Upendra Nath Ashk
Anjo Didi
- Author Name:
Upendra Nath Ashk
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Book Type:

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अंजो दीदी मनोविकारों के घात-प्रतिघात और उनकी प्रतिक्रिया की कहानी है। कोई दैवी घटना वहाँ नहीं है, आकस्मिक रूप से बदलने वाली परिस्थितियाँ वहाँ नहीं हैं, जो जीवन को अँधेरे या उजेले मोड़ पर डाल देती हैं। उसकी कथा की प्रेरक शक्ति है—मनोविज्ञान, जो उस विशिष्ट परिवार की वास्तविक स्थिति से प्रभावित होकर निरन्तर विकसित होता जाता है और नाटकीय सूत्र को बढ़ाता जाता है। केवल व्यक्तियों और मान्यताओं के संघर्ष से वर्गीय यथार्थ की आत्मा जैसे मुखर हो उठी है और उनके रहन-सहन, अतिशय पाबन्दी, नियंत्रण और मशीनी-सोच की सारी विषमता साकार हो उठती है। तॉल्स्तॉय के उपन्यास ‘अन्ना कैरेनिना’ की प्रथम पंक्ति सहसा यहाँ याद हो आती है—“Happy families are all alike, every unhappy family is unhappy in its own way.”
सब तरह से सम्पन्न अंजो का परिवार इस तरह भी दुखी हो सकता है, यह सत्य अनायास ही उभरकर सामने आ जाता है।
इसी यथार्थ को अंजो की सनक और परिवार की ट्रैजिडी में गूँथकर अश्क जी ने निश्चय ही एक कलात्मक सिद्धि प्राप्त की है।
बीस वर्ष के लम्बे समय को इस निपुणता से बाँध लेना हिन्दी नाटकों के लिए सर्वथा नवीन अनुभव है। इतने बड़े काल-क्रम को बिना स्थान बदले मुखर कर देना अश्क जी की अद्वितीय उपलिब्ध है, जिसका श्रेय केवल उन्हीं को है। नाटक-रचना के इस नवीन प्रयोग के लिए हिन्दी का पाठक और दर्शक उनका ऋणी रहेगा।
—भूमिका से
Anjo Didi
Upendra Nath Ashk
Chhatha Beta
- Author Name:
Upendra Nath Ashk
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- Description: उपेन्द्रनाथ अश्क के नाटकों में ‘छठा बेटा’ का विशेष स्थान है। नाटक मुख्य रूप से देखने की वस्तु है। नाटककार के सामने जितनी चुनौती दृश्य को साकार करने की होती है उतनी ही चुनौती पाठ को प्रभावी बनाने की भी होती है, ताकि उसका नाटक अभिनेय और पठनीय, दोनों हो। पठनीयता को नाटक की श्रेष्ठता का अनिवार्य गुण भले न माना जाए लेकिन उसके अभाव में वह एक साहित्यिक कृति के रूप में पूर्णता प्राप्त करने से वंचित रह जाता है। ‘छठा बेटा’ इन दोनों कसौटियों पर पूरी तरह खरा उतरता है। इसमें नाटकीय रचना की तीनों आवश्यक इकाइयों—समय, स्थान और अभिनय का सुसंगत संयोजन है। इसका नाटकीय कौशल यानी स्टेज क्राफ्ट देखें तो आरम्भ, गति, संघर्ष, क्लाइमेक्स आदि नाटकीय कार्य-व्यापार की सभी अवस्थाओं का इसमें अनूठा सन्तुलन है। और इस नाटक का पाठ, मंचन-अभिनय के लिए निर्देश-संवाद मात्र तक सीमित नहीं न रहकर एक मुकम्मल पाठ है जिसको सिर्फ पढ़ कर भी कोई पाठक इसके मर्म तक पहुँच सकता है। हास्य-व्यंग्य की एक धारा शुरू से अन्त तक इस नाटक में प्रवाहित होती रहती है जो इसकी पठनीयता को और प्रभावी बना देती है। लेकिन हास्य-व्यंग्य के इस प्रवाह से नाटक की गम्भीरता कहीं बाधित नहीं होती। मनुष्य की सुख-शान्ति की स्वाभाविक आकांक्षा उस समय दारुण हो उठती है जब वह इसके लिए दूसरों से अपेक्षा करता है। हमारे सामाजिक जीवन की इस सचाई को अश्क इस नाटक में बखूबी उजागर करते हैं लेकिन निराशा की ओर धकेलते हुए नहीं, बल्कि जीवन की इस विडम्बना पर हँसने का हौसला देते हुए।