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Brajendra Kumar Singhal

Gorakh-Vijay

  • Author Name:

    Brajendra Kumar Singhal

  • Book Type:
  • Description: ‘गोरख विजय' नाथपंथ के महान योगी गुरु गोरखनाथ से सम्बन्धित पुरातन बाग्रा काव्य ग्रन्थ ‘गोर्ख विजय’ का हिन्दी अनुवाद और समीक्षात्मक पर्यालोचन प्रस्तुत करनेवाली कृति है। गोरखनाथ ने अपने साधनामय जीवन और कल्याणमय दर्शन से तत्कालीन जन-समाज को अत्यन्त प्रभावित-प्रेरित किया था। उन्होंने द्वैताद्वैत-विलक्षण अद्वैतवाद का समर्थन किया लेकिन संसार को मिथ्या मानने से इनकार किया। उन्होंने मोक्ष का साधन योग को माना और योग को अष्टांग न मानकर षडंग माना। वस्तुतः यम-नियम को उन्होंने, साधक हो या सामान्य-जन, मनुष्य मात्र का कर्तव्य और दायित्व बताया जिनमें परिपक्वता के बाद ही आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि की सिद्धि सम्भव है। ऐसी अनेकानेक बातों को जानने-समझने के लिए ‘गोरख विजय’ एक अत्यन्य उपयोगी ग्रन्थ है। प्रस्तुत पुस्तक का एक और उल्लेखनीय पक्ष यह है कि इसमें बंगाल के लोक समाज में प्रचलित गोरखनाथ सम्बन्धी कई लोकगाथाएँ और कुछ अन्य प्रासंगिक सामग्री भी दी गई हैं जिनसे गोरखपंथी साधना के नये आयाम खुलते हैं। वस्तुतः साधक हो या साहित्यिक, विद्वान हो या सामान्य पाठक, गोरखनाथ में दिलचस्पी रखनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह पुस्तक अवश्य पठनीय है।
Gorakh-Vijay

Gorakh-Vijay

Brajendra Kumar Singhal

995

₹ 796

Mahayogiraj Gorakhnath

  • Author Name:

    Brajendra Kumar Singhal

  • Book Type:
  • Description: ‘महायोगिराज गोरखनाथ’ नाथपन्थ की अनन्य विभूति गुरु गोरखनाथ का शोधपूर्ण, विस्तृत और अद्यतन जीवन चरित्र है। भारत की अनेक विभूतियों की तरह, गोरखनाथ के भी कृतित्व और कीर्ति से जनसामान्य जितना परिचित है, उतना उनके व्यक्तिगत जीवन से नहीं। गोरखनाथ ने भी, अगर उनके द्वारा ‘काफिर-बोध’ में दिए गए कुछ संकेतों को छोड़ दें तो अपने व्यक्तिगत जीवन का उल्लेख लगभग नहीं किया है। वस्तुतः दादूपन्थ के सन्त चैनजी की लिखी 'गोरख जनमलीला' ही एकमात्र सबसे पुराना लिखित स्रोत है जिसमें गोरखनाथ की जीवनकथा दी गई है। नाथ-सिद्धों की परम्परा में गोरखनाथ के बारे में जो कुछ श्रुतियाँ पहले से मौजूद थीं, उन्हों को चैनजी ने अपनी कृति में छन्दोबद्ध कर दिया है। स्वाभाविक ही गोरखनाथ सम्बन्धी चर्चाओं का मुख्य आधार ‘गोरख जनमलीला’ रही है। लेकिन ब्रजेन्द्रकुमार सिंहल ने अपने इस ग्रन्थ में गोरख जनमलीला का अनुवाद प्रस्तुत करने के साथ-साथ उसमें वर्णित प्रमेय को विभिन्न ऐतिहासिक पुरातात्त्विक और अन्यान्य साक्ष्यों के साथ रखकर तथ्यगत प्रामाणिकता स्थापित करने का स्तुत्य कार्य किया है। इस प्रकार यह पुस्तक गुरु गोरखनाथ के व्यक्तित्व और कृतित्व से सांगोपांग रूप से परिचित कराती है। साथ ही नाथ-परम्परा, उसके विपुल साहित्य तथा उसकी सुदीर्घ शिष्य-परम्परा और उस परम्परा के अवदान का यथोचित उल्लेख करते हुए एक समग्र परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करती है।
Mahayogiraj Gorakhnath

Mahayogiraj Gorakhnath

Brajendra Kumar Singhal

1895

₹ 1516

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