Mary Tyler
Bhartiya Jelon Mein Panch Saal
- Author Name:
Mary Tyler
-
Book Type:

- Description: भारतीय जेलों में पाँच साल बीसवीं सदी के सातवें दशक का ऐसा कैमरा है, जिसकी तस्वीरें विभिन्न कोणों से भारत का साक्षात्कार कराती हैं। बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से नक्सलवादी आन्दोलन की शुरुआत सन् 1967 में हुई थी, जहाँ किसानों ने बड़े ज़मींदारों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया था। धीरे-धीरे यह आन्दोलन बंगाल से देश के अन्य प्रान्तों में फैल गया। विद्रोहियों का उद्देश्य जनता की सरकार क़ायम करना था। विद्रोह को दबाने के लिए दमनात्मक कार्रवाई की गई, जिसके शिकार सिर्फ़ कथित नक्सली ही नहीं हुए बल्कि आम भारतीय किसान और मज़दूर भी हुए। उसी दौरान इस पुस्तक की लेखक मेरी टाइलर को भी विदेशी जासूस समझकर अन्य विद्रोहियों के समान गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया था। जेल में रहते हुए उन्होंने विद्रोहियों के जीवन-संघर्ष को काफ़ी निकट से जाना। उन्होंने महसूस किया कि नक्सलियों की जनता के प्रति निष्ठा तथा आत्मबलिदान ही नक्सलवादी आन्दोलन को मिले अपार जनसमर्थन के कारण बने। नक्सलियों की ईमानदार जनपक्षधरता ने मेरी टाइलर को अभिभूत किया। उनके ब्रिटेन से आकर भारत में रहने के पीछे मूल प्रेरणा कृषि-क्रान्ति के लिए हुआ यही सशस्त्र विद्रोह था। यह पुस्तक उनके अनुभवों, संस्मरणों तथा घटनाओं का लेखा-जोखा है, जिसको उन्होंने प्रत्यक्षतः देखा। यहाँ जेल में रहने के दौरान उन्हें भी तरह-तरह की यातनाओं से दो-चार होना पड़ा। नक्सलवादी आन्दोलन के बहाने पुस्तक ऐसे कई दरीचे खोलती है, जहाँ से तत्कालीन भारत की उन सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थितियों से उपजे प्रश्नों को साफ़-साफ़ देखा जा सकता है जिनमें से ज़्यादातर अब तक अनुत्तरित हैं। स्वातंत्र्योत्तर भारत को जानने-समझने के लिए एक ज़रूरी पुस्तक!
Bhartiya Jelon Mein Panch Saal
Mary Tyler
Bhartiya Jelon Men Panch Saal
- Author Name:
Mary Tyler
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Book Type:

- Description: मेरी इस पुस्तक का उद्देश्य न तो कोई राजनीतिक या सामाजिक शोध प्रस्तुत करना है और न मैं इसे अपना अधिकार या कर्तव्य समझती हूँ कि भारतीय जनता के लिए कोई ऐसे क़ानून अथवा विधि-उल्लेखों द्वारा मार्ग-प्रदर्शन करूँ जिसके आधार पर वे अपने देश की समस्याएँ हल करें। मैं किसी तरह की विशेषज्ञ होने का दावा नहीं करती और ख़ुद को इस लायक़ नहीं समझती कि भारतीय समाज का गहराई से विश्लेषण प्रस्तुत करूँ। मैंने जो कुछ लिखा है वह आपबीती घटनाओं का ब्योरा है तथा उन लोगों द्वारा बताई गई बातें हैं जिनके साथ भारत में मुझे रहने का तथा जिनसे मिलने का अवसर मिला। यह सोचकर मैं गर्व का अनुभव कर रही हूँ कि राधाकृष्ण प्रकाशन ने मेरी इस पुस्तक को हिन्दी में प्रकाशित करने और इस प्रकार भारत के व्यापकतर जनसमुदाय तक पहुँचाने के योग्य समझा। इस पुस्तक में मैंने जो कुछ लिखा है, वह भारतीय पाठकों को काफ़ी हद तक जाना-पहचाना लगेगा क्योंकि इसमें मैंने महज़ अपने अनुभवों का लेखा-जोखा पेश किया है और वह भी ख़ासतौर से ब्रिटिश पाठकों के लिए जिन्हें भारतीय समाज के वास्तविक स्वरूप की जो भी जानकारी है, वह ना के बराबर है।