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Ashutosh Dube

Prarambhik Shiksha

  • Author Name:

    Ashutosh Dube

  • Book Type:
  • Description: बच्चों की व्यवस्थित शिक्षा एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा संवेदनशील कार्य है। विशेषकर 14 वर्ष की अवस्था तक के बच्चों को पठन-पाठन के लिए प्रवृत्त करने तथा उनके आधिगमिक स्तर को बढ़ाने के लिए उनकी मनःस्थिति, परिवेश तथा भाषा को ध्यान में रखना शिक्षक के लिए आवश्यक होता है। यही कारण है कि लेखक ने पुस्तक में व्यक्तित्व विकास के विविध चरणों का वर्णन करते हुए तत्समय की वयोजन्य विशेषताओं और शिक्षक द्वारा ध्यान देनेवाले बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है। कुछ बच्चे कक्षा में औसत से कम आधिगमिक प्रदर्शन करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में स्पष्ट किया गया है कि ऐसे बच्चों को शीघ्रता में मानसिकमन्द बालक नहीं मान लेना चाहिए; बल्कि उनके परिवेश का अध्ययन कर, वास्तविक निदान कर शिक्षक द्वारा यथोचित निर्णय के साथ बच्चे से व्यवहार करना चाहिए। विद्यालयी शिक्षा के सन्दर्भ में शोध की महत्ता पर भी बल दिया गया है। एक बहुत ही उपयोगी और महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
Prarambhik Shiksha

Prarambhik Shiksha

Ashutosh Dube

495

₹ 396

Yaqeen Ki Ayten

  • Author Name:

    Ashutosh Dube

  • Book Type:
  • Description: तोष दुबे की कविता में महज़ विषयों की विविधता नहीं, बल्कि करुणा, अवसाद, विडम्बना-बोध और अपराध-बोध के अलग-अलग शेड्स और विस्तार हैं और भाषा कवि के मानस को ऐसी जगह भी प्रक्षेपित करने में सफल है जो बयानों और अतिकथनों के बाहर बनती है। —विजय कुमार आशुतोष दुबे की कविताएँ एक अभयारण्य हैं।...कम लोगों की कविता ऐसी होती है जहाँ इतने अधिक स्रोतों से बेधड़क शब्द चले आएँ और ऐसे अर्थलाघव के साथ...यह काव्य-विवेक आशुतोष में है कि समझें कितना कहना है और रुकना कहाँ है! विडम्बनाओं की गहरी समझ चट-चटाक इनके एक-एक बिम्ब में वैसे खुलती है जैसे कि पानी के छींटे पड़ते ही चिटपिटिया के बीज चट से चटक जाते हैं। —अनामिका आशुतोष दुबे की काव्यानुभूति की बनावट बहुत सूक्ष्म और संश्लिष्ट है। उसमें कई बार सोच के ऐसे समुन्नत स्तर का स्पर्श है, जो हमें दैनंदिन पीड़ाओं के जंजाल से ऊपर उठाता है। कविता की यह मुक्तिकामी भूमिका है।...जैसे एक प्रशान्त और एकाग्र अन्तश्चेतना के सहारे वे चीज़ों के भीतर झाँकते हैं और उसके अनुभव को ऐसा दार्शनिक अर्थ देते हैं, जो कई बार उनसे पहले हमें अप्राप्य ही था। —पंकज चतुर्वेदी शायद ऐसी कविताओं के लिए एक निरायास—किन्तु संयमित प्रतीक्षा करनी पड़ती होगी कि विषय अन्दर उतरे और अपना फ़ॉर्म, अपना शेड, अपना टेम्परेचर, अपनी संक्षिप्तता, अपना भुरभुरापन और...और...लेकर बाहर निकले। लेकर बाहर निकले यानी इनके सहित नहीं, इन्हें ओढ़कर-पहनकर नहीं—इनसे बना हुआ होकर, इनका बना हुआ होकर बाहर निकले। और इन तमाम बातों के कई-कई टुकड़े हैं और हर टुकड़ा ‘हर रात अलग-अलग कमरों में सोता है।’ —प्रभु नारायण वर्मा
Yaqeen Ki Ayten

Yaqeen Ki Ayten

Ashutosh Dube

395

₹ 316

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