Meri Volsatanakrafta
Stree-Adhikaron Ka Auchitya-Sadhan
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Meri Volsatanakrafta
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मेरी की यह सर्वप्रमुख कृति 1792 में प्रकाशित हुई। प्रकाशित होने के साथ ही इसकी ख्याति इंग्लैंड के बाहर पूरे यूरोप में और अमेरिका तक में फैल गई। मेरी ने इस कृति में प्रबोधनकाल की तर्कणा और बुर्जुआ क्रान्ति के ‘स्वतंत्रता-समानता-भ्रातृत्व’ के सिद्धान्तों को स्त्री-समुदाय के ऊपर भी समान रूप से लागू करते हुए स्पष्ट शब्दों में यह स्थापना दी कि कोई भी समतावादी सामाजिक दर्शन तब तक वास्तविक अर्थों में समतावादी नहीं हो सकता, जब तक कि वह स्त्रियों को समान अधिकार और अवसर देने की तथा उनकी हिफ़ाज़त करने की हिमायत नहीं करता। इस स्मारकीय कृति में मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट ने ‘शिक्षा की कपटपूर्ण और कृत्रिम प्रणाली’ की निर्भीक-विध्वंसक आलोचना प्रस्तुत करते हुए यह तर्क दिया है कि यह मध्यवर्ग की स्त्रियों को ‘नारीत्व’ (फ़ेमिनिनिटी) के मिथ्याभासी दमघोंटू आदर्शों के दायरे में जीने के लिए तैयार करती है। शैशवावस्था से ही उन्हें यह शिक्षा दी जाती है कि ‘सौन्दर्य स्त्रियों का राजदंड होता है, कि दिमाग़ शरीर के हिसाब से अपने को ढालता है (यानी शारीरिक भिन्नता के चलते स्त्रियों का दिमाग़ भी अ़लग क़िस्म का होता है), और अपने स्वर्णजड़ित पिंजरे में चक्कर काटते हुए वे अपनी जेल को पसन्द करना सीख जाती हैं।’
मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट ने अपने समाज के उग्र पुरुष-वर्चस्ववादी, रूढ़िवादी परिवेश में स्त्रियों को ‘तर्कपरक प्राणी’ के रूप में सम्बोधित करने का साहस किया और ऐसे व्यापकतर मानवीय आदर्शों का आकांक्षी बनने के लिए उनका आह्वान किया जिनमें अनुभूति के साथ तर्कणा और स्वतंत्रता के अधिकार का संश्लेषण हो।