Pratyancha
Author:
SanjeevPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Historical-fiction0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
‘प्रत्यंचा’ एक युगप्रवर्तक राजा की जीवनगाथा है जिन्हें कोई लोकराजा कहता, कोई राजर्षि तो कोई सनकी। प्रारम्भ में उन्हें भी गुमान रहा कि वे छत्रपति हैं, क्षत्रिय कुलावतंस... लेकिन जिस दिन उन्हीं के अधीनस्थ एक पुरोहित ने उनका गर्व खर्व कर दिया कि तुम शूद्र हो, सिर्फ शूद्र, वे आसमान से सीधे जमीन पर आ गए। तुर्रा यह कि अधिसंख्य विप्र वर्ग भी उसी पतित पुरोहित के पक्ष में खड़ा था। फिर तो राजा ने उठा लिया अपना अमोघ अस्त्र!
यह लड़ाई दूसरी लड़ाइयों से ज्यादा विकट और उलझी हुई थी। प्रकट युद्ध में शत्रु सामने होता है, लेकिन यहाँ वह घर-परिवार और सदियों-सहस्राब्दियों से व्यक्ति—व्यक्ति के मन-मस्तिष्क तक में समाया हुआ था। जब एक राजा के साथ वे ऐसा कर सकते हैं तो सामान्य जन की क्या बिसात!
शाहूजी का जीवन खुद को और समाज को वर्गविहीन और जातिविहीन करने तथा सबको सामाजिक न्याय दिलाने के सतत संघर्ष का साक्ष्य है। उन्होंने अपनी त्रासदी को एक मुहूर्त और व्यक्तिमात्र में न देखकर पूरी शास्त्रीय और सांस्कृतिक परम्परा में देखा और इस सामूहिक त्रासदी की मर्मान्तक घुटन और पीड़ा को सामूहिक मुक्ति में बदलने की जिद के तहत उलटे नियमों को उलटकर जाति-उच्छेद और सामाजिक परिवर्तन का बीड़ा उठाया।
प्रत्यंचा अर्थात दोतरफा तनावों के बीच लक्ष्य का सन्धान! प्रत्यंचा अर्थात पराक्रम और प्रहार की प्रदीप्त दास्तान! प्रत्यंचा अर्थात दुर्दम्य प्रत्याख्यान का अभिनव आख्यान!
ISBN: 9789360867423
Pages: 264
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Vinayak Damodar Savarkar
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- Description: भारतीय वाड.मय में सावरकर साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता, अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्ट करने का आग्रह रखनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने इस ग्रंथ में भारतीय इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली है। विद्वानों में सावरकर लिखित इतिहास जितना प्रामाणिक और निष्पक्ष माना गया है उतना अन्य लेखकों का नहीं। प्रस्तुत ग्रंथ ‘छह स्वर्णिम पृष्ठ’ में हिंदू राष्ट्र के इतिहास का प्रथम स्वर्णिम पृष्ठ है यवन-विजेता सम्राट् चंद्रगुप्त की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ, यवनांतक सम्राट् पुष्यमित्र की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ भारतीय इतिहास का द्वितीय स्वर्णिम पृष्ठ, सम्राट् विक्रमादित्य की राजमुद्रा से अंकित पृष्ठ इतिहास का तृतीय स्वर्णिम पृष्ठ है। हूणांतक राजा यशोधर्मा के पराक्रम से उद्दीप्त पृष्ठ इतिहास का चतुर्थ स्वर्णिम पृष्ठ, मुसलिम शासकों के साथ निरंतर चलते संघर्ष और उसमें मराठों द्वारा मुसलिम सत्ता के अंत को हिंदू इतिहास का पंचम स्वर्णिम पृष्ठ कह सकते हैं और अंतिम स्वर्णिम पृष्ठ है अंग्रेजी सत्ता को उखाड़कर स्वातंत्र्य प्राप्त करना। विश्वास है, क्रांतिवीर सावरकर के पूर्व ग्रंथों की भाँति इस ग्रंथ का भी भरपूर स्वागत होगा। सुधी पाठक भारतीय इतिहास का सम्यक् रूप में अध्ययन कर इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं और घटनाओं से परिचित होंगे।
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