Guruji Ki Kheti-Bari
Author:
Vishwanath TripathiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
आलोचक के रूप में अपनी सृजनात्मक अप्रोच के लिए सराहे जानेवाले विश्वनाथ त्रिपाठी की सवा-सराहना बतौर गद्यकार हमेशा ही सुरक्षित रहती है। आलोचना से इतर अपनी हर पुस्तक के साथ उन्होंने ‘दुर्लभ गद्यकार' की अपनी पदवी ऊँची की है। उनकी भाषा और कहाँ चलते-फिरते साकार मनुष्य की प्रतीति देती है। ऐसे कम ही लेखक हैं जिनकी लिखी पंक्तियों के बीच रहते हुए आप एक तनहा पाठक नहीं रह जाते, अपने आसपास किसी की उपस्थिति आपको लगातार महसूस होती है।</p>
<p>इन पृष्ठों में आप राजनीति का वह ज़माना भी देखेंगे जब ‘अनशन, धरना, जुलूस, प्रदर्शन, क्रान्ति, उद्धार-सुधार, विकास, समाजवाद, अहिंसा जैसे शब्दों का अर्थपतन, अनर्थ, अर्थघृणा और अर्थशर्म नहीं हुआ था।’ और विश्वविद्यालय के छात्र मेजों पर मुट्ठियाँ पटक-पटककर मार्क्सवाद पर बहस किया करते थे। जवाहरलाल नेहरू, कृपलानी, मौलाना आज़ाद जैसे राजनीतिक व्यक्तित्वों और डॉ. नागेन्द्र, विष्णु प्रभाकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, शमशेर और अमर्त्य सेन जैसे साहित्यिकों-बौद्धिकों की आँखों बसी स्मृतियों से तारांकित यह पुस्तक त्रिपाठी जी के अपने अध्यापन जीवन के अनेक दिलचस्प संस्मरणों से बुनी गई है। क़िस्म-क़िस्म के पढ़नेवाले यहाँ हैं। हरियाणा से कम्बल ओढ़कर और साथ में दूध की चार बोतलें कक्षा में लेकर आनेवाला विद्यार्थी है तो किरोड़ीमल के छात्र रहे अमिताभ बच्चन, कुलभूषण खरबंदा, दिनेश ठाकुर और राजेन्द्र नाथ भी हैं।</p>
<p>शुरुआत उन्होंने बिस्कोहर से अपने पहले गुरु रच्छा राम पंडित के स्मरण से की है। इसके बाद नैनीताल में अपनी पहली नियुक्ति और तदुपरान्त दिल्ली विश्वविद्यालय में बीते अपने लम्बे समय की अनेक घटनाओं को याद किया है जिनके बारे में वे कहते हैं : ‘याद करता हूँ तो बादल से चले बाते हैं मजमूँ मेरे आगे।’
ISBN: 9788126727148
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Piyush Mishra
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- Description: पीयूष मिश्रा जब मंच पर होते हैं तो वहाँ उनके अलावा सिर्फ़ उनका आवेग दिखता है। जिन लोगों ने उन्हें मंडी हाउस में एकल करते देखा है, वे ऊर्जा के उस वलय को आज भी उसी तरह गतिमान देख पाते होंगे। अपने गीत, अपने संगीत, अपनी देह और अपनी कला में आकंठ एकमेक एक सम्पूर्ण अभिनेता! अब वे फिल्में कर रहे हैं, गीत लिख रहे हैं, संगीत रच रहे हैं; और यह उनकी आत्मकथा है जिसे उन्होंने उपन्यास की तर्ज पर लिखा है। और लिखा नहीं; जैसे शब्दों को चित्रों के रूप में आँका है। इसमें सब कुछ उतना ही ‘परफ़ेक्ट’ है जितने बतौर अभिनेता वे स्वयं। न अतिरिक्त कोई शब्द, न कोई ऐसा वाक्य जो उस दृश्य को और सजीव न करता हो। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ‘अनयूजुअल’—से परिवार में जन्मा एक बच्चा चरण-दर-चरण अपने भीतर छिपी असाधारणता का अन्वेषण करता है; और क़स्बाई मध्यवर्गीयता की कुंठित और करुण बाधाओं को पार करते हुए धीरे-धीरे अपने भीतर के कलाकार के सामने आ खड़ा होता है। अपने आत्म के सम्मुख जिससे उसे ताज़िन्दगी जूझना है; अपने उन डरों के समक्ष जिनसे डरना उतना ज़रूरी नहीं, जितना उन्हें समझना है। इस आत्मकथात्मक उपन्यास का नायक हैमलेट, यानी संताप त्रिवेदी यानी पीयूष मिश्रा यह काम अपनी ख़ुद की कीमत पर करता है। यह आत्मकथा जितनी बाहर की कहानी बताती है—ग्वालियर, दिल्ली, एनएसडी, मुम्बई, साथी कलाकारों आदि की—उससे ज़्यादा भीतर की कहानी बताती है, जिसे ऐसी गोचर दृश्यावली में पिरोया गया जो कभी-कभी ही हो पाता है। इसमें हम दिल्ली के थिएटर जगत, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के कई सुखद-दुखद पहलुओं को देखते हैं; एक अभिनेता के निर्माण की आन्तरिक यात्रा को भी। और एक संवेदनशील रचनात्मक मानस के भटकावों-विचलनों-आशंकाओं को भी। लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि इस किताब की इसका गद्य है। पीयूष मिश्रा की कहन यहाँ अपने उरूज़ पर है। पठनीयता के लगातार संकरे होते हिन्दी परिसर में यह गद्य खिली धूप-सा महसूस होता है।
Sirhane Gramshi
- Author Name:
Arun Maheshwari
- Book Type:

- Description: फासिस्टों के नर-मेघी यातना और मृत्यु शिविरों से लेकर साइबेरिया के निर्वासन शिविरों और अमेरिकी जेल-औद्योगिक गठजोड़ वाले क़ैदखानों तक की कमोबेश एक ही कहानी है। नागरिक स्वतंत्रता की प्रमुख अमेरिकी कार्यकर्ता एंजिला डेविस की शब्दावली में—आज भी जारी दास प्रथा की कहानी। सुधारगृह कहे जानेवाले भारतीय जेल इनसे शायद ही अलग हैं। इटली में फासिस्टों के जेल में बीस साल के लिए सज़ायाफ़्ता मार्क्सवादी विचारक और कम्युनिस्ट नेता अन्तोनिओ ग्राम्शी ने सज़ा के दस साल भी पूरे नहीं किए कि उनके शरीर ने जवाब दे दिया। मृत्यु के एक महीना पहले उन्हें रिहा किया गया था। लेकिन जेल में बिताए इन चंद सालों के आरोपित एकान्त का उन्होंने इटली के इतिहास, उसकी संस्कृति, मार्क्सवादी दर्शन तथा कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में गहरे विवेचन के लिए जैसा इस्तेमाल किया, उसने उनकी जेल डायरी को दुनिया के श्रेष्ठतम जेल-लेखन के समकक्ष रख दिया। ख़ास तौर पर कम्युनिस्ट पार्टियों में शामिल लोगों के लिए तो इसने जैसे सोच-विचार के एक पूरे नए क्षेत्र को खोल दिया। ग्राम्शी का यह पूरा लेखन कम्युनिस्टों को, किसी भी मार्क्सवादी के लिए अपेक्षित, तमाम वैचारिक जड़ताओं से मानसिक तौर पर उन्मुक्त करने का एक चुनौती भरा लेखन है। एक ऐसे विचारक के साथ जेल में बिताए चंद दिनों की यह डायरी किसी भी पाठक के लिए, ख़ास तौर पर राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए बहुत उपयोगी अनुभव साबित हो सकती है। इसकी पारदर्शी भाषा, अन्त:स्थित सूक्ष्म वेदना और स्वच्छन्द विचार-प्रवाह ने इस पुस्तक को अपने प्रकार की एक अनूठी कृति का रूप दिया है।
Ek Taponisht Baal Brahmachari
- Author Name:
Pandit Brajbhooshan Tiwari
- Book Type:

- Description: इस अद्भुत पुस्तक में एक तपोनिष्ट बाल ब्रह्मचारी की गाथा है, जिनके त्याग और तपस्या ने काशी से कलकत्ते तक उनकी ख्याति को फैलाया। उनके जीवन के अनमोल क्षणों को चित्रित करते हुए, यह पुस्तक पाठकों को हिमालय की वादियों में ले जाती है, जहाँ वे उनके आध्यात्मिक पथ का अनुसरण करते हैं। एक यात्रा जो आपको उनके त्यागमय जीवन और गहन ध्यान की गहराइयों में ले जाएगी।
Sansar Mein Nirmal Verma : Poorvarddh
- Author Name:
Nirmal Verma
- Book Type:

- Description: इतिहास के भीतर जो घटनाएँ होती है, उनके पीछे कोई बहुत ही (अति पवित्र) सर्वमान्य नियम हो, ऐसा कोई ज़रूरी नही है। यह बोध जब आपको हो जाए तो यह ज़रूरी हो जाता है हम सृष्टि के अर्थ को ईश्वर या इतिहास में न देखकर उसे अपने नैतिक अर्थ में पाएँ, और मनुष्य ख़ुद इस नैतिकता का निर्माण करे। इस पुस्तक में शामिल एक साक्षात्कार में अस्तित्ववाद को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए निर्मल वर्मा आगे कहते हैं कि उस दर्शन से जो बहुमूल्य चीज़ मैंने अपने लिए पाई वह यह कि ईश्वर और इतिहास से मुक्त होकर, यह आदमी पर निर्भर है कि वह अर्थ और नैतिकता को जन्म दे; क्या सही है, क्या ग़लत है, इसे तय करने की ज़िम्मेदारी वह ख़ुद उठाए। मार्क्सवाद से शुरु हुई अपनी वैचारिक यात्रा में अस्तित्ववाद के प्रति अपने आकर्षण को ज़रूरी क़दम मानते हुए वे इन साक्षात्कारों में अपने लेखक, अपने मनुष्य और अपने नागरिक के गहरे दायित्व बोध को बार-बार रेखांकित करते हैं। नई कहानी आन्दोलन में अपनी भूमिका को लेकर किए गए प्रश्न के जवाब में वे कहते हैं कि मेरी कोशिश सिर्फ़ यही थी कि मैं अपने अनुभवों को कितने प्रामाणिक स्तर पर व्यक्त कर पा रहा हूँ। अपनी रचना प्रक्रिया और लेखकीय नैतिकता के अलावा इन साक्षात्कारों में वे अपने विदेश प्रवास, वहाँ के निर्णायक अनुभवों, साहित्य, कला, विचारधारा और अन्य अनेक ऐसे मुद्दों पर अपनी बात कहते हैं जो आज भी प्रासंगिक और विचारोत्तेजक हैं। इस जिल्द में उनके 1998 से पहले दिए गए साक्षात्कारों को संकलित किया गया है। इसके बाद के साक्षात्कार ‘संसार में निर्मल वर्मा’ के ‘उत्तरार्द्ध’ खंड में संकलित हैं।
The Diary of a Young Girl by Anne Frank
- Author Name:
Anne Frank
- Book Type:

- Description: Discovered in the attic in which she spent the last years of her life, Anne Frank's remarkable diary has since become a world classic—a powerful reminder of the horrors of war and an eloquent testament to the human spirit. The Diary is a lot of things all at once. It is an amusing, enlightening, and often moving account of the process of adolescence, as Anne describes her thoughts and feelings about herself and the people around her, the world at large, and life in general. It is an accurate record of the way a young girl grows up and matures, in the very special circumstances in which Anne found herself throughout the two years during which she was in hiding. And it is also a vividly terrifying description of what it was like to be a Jew — and in hiding— at a time when the Nazis sought to kill all the Jews of Europe.
Premchand : Kalam Ka Sipahi
- Author Name:
Amrit Rai
- Book Type:

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Description:
हिन्दी समाज द्वारा व्यापक रूप में स्वीकृत इस पुस्तक को मुंशी प्रेमचन्द की पहली और अपने आप में सम्पूर्ण जीवनी का दर्जा प्राप्त है। जीवनीकार प्रेमचन्द के पुत्र और ख्यात लेखक-कथाकार अमृतराय हैं। लेकिन उन्होंने यह जीवनी पुत्र होने के नाते नहीं, एक लेखक की निष्पक्षता के साथ लिखी है। हाँ, उनके नजदीक होने के चलते यह सुविधा उन्हें जरूर रही कि वे प्रेमचन्द के कुछ उन पक्षों को भी देख सके, जिससे यह जीवनी और समृद्ध हुई। लेखक से इतर एक पिता, पति, भाई और मित्र प्रेमचन्द के कई रूप हम इसी के चलते देख पाते हैं। लेकिन अमृतराय यहीं तक सीमित नहीं रहे। जीवनी को सम्पूर्ण रूप देने के लिए वे हर उस जगह गए जहाँ प्रेमचन्द कभी रहे थे, हर उस व्यक्ति से मिले जो या तो उनके सम्पर्क में रहा था, या उनसे पत्र-व्यवहार करता था। उन्होंने प्रेमचन्द की कलम से लिखी गई हिन्दी और उर्दू की पूरी सामग्री को भी पढ़ा और उनके जीवनकाल की राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि का भी विस्तार से अध्ययन किया।
प्रेमचन्द की इस जीवनी में हम उनकी कहानियों और उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया के अलावा वे कब, किन परिस्थियों में लिखी गईं, यह भी जान पाते हैं, और प्रेमचन्द के व्यक्तित्व तथा जीवन के उन पहलुओं को भी जो कथाकार के रूप में उनकी अथाह ख्याति के पीछे छिपे हुए हैं।
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