Mahendra Mishra
Bagdad Se Ek Khat
- Author Name:
Mahendra Mishra
-
Book Type:

- Description: अपने समय से संवाद करती ये कविताएँ कवि महेन्द्र मिश्र के लम्बे प्रशासकीय मौन के बाद सामने आ रही हैं। आज से कोई चौबीस वर्ष पहले उनका पहला काव्य-संकलन आया था—‘अनायास वर्षा’। तब से बहुत कुछ घटित हो चुका है दुनिया में और काव्य का परिदृश्य भी वही नहीं है, जो उस समय था। इन कविताओं से गुज़रते हुए मैंने अनुभव किया कि इस संग्रह के रचयिता ने इस बीच के लगभग सारे सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को अपनी चेतना में जज़्ब करने के बाद वह वस्तु-फ़लक तैयार किया है, जिससे इस कृति को आकार मिलता है। यह बौद्धिक रूप से एक अत्यन्त सजग रचनाकार की रचना है—जिसे अपने से की गई एक लम्बी बहस भी कहा जा सकता है। वस्तुतः इस किताब का नाम ‘बग़दाद से एक ख़त’ वह संकेतक है, जो इन कविताओं के ‘टोन’ का निर्धारण करता है। मुझे अच्छा लगा कि वैचारिक आवेग वाली लम्बी कविताओं के साथ-साथ यहाँ कुछ अपेक्षाकृत छोटी कविताएँ भी हैं—जैसे ‘वह लड़का’ और ‘नदी’ जो अलग ढंग की कविताएँ हैं और पाठक से सीधे संवाद करती हैं। यह भरा-पूरा संग्रह प्रमाण है कि अपनी प्रशासकीय उलझनों में चाहे इस कवि ने कविता का साथ—अस्थायी रूप से—छोड़ दिया हो, पर कविता ने अपने इस ‘पुराने प्रेमी’ का साथ कभी नहीं छोड़ा। — केदारनाथ सिंह
Bagdad Se Ek Khat
Mahendra Mishra
Satyajit Rai: Pather Panchali Aur Film Jagat
- Author Name:
Mahendra Mishra
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Book Type:

- Description:
‘सत्यजित राय : पथेर पांचाली और फ़िल्म जगत्’ यह पुस्तक ‘पथेर पांचाली’ जैसी कालजयी फ़िल्म के बहाने इस महान सिने-निर्देशक के कला-कर्म को जानने-समझने की सच्ची और गहरी कोशिश से पैदा हुई एक ऐसी कृति है, जिसे हिन्दी में एक नई शुरुआत की तरह देखा जा सकता है। इस पुस्तक को पढ़ना सिर्फ़ एक वैचारिक फ़िल्मी दस्तावेज़ से गुज़रना नहीं, बल्कि एक अनुभव-समृद्ध विवेकशील गाइड के साथ सत्यजित राय के रंगारंग कला-संसार के उन अनेक कोनों और गलियारों से गुज़रना है, जिन्हें बहुतों ने देखा नहीं और जिन्होंने देखा, वे लगभग भूल चुके हैं। अस्तु, यह कृति दोनों ही कार्यों को पूरा करती है—नए पाठकों को यहाँ एक महान कला-सर्जक से परिचित होने का सुख मिलेगा और पुरानों को अभिज्ञान का एक विलक्षण आनन्द।
इस पुस्तक के लेखक महेन्द्र मिश्र की पहली विशेषता तो यही है कि वे पेशेवर अर्थ में फ़िल्म-समीक्षक नहीं हैं। वस्तुतः वे प्रकृति से कवि-विचारक हैं, कर्म से एक अनुभव-सिद्ध पूर्व प्रशासक और रुचि से एक गहरे फ़िल्म-प्रेमी। इसीलिए पूरी पुस्तक की भाषा और व्याख्या-विश्लेषण में एक सहज अनौपचारिकता की गंध मिलेगी, जो इसे इस प्रकार के समस्त लेखन से भिन्न और विशिष्ट बनाती है। असल में यह पुस्तक सत्यजित राय के वृहत् कला-संसार की ओर खुलनेवाली एक खिड़की है—सम्भवतः हिन्दी की पहली ऐसी खिड़की, जिससे आती हुई रोशनी पर भरोसा किया जा सकता है। यह रोशनी पाठकों तक पहुँचेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
—केदारनाथ सिंह