Shreyasi

Shreyasi

Authors(s):

Vinay Kumar

Language:

Hindi

Pages:

288

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

576 mins

Buy For ₹399

* Actual purchase price could be much less, as we run various offers

Book Description

विनय कुमार की ‘श्रेयसी’ सरस्वती के अनाविल उज्ज्वल स्वरूप का साक्षात्कार है। इसे पढ़ते हुए ऋग्वेद के वाक्सूक्त के मन्त्र चित्त में विवर्तित होने लगते हैं। ये कविताएँ चेतना के गह्वरों तक उतरती हैं और अतीत और इतिहास ही नहीं, वर्तमान को स्वरित करते हुए भविष्य की आहटों से भी परिचित कराती हैं। विनय कुमार बदलते परिवेश में अपने अक्षुण्ण सांस्कृतिक बोध के साथ कविता को वहाँ ले जाते हैं जहाँ ज्ञान शब्दों में सिमटकर नहीं रह जाता, अनुभव में संवेद्य बन जाता है।</p> <p>—राधावल्लभ त्रिपाठी</p> <p>विनय कुमार की ‘यक्षिणी’ को लोगों ने नए ढंग का खंड-काव्य कहा था। सात सर्गों में बँटा इस पुस्तक का कलेवर उससे आगे जाता है। एक लम्बी, गहरी और बहुआयामी&nbsp; विचार-यात्रा से सम्भव हुई इस कृति में सूखी वैचारिकी नहीं है। गीतात्मक तरलता, आख्यान-कुशलता, नए और अनोखे बिम्बों के साथ-साथ इसमें एक बंकिमता भी है जो कविताओं को मार्मिक और बेधक बनाती है।</p> <p>‘श्रेयसी’ में परम्परागत अवधारणाओं का स्वीकार भी है और प्रतिरोध भी, विस्तार भी है और तिक्रमण भी। कवि दिव्य से आँखें तो मिलाता है मगर नाहक अभिभूत नहीं होता। वह ज्ञान की परम्परा को समझने का प्रयास करता है और इस क्रम में आवश्यक प्रतिवाद और भविष्यगामी संवाद भी सम्भव करता है जिसे इस यात्रा की उपलब्धि कह सकते हैं। सरस्वती की अवधारणा यूँ तो भारतीय है मगर इसे रचनेवाले तत्त्व कमोबेश हर संस्कृति में हैं। कवि ने भू-राजनीतिक और भाषिक सीमाओं का सहज भाव से अतिक्रमण करते हुए मानव-सभ्यता की सारस्वत-सर्जनात्मक यात्राओं की शक्तियों और चुनौतियों को स्वर दिया है।</p> <p>यह कृति भारतीय होकर भी वैश्विक है, और धर्मों और संस्कृतियों के विभाजन से परे जाती है। ‘श्रेयसी’ में सरस्वती बड़ी सहजता के साथ गलेटिया, हाइपैटिया, बहादुरशाह ज़फ़र और वाजिद अली शाह से बात करती दिखती है। यह वंदना की किताब नहीं। श्रेयसी कोई देवी नहीं, एक तरलता है जो प्रकृति, कथा और सर्जनात्मक प्रज्ञा तीनों में बहती है। इन तरलताओं के बिना न तो मनुष्य का जीवन सम्भव है और न ही मनुष्यता का।</p> <p>महाकाव्यात्मक सम्भावनाओं को अपने वितान में समेटती ‘श्रेयसी’ को वर्तमान हिन्दी काव्य-जगत में एक सार्थक हस्तक्षेप की तरह देखा जाएगा।

hindi kavitaye

More Books from Rajkamal Prakashan Samuh