
Arthshastra : Marks Se Aage
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
82
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
164 mins
Book Description
मार्क्सवाद या साम्यवाद का जोर सामाजिक न्याय पर है। उनके मुताबिक, यह कार्य होगा संसाधनों के उत्पादन और वितरण में व्याप्त असमानता को दूर कर वर्गविहीन समाज की स्थापना से, और वर्गविहीन समाज स्थापित होगा पूँजीवादी विकास के उच्चतम स्तर पर। व्यावहारिक अनुभवों ने इस सैद्धान्तिक दावे के अन्तर्विरोधों को उजागर किया जिन्हें सुलझाने की कोशिश, बेहतर दुनिया का सपना देखने वाले तमाम चिन्तक-विचारक करते रहे हैं। ‘अर्थशास्त्र : मार्क्स के आगे’ ऐसा ही एक उल्लेख प्रयास है जिसमें अर्थशास्त्र सम्बन्धी मार्क्सवादी सिद्धान्त का गम्भीर परीक्षण किया गया है।</p> <p>लोहिया मार्क्सवाद और गांधीवाद दोनों को अधूरा मानते थे लेकिन उनके महत्त्व को स्वीकार करते थे। उन्होंने स्वयं लिखा है—‘स्वीकृति और अस्वीकृति—दोनों ही अन्धविश्वास के बदलते पहलू हैं... गांधीवादी अथवा मार्क्सवादी होना मतिहीनता है और गांधीवादी विरोधी या मार्क्सवादी विरोधी होना भी उतनी ही बड़ी मूर्खता है। गांधी और मार्क्स दोनों के ही पास अमूल्य ज्ञान-भंडार है, किन्तु तभी ज्ञान प्राप्त हो सकता है, जब विचारों का ढाँचा एक युग या व्यक्ति के विचार तक ही सीमित न हो।’ इसी दृष्टि से, उन्होंने इस प्रबन्ध में अर्थशास्त्र में एक ऐसी विचारधारा की आवश्यकता पर बल दिया है जो मौजूदा सभी विचारों से भिन्न और समस्त विश्व को समान कल्याण के एक सुखी इकाई में बदलने वाली हो।