Umang-3
Author:
Gopal Singh 'Nepali'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
जितने कवि हिन्दी के काव्याकाश में चमकते हुए दीख पड़े, सौन्दर्य के सुख-स्पर्श जादू से जिन्होंने मन को वशीभूत कर लिया तथा प्रकाश और दृष्टि दी, श्री गोपाल सिंह नेपाली उन्हीं में से एक हैं।
—सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
सोई उमंग उठ जाग, जाग
जीवन से क्यों इतना विराग
भावों की मादकता, मोहकता, आशा, विश्वास और महत्वाकांक्षाओं से भरी ‘उमंग’ की ये कविताएँ गोपाल सिंह नेपाली की काव्य-विशेषताओं को एक अलग आलोक में प्रकाशित करती हैं।
अपनी तरफ से इन कविताओं की भाव-भूमि का परिचय देते हुए नेपाली जी बताते हैं कि कविता के इस रूप तक आने से पहले वे ब्रजभाषा की कोमल-कान्त पदावली, उमर खय्याम की हाला और उर्दू शायरी की उदासी तक भी होकर आए, लेकिन कविता का जो रूप उन्हें जँचा वह यही है जो उनके इन गीतों और कविताओं में साकार हुआ।
कविता का यह रूप उमंग का है, प्रेरणा का है, समकालीन यथार्थ को समझने, उसे अंकित करने और उसमें परिवर्तन की चाह का है।
प्रकृति को सम्बोधित उनके गीत-कविताएँ हमें अपने स्थूल व सूक्ष्म संसार को सुदूर अन्तरिक्ष के भीतर तक खोलने को आमंत्रित करते हैं, और सामाजिक सन्दर्भों की कविताएँ फौरन हालात को बदल देने को प्रेरित करती हैं।
‘किरण’ कविता की यह पंक्तियाँ चलती है कितना मन्थर तिरछी विद्युत-रेखा सी/आती है वह मेरे घर नक्षत्र-लोक की वासी कितनी कोमलता से हमें अखिल सृष्टि से जोड़ देती हैं।
इस संग्रह की सभी कविताएँ इसी तरह आपकी चेतना को आयत्त कर लेती हैं।
ISBN: 9789360862015
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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जीवन और कविता की उदात्तता को कुमार अंबुज बार-बार रचते हैं, प्राय: उसका एक नया स्थापत्य बनाने की कोशिश करते हैं लेकिन इतना-भर इस कविता का अभीष्ट नहीं है, बल्कि एक महाविमर्श के छोटे-छोटे ब्योरों, उसके बारीक ताने-बाने में प्रवेश करते हुए उसके अर्थों को खोजना ही उसकी मूल प्रतिज्ञा है और इसीलिए अंबुज यह देख पाते हैं कि ‘एक तारा टूटने से भी वीरान होता है आकाश’ और ‘इस एक के लिए/इस एक के विश्वास से/लड़ता हूँ हज़ारों से/इस एक की परवाह करता हूँ।’ एक महाजीवन के इसी ‘एक’ को लेकर कुमार अंबुज के सरोकार इतने व्यापक हैं कि वे ‘अभी-अभी दर्ज हुई एक नई ऋतु’ को ‘एक कीड़े के अपूर्व राग में गाते हुए’ सुन पाते हैं और यह संकल्प भी व्यक्त कर सकते हैं कि ‘यह एक कमज़ोर इच्छा है जिसकी चहलक़दमी की आवाज़/एक तानाशाह की इच्छा की आवाज़ से टकराती है।’ दरअसल इस एक का हालचाल जानने की तड़प ही कुमार अंबुज को अनेकता के सौरमंडल तक ले जाती है। अनेक कविताओं में वे जीवन का एक रूपक खड़ा करते प्रतीत होते हैं लेकिन सहसा उस रूपक को भेदकर उसके दारुण यथार्थ में प्रवेश कर जाते हैं।
एक मूलभूत सरलता से संश्लिष्टता की ओर कुमार अंबुज की यह यात्रा एक उल्लेखनीय अनुभव है जिसका साक्ष्य उनकी इन कविताओं की संरचना, उनके ख़ास पैटर्न में भी मिलता है। वे शुरू में प्राय: एक शान्त-सुन्दर प्रवेश-द्वार की तरह दिखती हैं लेकिन उसके खुलते ही जैसे एक जटिल यथार्थ के आयाम प्रकट होने लगते हैं, जहाँ ‘ग़रीब की बुदबुदाहट का अनुवाद’ कुछ इस तरह होता है कि ‘लकड़ी का बुरादा भी जगा देता है मेरी भूख’ और ‘जीवन में एकदम ख़ाली’ एक दिन भी पूरे जीवन की गतिविधि में इतना स्पन्दित और स्मृति में इतना चिन्हित दिखता है कि उसे ‘न उम्र में से घटाया जा सकेगा/और जोड़कर देखने में होगा एक अपराध।’ यह एक लगभग सिनेमाई शिल्प है जिसमें एक सुन्दर शुरुआत एक विरूप विस्तार की ओर जा सकती है, एक प्रतीक, एक अमूर्तन हमें एक यथार्थपरक और ठोस संसार में ले जाता है, फिर सहसा अपने मूल बिम्ब में लौटता है और दूसरी वास्तविकता की ओर बढ़ने लगता है। इस संग्रह की एक कविता ‘रेखागणित’ अंबुज की इस काव्य-प्रविधि का उकृष्ट उदाहरण है जिसमें एक सीधी-सरल रेखा के गणित में एक पूरे जीवन को, उसके आश्चर्यों और रोमांचों, उसकी निश्छलता और ऐन्द्रियता को, उसके न्याय और अन्याय की परस्पर न मिलनेवाली समान्तर लकीरों को अन्तत: इस उम्मीद के साथ देखा गया है कि ‘वहीं कहीं छिपा हो सकता है/ज़िन्दगी को आसान कर सकनेवाला प्रमेय।’
किसी भी रचनाकार के लिए अपने शिल्प को लाँघना कठिन काम होता है, लेकिन अंबुज की संवेदना अपने कथ्य के अनुरूप शिल्प सहजता से उपलब्ध कर लेती है, क्योंकि एक समृद्ध काव्य-भाषा उनका सबसे कारगर औज़ार है। इसीलिए ‘रेखागणित’, ‘चुम्बक’, ‘जीवाश्म’, ‘मेढक’, ‘मुर्गी’, ‘हस्तलिपि’ जैसे नए अनुभवों की मार्मिक शक्लें निर्मित होती हैं और ‘एक कम है’, ‘अतिक्रमण’, ‘मानकीकरण’, ‘मैं एक आततायी को जानता हूँ’, ‘कवि व्याप्ति’, ‘कला का कोना’, ‘भाषा से परे’, ‘एक और शाम’ और ‘मध्यवर्गीय ओट’ जैसी किंचित् परिचित भावभूमि के अपरिचित आयाम खुलते हैं। करुणा और नैतिकता, जो कि कविता के स्थायी-अपरिवर्तनीय सुर हैं, जैसे अंबुज की कविताओं में ताने-बाने की तरह मौजूद हैं—इसीलिए ‘असाध्य रोग’ में सहज, गद्यात्मक लोकोक्ति जैसी बात को वे विचलित करनेवाले तरीक़े से लिख सकते हैं : ‘आँसुओं से कोई दवा तैयार हो सकती होती/तो कोई रोग असाध्य नहीं रह जाता।’ ‘पगडंडी’ कविता बताती है कि ‘जब सारी दुनिया चमकदार सड़कों से भर जाएगी, तब भी एक राह को दूसरी राह से जोड़ती पगडंडी बची रहेगी।’ कुमार अंबुज ख़ुद किसी राजमार्ग पर नहीं, बल्कि कविता की एक पगडंडी पर चलते उसी हाशिये, उसी किनारे से राजमार्गों के जाल को देखते आए हैं, क्योंकि न्याय और अन्याय की समान्तर रेखाएँ भले ही आपस में न मिलें, अन्याय का प्रतिरोध और न्याय की प्रतिष्ठा इसी राह से सम्भव है।
Chalo Tuk Mir Ko Sunne
- Author Name:
Meer Taqi Meer
- Book Type:

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Description:
मीर की शायरी इश्क़-ओ-मोहब्बत, ज़िन्दगी के रंज-ओ-ग़म, जीवन के दर्शन, इसके उतार-चढ़ाव, सामाजिक चेतना, समाज में धर्म का स्थान, बादशाहों का बनना-बिगड़ना, मानव मूल्य और उनके आपसी सम्बन्ध आदि अनेक पहलू अपने अन्दर समेटे हुए है। जब हम मीर के शे’र पढ़ते हैं तो हर शे’र में कोई नसीहत, कोई दर्शन, कोई सन्देश, कोई अनुभव छुपा रहता है। लेकिन मीर की शायरी की अस्ल बुनियाद इश्क़ है। मीर के पिता एक सूफ़ी थे और पिता ने मीर को बचपन से ही इश्क़ का पाठ पढ़ाया। बाप की इश्क़ की शिक्षा का मीर पर ऐसा असर पड़ा कि उनकी शायरी से इश्क़ का कोई पहलू अछूता न रहा। उनकी ग़ज़लों, मस्नवियों, रुबाइयों—सभी में इसी इश्क़ के तमाम नमूने भरे पड़े हैं जो पिछले ढाई सौ-तीन सौ वर्षों से हमारी शायरी का आधार हैं।
दाग़-ए-दिल-ए-ख़राब शबों को जले है ‘मीर’
इश्क़ इस ख़राबे में भी चराग़ इक जला गया
Silent Uproar
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Surbhi Islam
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- Description: Step into a world where Surbhi Islam skillfully simmers life’s ingredients in the pot of her soul, creating a poetic feast that resonates deeply. With culinary art as her palette and flavors as her strokes, she creates vibrant dishes that evoke a symphony of emotions on the palate. Ta da! A new tadka of poetry collection is ready!!
Ek Baat Kahni Hai
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Salman Akhtar
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- Description: जब शायर कोई बात कह रहा होता है तो कहे का ज़ाविया बदलकर उसे छुपा भी रहा होता है और इस खेल में जो बाँकपन पैदा होता है वही शायरी का हुस्न है। जहाँ यह बाँकपन नहीं, वहाँ शायरी नहीं। कई बार शायर बस एक तिनका छिपाता है और पढ़ने वाले उसमें पूरा जंगल खोज लेते हैं। आप जब संग्रह के पन्नों से गुज़रेंगे तो आपकी मुलाक़ात शायर के छुपाए मा’नियों से भी होगी और उनसे भी जो आपके भीतर पोशीदा हैं। यह एक ऐसे शायर के कलाम की किताब है जिसने न सिर्फ़ सारी दुनिया देखी है बल्कि बदलावों से भरे पिछले साठ-सत्तर साल भी।
Sarson Se Amaltas
- Author Name:
Chitra Desai
- Book Type:

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Description:
रिश्तों का जटिल संसार और प्रकृति का सरल, सहज अकुंठ विस्तार; इन कविताओं की जड़ें इन्हीं दो ज़मीनों में फैली हैं। रिश्ते रंग बदलते हैं तो उनको एक सम पर टिकाए रखना, ताकि ज़िन्दगी ही अपनी धुरी से न हिल जाए, अपने आप में बाक़ायदा एक काम है, जबकि अपने होने-भर से, हमारे इर्द-गिर्द अपनी मौजूदगी-भर से ढाढ़स बँधाती प्रकृति हमारी व्यथित-व्याकुल रूह के लिए एक सुकूनदेह विश्राम-भूमि। और यही नहीं, ये कविताएँ बताती हैं कि उनके रंगों में हमारी हर पीड़ा, हर उल्लास, हर उम्मीद, हर अवसाद के लिए कहीं कोई रंग उपलब्ध है जो हमारे अर्जित-अनार्जित सम्बन्धों के शहरों, जंगलों, पहाड़ों और पठारों के अलग-अलग मोड़ों पर मन को अपना-सा लगता है, और सब तरफ़ से निराश हो हम उसकी उँगली थाम अपने अन्तस की ओर चल पड़ते हैं—नए होकर लौटने के लिए।
शायद इसीलिए ये कविताएँ प्रकृति का अवलम्ब कभी नहीं छोड़तीं। प्रकृति के स्वरों में ये रिश्तों के राग को भी गाती हैं और विराग को भी। टूटते-भागते सम्बन्धों को पकड़ने की कोशिश में यदि इनकी हथेलियाँ रिस रही हैं और नानी के कहने से आसमान में दूर बैठे चाँद को मामा मान लेने पर पश्चात्ताप कर रही हैं तो यह भरोसा भी उनमें विन्यस्त है कि ‘भीतर जमे रिश्ते ही/बाहरी मौसम से बचाते हैं।’ संग्रह की कई कविताएँ सम्बन्ध या कहें कि ‘सेन्स ऑफ़ बिलांगिंग’ को बिलकुल अलग भूमि पर देखती हैं, मसलन यह छोटी-सी कविता : ‘तुम्हें ख़ुश रखने की आदत/देवदार-सी/मेरे भीतर उग रही है/और इसीलिए मैं बहुत बौनी होती जा रही हूँ।’ या फिर ‘अपाहिज सम्बन्ध’ शीर्षक एक और छोटी कविता।
संग्रह की अधिकांश कविताओं में प्रेम एक अंडरकरंट की तरह बहता है और कभी-कभी पर्याप्त मुखर होकर बोलता हुआ भी दीखता है—उछाह में भी और अवसन्नता में भी। लेकिन बहुत शालीन संयम के साथ, जो रचनाकार के अहसास की गहराई का प्रमाण है। शायद इसी गहरे का परिणाम यह भी है कि अपने आस-पास के भौतिक-सामाजिक यथार्थ को लक्षित कविताएँ इन्हीं विषयों पर लिखी गईं अनेक समकालीन कविताओं से कहीं अधिक सारगर्भित और व्यंजक हैं, उदाहरण के लिए, ‘बम्बई-1’, एंड ‘बम्बई-2’, ‘अफ़वाह’ और ‘पुल कहाँ गया’ शीर्षक कविताएँ। कहना न होगा कि अपनी संयत अभिव्यक्ति में सधी ये कविताएँ हिन्दी कविता के पाठकों के लिए संवेदना के एक अलग इलाक़े को खोलेंगी।
Alvida Nehru
- Author Name:
Mohammad Naushad
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- Description: ‘अलविदा नेहरू’ में उन शोकाकुल नज़्मों को संकलित किया गया है जो उर्दू शायरों ने नेहरू को श्रद्धांजलि देते हुए कहीं। इन शायरों में उस दौर के लगभग तमाम शायर शामिल हैं। इस मर्सियानुमा शायरी को पढ़ते हुए एहसास होता है कि राजनेता और व्यक्ति के रूप में नेहरू को कितनी व्यापक और दिली स्वीकृति हासिल थी। पुस्तक की भूमिका में महमूद फ़ारूक़ी लिखते हैं कि “तरक़्क़ीपसन्द शायर कई मामलों में ख़ुद को नेहरू के क़रीबतर पाते थे। बेशतर नौजवान उर्दू शायर वैसी ही आज़ादी चाहते थे जो नेहरू का ख़्वाब थी जिसमें शान्ति, तरक़्क़ी, आर्थिक ख़ुशहाली, इनसान और फ़र्द की आज़ादी शामिल रहे...और रैशनलिज़्म को फ़रोग़ दिया जाए।” नेहरू का जाना उनके लिए उस पूरी तहरीक का माँद पड़ जाना था, जो इस मुल्क को एक समतावादी, सेक्युलर और आधुनिक देश बनाने के लिए उनके नेतृत्व में शुरू हुई थी। आज जब नेहरू के राजनीतिक मूल्यों और उनके दौर की आर्थिक-सामाजिक उपलब्धियों पर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं, ये रचनाएँ उनकी छवि का एक अलग रुख़ पेश करती हैं।
Punarvasu
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
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Description:
जब भी हम अनुवाद, विशेषकर कविता का अनुवाद पढ़ते हैं, हम संशय में होते हैं। यह संशय तब तो और भी ज़्यादा होता है जब वह कविता, मसलन, फ़्रेंच या स्वीडिश से अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ी से हिन्दी जैसे तिर्यक रास्ते से भटकती आती हम तक पहुँचती है। “क्या वह ठीक वही कविता रह पाती है, जैसी वह मूल में है?” —यह संशय अनुवाद से ज़्यादा, अनुवाद की ओट में वस्तुतः कविता को लेकर संशय है जो इस विश्वास से जनमता है कि कविता का एक ‘स्थिर’, ‘मूल’ रूप होता है जो उस भाषा, शैली और ढाँचे में सुरक्षित होता है जिसमें वह लिखी गई है; और यह विश्वास भी कि जब हम उसे उसके ‘मूल रूप’ में पढ़ रहे होते हैं तब हम उसे यथा—अर्थतः ग्रहण कर रहे होते हैं। प्रस्तुत चयन हमें इस अन्धविश्वास से मुक्त करता हुआ उस विस्मयकारी प्रक्रिया के क़रीब ले जाता है जिसमें कविता भाषा, शैली और संरचना का निरन्तर उत्सर्जन करती हुई उस ‘एजेंसी’ की पकड़ से बाहर जाती रहती है जिसे हम ‘कवि’ या ‘रचयिता’ या ‘मूल’ कहते हैं।
इस चयन को पढ़ते हुए हम अनुभव करते हैं कि कविता निरन्तर रूपान्तरित और परिशोधित होती ऊर्जा है (जैसाकि इस चयन में शामिल स्वीडिश कवि टोमास ट्रान्सट्रोमर भी मानते हैं) और वह तभी तक ऊर्जा है जब तक वह रूपान्तरण और परिशोधन की प्रक्रिया में है। वह या तो मूल का निषेध है या वे तमाम पाठक उसका मूल हैं जो उसे अपनी सृजनात्मकता के भीतर से परिशोधित, रूपान्तरित और मुक्त होने देते हैं। वह किसी विशिष्ट देश, विशिष्ट भाषा या विशिष्ट कवि का सृजन नहीं, पाठक का सृजन है और इसी अर्थ में वह देश, भाषा और कवि का सृजन है। इस चयन में शामिल सारे अनुवादक ऐसे ही पाठक हैं और इसीलिए इन अनुवादों को पढ़ना, अपने भीतर निहित पाठक को उद्दीप्त कर उसे कविता के ‘होने’ की सतत प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाना है; उसे उसकी ‘कर्मवाचक’ स्थिति से मुक्त कर कर्त्तृवाचक स्थिति में ले जाना है और अन्ततः उसे यह बोध कराना है कि कम से कम कविता की दुनिया में कर्तृत्त्व, स्वत्त्व का साधन नहीं है, वह स्वत्त्व का निषेध है।
कहना न होगा कि पाठक को उसकी इस गम्भीर और सृजनात्मक स्थिति का बोध करानेवाली यह एक अद्वितीय पुस्तक है। मनुष्यों के छह महाद्वीपों के बीच छुपा हुआ एक सातवाँ महाद्वीप है। जहाँ और जब भी कोई कविता लिखी (और पढ़ी) जाती है, यह महाद्वीप मूर्त और स्पन्दित होता है। इस महाद्वीप पर अस्तित्व का पुनर्वास होता है। हम इस महाद्वीप को ‘पुनर्वसु’ कहकर पुकार सकते हैं।
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