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Shobha De

Socha Na Tha

  • Author Name:

    Shobha De

  • Book Type:
  • Description: सोचा न था उदासी, ऊब, सपनों और सपनों के नामालूम ढंग से टूट जाने की कहानी है। इस उपन्यास में लेखिका ने एक अत्यन्त सामान्य कथानक के भीतर छिपी असामान्य उत्सुकताओं की खोज की है। माया, जो इस उपन्यास की मुख्य चरित्र है, देखती आँखों उसकी ज़िन्दगी में किसी तरह का कोई अभाव नहीं, कोई दु:ख नहीं—सुन्दर, सुशिक्षित। कलकत्ता जैसे महानगर से बम्बई जैसे महानगर में आई एक संस्कारवान बांग्ला बहू। एक आधुनिक गृहिणी। रंजन मलिक जैसे अमेरिका-पलट बैंक अधिकारी की बीवी। फिर भी माया के दाम्पत्य जीवन में वह कौन-सी कमी थी, जिसे पूरा करने के लिए वह निखिल जैसे युवक की ओर आकर्षित होती है?

    अंग्रेज़ी की बहुचर्चित कथाकार शोभा डे अपने इस उपन्यास में स्त्री-जीवन के इसी प्रश्न को उठाती हैं। दाम्पत्य सम्बन्धों के व्यावहारिक पहलुओं और उसकी छोटी-बड़ी बारीकियों को खोलते हुए वे उक्त प्रश्न के सम्भावित उत्तर को भी संकेतित करती हैं। स्पष्टतया कहा जाए तो पति-पत्नी का सम्बन्ध मात्र सामाजिक, औपचारिक ही नहीं, वह एक गहन भावनात्मक और आत्मिक ज़िम्मेदारी भी है। इसका अभाव एक स्त्री को भटकाव का अवसर ही नहीं, तर्क भी देता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस तर्क को सामने रखते हुए शोभा डे न तो नारी-मनोविज्ञान को अनदेखा करती हैं और न ही हमारे मध्यवर्गीय ढोंग तथा महत्त्वाकांक्षाओं को। ऐसे में स्त्री हो या पुरुष, उसका पाना और खोना जैसे एक-दूसरे का पर्याय बन जाता है।

    अपने कथ्य के साथ जीते हुए एक सिद्धहस्त रचनाकार अपने चरित्रों का अंकन किस कुशलता से करता है, यह देखने के लिए इस उपन्यास को पढ़ा जाना अनिवार्य है। छोटे-छोटे, हाशिये पर रहनेवाले पात्र भी आपको कहानी के भूगोल में अपने पूरे स्वायत्त व्यक्तित्व के साथ खड़े मिलेंगे।

     

Socha Na Tha

Socha Na Tha

Shobha De

399

₹ 319.2

Sitaron Ki Ratein

  • Author Name:

    Shobha De

  • Book Type:
  • Description: सितारे रात में ही चमकते हैं या कहें कि हर सितारे का एक अँधेरा भी होता है। लेकिन दर्शक की नज़र अक्सर सितारों पर ही जाती है, उनके अँधेरों पर नहीं। यह प्रक्रिया हमारी फ़ितरत से भी सम्बन्ध रखती है, और सीमा से भी। शोभा डे इसी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करती हैं। वे उन अँधेरों को भी उघाड़कर देखती हैं, जिन्हें रोशनी ने छुपाया हुआ है। विडम्बना यह कि लेखिका की आँख से देखे और दिखाए गए ये अँधेरे 'बॉलीवुड' की जिन सच्चाइयों को उजागर करते हैं, उन्हें अक्सर ही 'गॉसिप' कहकर नकार दिया जाता है। लेखिका ने इस पुस्तक में मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के जिन चरित्रों को चित्रित किया है, वे अमूर्त नहीं हैं। उन्हें पहचाना जा सकता है—ख़ासकर इसकी केन्द्रीय चरित्र आशा रानी को। यथार्थ और लेखकीय कल्पना के बावजूद उसे हम जीवित-जाग्रत अभिनेत्री के रूप में भी पहचान सकते हैं, और एक प्रतीकात्मक चरित्र के रूप में भी। उसके इर्द-गिर्द और भी कितने ही तारों-सितारों की पहचान की जा सकती है। दरअसल यह एक ऐसी रंगीन दुनिया है, जिसका उद्दाम आकर्षण किसी भी कलाकार को किसी भी हद तक ले जा सकता है। देह इस दुनिया में सिर्फ़ उपभोग और ऊँचाई पर पहुँचने का माध्यम है। निषेध और नैतिकता यहाँ सिर्फ़ शब्द हैं। स्त्री है, जो बिछी हुई है और पुरुष है, जो तना हुआ है। कहना न होगा कि अंग्रेज़ी से अनूदित शोभा डे की यह कृति हिन्दी पाठकों के लिए एक नया अनुभव होगा। अलग-अलग फ़िल्मी चरित्रों की पेशगोई के बावजूद इसे एक दिलचस्प उपन्यास की तरह पढ़ा जा सकता है।
Sitaron Ki Ratein

Sitaron Ki Ratein

Shobha De

299

₹ 239.2

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