Manto : Ek Badnam Lekhak

Manto : Ek Badnam Lekhak

Authors(s):

Vinod Bhatt

Language:

Hindi

Pages:

144

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

288 mins

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Book Description

उर्दू साहित्य में मंटो ही सबसे ज़्यादा बदनाम लेखक है। सबसे बड़ा गुनाह यह कि वह समय से पिचहत्तर साल पहले पैदा हुआ। साथ ही उसने समय से पहले मरकर हिसाब बराबर कर दिया। उस समय उसने जो कुछ लिखा, वह अगर आज लिखा होता तो उसकी एक भी कहानी पर अश्लीलता का मुक़दमा नहीं चला होता। उसमें भरपूर आत्मविश्वास था। वो जो कुछ भी लिखता, जैसे सुप्रीम कोर्ट का आख़िरी फ़ैसला। कोई चुनौती दे तो वो सुना देता। उसकी कहानियों में वेश्याओं के दलाल पात्रों के वर्णन के बारे में किसी ने मंटो से कहा— ‘रेडियो के दलाल जैसे आप बनाते हैं, वैसे नहीं होते।’ मंटो ने तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए कहा—‘वो दलाल खुशिया मैं हूँ।’...और यह जानकर हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार देवेन्द्र सत्यार्थी ने निःश्वास छोड़ते हुए कहा—‘काश मैं खुशिया होता...।’ मंटो की निजी पसन्द-नापसन्द अत्यन्त तीव्र होती थी। मृत व्यक्ति की बस तारीफ़ ही की जानी चाहिए, मंटो ऐसा नहीं मानता था। उसका एक विचार-प्रेरक कथन है—ऐसी दुनिया, ऐसे समाज पर मैं हज़ार-हज़ार लानत भेजता हूँ, जहाँ ऐसी प्रथा है कि मरने के बाद हर व्यक्ति का चरित्र और उसका व्यक्तित्व लांड्री में भेजा जाए, जहाँ से धुलकर, साफ़-सुथरा होकर वह बाहर आता है और उसे फ़रिश्तों की क़तार में खूँटी पर टाँग दिया जाता है।

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