Main Koi Aur
Author:
PadmajaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
स्मृतिलोप से स्मृतियुक्त समय में वापसी का आख्यान या कुछ पुराने और बहुत कुछ नए बनते अनुभव-संसार में जीने की डायरी।
वर्तनी और व्याकरण के फ़्रेम से बाहर, जीवन की चालढाल में बनती हुई भाषा में लिखी गई यह किताब–‘मैं कोई और’–जीवन संघर्ष का गद्य है। अविश्वसनीय, किन्तु विश्वसनीय। रचनात्मक और प्रेरक।
ISBN: 9789360865238
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: यह सदी जिस आवाज़ में बोल रही है वह औरत की आवाज़ है, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। सदियों जिसकी पीड़ा पुरुष-शासित समाज के तमाम आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक ढाँचों की नींव में बिना किसी शिकायत के अपनी बलि देती रही, जिसकी ख़ामोशी पर पुरुषों की वाचाल सभ्यता मानवता की अकेली और स्वयम्भू प्रतिनिधि बनी रही, वह औरत अब बोल रही है। सृष्टि में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर रही है। और कहना न होगा कि इससे एक बड़ा बदलाव मनुष्यता के लैंडस्केप में दिखाई देने लगा है। अनेक औरतें हैं जिन्होंने इस बिन्दु तक आने के लिए अपनी क़ुर्बानी दी है, अनेक हैं जिन्होंने अकेले आगे बढ़कर बाक़ी औरतों के लिए लिए कितने ही बन्द दरवाज़ों को खोला है। अनेक हैं जिनका नाम भी हम नहीं जानते। और अनेक हैं जिनके नाम इतिहास के निर्णायक मोड़ों पर उत्कीर्ण हो गए हैं। इस किताब में अलग-अलग देशों की उन औरतों से वार्ताएँ शामिल हैं जिन्होंने अपने दम-ख़म से, अपने इरादों और हिम्मत से ज़िन्दगी में एक मुकाम हासिल किया है, जिनका एक स्पष्ट नज़रिया है, और यह नज़रिया उन्होंने अपने संघर्षों से, अपनी खुली निगाह से कमाया है। इन्हें पढ़ते हुए हमें मालूम होता है कि आज उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ है। पूरी दुनिया और उसके निज़ाम की गहरी समझ भी उनके पास है और उसकी मरम्मत के लिए व्यावहारिक सुझाव भी। वे जानती हैं कि आने वाले समय को कैसा होना चाहिए और कैसा वह नहीं है। पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, इराक़, सीरिया और टर्की से लेकर जापान, रूस, फ़िलिस्तीन, इस्रायल, फ़्रांस, मलेशिया और लन्दन तक की विभिन्न राजनीतिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों से आने वाली इन महिलाओं से बातचीत की है नासिरा शर्मा ने जिन्हें हम एक सामर्थ्यवान रचनाकार के रूप में जानते हैं, विभिन्न भाषाओं के स्त्री-संवेदी और मानवतावादी साहित्य से भी वे हमें परिचित कराती रही हैं। ये वार्ताएँ साक्षात्कार के प्रचलित फ़्रेम से आगे बढ़कर दरअसल सरोकारों के समान और वैश्विक धरातल पर जाकर किए गए संवाद हैं—इस सदी की औरत की एक मुकम्मल आवाज़।
Pitrisatta Ke Naye Roop : Stree Aur Bhumandalikaran
- Author Name:
Abhay Kumar Dubey
- Book Type:

- Description: भूमंडलीकरण कहता है कि उसके तहत हुआ बाज़ारों का एकीकरण लैंगिक रूप से तटस्थ है अर्थात् वह मर्दवादी नहीं है। यह एक ऐसा दावा है जो कभी पुनर्जागरण के मनीषियों ने भी नहीं किया था। भूमंडलीकरण इससे भी एक क़दम आगे जाकर कहता है कि नारीवाद की किसी क़िस्म से कोई ताल्लुक़ न रखते हुए भी उसने स्त्री के सशक्तीकरण के क्षेत्र में अन्यतम उपलब्धियाँ हासिल की हैं। सवाल यह है कि परिवार, विवाह की संस्था, धर्म और परम्परा को कोई क्षति पहुँचाने का कार्यक्रम अपनाए बिना यह चमत्कार कैसे हुआ? स्त्री को प्रजनन करने या न करने का अधिकार नहीं मिला, न ही उसके प्रति लैंगिक पूर्वग्रहों का शमन हुआ, न ही उसे इतरलिंगी सहवास की अनिवार्यताओं से मुक्ति मिली और न ही उसकी देह का शोषण ख़त्म हुआ—फिर बाज़ार ने यह सबलीकरण कैसे कर दिखाया? ख़ास बात यह है कि भूमंडलीकरण ख़ुद को लोकतंत्र का पैरोकार बताता है और बाज़ार की चौधराहट का कट्टर समर्थक होते हुए भी एक सीमा तक राज्य के हस्तक्षेप के लिए गुंजाइश छोड़ता है; लेकिन आधुनिकतावाद के गर्भ से निकली अधिकतर संस्थाओं और विचारों को पुष्ट करनेवाला यह भूमंडलीकरण नारीवाद की उपेक्षा करता है। दरअसल इसका सूत्रीकरण अस्सी और नब्बे के उन दशकों में हुआ जिनमें नारीवाद अपने ही गतिरोधों से जूझ रहा था। इसी ज़माने में भूमंडलीकरण ने आधुनिक विचारधाराओं में सिर्फ़ नारीवाद को ही असफल घोषित किया और इस तरह पूँजीवादी आधुनिकता ने पहली बार पितृसत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष का दायित्व पूरी तरह त्याग दिया। मार्च 2001 में प्रकाशित ‘हंस’ के ‘स्त्री-भूमंडलीकरण : पितृसत्ता के नए रूप’ विशेषांक में यह शिनाख़्त करने की कोशिश की गई थी कि श्रमिकों की एक विशाल फ़ौज के रूप में स्त्री को आत्मसात् करनेवाले भूमंडलीकरण में नर-नारी सम्बन्धों के विभिन्न समीकरण क्या हैं और उसके तत्त्वावधान में स्त्री कितने प्रतिशत व्यक्ति बनी है और कितने प्रतिशत वस्तु। ‘पितृसत्ता के नए रूप : स्त्री और भूमंडलीकरण’ कुछ रचनाओं को छोड़कर उसी अंक का पुस्तक रूप है।
Mega-Tantrums Of Mamata : The Wailing Bengal
- Author Name:
Sanjay Rai Sherpuria
- Book Type:

- Description: West Bengal is known for its rich, glorious, and historic heritage. However, over the last ten years, Mamata Banerjee of Trinamul Congress has converted this land of ‘VandeMataram’ and ‘Jana Gana Mana,’ the birthplace of cultural reawakening, into a sanctuary for the terrorists, illegal immigrants, and Rohingya refugees. These traitorous elements, fostering under the protective shield of Mamata, are posing a big threat to internal security. This is a matter of great concern for every nationalist. The deception that Mamata has subjected the citizens of the state to, under the slogan of ‘Maa, Maati and Maanush’, is a blot on the democracy. It is but necessary to re-establish the nationalistic thoughts in Bengal in order to end the evil efforts of breaking the society, reinforce the democratic values and national integrity, and blow the bugle of the reawakening of India. This book, detailing the agony of bleeding and bemoaning Bengal, makes you introspect and invokes a feeling of confidence in the socio-cultural reformation of Bengal.
Samjun Gheu Ya Manala
- Author Name:
Dr. Shrirang Bakhle +1
- Book Type:

- Description: सारं आयुष्य दुःखद घटनांनी भरलेलं असतानाही काही लोक आनंदी दिसतात, तर काहींच्या आयुष्यात सुखाची रेलचेल असूनही ते दुःखी-कष्टी दिसतात. याचं रहस्य त्या त्या व्यक्तीच्या मानसिकतेमध्ये दडलेलं असतं. म्हणजेच तुम्हाला होणारा आनंद आणि तुम्हाला होणारं दुःख हे तुमच्या आयुष्यात जे घडतं त्यावर अवलंबून नसतं, तर ते तुम्ही त्या घटनांकडे कसे बघता यावर अवलंबून असतं. त्यामुळेच ‘माणसाचं मन' याला विशेष महत्त्व प्राप्त होतं. किंबहुना आपल्या व्यक्तिमत्त्वाची सर्वात महत्त्वाची बाजू ही आपलं मन असते. म्हणजे व्यक्ती म्हणून आपण जे कोणी असतो त्यामागे प्रामुख्याने आपलं मन असतं. आपलं मन जसा विचार करतं किंवा जे सांगतं तसेच आपण घडत असतो.असं असलं तरी आपण एकूण शारीरिक आरोग्याबाबत जेवढे जागरूक असतो तेवढे मनाच्या आरोग्याबाबत नसतो. किंबहुना मनाचंही आरोग्य जपायचं असतं हेच आपल्या गावी नसतं. कारण मन म्हणजे काय? ते काम कसं करतं? त्याची अवस्था कशी आहे? कशी असावी? याबद्दल आपण पूर्णपणे अज्ञानी असतो. त्यामुळे आपलं मन आजारी आहे की निरोगी हेच आपल्याला उमगत नाही. डॉ. श्रीरंग बखले यांनी नेमका हाच धागा पकडून हे पुस्तक लिहिलं आहे. अर्थात हे पुस्तक केवळ मनाच्या कार्यप्रणालीबद्दलच माहिती देते असं नाही, तर एकटेपणा, दुःख, भीती, संताप, व्यसन या बरोबरीनेच आनंद, उत्साह, कुतूहल, सर्जनशीलता अशा अनेक पैलूंकडे बघण्याची एक नवी दृष्टी देतं. तेव्हा मनाचं आरोग्य जपायला मदतगार ठरू शकणारा हा मार्गदर्शक आपल्या हाती असायलाच हवा. Samjun Gheu Ya Manala :Dr. Shrirang Bakhle Translated By : Sumedha Kale समजून घेऊ या मनाला : डॉ. श्रीरंग बखले : अनुवाद : सुमेधा काळे
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