Kanaila Ki Katha

Kanaila Ki Katha

Language:

Hindi

Pages:

152

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

304 mins

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Book Description

‘कनैला की कथा’ ग्राम केन्द्रित जनपदीय इतिहास को सँजोने का अन्यतम उदाहरण है। सभ्यता–संस्कृति की प्राचीनता ने भारत को इतिहास की विशिष्ट विरासत सौंपी है। अतीत के प्रसिद्ध स्थान और स्मारक ही इस विरासत के अकेले वाहक नहीं हैं। गाँव-गाँव में यह विरासत बिखरी पड़ी है। हाँ, यह अवश्य हुआ है कि प्रायः अज्ञानता और उदासीनता के कारण यह विरासत उपेक्षित पड़ी रही और समय गुजरने के साथ ओझल होती चली गई। यह पुस्तक लिखकर राहुल सांकृत्यायन ने उस विरासत के एक हिस्से को अन्धकार से बाहर निकाला और वह रास्ता दिखाया जिस पर चलकर अन्य ग्रामों–कस्बों की कथाएँ भी सँजोई जा सकती हैं, जिससे हमारा इतिहास समृद्ध हो सकता है। इस पुस्तक में राहुल ने अपने पितृग्राम कनैला का ऐतिहासिक-भौगोलिक चित्र प्रस्तुत किया है, जिसका एक सिरा ईसा से तेरह सौ वर्ष पूर्व से जुड़ता है तो दूसरा सिरा बीसवीं सदी के उत्तरार्ध से। इतनी लम्बी कालावधि को कथा के रूप में समेटते हुए स्थानीय सभ्यता-संस्कृति की ऐतिहासिकता का पूरा ध्यान रखा गया है। इस तरह जो चित्र उभरता है वह पाठक को सामाजिक-सांस्कृतिक रूपान्तरों की एक दिलचस्प शृंखला से रू-ब-रू कराता है। वस्तुतः अपनी दूसरी कृतियों की तरह राहुल ने ‘कनैला की कथा’ में भी लेखन का एक अलग ही प्रतिमान रचा है। इतिहास और कथा का जैसा रोचक संयोग इस पुस्तक में घटित हुआ है वैसा किसी और कृति में देख पाना दुर्लभ है।

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