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Rajendra Kumar

Har Koshish Hai Ek Baghawat

  • Author Name:

    Rajendra Kumar

  • Book Type:
  • Description: collection of poems
Har Koshish Hai Ek Baghawat

Har Koshish Hai Ek Baghawat

Rajendra Kumar

295

₹ 241.9

Aalochna Ka Vivek

  • Author Name:

    Rajendra Kumar

  • Book Type:
  • Description: डॉ. देवीशंकर अवस्थी के चिन्‍तन और विवेचन का कैनवस अत्यन्‍त विस्तृत है—सैद्धान्तिक से लेकर व्यावहारिक आलोचना तक उत्‍तरोत्‍तर गूढ़ और चुनौतीपूर्ण सवालों से उन्होंने मुठभेड़ की है। कालिदास, निराला, महादेवी वर्मा, प्रसाद, प्रतापनारायण मिश्र, प्रेमचन्द से लेकर ग्रीक पौराणिक गाथाएँ तक उनकी लेखनी के प्रिय विषय हैं। इसके साथ उनकी सरस आलोचनात्मक वृत्ति वृन्‍दावन, मथुरा, मैसूर, ताजमहल, रानीखेत, मसूरी आदि के सौन्दर्य में भी रमी है। पर उनके आलोचक का सबसे उल्लेखनीय गुण यह है कि वह नव्यता और सम-सामयिकता की चेतना से अनुप्राणित है। इसके चलते उनकी दृष्टि एक नई ऊर्जा और सार्थकता से लैस है। यही चीज़ उन्हें हमेशा प्रासंगिक बनाए रखेगी। डॉ. अवस्थी ने साहित्य की सभी विधाओं को मूल्यवान ढंग से समृद्ध किया है, जैसे—आलोचना, रंग-समीक्षा, कविता, नाटक, प्रहसन, कहानी, रिपोर्ताज, पत्र और डायरी।
Aalochna Ka Vivek

Aalochna Ka Vivek

Rajendra Kumar

250

₹ 200

Udaasi Ka Dhrupad

  • Author Name:

    Rajendra Kumar

  • Book Type:
  • Description: राजेन्द्र कुमार के इस संग्रह में उनके पिछले संग्रहों से कुछ अलग मनःस्थिति की कविताएँ हैं—ऐसी खिड़कियों की तरह, जो बाहर से ज्यादा, कवि के अपने भीतर की ओर खुलती हैं। कुछ-कुछ मीर की तरह की अपनी विकलता में 'ये धुआँ कहाँ से उठता है' की सुरागरसी-सी करती हुई। हमारा समय गुरूर में है कि उसने मनुष्य को क्या- क्या नहीं बख्शा है। 'मनुष्यता' उदास है कि वह किस क़दर अकेली होती जा रही है। जीवन में बहुत कुछ है— काम्य-अकाम्य। ये कविताएँ काम्य- अकाम्य के ऐसे संधिस्थल की कविताएँ हैं, जहाँ आशा-निराशा, अँधेरा- उजाला जैसे परस्पर विलोमार्थी से प्रतीत होने वाले शब्द भी आपस में संवाद करने को विकल हैं कि आज की चकाचौंध- भरी चहल-पहल में घिरे मनुष्य के संदर्भ में क्या अर्थ दें, अकेली पड़ती जाती 'मनुष्यता' के पक्ष में क्या अर्थ दें। अकारण नहीं है कि कवि को अंधेरा कभी रोशनी से अधिक अकुंठ लगने लगता है और उदासी अधिक संवेदनशील और उम्मीदभरी लगती है कि 'अकेला नहीं हूँ मैं'। यह उदासी का ध्रुपद है, जिसके आलाप में प्रिय के 'न होने में भी होने की अनुभूति की लय है।
Udaasi Ka Dhrupad

Udaasi Ka Dhrupad

Rajendra Kumar

295

₹ 236

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