Panchami
Author:
Gopal Singh 'Nepali'Publisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
इधर दो वर्षों से नवीन तारकों के सदृश जितने कवि हिन्दी के काव्याकाश में चमकते हुए दीख पड़े, सौन्दर्य के सुख-स्पर्श आदी से जिन्होंने मन को वशीभूत कर लिया तथा प्रकाश और दृष्टि दी, श्री गोपाल सिंह नेपाली उन्हीं में से एक हैं। मुझे उनके काव्य में शक्ति, प्रवाह, सौन्दर्य-बोध तथा चारु चित्रण एक विशेषता लिये हुए दीख पड़े।...उनमें साहित्य की एक प्रखर प्यास है, जिसके बुझने पर उनकी जाति तथा साहित्य का कल्याण निर्भर है।</p>
<p>—सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’</p>
<p>गोपाल सिंह ‘नेपाली’ की सरस्वती स्नेह, सहृदयता और सौन्दर्य की सजीव प्रतिमा है।</p>
<p>—सुमित्रानन्दन पन्त</p>
<p>श्री गोपाल सिंह नेपाली’ हमारे रस सिद्ध कवि और जनता के हृदयहार।</p>
<p>—रामधारी सिंह ‘दिनकर’</p>
<p>गोपाल सिंह ‘नेपाली’ ...हिन्दी भारती की वीणा का एक तार...प्रवाह समता, भाषा की सरलता, भावों की रागात्मकता उनकी हर रचना में देखी जा सकती है। हिन्दी कविता को जनमानस तक पहुँचाने में उनका अद्वितीय योगदान है।</p>
<p>—हरिवंशराय बच्चन</p>
<p>नेपाली जी की रचनाओं में सहजता और व्यंजना का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है।</p>
<p>—नरेन्द्र शर्मा
ISBN: 9789360860400
Pages: 174
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Utsava
- Author Name:
Shri Naresh Mehta
- Book Type:

-
Description:
कविता, सर्वत्र तथा सार्वकालिक भाव से नित्य उपस्थित है। अपनी अभिव्यक्ति के लिए इन कविताओं ने मुझे माध्यम चुना, तो इसका तात्पर्य भी यही है कि कविता का कोई कर्त्ता नहीं होता; और यदि कोई है, तो वह स्वयं अपनी आत्मकर्ता है, स्वयंसृष्टा है।
अनभिव्यक्त कविता भी परम सत्य या परात्पर-सत्ता की भाँति ही एक अविभक्त-चेतना है, बल्कि चेतना प्रवाह, जो सतत विद्यमान है। अनभिव्यक्त एक, अभिव्यक्त हो जाने पर अनेक हो जाता है, क्योंकि अभिव्यक्तकर्ता अनेक होते हैं। अभिव्यक्ति एक को अनेक बनाती है। कविता भी वस्तुतः एक ही है, उसका रचनात्मक स्वरूप अनेक का हो जाता है। रचना, अनभिव्यक्त कविता का सम्प्रेषित स्वरूप है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि रचना, अनभिव्यक्त कविता की प्रतीक है। मूर्ति प्रभु नहीं, प्रभु की प्रतीक होती है। एक प्रकार से रचना, काव्य के महत्- प्रासाद का मात्र प्रवेश द्वार है। रचना, कविता की प्रतीति है, कविता नहीं। कविता का प्राप्य-रूप रचना ही हो सकता है। सर्वत्र, सार्वकालिक होने पर भी वह अप्राप्य है। समुद्र ही मेघ वर्षण का कारण होने पर भी हम समुद्र से सीधे जल नहीं ग्रहण कर सकते। रचना की गुणात्मकता, कविता की न होकर कवि की होती है। कविता जिस भाव, मुद्रा और स्वरूप में अभिव्यक्त होकर रचना कहलाती है, उससे मात्र इतना ही स्पष्ट होता है कि एक कवि विशेष ने कविता का साक्षात किस आनुभाविक स्तर पर किया था।
- श्रीनरेश मेहता
Ek Cheez Kam
- Author Name:
Neelesh Raghuwanshi
- Book Type:

-
Description:
‘कहना है मुझे उस तरह/जिस तरह कहा नहीं गया अब तक’ इस साधारण से वाक्य से नहीं लगता था कि कविता का हिस्सा बनकर यह कथन बहुआयामी हो जाएगा। नीलेश की कविताओं में साधारण को असाधारण में ढालने की क्षमता है। क्या कभी सोचा जा सकता है कि समाज में बूढ़े हो चुके पिता परिवार से इस तरह अलग-थलग होते जाते हैं, जैसे अंगुली से नाखून अलग किए जाते हैं—‘नाखून की तरह/पिता भी तो झर रहे हैं/अब जीवन से’, इस वाक्योक्ति में पैवस्त यातना दहला देने वाली है।
नीलेश के यहाँ वाक्यांश मुहावरों में ढलते नज़र आते हैं। ‘जिन आँखों में काजल लगाया मैंने (कैसे) देख सकूँ उसमें दुख को’ कहते हुए कवि को लगता है—‘चट्टानों के बीच से/कोंपल की तरह फूटता है/दुख’। यहाँ मुहावरा उलट गया है। चट्टानों में कोंपल का फूटना अदम्य जिजीविषा का द्योतक है पर यहाँ हमारे सामाजिक यथार्थ की क्रूर चट्टानों से तो केवल दुख ही उपजता है। बदलते वक्त के साथ सामाजिक यथार्थ कितना उलट गया है, कवि इस स्थिति को ‘नागरिकता की मृत्यु’ की तरह देखने को विवश है।
ट्रैफिक के लिए सड़क किनारे के बोर्ड की चेतावनी को इस तरह पढ़ा जाना कि ‘सावधान! आगे अंधा मोड़ है/कहती हैं सड़कें/हमारे जीवन की कहानी’। सिर्फ कविता में ही सम्भव हो सकता है जीवन के इस कटु यथार्थ को एक साधारण-सी बात में इस तरह गुम्फित करना और नीलेश इसे बहुत सलीके से करती हैं। इसमें राजनीतिक हालात का दर्शन भी किया जा सकता है। ‘भला मानुष’ पद कभी निष्कपट, सच्चे और किसी कदर भोले-भाले व्यक्ति के लिए प्रयोग में आने लगा था लेकिन नीलेश उसी के अभिधार्थ में कहती हैं—‘जब मानुष भला मानुष हो जाएगा/तो बन्दर भी भले बन्दर हो जाएँगे’। पाठक के लिए यहाँ भी राजनीतिक अर्थ खोजने की गुंजाइश बनती है।
अपने आसपास उपस्थित परिवेश के आमफहम बिम्बों में जीवन के शाश्वत प्रश्नों की तरफ संकेत करना नीलेश की कविता की भी विशेषता रही है और गद्य की भी। उनका यह नया कविता-संग्रह निश्चय ही उनके कवि-मानस के अन्य विस्तारों से हमारा परिचय कराएगा।
Meerabai Ki Sampurna Padawali
- Author Name:
Ramkishor Sharma
- Book Type:

- Description: भक्तिकाल में मीराँ की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। मीराँ के विषय में अनेक किंवदन्तियाँ भी गढ़ ली गईं। किंवदन्तियाँ भले ही ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित न हों, किन्तु उनसे इतना अवश्य ज़ाहिर होता है कि मीराँ अपनी विद्रोही चेतना के कारण लोकप्रिय अवश्य हो गई थीं। जो रचनाकार जितना अधिक लोकप्रिय होता है, उतना अधिक उसके कृतित्व का देशकाल के अनुसार रूपान्तरण होता है। मीराँ के पद गेय थे, अत: एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में साधु, सन्तों तथा गायकों के द्वारा मौखिक ढंग से प्रचारित-प्रसारित होते रहे। मीराँ सर्जनात्मक चेतना को भी उद्वेलित करती हैं। मीराँ के पदों में पाठ-भेद होने के लिए प्रादेशिक भेद तथा मौखिक गेय परम्परा को ज़िम्मेदार ठहराया गया है। उनके औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगाए बिना एक सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मीराँ ने कुछ पदों को दुबारा कुछ विस्तार से तथा कुछ परिवर्तन के साथ गाया होगा। आत्मोल्लास या उन्माद के क्षणों में गाए जानेवाले गीतों में गायक को इसकी सुध-बुध कहाँ रहती है कि वह अपने पूर्व कथन को दुहरा रहा है। उन्होंने अपने जीवन में घटित हुए कटु एवं तीक्ष्ण अनुभवों को वाणी दी है, राणा के द्वारा जो व्यवहार किया गया था, मीराँ भावावेश के क्षणों में उनका कई पदों में स्मरण करती हैं और भगवद् कृपा की महिमा का अनुभव करती हैं। शोधार्थियों और अध्येताओं के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और संग्रहणीय पुस्तक।
Suraj Chand Sitare, Naksh-A-Paa Hain Saare
- Author Name:
Syed Ali Kazim
- Book Type:

-
Description:
अली काज़िम उर्दू के जवाँ-साल और जवाँ-फ़िक्र शायर हैं। शायरी उन्हें विरासत में मिली है। मशहूर शायर और उस्ताद-ए-फ़न सैयद हसन काज़िम उरूज़ की तीसरी नस्ल में हैं। उनके वालिद महमूद काज़िम साहब ख़ुद एक अच्छे शायर और माहिर उरूज़ हैं। अली काज़िम की परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई, जहाँ दिन-रात शेर-ओ-अदब की चर्चा थी। उन्हें अदब का बहुत गहराई से मुतालअ करने का मौक़ा तो नहीं मिला, लेकिन घर की गुफ़्तगू और शोअरा की सोहबतों में अदब और शायरी का जो इल्म और शौक़ मिला, वो कम लोगों को नसीब होता है।
शायरी की दुनिया में अली काज़िम की ग़ज़लें तवातुर के साथ उर्दू अख़बारात और रेसायल में शाये होती रही हैं, जिससे उनकी ज़ूदगोई का अन्दाज़ा होता है। अली काज़िम की ग़ज़लों में एक ताज़गी और नयापन है, जिसे पढ़कर मुसर्रत का एहसास होता है :
“वो अकेला रात पर भारी पड़ा कल भी ‘अली’
शम्अ तारे चाँद सब रौशन रहे बेकार में।”
भारी पड़ने और बेकार में रौशन रहने में जो नजाकत, एहसास और ज़बान का लुत्फ़ है, वो बहुत ख़ूबसूरत है। इस तरह आम तौर पर उनके यहाँ इज़हार-ओ-बयान में कोई तसन्ना नहीं है। वो बड़ी सादगी और बेतक़ल्लुफ़ी से अपने जज़्बात और महसूसात को नज़्म कर देते हैं :
“रुसवाई हर क़दम पे मेरे साथ साथ थी
आवाज़ दे के तुम को बुला भी नहीं सका।”
(प्राक्कथन से)
Pukarti Hain Smritiyan
- Author Name:
Anand Pachauri
- Book Type:

- Description: Book
Sansad Se Sarak Tak
- Author Name:
Sudama Pandey Dhoomil
- Book Type:

- Description: धूमिल मात्र अनुभूति के नहीं, विचार के भी कवि हैं। उनके यहाँ अनुभूतिपरकता और विचारशीलता, इतिहास और समझ, एक-दूसरे से घुले-मिले हैं और उनकी कविता केवल भावात्मक स्तर पर नहीं बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी सक्रिय होती है। धूमिल ऐसे युवा कवि हैं जो उत्तरदायी ढंग से अपनी भाषा और फ़ार्म को संयोजित करते हैं। धूमिल की दायित्व-भावना का एक और पक्ष उनका स्त्री की भयावह लेकिन समकालीन रूढि़ से मुक्त रहना है। मसलन, स्त्री को लेकर लिखी गई उनकी कविता ‘उस औरत की बग़ल में लेटकर’ में किसी तरह का आत्मप्रदर्शन, जो इस ढंग से युवा कविताओं की लगभग एकमात्र चारित्रिक विशेषता है, नहीं है बल्कि एक ठोस मानव स्थिति की जटिल गहराइयों में खोज और टटोल है जिसमें दिखाऊ आत्महीनता के बजाय अपनी ऐसी पहचान है जिसे आत्म-साक्षात्कार कहा जा सकता है। उत्तरदायी होने के साथ धूमिल में गहरा आत्मविश्वास भी है जो रचनात्मक उत्तेजना और समझ के घुले-मिले रहने से आता है और जिसके रहते वे रचनात्मक सामग्री का स्फूर्त लेकिन सार्थक नियंत्रण कर पाते हैं। यह आत्मविश्वास उन अछूते विषयों के चुनाव में भी प्रकट होता है जो धूमिल अपनी कविताओं के लिए चुनते हैं। ‘मोचीराम’, ‘राजकमल चौधरी के लिए’, ‘अकाल-दर्शन’, ‘गाँव’, ‘प्रौढ़ शिक्षा’ आदि कविताएँ, जैसा कि शीर्षकों से भी आभास मिलता है, युवा कविता के सन्दर्भ में एकदम ताज़ा बल्कि कभी-कभी तो अप्रत्याशित भी लगती हैं। इन विषयों में धूमिल जो काव्य-संसार बसाते हैं, वह हाशिए की दुनिया नहीं, बीच की दुनिया है। यह दुनिया जीवित और पहचाने जा सकनेवाले समकालीन मानव-चरित्रों की दुनिया है जो अपने ठोस रूप-रंगों और अपने चारित्रिक मुहावरों में धूमिल के यहाँ उजागर होती है।
Phases of the Moon
- Author Name:
Ismaeel Ahmad
- Rating:
- Book Type:

- Description: Intimate. Raw. Emotional. The moon doesn’t get tired of making people feel full even when she’s empty, does she? This book is a collection of poetry that has been built by tears, laughter, friends, family, the obscure niceties and fallacies of this world. Just like the moon, we seldom struggle with being full, and other times with being empty, and sometimes a conflict in between. But, we are whole, nevertheless. Being trapped in a cycle is not always an endless routine, but new beginnings, pure intentions, untethered release too. This book will carry you into themes of heartbreak, rebirth, sadness, happiness, friendship, loneliness and more. Hold my hand, and let’s walk through hurting, healing, and loving.
Khatam Nahin Hote Baat
- Author Name:
Bodhisatwa
- Book Type:

-
Description:
जीने का सहजबोध और उसको सहारती–सँभालती दुधमुँही कोंपलों–सी कुछ यादें, कुछ कचोटें, कुछ लालसाएँ और कुछ शिकायतें। बोधिसत्व की ये कविताएँ समष्टि–मानस की इन्हीं साझी ज़मीनों से शुरू होती हैं, और बहुत शोर न मचाते हुए, बेकली का एक मासूम–सा बीज हमारे भीतर अँकुराने के लिए छोड़ जाती हैं। इन कविताओं की हरकतों से जो दुनिया बनती है, वह समाज के उस छोटे आदमी की दुनिया है जिसके बारे में ये पंक्तियाँ हैं : ‘‘माफ़ी माँगने पर भी/माफ़ नहीं कर पाता हूँ/छोटे–छोटे दु:खों से/उबर नहीं पाता हूँ/पावभर दूध बिगड़ने पर/कई दिन फटा रहता है मन/कमीज़ पर नन्ही–सी खरोंच/देह के घाव से ज़्यादा देती है दु:ख।’’ (छोटा आदमी)
छोटे आदमी की यह दुनिया जिस पर आज क़िस्म–क़िस्म की बड़ी चीज़ें और दुनियाएँ निशाना साध रही हैं, अगर सुरक्षित है, और रहेगी, तो उन्हीं कुछ छोटी चीज़ों के सहारे जिन्हें बोधिसत्व की ये कविताएँ रेखांकित कर रही हैं। मसलन साथ पढ़ी मुहल्ले की उन लड़कियों की याद जिनके बारे में अब कोई ख़बर नहीं (‘हाल–चाल’); गाँव के वे बेनाम–बेचेहरा लोग जिनके सुरक्षित साये में बचपन बीता, और आज महानगर की भूल–भुलैया में जिनकी फिर से ज़रूरत है (‘मैं खो गया हूँ’); अपने घावों में सबको पनाह देनेवाली उस आवारा लड़की का प्यार जिसके अपने पास कोई जगह कहीं नहीं (‘कोई जगह’)। और ऐसी ही अन्य तमाम चीज़ें जो हम साधारण जनों के संसार को हरा–भरा रखती हैं, इन कविताओं के माध्यम से हम तक पहुँच रही हैं।
‘लालच’ शीर्षक कविता में व्यक्त इस छोटे आदमी की नग्न लालसा हिन्दी कविता को एक नया प्रस्थान बिन्दु देती प्रतीत होती है। लग रहा है कि थोड़ी हिचक के साथ ही, लेकिन अब वह उन सुखों में अपनी भी हिस्सेदारी चाहता है, जिनका उपभोग बाक़ी पूरा समाज इतने निर्लज्ज अधिकारबोध के साथ कर रहा है। ‘ख़त्म नहीं होती बात’ के रूप में कविता–प्रेमियों के सम्मुख यह ऐसी कविता–पुस्तक है जो काव्य–प्रयोगों के लिए नहीं अपने भाव–सातत्य और वैचारिक नैरन्तर्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।
Dil Duniya Dastoor
- Author Name:
Rajan Verma
- Book Type:

- Description: दिल दुनिया दस्तूर छोटी कविताओं का एक संग्रह है जो एक ऐसे व्यक्ति के दिन-प्रतिदिन के जीवन से प्राप्त होता है, जिसने दिल टूटने, अस्वीकृति और एकाकीपन को देखा है फिर भी उसे प्यार मिला है। यह पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति की जीवन यात्रा का प्रदर्शन है जो कई वर्षों से कॉर्पोरेट जीवन से जूझने के संघर्ष के समानांतर वह जीवन जीने की कोशिश कर रहा है जो वह हमेशा चाहता था, अपनी कविताओं के माध्यम से। वह मानव जीवन के मूल तत्वों पर सवाल उठाते हैं – प्यार, दिल टूटना, एकांत तथा एक व्यस्त कामकाजी किंतु यांत्रिक जीवन के रहते भी कहीं खोया एक अकेला व्यक्ति। यह संस्करण एक प्रयास है पाठकों के बीच आत्म-प्रतिबिंब की चिंगारी जलाने में, आधुनिक जीवन की अनियमितताओं से जूझने में और उम्मीद है मददगार होगा समाज के ऐसे मानदंडों से निपटने में जो अक्सर नकली, समझौता न करने वाले, दोहरे मानकों से लिप्त और मजबूर करने वाले होते हैं।
Veerta Par Vichlit
- Author Name:
R. Chetankranti
- Book Type:

-
Description:
आर. चेतनक्रान्ति की कविताएँ औसत जीवन की महत्तर कविताएँ हैं।
उत्तर-पूँजीवाद ने पिछले दो दशकों में बेकारी, विस्थापन, ऊब और उदासी का अपरम्पार गाद जमा किया है। चेतनक्रान्ति इससे गुज़रकर इस महाजीवन की धकधक को पकड़नेवाले सबसे संवेदनशील कवि हैं। और उनकी कविताएँ औसत आदमी की अकुलाहट, हताशा, टूटन व बाज़ार द्वारा गढ़े मौज़-मज़ा-मस्ती की बर्बरता के बीच अन्तर्निहित सूत्रों को बहुत सहज ढंग से उद्घाटित करती हैं। ये कविताएँ हमारे स्वप्न, डर, उन्माद और उपभोग में निहित ताक़त और दमन के महीन सूत्रों को अनायास खोलती चलती हैं। यहाँ ‘ताक़त’ अलग-अलग व्यंजनाओं में सबसे केन्द्रीय पद है। हमारे तमाम भाव-अनुभाव ताक़त की इस अदृश्य संरचना का ही प्रभावोत्पाद हैं, इस बात को समझने के लिए यहाँ संकलित प्रेम कविताओं को धैर्य से पढ़ना चाहिए। प्रेम यहाँ हिन्दी के सामान्य तन्द्रिल संसार से भिन्न; दैनंदिन जीवन की कशमकश और औसत आदमी की बेचारगी के बीच एक सघन मानुष गन्ध की तरह है। प्रेम यहाँ औसतपने में जीवन की सार्थकता और अस्तित्व को थोड़ा गहरा संवेदनात्मक आधार देता है।
इन कविताओं में स्थिति और अवस्थितियों के कारणभूत तत्त्वों तक पहुँचने की तड़प के साथ संरचनात्मक अन्तर्विरोधों से पैदा हुआ बहुत जैविक तरह का प्रतिरोध है। इसे प्रचलित मुहावरों और लोकप्रिय मुद्राओं में घटाकर समझने का प्रयास व्यर्थ है। यह किसी विचार-व्यवस्था और क्रान्ति के शास्त्र से नहीं बल्कि पूँजी और पितृसत्ता के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा, खीझ और न्याय की आकांक्षा है जो कौरवी बोली के देशज ताप से ख़ास संवादधर्मी शिल्प में ढल जाता है।
—आशीष मिश्र
Pahali Barish
- Author Name:
Aziz Nabeel
- Book Type:

- Description: दू में दुनिया की अहम तरीन शायरी मौजूद है, मैंने बहुत सारी ज़बानों की शायरी पढ़ी है लेकिन उर्दू शायरी की ख़ूबसूरती और दिलकशी सबसे अलग है। नई उर्दू शायरी की मोतबर और तवाना आवाज़ों में अज़ीज़ नबील का नाम बहुत अहम है। उनकी शायरी में नाज़ुक ख़्यालात की ख़ुशबू, नए एहसासात की रोशनी और ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ इन्किशाफ़ात के रंग बख़ूबी देखे और महसूस किए जा सकते हैं। अज़ीज़ नबील की शायरी में जो बात सबसे ज़्यादा अपील करती है, वो ये है कि वह अपनी बातें सीधे-सीधे ना करते हुए अलामतों और तशबीहात के बहुत ख़ूबसूरत इस्तिमाल से करते हैं, जिसकी वजह से उनके एक शे’र से ब-यक-वक़्त कई-कई मतलब निकाले जा सकते हैं। एक और ख़ास बात ये है कि अज़ीज़ नबील की शायरी का डिक्शन और उस्लूब उनका अपना है। उन्होंने इस्तिमाल-शुदा रास्तों से बचते हुए अपने लिए कुछ इस तरह एक अलग राह निकाली है कि ज़िन्दगी को शायरी और शायरी को ज़िन्दगी में शामिल करके पेश कर दिया है। —जस्टिस मार्कंडेय काटजू इक्कीसवीं सदी तेज़ी से बदलते हुए अक़दार की सदी है, इस सदी में उर्दू शायरी की जो आवाज़ें बुलन्द हुई हैं, उनमें अज़ीज़ नबील का नाम तवज्जो का हामिल है। क्लासिकी अदब से वाबस्तगी और इस अहद की हिस्सियत की आमेज़िश ने उनकी शायरी को पुरकशिश बना दिया है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सादा ज़बान और ख़ूबसूरत अलामतों के फ़नकाराना इस्तिमाल से पुर इस शायरी को क़ारईन पसन्द फ़रमाएँगे। —जावेद अख़्त
Is Bhanwar Ke Paar
- Author Name:
Shashi Shekhar Sharma
- Book Type:

-
Description:
अगर काव्य को जीवन के सामासिक एवं वैयक्तिक सरोकारों की पहचान का एक बिम्बात्मक माध्यम माना जाए तो शशि शेखर के इस संग्रह की कविताएँ उन सरोकारों को अनुभूति के कई स्तरों पर टटोलती हैं। एक स्तर पर मनुष्य के निजी अनुभवों का विराट एवं अत्यन्त ही दुरूह संसार है तो दूसरे स्तर पर समाज के सामूहिक जीवन का उल्लास एवं उसकी विवशताएँ हैं।
ये कविताएँ इन स्तरों के अन्तर्सम्बन्धों की पहचान तो करती ही हैं, उनकी पुनर्व्याख्या के माध्यम से वर्तमान के अपसंस्कारों की ओर हमारा ध्यान भी खींचती हैं। समसामयिक जीवन का सामाजिक, सैद्धान्तिक एवं वैचारिक अनुभव ख़ूब मुखर होकर इन कविताओं में ध्वनित हुआ है। जहाँ वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य को इतिहास के परिप्रेक्ष्य में जोड़कर देखा गया है, वहीं उस परिदृश्य के तात्कालिक महत्त्व एवं उसकी कुरूप विडम्बनाओं को भी रेखांकित किया गया है, और ऐसा करते समय ये कविताएँ ‘अच्छा’ समझे जाने की चिन्ता से पूरी तरह मुक्त हैं।
अपनी बात बिना लाग–लपेट कहने का आग्रह इन कविताओं की महत्त्वपूर्ण पहचान है। इस आग्रह के कारण ही ये कविताएँ सहसा हमें आईने के सामने खड़ा कर देती हैं। शशि शेखर ने समान सामर्थ्य के साथ काव्य की अनेक विधाओं का प्रयोग किया है। चाहे गीत हों या दोहे, मुक्त छन्द हों या ग़ज़ल, हर पैमाने में उनके अनुभवों का रस ख़ूब पककर छलका है। इस हिसाब से ये कविताएँ पूरे तौर पर हिन्दुस्तानी मिज़ाज की हैं। भाषा और बिम्ब के सन्दर्भ में भी हमारी वैविध्यपूर्ण जीवन–शैली—शहरी और ग्रामीण, खड़ी बोली और उर्दू—के परस्पर रिश्तों की विरासत इन कविताओं में स्पष्ट रूप से मुखरित होती है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये कविताएँ पाठक से सीधे संवाद की अपेक्षा से अनुप्राणित हैं।
Yah Aakanksha Samay Nahin
- Author Name:
Gagan Gill
- Book Type:

-
Description:
कोई भी कविता अपने समय से गुज़रकर ही सार्थकता अर्जित करती है, यह बात गगन गिल की कविता भी प्रमाणित तो करती है, लेकिन इस तरह नहीं कि समय उनके यहाँ कविता का कोई घोषित विषय हो। ये कविताएँ निस्सन्देह नितान्त निजी अनुभूतियों की कविताएँ हैं। लेकिन यदि कवयित्री इन नितान्त निजी अनुभूतियों और अपने स्वर-वैशिष्ट्य को अक्षत रखते हुए भी युग-संवेदन को व्यंजित कर पाती है, तो इसकी वजह यही है कि समय उसकी काव्योक्तियों में नहीं बल्कि उसके स्थापत्य में, उसकी लय-संरचना में विन्यस्त होता है। यही कारण है कि गगन गिल की कविता को एक दृश्य की तरह देखें तो वह एक शान्त, निरावेग झील का आभास देती है, लेकिन उसे स्पर्श करें तो समय के सभी तनावों-दबावों की थरथराहट महसूस होती है। अक्सर यह कविता शब्दों में नहीं, उनके बीच के अन्तराल में सम्भव होती है। गगन गिल की कविता में शब्द और शब्द के बीच जिस तनाव का अनुभव होता है, उसे सिर्फ़ संगीत की तरह महसूस किया जा सकता है, उसका वक्तव्य नहीं हो सकता।
इसलिए इस बात का महत्त्व एक हद तक ही है कि ये कविताएँ प्रेम के बारे में हैं, वैराग्य के बारे में अथवा स्त्री की स्थिति आदि के बारे में। 'जल के भीतर सूख रहे जल', 'गूँगे के कंठ में याद आया गीत' अथवा 'पिछले जन्म में अधबनी रह गयी थी रोटी तुम्हारे नाम की' ऐसी निजी अनुभूतियों को व्यंजित करते शब्दों के बीच के अन्तराल को विन्यस्त करती एक सम्पीडक-कॉम्प्रेस्ड- लय न केवल समय की जटिलता और विकलता की ध्वन्याकृति हो जाती है, बल्कि इसी कारण अपनी ही एक भाषा की तलाश भी। इसलिए इन काव्यानुभूतियों से गुज़रते हुए रॉबर्तो हुआरोज़ की इस उक्ति का स्मरण आना अस्वाभाविक नहीं है कि कविता भाषा के तल में अस्तित्व का विस्फोट है।
—नन्दकिशोर आचार्य
Pratinidhi Shairy : Habeeb 'Jalib'
- Author Name:
Habeeb 'Jalib'
- Book Type:

-
Description:
उर्दू की मशहूर शायरा मोहतरमा फ़हमीदा रियाज ने कहा : तारीख़ ने ख़िलक़त को तो क़ातिल ही दिए, ख़िलक़त ने दिया है उसे ‘जालिब’ सा जवाब। और इस शे’र के साथ एक ऐसे शायर की तस्वीर हमारे सामने आती है जिसने अपनी सारी ज़िन्दगी समाज के दबे-कुचले लोगों के नाम कर दी थी। यहाँ हमें ऐसा शायर नज़र आता है जो बार-बार सलाख़ों के पीछे डाला गया, जिसकी एक क्या, तीन-तीन किताबें ज़ब्त की गईं, पासपोर्ट ज़ब्त किया गया, जिस पर झूठा आरोप लगाकर एक साज़िश के तहत मुक़दमे में फँसाया गया, जिसका एक बच्चा दवा-दारू के बिना मरा, और फिर भी जब वह जेल जाता है तो अपनी बीमार बच्ची के नाम सन्देश देकर जाता है कि आनेवाला दौर नई
नस्ल का ही होगा : मेरी बच्ची, मैं आऊँ न आऊँ, आनेवाला ज़माना है तेरा। इतना ही नहीं, जब-जब उसे सत्ता की ओर से प्रलोभन दिए गए, उसने उन्हें ठुकराने में एक पल की देर नहीं की।
हबीब जालिब की शायरी के बारे में कुछ कहना गोया सूरज को चिराग़ दिखाने के बराबर होगा। हम तो इतना ही जानते हैं कि ‘मज़ाज’ ने 1952 में ही भविष्यवाणी कर दी थी कि ‘जालिब अपने अहद का एक बड़ा शायर होगा’, ‘फ़िराक़’ ने साफ़ तौर पर कहा कि ‘सूरदास का नग़्मा और मीराबाई का खोज अगर यकजा हो जाएँ तो हबीब जालिब बनना है,’ और सिब्ते-हसन, इन्तज़ार हुसैन समेत बहुत सारे अदीबों और जनसाधारण को जालिब ‘नज़ीर’ अकबराबादी के बाद उर्दू के अकेले जनकवि नज़र आते हैं। फिर हज़रत ‘जिगर’ मुरादाबादी ने जो दाद दी, वह खुद ही दाद के क़ाबिल है। फ़रमाया, “हमारा ज़मान-ए-मैनोशी होता तो हम जालिब की ग़ज़ल पर सरे-महफ़िल ख़रा कराते।”
ऐसे ही शायर का यह एक भरा-पूरा प्रतिनिधि संकलन है, जिसे पाठक सँजोकर रखना चाहेंगे।
Sadho ! Jag Baurana
- Author Name:
Mukesh Kumar
- Book Type:

-
Description:
मुकेश कुमार टेलीविज़न की दुनिया का एक जाना-माना नाम है। साहित्य से जुड़े तमाम लोग उन्हें दूरदर्शन पर डॉ. नामवर सिंह के साथ पुस्तक चर्चा के अत्यन्त चर्चित कार्यक्रम ‘सुबह-सवेरे’ के माध्यम से, ‘हंस’ में पिछले आठ सालों से प्रकाशित उनके स्तम्भ ‘कसौटी’ के कारण तथा कई टेलीविज़न चैनलों को शुरू करके उन्हें सफल बनानेवाले एंकर के रूप में भी जानते-समझते रहे हैं। लेकिन उनके बहुविध व्यक्तित्व के बहुत से पहलू लोगों से अभी तक क़रीब-क़रीब छिपे हुए रहे हैं जिनमें उनका व्यंग्यकार, कथाकार तथा कवि रूप भी शामिल है।
टेलीविज़न की दुनिया में रहकर अपने परिवार तक के लिए समय निकाल पाना मुश्किल हो जाता है और हड़बड़ी की इस दुनिया में अपनी संवेदनाएँ बचाना प्राय: असम्भव ही होता है। अत: आश्चर्य होता है कि इस दुनिया में लगातार रहकर ख़ासकर कविता के लिए समय उन्होंने कैसे और कहाँ से निकाल लिया होगा? और यों ही अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए कविता के नाम पर कुछ भी लिख देना तो सम्भव या आसान है मगर कविता के आधुनिक मुहावरे को समझते हुए अपने पेशेवर काम से एक बिलकुल ही अलग दुनिया रच देना अगर असम्भव नहीं तो बेहद मुश्किल और जटिल है।
मुकेश की विशेषता सिर्फ़ यह नहीं है कि वे कविताएँ लिखते हैं, यह भी है जैसा कि ऊपर कहा गया, वे इसमें संवेदनाओं की एक अलग दुनिया रचते हैं। यह दुनिया दैनिक और हर घंटे या हर दस मिनट बाद टीवी के पर्दे पर आनेवाली ज़्यादातर सतही और कामचलाऊ ख़बरों और उनके विश्लेषण की दुनिया से बिलकुल ही अलग है। इन कविताओं को पढ़ते हुए पाठकों को याद ही नहीं आएगा कि यह वही मुकेश हैं जिन्हें रात के समय समाचारों का कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करते हमने-आपने देखा है, हालाँकि वहाँ भी उनका तीखापन कहीं खोता नहीं जैसे कि ‘हंस’ के उनके स्तम्भ में भी यह बेधड़क ढंग से व्यक्त होता है। इन कविताओं में से कम कविताओं में ही आज की राजनीति से सीधे-सीधे रूप से कवि वाबस्ता है। ये कविताएँ उनके कोमल और लड़ाकू दोनों पक्षों को एक साथ उजागर करती हैं। वे चाँद की बात इनमें करते हैं, साथ ही समुद्र की, नदियों की, स्मृतियों की, साँकल की (जो जीवन से प्राय: खो चुकी है), प्यार की, अपने और बच्चों के बचपन की, आत्मनिर्वासन की और ऐसी ही कई-कई बातें करते हैं। वे कई ताज़े टटके बिम्ब रचते हैं। दूज का चाँद उन्हें बिना मूठ का हँसिया नज़र आता है जो तारों की फ़सल काटने के काम आता है। इन कविताओं में नदी अपनी आत्मकथा लिखती पाई जाती है। इनमें कवि स्मृतियों के घर में रहता हुआ पाया जाता है। और मुकेश यह सारा काम टेलीविज़न की अत्यन्त शब्दस्फीत दुनिया से अलग पर्याप्त भाषा संयम से करते हैं।
उनकी कविताएँ छोटी हैं, स्पष्ट हैं और लगभग उतने ही शब्दों का इस्तेमाल करती हैं जितने का प्रयोग करना अनिवार्य है और यह अनुशासन हासिल करना आसान नहीं है। कई नामी कवि बेहद शब्दस्फीत हैं। उनमें कहीं-कहीं एक गहरा आक्रोश भी है तो कहीं एक गहरा आत्मविश्वास भी, इसलिए कितना भी घना क्यों न हो अँधेरा जितना जान पड़ता है उतना घना नहीं होता अँधेरा। और ऐसे आत्मविश्वास का अर्थ तब ज़्यादा है जब कवि को पता है कि—जिन्हें पूजा हो गए पत्थर, पूजते-पूजते लोग भी हो गए पत्थर, देवता भी पत्थर, पुजारी भी पत्थर, सब पत्थर पत्थर ही पत्थर। जब सब तरफ़ पत्थर ही पत्थर हों, हमारे आदर्श देवता और पुजारी तक जब पत्थर हो चुके हों, तब रचने की चुनौती ज़्यादा गम्भीर है क्योंकि रचना के स्रोत भी पथरा चुके हैं। ऐसे कठिन समय में सरल-आत्मीय कविताएँ रचनेवाले मुकेश कुमार के इस संग्रह की तरफ़ आशा है सबका ध्यान जाएगा, हालाँकि स्थितियाँ साहित्य से जुड़े लोगों के भी पथरा जाने की हैं।
Pratinidhi Kavitayen : Bharatbhushan Agrawal
- Author Name:
Bharatbhushan Agrawal
- Book Type:

-
Description:
भारतभूषण अग्रवाल की कविता बिना किसी नाटकीयता, बिना कोई चीख़-पुकार मचाए ईमानदारी से अपनी सच्चाई को देखती-परखती कविता है। उसमें रूमानी आवेग से लेकर मुक्त हास्य, विद्रूप से लेकर अनुराग और कोमलता की कई छवियाँ, सभी शामिल हैं। कामकाजी मध्यवर्ग की विडम्बनाएँ, संवेदनशील व्यक्ति के ऊहापोह, शहराती ज़िन्दगी के रोज़मर्रा के सुख-दु:ख आदि को भारत जी ईमानदारी और पारदर्शिता से अपनी कविता में जगह देते हैं। उनमें अपनी विशिष्टता का रत्ती-भर भी आग्रह नहीं है। बल्कि अगर आग्रह है तो अपनी सीधी-सादी, सरल जान पड़ती लेकिन दरअसल जटिल साधारणता का। यह आग्रह उनकी आवाज़ को और सघन तथा उत्कट बनाता है।
उनकी कविता अपने को महत्त्वाकांक्षा के किसी विराट लोक में विलीन नहीं करती। वह अपनी उत्सुकताओं और बेचैनियों को जतन से नबेरती है। वह कविता में विकल्प इतना नहीं खोजती जितना सच्चाई की ही कई अन्यथा अलक्षित रह जानेवाली परतों को। कविता में कवि का यह अहसास बराबर मौजूद है कि सच्चाई और ज़िन्दगी कविता से कहीं बड़ी और व्यापक हैं और वे कविता में अँट नहीं पा रही हैं।
Bahati Ho Tum Nadi Nirantar
- Author Name:
Shyam Sunder Tiwari
- Book Type:

- Description: This book has no description
Log Bhool Gaye Hain
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

-
Description:
रघुवीर सहाय की कविताओं में हम एक ऐसे आधुनिक मानस को देख पाते हैं जो बौद्धिक और रागात्मक अनुभूतियों से सन्तुष्ट होकर अपने लिए एक सुरक्षित संसार की सृष्टि नहीं कर लेता; उसमें रहने लगना कवि के लिए एक भयावह कल्पना है। आज के पतनशील समाज में ऐसे अनेक सुरक्षित संसार विविध कार्य–क्षेत्रों में बन गए हैं—साहित्य में भी—और इनमें बूड़ जाने का ख़तरा पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते–बढ़ते तीव्रतम हो गया है। परन्तु (बातचीत में रघुवीर सहाय कहते हैं कि) समाज कविताओं से भरा पड़ा है : सड़क पर चलते ही हम उनसे टकराएँगे और हर कविता एक नया परिचय कराएगी। इस संग्रह की रचनाएँ कवि के निरन्तर बढ़ते हुए परिचयों के पीछे उसकी सामाजिक चेतना के विकास का भी संकेत देती हैं : कवि की चिन्ता है कि उस विकास के बिना कविता लिखते जाने का कोई मतलब ही नहीं होगा।
आज के पतनशील समाज के प्रति कवि की दृष्टि विरोध की है, परन्तु वह अपने काव्यानुभव से जानता है कि वह रचना जो पाठक के मन में पतन का विकल्प जाग्रत् नहीं करती, न साहित्य की उपलब्धि होती है न समाज की। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की परम्परा में वह उस शक्ति को बचा रखने को आतुर है जो उसने ‘दूसरा सप्तक’ और ‘सीढ़ियों पर धूप में’ पाई थी और जिस पर आए हुए ख़तरे को उसने ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ में दिखाया था। वह मानता है कि यही खोज नए समाज में न्याय और बराबरी की सच्ची लोकतंत्रीय समझ और आकांक्षा जगाती है और ऐसे समाज की रचना के लिए साहित्यिक और साहित्येतर क्षेत्रों में संघर्ष का आधार बनती है। जहाँ कहीं जन की यह शक्ति पतनोन्मुख संस्कृति के माध्यमों द्वारा भ्रष्ट की जा रही हो वहाँ वह चेतावनी देता है और जहाँ वह बची रहने पर भी देखी नहीं जा रही हो, उसकी पहचान कराता है। वह बचाने के लिए तोड़ता है और तोड़ने के लिए तोड़ने के व्यावसायिक उद्देश्य का विरोध करता है। पीड़ा को पहचानने की कोशिश वह ऐसे करता है कि उसी समय पीड़ा का सामाजिक अर्थ भी प्रकट हो जाए—वह मानता है कि सामाजिक चेतना का कोई अक्षर भंडार नहीं हो सकता, उसकी समृद्धि लोकतंत्र के पक्ष में संघर्ष से करती रहनी पड़ती है और इसी तरह सामाजिक नैतिकता की भी। ये कविताएँ इसी परम्परा की आज के दौर की अभिव्यक्तियाँ हैं।
Solitude's Embrace
- Author Name:
Anna Belmonte
- Rating:
- Book Type:

- Description: Solitude’s Embrace is born of independent musings, provocative suggestions and novel observations, all pieced together to offer readers a chance to explore their own world with a new perspective. Maybe even spark a script of their own. With everything being outward and flashy, it can be a pleasant change of pace to switch the lens. To look closer to home, turn inward; not with judgment but with curiosity and awe. With over 150 possible branches in these pages to explore, get started to find which ones take root and speak to your individuality – grow a tree of thoughts all your own.
Anubhav Ke Aakash Mein Chand
- Author Name:
Leeladhar Jagudi
- Book Type:

- Description: सातवें दशक में ‘नाटक जारी है’ के प्रकाशन से लीलाधर जगूड़ी की कविता अपने विभिन्न पेचीदा मोड़ों और पड़ावों से होती हुई बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में ‘अनुभव के आकाश में चाँद’ नामक इस नए संग्रह के साथ एक नई जगह पर आ पहुँची है। इन 74 कविताओं में जगूड़ी अपने समय के बाहर और भीतर को; पास और दूर को; उसके अन्तःस्रोतों और अन्तर्विरोधों को एक साथ देख लेते हैं। निरन्तर होते जा रहे इस संसार के ताप से पके हुए आत्मस्थ सौन्दर्य की ये कविताएँ स्मृति, उपस्थिति और सम्भाव्यता के बीच सहज आवाजाही करती हैं। इन कविताओं में अनुभव का आकाश एक साथ ऊँचा और गहरा; विस्तृत और सघन हुआ है। जगूड़ी की पहचान सबसे पहले अपने समय और परिवेश को पैनी निगाह से देखनेवाले कवि के रूप में रही है लेकिन इस संग्रह में वे मूलभूमि छोड़े बिना और अधिक अनुभव सम्पन्न होकर बाहर आते दिखते हैं। यह बाहर आना समकालीनता का इतिहास लिखने जैसा एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम जान पड़ता है। ‘अनुभव के आकाश में चाँद’ की कविताएँ हमें हिन्दी कविता का एक नया व्यक्तित्व दिखाती हैं। इसकी वजह कथ्य के अलावा इनके उस शिल्प की विविधता में भी है जो अत्यन्त संवेदनशील भाषा और जोख़िम उठाती प्रयोगशीलता से भरी हुई है। दरअसल यह संग्रह कवि के इस विश्वास का भी उदाहरण है कि जीवन के हरेक अनुभव को भाषा का अनुभव बनना चाहिए। जीवन के बाज़ार में आत्मा की तरह विस्मृत और विकल ये कविताएँ इस सच को रेखांकित करती चलती हैं कि सिक्के का दूसरा पहलू कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। दृश्य के अदृश्य को दिखाने में जगूड़ी की इन कविताओं की तात्तिवक मुखरता और इनका आत्मनिष्ठ एकान्त अपने साथ हमें संलग्न ही नहीं करते, बल्कि अपने में अन्तर्निहित भी करते हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.