Tulsi ram

Tulsi ram

2 Books

Murdahiya

  • Author Name:

    Tulsi ram

  • Book Type:
  • Description: ‘मुर्दहिया’ हमारे गाँव धरमपुर (आज़मगढ़) की बहुद्देशीय कर्मस्थली थी। चरवाही से लेकर हरवाही तक के सारे रास्ते वहीं से गुज़रते थे। इतना ही नहीं, स्कूल हो या दुकान, बाज़ार हो या मन्दिर, यहाँ तक कि मज़दूरी के लिए कलकत्ता वाली रेलगाड़ी पकड़ना हो, तो भी मुर्दहिया से ही गुज़रना पड़ता था। हमारे गाँव की ‘जिओ-पॉलिटिक्स’ यानी ‘भू-राजनीति’ में दलितों के लिए मुर्दहिया एक सामरिक केन्द्र जैसी थी। जीवन से लेकर मरन तक की सारी गतिविधियाँ मुर्दहिया समेट लेती थी। सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुर्दहिया मानव और पशु में कोई फ़र्क़ नहीं करती थी। वह दोनों की मुक्तिदाता थी। विशेष रूप से मरे हुए पशुओं के मांसपिंड पर जूझते सैकड़ों गिद्धों के साथ कुत्ते और सियार मुर्दहिया को एक कला-स्थली के रूप में बदल देते थे। रात के समय इन्हीं सियारों की ‘हुआँ-हुआँ’ वाली आवाज़ उसकी निर्जनता को भंग कर देती थी। हमारी दलित बस्ती के अनगिनत दलित हज़ारों दु:ख-दर्द अपने अन्‍दर लिए मुर्दहिया में दफ़न हो गए थे। यदि उनमें से किसी की भी आत्मकथा लिखी जाती, उसका शीर्षक ‘मुर्दहिया’ ही होता। मुर्दहिया सही मायनों में हमारी दलित बस्ती की ज़‍िन्‍दगी थी। ज़माना चाहे जो भी हो, मेरे जैसा कोई अदना जब भी पैदा होता है, वह अपने इर्द-गिर्द घूमते लोक-जीवन का हिस्सा बन ही जाता है। यही कारण था कि लोकजीवन हमेशा मेरा पीछा करता रहा। परिणामस्वरूप मेरे घर से भागने के बाद जब ‘मुर्दहिया’ का प्रथम खंड समाप्त हो जाता है, तो गाँव के हर किसी के मुख से निकले पहले शब्द से तुकबन्‍दी बनाकर गानेवाले जोगीबाबा, लक्कड़ ध्वनि पर नृत्यकला बिखेरती नटिनिया, गिद्ध-प्रेमी पग्गल बाबा तथा सिंघा बजाता बंकिया डोम जैसे जिन्दा लोक पात्र हमेशा के लिए गायब होकर मुझे बड़ा दु:ख पहुँचाते हैं। —भूमिका से
Murdahiya

Murdahiya

Tulsi ram

250

₹ 200

Manikarnika

  • Author Name:

    Tulsi ram

  • Book Type:
  • Description: ‘मणिकर्णिका’ डॉ. तुलसी राम की आत्मकथा का दूसरा खंड है। पहला खंड ‘मुर्दहिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि ‘मुर्दहिया’ को हिन्‍दी जगत की महत्तपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया गया। साहित्य और समाज विज्ञान से जुड़े पाठकों, आलोचकों व शोधकर्ताओं ने इस रचना के विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया। शीर्षस्थ आलोचक डॉ. नामवर सिंह के अनुसार ग्रामीण जीवन का जो जीवन्‍त वर्णन ‘मुर्दहिया’ में है, वैसा प्रेमचन्‍द की रचनाओ में भी नहीं मिलता। ‘मणिकर्णिका’ में ‘मुर्दहिया’ के आगे का जीवन है। आज़मगढ़ से निकलकर लेखक ने क़रीब 10 साल बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में बिताए। बनारस में आने पर जीवन के अन्‍त की प्रतीक ‘मणिकर्णिका’ से ही लेखक का जैसे नया जीवन शुरू हुआ। लेखक के शब्दों में ‘गंगा के घाटों तथा बनारस के मन्दिरों से जो यात्रा शुरू हुई थी, अन्ततोगत्वा वह कम्युनिस्ट पार्टी के दफ़्तर में समाप्त हो गई। मार्क्सवाद ने मुझे विश्व-दृष्टि प्रदान की, जिसके चलते मेरा व्यक्तिगत दुःख दुनिया के दुःख में मिलकर अपना अस्तित्व खो बैठा। मुर्दहिया में जो विचार सुप्त अवस्था में थे, वे ‘मणिकर्णिका’ में विकसित हुए।’ लेखक ने अपने जीवनानुभवों का वर्णन करते हुए उस ख़ास समय को भी विश्लेषित किया है जिसके भीतर प्रवृत्तियों का सघन संघर्ष चल रहा था। बनारस जैसे इस कृति के पृष्ठों पर जीवन्‍त हो उठा है। इस स्मृति-आख्यान में कलकत्ता भी है, अनेक वैचारिक सन्‍दर्भों के साथ। ‘मणिकर्णिका; डॉ. तुलसी राम के जीवन-संघर्ष की ऐसी महागाथा है जिसमें भारतीय समाज की अनेक संरचनाएँ स्वतः उद्घाटित होती जाती हैं।
Manikarnika

Manikarnika

Tulsi ram

299

₹ 239.2

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