Vachaspati Gairola

Vachaspati Gairola

2 Books

Bhartiya Darshan

  • Author Name:

    Vachaspati Gairola

  • Book Type:
  • Description: दर्शनशास्त्र समस्त शास्त्रों का सार, मूल, तत्त्व या संग्राहक है। उसमें ब्रह्मविद्या, आत्मविद्या या पराविद्या, अध्यात्मविद्या, चित्तविद्या या अन्त:करणशास्त्र, तर्क या न्याय आचारशास्त्र या धर्म-मीमांसा, सौन्दर्यशास्त्र या कलाशास्त्र आदि सभी विषयों का परिपूर्ण शिक्षण-परीक्षण प्रस्तुत किया गया है।

    दर्शनशास्त्र आत्मविद्या, अध्यात्मविद्या, आन्वीक्षिकी, सब शास्त्रों का शास्त्र, सब विद्याओं का प्रदीप, सब व्यावहारिक सत्कर्मों का उपाय, दुष्कर्मों का उपाय और नैष्कर्म्य, अर्थात् अफलप्रेप्सु कर्म का साधक और इसी कारण से सब सद्-धर्मों का आश्रय और अन्तत: समूल दु:ख से मोक्ष देनेवाला है; क्योंकि सब पदार्थों के मूल हेतु को, आत्मा के स्वभाव को, पुरुष की प्रकृति को बताता है; और आत्मा, जीवात्मा तथा दोनों की एकता का, तौहीद का दर्शन कराता है।

    दर्शनशास्त्र का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। ‘जीवन’ और ‘दर्शन’ एक ही उद्देश्य के दो परिणाम हैं। दोनों का चरम लक्ष्य एक ही है; परम श्रेय (नि:श्रेयस) की खोज करना। उसी का सैद्धान्तिक रूप दर्शन है और व्यावहारिक रूप जीवन। जीवन की सर्वांगीणता के निर्माणक जो सूत्र, तन्तु या तत्त्व हैं, उन्हीं की व्याख्या करना दर्शन का अभिप्रेय है। दार्शनिक दृष्टि से जीवन पर विचार करने की एक निजी पद्धति है, अपने विशेष नियम हैं। इन नियमों और पद्धतियों के माध्यम से जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करना ही दर्शन का ध्येय है।

    सम्प्रति मुख्यत: छह आस्तिक दर्शनों—न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त तथा तीन नास्तिक दर्शनों—चार्वाक, बौद्ध और जैन को ही लिया जाता है। भारतीय दर्शन का जिन विभिन्न शाखाओं या सम्प्रदायों में विकास हुआ, यदि उनके आधार पर यह निश्चित किया जाए कि वे संख्या में कितने हैं तो इसका एक निश्चित उत्तर नहीं मिलेगा। प्राय: खंड दर्शन के आधार पर दर्शनों की संख्या छह मानी जाती है। भारतीय दर्शन की विभिन्न ज्ञान धाराओं का एक ही उद्गम और एक ही पर्यवसन है। उनकी अनेकता में एकता और उनकी विभिन्न दृष्टियाँ एक ही लक्ष्य का अनुसन्धान करती हैं।

    प्रस्तुत पुस्तक में वेद दर्शन, उपनिषद दर्शन, गीता दर्शन, चार्वाक दर्शन, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, न्याय दर्शन, वैशेषिक दर्शन, सांख्य दर्शन, योग दर्शन, मीमांसा दर्शन, अद्वैत दर्शन तथा रामानुज दर्शन का विस्तृत विवेचन किया गया है।

    आशा है, पुस्तक दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और पाठकों का मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।

Bhartiya Darshan

Bhartiya Darshan

Vachaspati Gairola

500

₹ 400

Bhartiya Chitrakala Ka Sanshipt Itihas

  • Author Name:

    Vachaspati Gairola

  • Book Type:
  • Description: प्रस्तुत पुस्तक ‘भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त इतिहास’ उसके पुराने कलेवर ‘भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त परिचय’ का सर्वथा नवीन और मौलिक रूप है। उसमें इस नाममात्र का ही नवीनीकरण नहीं किया गया है, अपितु विषय-सामग्री के आमूल परिवर्तन द्वारा उसको अधिकाधिक ग्राह्य एवं उपादेय बनाने का भी यथासम्भव प्रयत्न किया गया है। अध्येताओं की सुविधा के लिए विषय सामग्री के सन्दर्भ में बीच-बीच में और पुस्तक के अन्त में भी विभिन्न विवेचित शैलियों के प्रतिनिधि चित्रों को संयोजित कर दिया गया है। इस संस्करण में सर्वथा नई सामग्री को भी योजित कर दिया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय चित्रकला की प्राय: सभी प्रमुख शैलियों, उनकी परम्पराओं और शाखा-प्रशाखाओं का ऐतिहासिक क्रम से विस्तारपूर्वक निरूपण कर दिया गया है। प्रस्तुत पुस्तक को इस रूप में उपनिबद्ध करने का एकमात्र लक्ष्य यह रहा है कि भारतीय चित्रकला के अध्येताओं एवं छात्र-छात्राओं को उनके उद्देश्य की सामग्री एक साथ उपलब्ध हो सके। प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त, किन्तु प्रामाणिक एवं मौलिक ऐतिहासिक अध्ययन निरूपित किया गया है। कला और विशेष रूप से चित्रकला विषय माध्यमिक कक्षाओं से लेकर विश्वविद्यालय की स्नातकोत्तर कक्षाओं तक अध्ययन का विषय है। शिक्षा के क्षेत्र में उसकी अधिकाधिक उपयोगिता स्वीकार की गई है और इसलिए विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के छात्र-छात्राओं की उसके प्रति गहन अभिरुचि उत्पन्न हो रही है। शिक्षा के क्षेत्र में चित्रकला विषय की इस वर्द्धनशील अभिरुचि का कारण एकदेशीय तथा क्षेत्रीय नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक मानव समाज द्वारा उसको अधिकाधिक अपनाए जाने तथा मान्यता प्रदान किए जाने के फलस्वरूप उसके प्रभाव का क्षेत्र उत्तरोत्तर व्यापक होता जा रहा है। यूरोप के देशों के सामान्य समाज तथा शिक्षा के क्षेत्र, दोनों में चित्रकला के प्रति विशेष अभिरुचि के परिणामस्वरूप समस्त विश्व उससे प्रभावित है। वहाँ उसकी मानव जीवनोपयोगी उपलब्धियों पर गम्भीरतापूर्वक विचार हो रहा है। उसकी यह प्रभावकारी प्रतिक्रिया विश्व के अनेक प्रगतिशील देशों पर त्वरित गति से चरितार्थ हो रही है और सम्भवत: यही कारण है कि आज के इतिहासकार तथा कलानुसन्धायक विद्वान नए मान-मूल्यों के आधार पर उसका पुनर्मूल्यांकन करने की दिशा में सचेष्ट एवं अग्रसर हैं। जहाँ तक भारत का सम्बन्ध है, वहाँ भी कला के विश्वजनीन पुनर्मूल्यांकन और उसके ऐतिहासिक अवेक्षण की दिशा में जागरूकता परिलक्षित हो रही है। सर्वविदित है कि अतीतकालीन भारत में कला के मानवतावादी पक्ष पर व्यापक रूप से गम्भीर विचार हुआ है। उसके विचारों में भले ही भिन्नता रही हो; किन्तु लक्ष्य की एकात्मकता में कोई सन्देह नहीं है। आधुनिक विश्व ने इस दिशा में जो प्रगति की है, चिन्तन और विचार के क्षेत्र में जिन मान-मूल्यों का निर्धारण किया है, उनसे मौलिक रूप में भारतीय दृष्टिकोण की तारतम्यता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। हिन्दी में भारतीय चित्रकला विषयक ऐसी पुस्तकों की प्राय: कमी है, जो अपने-आप में सर्वांगीण हों और सहज रूप में सर्वसामान्य को सुलभ हो सकें। विश्वास है कि पुस्तक से जिज्ञासु पाठकों की यह असुविधा दूर हो सकेगी। इस पुस्तक को अनेक विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में निर्धारित किया है। उत्तर प्रदेश तथा बिहार शिक्षा निदेशालयों ने भी इसे अपने उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों तथा प्रशिक्षण-केन्द्रों के पुस्तकालयों के लिए स्वीकृत किया है। इसके अतिरिक्त सम्मान्य अध्यापक वर्ग और छात्र-छात्राओं ने भी इसे व्यापक रूप से अपनाया है। उन्हीं के प्रोत्साहन और प्रेरणाप्रद निर्देशन के फलस्वरूप यह संस्करण इस रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
Bhartiya Chitrakala Ka Sanshipt Itihas

Bhartiya Chitrakala Ka Sanshipt Itihas

Vachaspati Gairola

325

₹ 260

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