
Roti Ke Char Harf
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
114
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
228 mins
Book Description
यात्राएँ आलोक रंजन के स्वभाव में पैबस्त हैं। कहानियाँ लिखते हुए भी वे यात्राएँ करते रहते हैं—कभी बाहर की, कभी अन्तर्मन की। सबसे खूबसूरत बात यह है कि इन यात्राओं में वे आपके सहयात्री बन जाते हैं—हाथ पकड़कर चरित्रों, घटनाओं, दृश्यों की यात्राएँ करवाने वाले। जैसा कि एक कहानी में कहते हैं—‘ताकि एक आँख बाहर रहे और दूसरी अन्दर देखती रहे।’ आलोक डिटेलिंग के कथाकार हैं—चरित्रों के अन्तः एवं बाह्य रूप, दृश्यावलियाँ, बदलते घटनाक्रम—यह सब इतने स्वाभाविक और बारीक विवरणों के साथ कि उन पर विश्वास करने की इच्छा जन्म लेने लगती है। अगर आलोक आपको चुपके से दक्षिण भारत की यात्रा पर ले जाते हैं तो यह एक कल्चरल शॉक की तरह नहीं आता बल्कि चरित्र, वातावरण सबके साथ एकाकार होकर आपके अन्दर उतरता है। उनके चरित्र हममें से ही एक मालूम होते हैं—उनकी पीड़ाएँ, उनकी खूबियाँ, उनके शोषण, उनकी कामनाएँ—सब हमारी ही प्रतिछवियाँ हैं। आलोक की कहानियों में प्रेम की अनुपस्थित उपस्थिति रहती है। कुछ कहानियों में प्रेम है भी और नहीं भी है—मुखर रहते हुए भी मौन है—‘इस दुनिया के किनारे’, ‘जलते सबके मकान’, ‘स्वाँग के बाहर’ आदि कहानियाँ इस आलोक में पढ़ी जा सकती हैं। आलोक भाषाई तरलता का एक ऐसा स्वाभाविक वितान रचते हैं जिसमें हिन्दी, उर्दू, मैथिली, दक्षिण भारतीय भाषाएँ सब घुल-मिलकर एक रूप हो जाती हैं और धीमे-धीमे बहती नदी का रूप धरती रहती हैं। कहानियों की अन्य खूबियों के साथ जो गहरे आकर्षित करती है, वह है आलोक की नुक्ता-ए-नज़र—आलोक की पॉलिटिक्स बिलकुल साफ है, जो उनके पात्रों के चयन से ज़ाहिर हो जाती है—तकरीबन सभी चरित्र निम्नवर्गीय या निम्नमध्यवर्गीय हैं। जी में चीजों को बदलने की बहुत उत्कट इच्छा न भी हो तो समय के साथ, परिस्थितियों के साथ लड़-भिड़कर लहूलुहान हो जाने की सदिच्छा जरूर है।पंकज मित्र