Satyendra Kumar Teneja
Sitam Ki Intiha Kya Hai
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Satyendra Kumar Teneja
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‘सितम की इन्तिहा क्या है’ पुस्तक का स्थायी-भाव यह है कि मुक्ति-संग्राम की संघर्ष-यात्रा में क्या ‘शब्द’ की कोई असरदार भूमिका रही? इसका सीधा-सपाट उत्तर यही होगा कि नहीं। परन्तु ज़ब्तशुदा साहित्य का इतिहास इस राय की पुष्टि नहीं करता। उस दौर की केवल ज़ब्तशुदा नाट्य-कृतियों की सबल उपस्थिति ही चुनौती बनकर सामने मौजूद है। भारत के पहले ज़ब्तशुदा नाटक ‘नीलदर्पण’ (बांग्ला) अर्थात् शब्द की लिखित शक्ति ने ब्रिटिश शासन को सकते में डाल दिया; शब्द की वाचन-सम्भावनाओं—अर्थात् अभिनय द्वारा भावोत्तेजना उत्पन्न करना—का तो अनुमान लगाना कभी मुमकिन नहीं रहा। अभिनेता-निर्देशक गिरीश घोष जैसे कलाकारों की इस विलक्षण क्षमता से घबराई ब्रिटिश सरकार को ‘ड्रामैटिक परफ़ारमेंस एक्ट’ लागू करना पड़ा। इस पृष्ठभूमि में यह कहना अत्युक्ति न होगी कि ‘सितम की इन्तिहा क्या है’ दुर्लभ अभिलेखों की एक ऐसी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है जिसमें एक अछूते विषय का पहली बार वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन हुआ है।
इस पुस्तक की कुछ विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं। इस पुस्तक में जिन सात ज़ब्तशुदा हिन्दी नाटकों को प्रकाशित किया जा रहा है, हिन्दी नाट्य-जगत उनका पहली बार साक्षात्कार करेगा; दूसरे, देश-विदेश से दुर्लभ अभिलेखों की खोज से मिली इन नाट्य-कृतियों, उनके लेखकों का यथेष्ट विश्लेषण एवं उन्हें हर पहलू से देखा-परखा गया है।
इस पुस्तक के पहले दो खंड इस मूल सवाल का सामना करते हैं कि इन मामूली लेखकों में इतनी विद्रोही-वृत्ति कैसे पैदा हुई कि उनकी कृतियों पर प्रतिबन्ध लगाने पड़े? व्यापक फलक पर इसका ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक था। 19वीं सदी और 20वीं सदी के 30 के दशक तक की 24 विप्लवधर्मी विभूतियों के उन विचारों या अवधारणाओं का आकलन भी इसमें किया गया है जिनमें अपने-अपने प्रकार से जीवन या समाज या राजनीति में आमूल बदलाव के आवेग या प्रतिकार या राजद्रोह की चिनगारियाँ थीं।
पुस्तक में समाहित तत्कालीन पत्रिकाओं-पुस्तकों में प्रयुक्त, मुखपृष्ठों, चित्रों, रेखांकनों की प्रस्तुति इसे और अधिक उपयोगी बनाती है।