Hemant Kukreti
Bharat Ki Lok Sanskriti
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Hemant Kukreti
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Bharat Ki Lok Sanskriti
Hemant Kukreti
Aadikaleen Aur Madhyakaleen kaviyon Ka Aalochanatmak Paath
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Hemant Kukreti
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भारतीय जनमानस में अगर धर्म के बाद किसी भावना को बहुत साफ़ ढंग से देखा जा सकता है, तो वह कविता-प्रेम है। यही कारण है कि भारत में साहित्य की अन्य विधाओं के सापेक्ष कविता की परम्परा न सिर्फ़ बहुत लम्बी, गहरी और व्यापक रही है, बल्कि उसने भारतीय समाज के विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक युगों को वाणी भी दी है। यही नहीं उसने एक सामाजिक शक्ति के रूप में अपनी निर्णायक भूमिका भी निभाई है।
इस पुस्तक में हिन्दी कविता के दो आरम्भिक और महत्त्वपूर्ण युगों का विवेचन किया गया है, एक आदिकाल और दूसरा मध्यकाल। अब तक उपलब्ध सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी कविता का उद्भव सातवीं-आठवीं शताब्दी के आसपास हुआ जिसकी पृष्ठभूमि में पालि, प्राकृत और अपभ्रंश का बड़ा योगदान है। आदिकालीन काव्य में अपभ्रंश का बहुत रचनात्मक इस्तेमाल मिलता है। इस दौर की कविता की मूल संवेदना भक्ति, प्रेम, शौर्य, वैराग्य और नीति आदि से मिल-जुलकर बनी है।
आदिकालीन काव्य के बाद भक्तियुग में कबीर, सूर, तुलसी तथा जायसी जैसे महान कवियों की अगुआई में काव्य रचा गया। संवेदना और शील की दृष्टि से इस युग में भी कई काव्य-धाराएँ मौजूद थीं। सन्त कवियों की वाणी की व्याप्ति दूर-दूर तक थी। ये लोग अक्सर भ्रमणरत रहते थे, इसलिए इनकी भाषा में बहुत विविधता मिलती है।
इस पुस्तक में इन दोनों युगों की कविता की विस्तार से, तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में विवेचना की गई है। दोनों युगों के महत्त्वपूर्ण कवियों की रचनाओं, उनके जीवन-वृत्त और उनके युग की विशेषताओं की जानकारी से समृद्ध इस पुस्तक से छात्रों को निश्चय ही अत्यन्त लाभ होगा। हिन्दी साहित्य के विद्वान और महत्त्वपूर्ण कवि हेमंत कुकरेती ने अपने अध्यापन-अनुभव को समेटते हुए इस पुस्तक को छात्रों के लिए उपादेय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
Aadikaleen Aur Madhyakaleen kaviyon Ka Aalochanatmak Paath
Hemant Kukreti
Gandhi-Darshan : Alochnatmak Adhyayan
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Hemant Kukreti
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गांधी के नाम के आगे और बाद में लगे तमाम विशेषण—महात्मा, महामानव, अतिमानव इत्यादि उनके विराट व्यक्तित्व और कृतित्व के सामने अधूरे और अपर्याप्त हैं। उन्होंने भारत जैसे महादेश ही नहीं, समूची दुनिया को अपने जीवनकाल में गहरे प्रभावित किया और जीते-जी निजंधरी नायक बन गए। गांधी को हुए डेढ़ सदी बीत गई और कई सदियाँ बीत जाएँगी—गांधी का गांधीत्व बरकरार रहेगा और लगातार विकसित होता रहेगा। गांधी ने विधिवत् कुछ नहीं लिखा लेकिन भारत की राजनीति, अर्थनीति, संस्कृति, स्त्री और दलित-विमर्श, शिक्षा-नीति, दर्शन—कहना न होगा, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को गहरे प्रभावित किया है। आज उनके कहे और लिखे शब्दों के माध्यम से गांधी-दर्शन आकार ले चुका है। दुनिया-भर में उनके काम की प्रासंगिकता की पड़ताल हो रही है। ऐसा ही कुछ काम इस किताब में हेमंत कुकरेती ने किया है। वे प्रसिद्ध कवि हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहासकार हैं। सुधी आलोचक हैं। साहित्य के मर्मज्ञ अध्यापक हैं। उन्होंने एक पाठक के नज़रिए से गांधी को समझने और समझाने की कोशिश की है। यह हमारे समय के एक सुकवि का सुललित, सुगठित और सुचिन्तित गद्य है। इसलिए वैचारिक विश्लेषण होने के बावजूद इसमें अद्भुत पठनीयता है।
हेमंत कुकरेती ने गांधी-दर्शन की आलोचनात्मक कमेंट्री करते हुए गांधी की राष्ट्र-परिकल्पना, स्वराज, स्वदेशी, सत्याग्रह, अहिंसा, ग्रामोद्योग, रामराज्य जैसी अवधारणाओं के आधार पर गांधी के अर्थदर्शन, राजनीतिक सोच, उनकी दलित चिन्ता, शिक्षा का वर्तमान परिदृश्य, वर्ण-व्यवस्था, स्त्री-जीवन के सवाल यानी गांधीवाद को जिस बौद्धिक संवेदनशीलता के साथ परखा है, वह गांधी और उनके दर्शन को आसानी से समझा देता है। इस नज़रिए से यह किताब आकार में दीर्घकाय न होने के बाद भी साधारण पाठ्य-पुस्तक से आगे बढ़कर गांधी विषयक सन्दर्भ-ग्रन्थ बन गई है। —प्रताप सहगल
Gandhi-Darshan : Alochnatmak Adhyayan
Hemant Kukreti
Hindi Bhasha Aur Sahitya ka VastunishthA Itihas
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Hemant Kukreti +1
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- Description: भा और साहित्य के सवाल विषयनिष्ठ होते हैं। उनके किसी पक्ष पर सर्वसम्मत निष्कर्ष देना अत्यंत कठिन है। रचनाकारों के इतिवृत्त से जुडे़ जन्म एवं पुण्य तिथि, जन्म स्थान इत्यादि स्थूल तथ्य हों या उनके कृतित्व से जुडे़ गंभीर प्रश्न हों—उनके सीधे-सपष्ट और प्रत्यक्ष उत्तर भी कई बार विद्वानों, साहित्य-अध्येताओं और पाठकों को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि साहित्य जैसी कलाओं में व्यक्तिगत अभिरुचियों की गुंजाइश सबसे ज्यादा होती है। इन सब जोखिमों के बाद भी हम हिंदी साहित्य के वस्तुनिष्ठ इतिहास के साथ साहित्य-मर्मज्ञों और हिंदी विषय लेकर आजीविका अर्जित करने की इच्छा रखनेवाले विपुल युवा समाज के सम्मुख उपस्थित हैं। प्रस्तुत पुस्तक में वस्तुनिष्ठ विवेचन होते हुए भी प्रत्येक युग का साहित्य परिवेश, प्रमुख रचनाकारों का योगदान, युगीन साहित्यिक विशेषताएँ, आलोचकों, साहित्येतिहासकारों एवं रचनाकारों के चर्चित मत, परिभाषाओं और हिंदी साहित्य की अंतर्वर्ती ऐतिहासिक निरंतरता विश्लेषित कर प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत किया गया है। इससे विषय को समझने में सुगमता रहती है। विद्यार्थी-शोधार्थी ही नहीं, हर आयुवर्ग के पाठकों के लिए एक उपयोगी पुस्तक।
Hindi Bhasha Aur Sahitya ka VastunishthA Itihas
Hemant Kukreti
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