Mangalesh Dabral

Mangalesh Dabral

8 Books

Kavi Ka Akelapan

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: कवियों के गद्य में कोई न कोई विशेषता तो होती होगी जो हम उसे अक्सर आम गद्य से अलग करके देखने की कोशिश करते हैं। वह विशेषता क्या हो सकती है? क्या कवि का बादल लिखना हम पर छाया कर जाता है? क्या कवि के बारिश लिखने से हम भीगने लगते हैं? कवि का प्रेम या ख़ून के बारे में कुछ लिखना हमें बेचैन करने लगता है? मंगलेश डबराल का गद्य पढ़ते हुए कितनी ही बार हम संवेदना के कई ऐसे बारीक़ उतार-चढ़ावों से गुज़र सकते हैं। मगर यह कहना कि उनका गद्य दरअसल उनकी कविता का ही एक आयाम है, इस गद्य की विशेषता को पूरा अनावृत नहीं करता। इससे गुज़रते हुए सबसे पहले तो यही लगता है कि यह गद्य क़तई महत्त्वाकांक्षी नहीं है। यह सिर्फ़ भाषा के स्तर पर आपको मोहित नहीं करता, बल्कि कविताओं और एक कवि के दूसरे कई सरोकारों की समाजशास्त्रीय और राजनीतिक विवेचना की गहराई इसे असली उठान देती है। उसमें अनुभव की गहराई, विचार की प्रतिबद्धता और शिल्प की सुन्दरता एक साथ बुनी हुई है।

    ‘कवि का अकेलापन’ दो हिस्सों में बँटा हुआ है। पहले हिस्से में मंगलेश अपने कुछ प्रिय कवियों की रचनाओं, उनकी पंक्तियों को खोलते हुए उनके अर्थ-स्तरों और उस भावभूमि तक पहुँचने की कोशिश करते हैं, जहाँ से वे पंक्तियाँ अवतरित हुई होंगी और ऐसा करते हुए वह अलग-अलग स्थितियों, विषयों और विचारों के सन्दर्भ में उस कवि के और साथ ही स्वयं अपनी सोच और कल्पना को उघाड़ते हैं। यह हमें एक साथ दो-दो कवियों के भीतरी लोक में समाहित काव्यात्मक स्पन्दन और विमर्श के संसार की अद्भुत छवियाँ दिखाता है। दूसरे हिस्से में कवि की बेतरतीब डायरी है। यह डायरी एक बेचैन व्यक्ति, एक आम नागरिक, एक पुत्र, एक दोस्त, एक संगीत-प्रेमी और इन सबसे थोड़ा ज़्यादा एक कवि के रूप में मंगलेश डबराल को हमारे सामने खोलने का काम करती है और अन्ततः हम यह सोचकर विस्मित हुए बिना नहीं रह पाते कि एक कवि अपने अकेलेपन में किस तरह अपने चारों ओर फैले दृश्यों, बदलावों, अदृश्य दबावों, विस्मृतियों, तकलीफ़ों की नज़र न आनेवाली वजहों और न जाने कितने ही दूसरे अमूर्तों की शिनाख़्त कर उन्हें मूर्त कर सकता है। अगर इसी किताब में प्रयुक्त शीर्षकों की मदद से कहा जाए तो यह ‘असमय के बावजूद’, ‘प्रसिद्धि के उद्योग’ और ‘बर्बरता के विरुद्ध’ एक कवि का ‘लौटते हुए पूर्णतर’ होते जाना है।

Kavi Ka Akelapan

Kavi Ka Akelapan

Mangalesh Dabral

395

₹ 316

Pahar Per Laltain

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: मंगलेश डबराल का यह कविता-संग्रह वर्षों पहले प्रकाशित हुआ था और पिछले कई वर्ष से अनुपलब्ध था। यह कविता की आन्तरिक शक्ति और सार्थकता ही कही जाएगी कि एक बड़े अन्तराल के बाद भी कविता के समर्थकों के बीच इस संग्रह की ज़रूरत आज भी बनी हुई है। इस संग्रह के पहले संस्करण में लिखी पंकज सिंह की टिप्पणी को यहाँ याद करना शायद अप्रासंगिक नहीं होगा :

    ‘‘मंगलेश की कविताएँ जहाँ एक ओर समकालीन जीवन के अँधेरों में घूमती हुई अपने सघन और तीव्र संवेदन से जीवित कर्मरत मनुष्यों तथा दृश्य और ध्वनि बिम्बों की रचना करती हैं और हमारी सामूहिक स्मृति के दुखते हिस्सों को उजागर करती हैं, वहीं वे उस उजाले को भी आविष्कृत करती हैं जो अवसाद के समानान्तर विकसित हो रही जिजीविषा और संघर्षों से फूटता उजाला है।

    ‘‘अपने अनेक समकालीन जनवादी कवियों से मंगलेश कई अर्थों में भिन्न और विशिष्ट है। उसकी कविताओं में ऐतिहासिक समय में सुरक्षित गति और लय का एक निजी समय है जिसमें एक ख़ास क़िस्म के शान्त अन्तराल हैं। पर ये शान्त कविताएँ नहीं हैं। इन कविताओं की आत्मा में पहाड़ों से आए एक आदमी के सीने में जलती-धुकधुकाती लालटेन है जो मौजूदा अंधड़-भरे सामाजिक स्वभाव के बीच अपने उजाले के संसार में चीज़ों को बटोरना-बचाना चाह रही है और चीज़ों तथा स्थितियों को नए संयोजन में नई पहचान दे रही
    है।

    ‘‘कविता के समकालीन परिदृश्य में ‘पहाड़ पर लालटेन’ की कविताएँ हमें एक विरल और बहुत सच्चे अर्थों में मानवीय कवि-संसार में ले जाती हैं जिसमें बचपन है, छूटी जगहों की यादें हैं, अँधेरे-उजालों में खुलती खिड़कियाँ हैं, आसपास घिर आई रात है, नींद है, स्वप्न-दुस्वप्न हैं, ‘सम्राज्ञी’ का एक विरूप मायालोक है मगर यह सब ‘एक नए मनुष्य की गंध से’ भरा हुआ है और ‘सड़कें और टहनियाँ, पानी और फूल और रोशनी और संगीत तमाम चीज़ें हथियारों में बदल गई हैं।’

    ‘‘पहाड़ों के साफ पानी जैसी पारदर्शिता इन कविताओं का गुण है जिसके भीतर और आर-पार हलचल करते हुए जीवन को हम साफ़-साफ़ देख सकते हैं।’’

Pahar Per Laltain

Pahar Per Laltain

Mangalesh Dabral

250

₹ 200

Naye Yug Mein Shatru

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: एक बेगाने और असन्तुलित दौर में मंगलेश डबराल अपनी नई कविताओं के साथ प्रस्तुत हैं—अपने शत्रु को साथ लिए। बारह साल के अन्तराल से आए इस संग्रह का शीर्षक चार ही लफ़्ज़ों में सब कुछ बता देता है : उनकी कला-दृष्टि, उनका राजनीतिक पता-ठिकाना, उनके अन्तःकरण का आयतन।

    यह इस समय हिन्दी की सर्वाधिक समकालीन और विश्वसनीय कविता है। भारतीय समाज में पिछले दो-ढाई दशक के फासिस्ट उभार, साम्प्रदायिक राजनीति और पूँजी के नृशंस आक्रमण से जर्जर हो चुके लोकतंत्र के अहवाल यहाँ मौजूद हैं और इसके बरक्स एक सौन्दर्य-चेतस कलाकार की उधेड़बुन का पारदर्शी आकलन भी। ये इक्कीसवीं सदी से आँख मिलाती हुई वे कविताएँ हैं जिन्होंने बीसवीं सदी को देखा है। ये नए में मुखरित नए को भी परखती हैं और उसमें बदस्तूर जारी पुरातन को भी जानती हैं। हिन्दी कविता में वर्तमान सदी की शुरुआत ही ‘गुजरात के मृतक का बयान’ से होती है।

    ऊपर से शान्त, संयमित और कोमल दिखनेवाली, लगभग आधी सदी से पकती हुई मंगलेश की कविता हमेशा सख्तजान रही है—किसी भी चीज़ के लिए तैयार। इतिहास ने जो ज़ख़्म दिए हैं उन्हें दर्ज करने, मानवीय यातना को सोखने और प्रतिरोध में ही उम्मीद का कारनामा लिखने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध। यह हाहाकार की ज़बान में नहीं लिखी गई है; वाष्पिभूत और जल्दी ही बदरंग हो जानेवाली भावुकता से बचती है। इसकी मार्मिकता स्फटिक जैसी कठोरता लिए हुए है। इस मामले में मंगलेश ‘क्लासिसिस्ट’ मिज़ाज के कवि हैं—सबसे ज़्यादा तैयार, मँजी हुई और तहदार ज़बान लिखनेवाले।

    मंगलेश असाधारण सन्तुलन के कवि हैं—उनकी कविता ने न यथार्थ-बोध को खोया है, न अपने निजी संगीत को। वे अपने समय में कविता की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारियों को अच्छे से सँभाले हुए हैं और इस कार्यभार से दबे नहीं हैं। मंगलेश के लहज़े की नर्म-रवी और आहिस्तगी शुरू से उनके अकीदे की पुख़्तगी और आत्मविश्वास की निशानी रही है। हमेशा की तरह जानी-पहचानी मंगलेशियत इसमें नुमायाँ है।

    और इससे ज़्यादा आश्वस्ति क्या हो सकती है कि इन कविताओं में वह साजे-हस्ती बे-सदा नहीं हुआ है जो ‘पहाड़ पर लालटेन’ से लेकर उनके पिछले संग्रह ‘आवाज़ भी एक जगह है’ में सुनाई देता रहा था। ‘नए युग में शत्रु’ में उसकी सदा पूरी आबो-ताब से मौजूद है।

    —असद ज़ैदी।

Naye Yug Mein Shatru

Naye Yug Mein Shatru

Mangalesh Dabral

195

₹ 156

Sampoorn Kavitayein : Manglesh Dabral

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: मंगलेश डबराल ने अपने अन्तिम दिनों के एक व्याख्यान में कहा था कि ‘यह समय ‘पोएटिक इज़ पॉलिटिकल’ का है। जो काव्यात्मक है, वह राजनीतिक है।’ भाषा को निरर्थक बनाए जाने की सर्वव्यापी कोशिशों के मद्देनज़र काव्यात्मकता को एक सक्रिय हस्तक्षेप की तरह देखते हुए वे शायद कह रहे थे कि वह कविता ही है जो भाषा को उसके मंतव्य वापस कर सकती है, उसे भरोसे के लायक बना सकती है। शब्द और उसके अर्थ को एक कर सकती है।

    उनकी अपनी कविता हमेशा यह काम करती रही। उथले अनुभवों को जल्दबाजी में जुटाए गए वाक्यों में प्रस्तुत कर देने के बजाय उन्होंने भाषा की गुरुता को बरकरार रखते हुए उसका प्रयोग किया, उसे काव्यात्मकता दी और सावधानी से चुनी गई शब्दावली में अपने अनुभवों, अपनी उम्मीदों, अपने दुखों और स्मृतियों को अनुस्यूत किया। उनकी कविताएँ पहाड़ के निर्जन में बहती उस निर्मल जलधारा की तरह हैं जिसके पानी में सबकुछ साफ़-साफ़ दिखाई देता है, नीचे तली में पड़े सब पत्थर, एक-एक कण रेत।

    लेकिन वह कविता निर्जन की नहीं है, पहाड़ से लेकर मैदानों, शहरों और घर से लेकर दुनिया तक फैला उनके सरोकारों का एक बड़ा संसार वहाँ ऐसी भाषा में अभिव्यक्त होता रहा जो अपनी संरचना में अनायास ही विश्वसनीय और पारदर्शी है, जो अपनी धीरता और दृढ़ता के साथ फौरन आपकी अपनी अभिव्यक्ति हो जाती है।

    आज जब मूढ़ता और मूर्खता समाज और राजनीति के सर्वाधिक प्रकाशित और वाचाल घटक हो चले हैं, हमें एक ऐसी अन्तर्यात्रा की ज़रूरत है जो हमें इस दिशाहीन शोर के बीच अकंप रख सके। मंगलेश डबराल की कविताओं के साथ यह यात्रा की जा सकती है।

    यह उनकी कविताओं की सम्पूर्ण प्रस्तुति है।

Sampoorn Kavitayein : Manglesh Dabral

Sampoorn Kavitayein : Manglesh Dabral

Mangalesh Dabral

599

₹ 479.2

Hum Jo Dekhate Hain

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: ‘पहाड़ पर लालटेन’ और ‘घर का रास्ता’ के बाद मंगलेश डबराल के तीसरे कविता–संग्रह ‘हम जो देखते हैं’ का पहला संस्करण 1995 में प्रकाशित हुआ था। इन वर्षों में इस संग्रह के कई संस्करणों का प्रकाशित होना इसका साक्ष्य है कि बाज़ार, उपभोगवाद, भूमंडलीकरण और साम्राज्यवादी पूँजी की बजबजाती दुनिया के बावजूद समाज में कविता के व्यापक और संवेदनशील कोने बचे हुए हैं और उसके सच्चे पाठक भी। यह संग्रह इस कठिन समय में भी ऐसी कविता को सम्भव करता है जो विभिन्न ताक़तों के ज़रिए भ्रष्ट की जा रही संवेदना और निरर्थक बनती भाषा में एक मानवीय हस्तक्षेप कर सके। ये कविताएँ उन अनेक चीज़ों की आहटों से भरी हैं जो हमारी क्रूर व्यवस्था में या तो खो गई हैं या लगातार क्षरित और नष्ट हो रही हैं। वे उन खोई हुई चीज़ों को ‘देख’ लेती हैं, उनके संसार तक पहुँच जाती हैं और इस तरह एक साथ हमारे बचे–खुचे वर्तमान जीवन के अभावों और उन अभावों को पैदा करनेवाले तंत्र की भी पहचान करती हैं। अपने समय, समाज, परिवार और ख़ुद अपने आपसे एक नैतिक साक्षात्कार इन कविताओं का एक मुख्य वक्तव्य है।

    ‘हम जो देखते हैं’ में कई ऐसी कविताएँ भी हैं जो चीज़ों, स्थितियों और कहीं–कहीं अमूर्तनों के सादे वर्णन की तरह दिखती हैं और जिनकी संरचना गद्यात्मक है। किसी नए प्रयोग का दावा किए बग़ैर ये कविताएँ अनुभव की एक नई प्रक्रिया और बुनावट को प्रकट करती हैं, जहाँ अनेक बार विवरण ही सार्थक वक्तव्य में बदल जाते हैं। लेकिन गद्य का सहारा लेती ये कविताएँ ‘गद्य कविताएँ’ नहीं हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ एक गहरी चिन्ता और यहाँ तक कि नाउम्मीदी भी जताती लगती हैं, लेकिन शायद यह ज़रूरी चिन्ता है जो हमारे वक़्त में विवेक और उम्मीद तक पहुँचने का एकमात्र ज़रिया रह गया है। इनकी रचना–सामग्री हमारी साधारण, तात्कालिक, दैनंदिन और परिचित दुनिया से ली गई है, लेकिन कविता में वह अपनी बुनियादी शक़्ल को बनाए रखकर कई असाधारण और अपरिचित अर्थ–स्वरों की ओर चली जाती है। विडम्बना, करुणा और विनम्र शिल्प मंगलेश डबराल की कविता की परिचित विशेषताएँ रही हैं और इस संग्रह में वे अधिक परिपक्व होकर अभिव्यक्त हुई हैं। यह ऐसी विनम्रता है, जो गहरे नैतिक आशयों से उपजी है और जिसमें आक्रामकता के मुक़ाबले कहीं अधिक बेचैन करने की क्षमता है।

Hum Jo Dekhate Hain

Hum Jo Dekhate Hain

Mangalesh Dabral

199

₹ 159.2

Pani Ka Patthar

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: पहाड़, पत्थर और पानी की स्मृतियों को टटोलतीं और शहरी जीवन के मैदानी बीहड़ में मनुष्यता के चिन्हों को अंकित करतीं मंगलेश डबराल की ये कविताएँ उनके कवि-मन की श्रमशील रचनात्मकता की साक्षी हैं।

    यह संग्रह उनके जाने के बाद संकलित किया गया है। जो कविताएँ इसमें शामिल हैं उनमें कई कविताएँ ऐसी हैं जिन पर वे अभी काम कर रहे थे, और कुछ शायद ऐसी जो पहली कौंध में अभी उतारना शुरू ही हुई थीं, जिन्हें वे अभी और विस्तार देते, लेकिन अपने मौजूदा स्वरूप में भी उन्हें सम्पूर्ण कहा जा सकता है।

    भाषा के संयमित व्यवहार और विचार के पक्ष में अपनी जिस दृढ़ता के लिए उनकी कविताओं को जाना जाता है, उनका निर्वाह करते हुए ये कविताएँ उनकी राजनीतिक-सामाजिक पक्षधरता को भी रेखांकित करती हैं।

    यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यहाँ संग्रहित कविताओं-कवितांशों में मंगलेश जी की अपनी पहचान रहीं तमाम विशेषताओं के चिह्न मौजूद हैं, साथ ही ये संग्रह उनकी रचना-प्रक्रिया का भी कुछ पता हमें देता हैं। उनके होने न होने के अन्तराल में उनकी अनुपस्थिति को झुठलाती और उनके अवदान का साक्ष्य देती इन कविताओं की गूँज देर तक बनी रहती है।

Pani Ka Patthar

Pani Ka Patthar

Mangalesh Dabral

199

₹ 159.2

Ghar Ka Rasta

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: मंगलेश डबराल की कविता में रोज़मर्रा ज़िन्दगी के संघर्ष की अनेक अनुगूँजें और घर-गाँव और पुरखों की अनेक ऐसी स्मृतियाँ हैं जो विचलित करती हैं। हमारे समय की तिक्तता और मानवीय संवेदनों के प्रति घनघोर उदासीनता के माहौल से ही उपजा है उनकी कविता का दु:ख। यह दु:ख मूल्यवान है क्योंकि इसमें बहुत कुछ बचाने की चेष्टा है। कविता की एक भूमिका निश्चय ही आदमी के उन ऐन्द्रीय और भावात्मक संवेदनों को सहेजने की भी है जिन्हें आज की अधकचरी और कभी-कभी तो मनुष्य-विरोधी राजनीति और एक बढ़ती हुई व्यावसायिक दृष्टि लगातार नष्ट कर रही है।

    प्रकृति के साथ मनुष्य के सम्बन्धों पर भी एक हिसाबी-किताबी दृष्टि का ही क़ब्ज़ा होता जा रहा है। मंगलेश की कविता पेड़ को ‘करोड़ों चिड़ियों की नींद’ से जोड़ती हुई जैसे इस तरह के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ ही खड़ी है। महानगर में रहते हुए मंगलेश का ध्यान जूझती हुई गृहस्थिन की दिनचर्या, बेकार युवकों और चीज़ों के लिए तरसते बच्चों से लेकर दूर गाँव में इन्तज़ार करते पिता, नदी, खेतों और ‘बर्फ़ झाड़ते पेड़’ तक पर टिका है। उनकी नज़र उस अघाए हुए वर्ग के बीच जाकर बेचैन हो जाती है जो सब कुछ को बाज़ार-भाव के हवाले करने पर तुला है।

    मंगलेश की कविता के शब्द करुण संगीत से भरे हुए हैं। इनमें एक पारदर्शी ईमानदारी और आत्मिक चमक है। लेकिन उनकी कविता अगर हमारे समय का एक शोकगीत है तो आदमी की जिजीविषा की टंकार भी हम उसमें सुनते हैं और उसमें स्वयं अपनी निजी स्थिति का एक साक्षात्कार भी है। बहुत सामान्य-सी लगनेवाली चीज़ों का मर्म भी मंगलेश की कविता इस तरह खोलती है कि उसमें से एक पूरी दुनिया झाँकने लगती है। ‘माचिस की तीली बराबर रोशनी’ इसी तरह की एक पंक्ति है।

    दरअसल ‘घर का रास्ता’ की एक से दूसरी कविता तक हमें अनुभवों, बिम्बों और जीवन-स्थितियों का एक ऐसा संसार मिलेगा कि हम रह-रहकर पहचानेंगे कि यह तो हमारा कितना अपना है।

    —प्रयाग शुक्ल

     

Ghar Ka Rasta

Ghar Ka Rasta

Mangalesh Dabral

150

₹ 120

Pratinidhi Kavitayen : Manglesh Dabral

  • Author Name:

    Mangalesh Dabral

  • Book Type:
  • Description: आलोकधन्वा कहते हैं कि ‘मंगलेश फूल की तरह नाज़ुक और पवित्र हैं।’ निश्चय ही स्वभाव की सचाई, कोमलता, संजीदगी, निस्पृहता और युयुत्सा उन्हें अपनी जड़ों से हासिल हुई है, पर इन मूल्यों को उन्होंने अपनी प्रतिश्रुति से अक्षुण्ण रखा है।
    मंगलेश डबराल की काव्यानुभूति की बनावट में उनके स्वभाव की केन्द्रीय भूमिका है। उनके अन्दाज़े-बयाँ में संकोच, मर्यादा और करुणा की एक लर्ज़िश है। एक आक्रामक, वाचाल और लालची समय में उन्होंने सफलता नहीं, सार्थकता को स्पृहणीय माना है और जब उनका मन्तव्य यह हो कि मनुष्य होना सबसे बड़ी सार्थकता है, तो ऐसा नहीं कि यह कोई आसान मकसद है, बल्कि सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि यह आसानी कितनी दुश्वार है।
Pratinidhi Kavitayen : Manglesh Dabral

Pratinidhi Kavitayen : Manglesh Dabral

Mangalesh Dabral

150

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