
Roos Mein Pachchis Mas
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
320
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
640 mins
Book Description
‘मैं रूस में, जर्मनी की लड़ाई के समाप्त होने के थोड़ी ही देर बाद पहुँचा था। रूस की अन्नदायिका भूमि का बहुत सा भाग जर्मनों के हाथ में चला गया था। लेकिन रूसियों ने ‘अधिक अन्न उपजाओ’ जैसा मज़ाक करके प्रोपेगेंडा पर करोड़ों रुपया बेकार खर्च नहीं किया, बल्कि अन्न उपजाने के लिए नहरों के पानी और खाद की आवश्यकता होती है, इसे समझकर इस ओर पूरा ध्यान दिया।’ राहुल जी के ये शब्द बताते हैं कि रूस की तत्कालीन शासन और सामाजिक व्यवस्था के प्रति उनके मन में कितना प्रशंसा-भाव था। यह उनकी तीसरी रूस यात्रा थी। इस यात्रा-वृत्त में वे सोवियत व्यवस्था को बहुत गहरी उम्मीद के साथ देखते हुए विश्वास जताते हैं कि आज या कल सभी मुल्कों को अपनी समस्याओं का हल इसी रास्ते से मिलेगा जिस पर उस समय रूस चल रहा था, और बाद में चीन भी चला। अच्छी बातों के साथ-साथ उन्होंने उस समय दिखाई पड़ रही ऐसी बातों को लिखने में भी संकोच नहीं किया जिन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता। जीवन के लिए आवश्यक साधारण चीजों का अभाव, दुर्व्यवस्था और कुछ लोगों की अकर्मण्यता पर भी उनकी नज़र जाती है, लेकिन उन्हें फिर भी लगता है कि यह स्थायी नहीं है। जो पाठक तत्कालीन सोवियत संघ को जानने की इच्छा रखते हैं उनके लिए इस पुस्तक में अंकित राहुल जी के ऐतिहासिक महत्व के पर्यवेक्षण बेहद सहायक होंगे।