Dr. Vikrant Singh Tomar
Karmayogi Banen
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Dr. Vikrant Singh Tomar
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Book Type:

- Description: मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है, मनुष्य स्वयं साधक है एवं जो मार्ग साधक को साध्य तक पहुँचाता है, वही योग है। कर्मयोग मनुष्य का चित्त शुद्ध करता है, उपासना योग चित्त स्थिर करता है, राजयोग एवं ज्ञानयोग ज्ञान-प्राप्ति में सहायता करता है एवं भक्तियोग, जो कि इन सभी योगों का आधार है, इन योगों को पूरी निष्ठा एवं समर्पण से करने की प्रेरणा देता है। भले ही प्रत्येक योग लक्ष्य-प्राप्ति के लिए आवश्यक है और उनका अपना महत्व है, परंतु इस साधना की शुरुआत किसी भी सामान्य व्यक्ति को कर्मयोग से करनी चाहिए। इसलिए इस पुस्तक का शीर्षक ‘कर्मयोगी बनें’ रखा गया है। हम इस पुस्तक के माध्यम से अपने आध्यात्मिक सफर को कर्मयोग से प्रारंभ करें और उपासना, ज्ञान व भक्तियोग को अपनी यात्रा में समाहित करते हुए अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हों। प्रस्तुत पुस्तक वेदांत दर्शन पर केंद्रित है। इसको सामान्य बोलचाल की भाषा में लिखा गया है, साथ ही कई क्लिष्ट विषयों को आसानी से समझाने के लिए चित्रों का उपयोग किया गया है, जिससे पाठक न केवल इन योगों को समझ सकें बल्कि अपने जीवन में भी उतार सकें।
Karmayogi Banen
Dr. Vikrant Singh Tomar
Dhyan Yog Se Jeevan Prabandhan | Yogic Management Meditation Guided Inspired By Ancient Indian Wisdom Book in Hindi
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Dr. Vikrant Singh Tomar
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Dhyan Yog Se Jeevan Prabandhan | Yogic Management Meditation Guided Inspired By Ancient Indian Wisdom Book in Hindi
Dr. Vikrant Singh Tomar
Self Management Through Self Evaluation | A Practical Handbook of Questionnaires Inspired by Ancient Indian Wisdom
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Dr. Vikrant Singh Tomar
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Self Management Through Self Evaluation | A Practical Handbook of Questionnaires Inspired by Ancient Indian Wisdom
Dr. Vikrant Singh Tomar
Vedanta Va Jeevan Prabandhan
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Dr. Vikrant Singh Tomar
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- Description: ऋषियों की भूमि भारत, जहाँ वेद और उपनिषदों का प्रादुर्भाव हुआ। ऐसे शास्त्र, जिन्होंने न केवल मनुष्य को उसके जीवन के मुख्य उद्देश्य के बारे में अवगत कराया, बल्कि उसके साथ ही उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मार्ग भी बताया और प्रशस्त किया। वेदांत मनुष्य के जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य ‘स्वाआत्मानुभूति’ का राजमार्ग है। इस पुस्तक के प्रारंभिक तीन अध्यायों में वेदांत का प्रारंभिक परिचय कराने का प्रयास किया गया है और अंतिम तीन अध्यायों में जीवन प्रबंधन के वैदिक मॉडल पर चर्चा की गई है। इस पुस्तक के प्रथम अध्याय ‘वेदांत की रूपरेखा’ में वेदांत के सृजन का कारण और उसके उद्देश्यों को उल्लेखित किया गया है। दूसरे अध्याय ‘चार पुरुषार्थ’ में मनुष्य के जीवन के चार प्रमुख लक्ष्यों का उल्लेख है। तीसरे अध्याय ‘शास्त्र में भारतीय दर्शन’ में विभिन्न शास्त्रों का संक्षेप में वर्णन है, जो उन लक्ष्यों को प्राप्त करने का मार्ग सुझाते हैं। चौथे अध्याय ‘वर्ण व्यवस्था’ में उस मार्ग पर चलने की व्यक्तिगत तैयारी का मार्गदर्शन है। पाँचवाँ अध्याय ‘आश्रम व्यवस्था’ उन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु वृहद् सामाजिक संरचना प्रस्तुत करता है। छठे अध्याय ‘सोलह संस्कार’ में मील के वे पत्थर हैं, जो हमें बताते हैं कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं।
Vedanta Va Jeevan Prabandhan
Dr. Vikrant Singh Tomar
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