थे। कविता के छात्रों और सर्जकों के लिए आज भी उनकी कविताएँ इसलिए प्रासंगिक और पठनीय हैं कि जीवन और मन के हर भाव को कविता में व्यक्त करने का सतत प्रयास उनके यहाँ दिखता है, और यह सिर्फ वर्णन नहीं है, विचार, दृष्टि और अनुभूति को एक जगह जोड़ता छन्द-बद्ध काव्य है। ‘तारों की रात’, ‘संध्या गान’, ‘प्रभातगान’, ‘धार पर जले लहर के दीप’ आदि अनेक कविताएँ हैं जो प्रकृति को देखने के लिए हमें एक विशेष दृष्टि देती हैं, वहीं ‘कवि’ शीर्षक गीत में वे मनुष्य संसार से प्राप्त भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं जग को दुख है, जग रोता है/कुछ पाता है, सब खोता है युग-ईश्वर की बलि-वेदी पर/जग बार-बार बलि होता है ; मैं जग के दुख में शामिल हूँ इन आँखों में जलधार लिये।
Neelima
Gopal Singh 'Nepali'
Navin
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
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- Description: हिन्दी कविता को जनमानस तक पहुँचाने में गोपाल सिंह नेपाली का अद्वितीय योगदान है। -हरिवंशराय बच्चन ‘हम राजनीति में नौजवान और साहित्य में बूढ़े एक साथ नहीं बने रह सकते’—इस कविता-संग्रह ‘नवीन’ की भूमिका में गोपाल सिंह नेपाली यह उल्लेखनीय वक्तव्य देते हैं और एक तरह से साहित्य और साहित्यिकों के लिए भी एक कार्यभार तय कर देते हैं। इस संग्रह का समय 1940 का दशक है जब देश आजादी पाने से कुछ ही दूर था और राजनीति के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन भी एक नई करवट ले रहा था। अब जरूरत थी साहित्य के एक नया रूप लेने की। ‘नवीन’ की कविताओं में उन्होंने यही करने का प्रयास किया है। न सिर्फ कथ्य, बल्कि शिल्प, छन्द और भाषा के स्तर पर भी। संग्रह की पहली ही कविता ‘नवीन’ में वे पुराने तथा रूढ़िबद्ध को छिन्न-भिन्न करते हुए नवीन कल्पना का आह्वान करते हैं : तुम प्रार्थना किये चले, नहीं दिशा हिली/तुम साधना किये चले, नहीं निशा हिली/इस आर्त दीन देश की न दुर्दशा हिली। अब अश्रु-दान छोड़ आज शीश-दान से/तुम अर्चना करो, अमोघ अर्चना करो।... नवीन कल्पना करो। प्रकृति की महिमा के साथ-साथ इस संग्रह में राष्ट्र और जन-चेतना से सम्पन्न कविताएँ भी विशेष रूप से ध्यान खींचती हैं। ‘फुटपाथ पर खड़े दर्शकों से’ और ‘नौजवान की मृत्यु पर’ जैसी कविताएँ अपनी चुस्त गठन और स्पष्ट भावाभिव्यक्ति में जैसे आज भी पूरे समाज को झकझोर देने की क्षमता रखती हैं।
Navin
Gopal Singh 'Nepali'
Ragini
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Gopal Singh 'Nepali'
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Ragini
Gopal Singh 'Nepali'
Panchhi
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Gopal Singh 'Nepali'
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Panchhi
Gopal Singh 'Nepali'
Panchami
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
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इधर दो वर्षों से नवीन तारकों के सदृश जितने कवि हिन्दी के काव्याकाश में चमकते हुए दीख पड़े, सौन्दर्य के सुख-स्पर्श आदी से जिन्होंने मन को वशीभूत कर लिया तथा प्रकाश और दृष्टि दी, श्री गोपाल सिंह नेपाली उन्हीं में से एक हैं। मुझे उनके काव्य में शक्ति, प्रवाह, सौन्दर्य-बोध तथा चारु चित्रण एक विशेषता लिये हुए दीख पड़े।...उनमें साहित्य की एक प्रखर प्यास है, जिसके बुझने पर उनकी जाति तथा साहित्य का कल्याण निर्भर है।
—सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
गोपाल सिंह ‘नेपाली’ की सरस्वती स्नेह, सहृदयता और सौन्दर्य की सजीव प्रतिमा है।
—सुमित्रानन्दन पन्त
श्री गोपाल सिंह नेपाली’ हमारे रस सिद्ध कवि और जनता के हृदयहार।
—रामधारी सिंह ‘दिनकर’
गोपाल सिंह ‘नेपाली’ ...हिन्दी भारती की वीणा का एक तार...प्रवाह समता, भाषा की सरलता, भावों की रागात्मकता उनकी हर रचना में देखी जा सकती है। हिन्दी कविता को जनमानस तक पहुँचाने में उनका अद्वितीय योगदान है।
—हरिवंशराय बच्चन
नेपाली जी की रचनाओं में सहजता और व्यंजना का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है।
—नरेन्द्र शर्मा
Panchami
Gopal Singh 'Nepali'
Pratinidhi kavitayen : Gopal Singh Nepali
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Gopal Singh 'Nepali'
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गोपाल सिंह ‘नेपाली’ उत्तर छायावाद के प्रतिनिधि कवियों में कई कारणों से विशिष्ट हैं। उनमें प्रकृति के प्रति सहज और स्वाभाविक अनुराग है, देश के प्रति सच्ची श्रद्धा है, मनुष्य के प्रति सच्चा प्रेम है और सौन्दर्य के प्रति सहज आकर्षण है। उनकी काव्य-संवेदना के मूल में प्रेम और प्रकृति है।
ऐसा नहीं है कि ‘नेपाली’ के प्रेम में रूप का आकर्षण नहीं है। उनकी रचनाओं में रूप का आकर्षण भी है और मन की विह्वलता भी, समर्पण की भावना भी है और मिलन की कामना भी, प्रतीक्षा की पीड़ा भी है और स्मृतियों का दर्द भी।
‘नेपाली’ की राष्ट्रीय चेतना भी अत्यन्त प्रखर है। वे देश को दासता से मुक्त कराने के लिए रचनात्मक पहल करनेवाले कवि ही नहीं हैं, राष्ट्र के संकट की घड़ी में ‘वन मैन आर्मी’ की तरह पूरे देश को सजग करनेवाले और दुश्मनों को चुनौती देनेवाले कवि भी हैं।
‘नेपाली’ एक शोषणमुक्त समतामूलक समाज की स्थापना के पक्षधर कवि हैं—
वे आश्वस्त हैं कि समतामूलक समाज का निर्माण होगा। मनुष्य रूढ़ियों से मुक्त होकर विकास पथ पर अग्रसर होगा। प्रेम और बन्धुत्व विकसित होंगे और मनुष्य सामूहिक विकास की दिशा में अग्रसर होगा—
“सामाजिक पापों के सिर पर चढ़कर बोलेगा अब ख़तरा
बोलेगा पतितों-दलितों के गरम लहू का क़तरा-क़तरा
होंगे भस्म अग्नि में जलकर धरम-करम और पोथी-पत्रा
और पुतेगा व्यक्तिवाद के चिकने चेहरे पर अलकतरा
सड़ी-गली प्राचीन रूढ़ि के भवन गिरेंगे, दुर्ग ढहेंगे
युग-प्रवाह पर कटे वृक्ष से दुनिया भर के ढोंग बहेंगे
पतित-दलित मस्तक ऊँचा कर संघर्षों की कथा कहेंगे
और मनुज के लिए मनुज के द्वार खुले के खुले रहेंगे।”
Pratinidhi kavitayen : Gopal Singh Nepali
Gopal Singh 'Nepali'
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