Pt. Vijay Shankar Mehta
Pitamaha Bhishma
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Pitamaha Bhishma
Pt. Vijay Shankar Mehta
Jeena Sikhati hai Ramkatha
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Jeena Sikhati hai Ramkatha
Pt. Vijay Shankar Mehta
Purushottam Parashuram
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Purushottam Parashuram
Pt. Vijay Shankar Mehta
EK SHAM PARIVAR KE NAAM
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EK SHAM PARIVAR KE NAAM
Pt. Vijay Shankar Mehta
Satya-Vrat Katha
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Pt. Vijay Shankar Mehta
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यह प्रबन्धन का युग है। हर क्षेत्र में हर बात में प्रबन्धन है। जीवन में सफलता अर्जित करने के जितने सूत्र हैं, उनमें से एक प्रमुख है सत्य और सत्य का भी अपना प्रबन्धन होता है। वैसे तो ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ बहुत प्राचीन है लेकिन इसमें प्रबन्धन के जो सूत्र आए हैं, वे बिलकुल नवीन हैं, आज के लिए उपयोगी हैं और हर क्षेत्र में सफलता को सुनिश्चित करते हैं। इस कथा में पाँच अध्याय हैं और प्रत्येक में प्रबन्धन के गूढ़ सूत्र हैं। पहले अध्याय में सेवा प्रबन्धन, दूसरे में सम्पत्ति प्रबन्धन, तीसरे में सन्तान प्रबन्धन, चौथे में संघर्ष प्रबन्धन और पाँचवें में संस्कार प्रबन्धन को देखा जा सकता है।
हम देख रहे हैं कि वर्षों से अनेक परिवारों में, कई स्थानों पर ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ हो रही है। हमने ही इसको एक पारम्परिक, पारिवारिक और सामान्य-सा धार्मिक आयोजन बना दिया है। या तो हम स्वयं कथा करते हैं या किसी विद्वान् से करवाते हैं। पंडित जी आते हैं, संस्कृत या हिन्दी में कथा करते हैं। घर की महिलाएँ रसोईघर में प्रसाद बनाने में व्यस्त रहती हैं। बच्चे इस दिन जितना हो सके उपद्रव कर लेते हैं। यजमान या तो फ़ोन सुनेंगे या कौन आया, कौन नहीं आया यह सब देखने में ही उनका समय बीत जाता है। कथा आरम्भ होती है, कथा समाप्त हो जाती है। हमने इसको एकत्र साधारण-सा आयोजन बना दिया है। यह कथा ऐसी सामान्य कथा नहीं है। इस कथा के पीछे भाव यह है कि जीवन में ‘सत्य’ उतरे। इस कथा में दो प्रमुख विषय हैं। एक है संकल्प की विस्मृति और दूसरा है प्रसाद का अपमान। संकल्प की विस्मृति और प्रसाद का अपमान ये दो थीम हैं, जिनके आसपास यह कथा चलती है। संकल्प, जीवन में सत्य उतारने का। इसका प्रसाद क्या है? क्या पंजीरी या शुद्ध घी में बना हुआ हलवा...? वास्तव में ‘श्रीसत्यनारायणव्रतकथा’ का प्रसाद है ‘सत्य’।
तो जीवन में जो भी सत्य को विस्मृत करेगा, जब-जब भी उसको भूल जाएगा, तब-तब परेशानी में पड़ेगा। जीवन में जब-जब भी हम सत्य के प्रसाद का अपमान करेंगे यानी सत्य का अपमान करेंगे, तब-तब हम अपने-आप को संकट में पाएँगे। इस कथा में जो प्रसंग आए हैं यदि उनके भाव को ठीक से समझा जाए तो स्पष्ट सन्देश निकलकर आता है कि यह सत्य के अन्वेषण की कथा है। इसमें विशेषता है कि सत्य के साथ नारायण जोड़े गए हैं। सत्य को नारायण का भगवान् का टेका, सहारा, आधार और बल दिया गया है।
Satya-Vrat Katha
Pt. Vijay Shankar Mehta
Jeevan Prabandhan : Kripa Karahu Guru Dev Ki Naain
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करोड़ों लोगों के लिए ‘श्रीहनुमान चालीसा’ नित्य परायण का साधन है। कइयों को यह कण्ठस्थ है पर अधिकांश ने यह जानने का प्रयत्न नहीं किया होगा कि इन पंक्तियों का गूढ़ अर्थ क्या है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपना सारा साहित्य प्रभु को साक्षात् सामने रखकर लिखा है। उनका सारा सृजन एक तरह से वार्तालाप है। श्रीहनुमान जी से उनकी ऐसी ही एक निजी बातचीत का एक लोकप्रिय जनस्वीकृत नाम है ‘श्रीहनुमान चालीसा।'
आज के मानव के लिए अच्छा, सहज, सरल और सफल जीवन जीने के सारे संकेत हैं इस चालीसा में। ज्ञान के सागर में डुबकी लगाकर, भक्ति के मार्ग पर चलते हुए, निष्काम कार्य–योग को कैसे साधा जाए, जीवन में इसका सन्तुलन बनाती है ‘श्रीहनुमान चालीसा’।
जिसे पढ़ने के बाद यह समझ में आ जाता है कि श्रीहनुमान जीवन–प्रबन्धन के गुरु हैं।
जीवन–प्रबन्धन का आधार है स्वभाव और व्यवहार। आज के समय में बच्चों को जो सिखाया जा रहा है, युवा जिस पर चल रहे हैं, प्रौढ़ जिसे जी रहे हैं और वृद्धावस्था जिसमें अपना जीवन काट रही है, वह समूचा प्रबन्धन ‘व्यवहार’ पर आधारित है। जबकि जीवन–प्रबन्धन के मामले में ‘श्रीहनुमान चालीसा’ ‘स्वभाव’ पर जोर देती है।
व्यवहार से स्वभाव बनना आज के समय की रीत है, जबकि होना चाहिए स्वभाव से व्यवहार बने। जिसका स्वभाव सधा है, उसका हर व्यवहार सर्वप्रिय और सर्वस्वीकृत होता है। स्वभाव को कैसे साधा जाए, ऐसे जीवन–प्रबन्धन के सारे सूत्र हैं ‘श्रीहनुमान चालीसा’ की प्रत्येक पंक्ति में...
Jeevan Prabandhan : Kripa Karahu Guru Dev Ki Naain
Pt. Vijay Shankar Mehta
Jeene Ki Raah Ke 125 Sootra
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Pt. Vijay Shankar Mehta
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- Description: इस पुस्तक में निरूपित 125 सूत्र आपको ‘जीने की राह’ दिखा सकते हैं। यह शब्दों में व्यक्त विचार मात्र नहीं, बल्कि मानव जीवन के पूरे दर्शन और परंपराओं का निचोड़ प्रस्तुत करते हैं। वैसे तो किसी भी समस्या को ठीक से समझ लेना ही उसका सबसे बड़ा निदान है। जीने की राह का मतलब ही है कि हर कदम पर समस्या आएगी, लेकिन साथ में समाधान भी लाएगी। कितना ही बड़ा दुःख या परेशानी आए, जीवन रुकना नहीं चाहिए। यह पुस्तक अपने भीतर के आत्मबल को जाग्रत् कर, सेवा, सत्य, परोपकार और अहिंसा आदि जीवनमूल्यों को जगाने की सामर्थ्य रखती है। इसके अध्ययन से सद्प्रवृत्ति विकसित होगी, सद्विचार मुखर होंगे और हम आनंद, संतोष और सार्थक जीवन जी पाएँगे। जीवन को सरल-सहज बनाने के व्यावहारिक सूत्र बताती पठनीय पुस्तक।
Jeene Ki Raah Ke 125 Sootra
Pt. Vijay Shankar Mehta
Kamyab Hona Hi Hai
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Pt. Vijay Shankar Mehta
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- Description: ‘कामयाब होना ही है’ विद्यार्थियों के लिए एक अत्यंत प्रेरक और मार्गदर्शक पुस्तक है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए केवल किताबी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है; बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान भी उतना ही आवश्यक है क्योंकि इन्हीं में सारे सांसारिक ज्ञान निहित हैं। इनका अनुसरण और अनुपालन कर प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, व्यावहारिक—हर स्तर पर मनचाही सफलता हासिल कर सकता है। इस पुस्तक में विद्यार्थियों के शैक्षिक विकास के साथ-साथ मानसिक व भावनात्मक विकास हेतु छोटे-छोटे रोचक व प्रेरक प्रसंग दिए गए हैं, जो कथा-किस्सों के माध्यम से उनके सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं। विद्यार्थियों के लिए एक उपयोगी और संग्रहणीय पुस्तक, जो जीवन के प्रत्येक कदम पर उनकी सभी समस्याओं व कठिनाइयों का त्वरित हल प्रस्तुत करने को सदैव तत्पर रहेगी। सफलता के नए सोपान खोलनेवाली पठनीय प्रेरक पुस्तक।
Kamyab Hona Hi Hai
Pt. Vijay Shankar Mehta
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