M.N. Shrinivas
Yadon Se Racha Gaon
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M.N. Shrinivas
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‘यादों से रचा गाँव’ अतीत के दुर्घटनाग्रस्त ब्यौरों को सामने लाने के रचनात्मक संकल्प का परिणाम है। एक हादसे में सारे काग़ज़ात जलकर राख हो जाने के बाद एम.एन. श्रीनिवास ने इस पुस्तक में पूरी तरह अपनी यादों के सहारे अपने क्षेत्रकार्य के अनुभवों की पुनर्रचना की है।
प्रस्तुत पुस्तक में यूँ तो दक्षिण भारत के एक बहुजातीय ग्राम का नृतत्त्वशास्त्रीय अध्ययन दिया गया है, लेकिन एक बदलते ग्राम का प्रौद्योगिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और अन्तर्जातीय सम्बन्धों का जिस प्रकार विवेचन किया गया है, वह पूरे भारत के गाँवों की स्थिति को दर्शाता है।
‘यादों से रचा गाँव’ में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों, धर्म, परिवार, और कृषि से सम्बन्धित मामलों का भी व्यापक विश्लेषण है। वस्तुत: प्रस्तुत पुस्तक एक ऐसी कृति है जिसे मूल आँकड़ों के समुद्र में गोता लगाकर गाँव की अपनी शब्दावली में रचा गया है।
श्रीनिवास जी ने इस पुस्तक में बहुजातीय भारतीय समुदाय के क्षेत्र-अध्ययन का जिस ढंग से वैज्ञानिक विश्लेषण किया है, वह न केवल मानवशास्त्रियों, बल्कि दूसरे सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी है। इस कृति का प्रमुख आकर्षण इसकी रचनात्मक शैली है।
Yadon Se Racha Gaon
M.N. Shrinivas
Bharat Ke Gaon
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M.N. Shrinivas
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भारत, ब्रिटेन और अमेरिका के प्रमुख समाजशास्त्रियों द्वारा लिखे गए निबन्धों के इस संग्रह में भारत के चुनिन्दा गाँवों और उनमें हो रहे सामाजिक–सांस्कृतिक परिवर्तनों के विवरण प्रस्तुत हैं। हर निबन्ध एक क्षेत्र के एक ही गाँव या गाँवों के समूह के गहन अध्ययन का परिणाम है। यह निबन्ध एक विस्तृत क्षेत्र का लेखा–जोखा प्रस्तुत करते हैं, उत्तर में हिमाचल प्रदेश से लेकर दक्षिण में तंजौर तक और पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में बंगाल तक।
सर्वेक्षित गाँव सामुदायिक जीवन के विविध प्रारूप प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इस विविधता में ही कहीं उस एकता का सूत्र गुँथा है जो भारतीय ग्रामीण दृश्य का लक्षण है। निबन्धों में गहरी धँसी जाति व्यवस्था और गाँव की एकता का प्रश्न हाल के वर्षों में बढ़े औद्योगिकीरण और शहरीकरण के ग्रामीण विकास के लिए सरकारी योजनाओं और शिक्षा के प्रभाव से जुड़े कुछ ऐसे पक्ष हैं जिनकी विद्वत्तापूर्ण पड़ताल हुई है। आज भी, भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी 80 प्रतिशत जनसंख्या उसके पाँच लाख गाँवों में रहती है, और उन्हें बदल पाने के लिए उनके जीवन की स्थितियों की जानकारी ज़रूरी है। ‘भारत के गाँव’ जिज्ञासु सामान्य जन और ग्रामीण भारत को जाननेवाले विशेषज्ञों के लिए ग्रामीण भारत का परिचय उपलब्ध कराती है।
Bharat Ke Gaon
M.N. Shrinivas
Aadhunik Bharat Mein Samajik Parivartan
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M.N. Shrinivas
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भारत के प्रमुख समाज एवं नृ-विज्ञानवेत्ता एम.एन. श्रीनिवास की यह महत्त्वपूर्ण कृति विश्व-कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर-स्मृति-भाषणमाला के सारभूत तत्त्वों पर आधारित है। आधुनिक भारतीयता के सन्दर्भ में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की विचारक के रूप में एक अलग महत्ता है। अपनी अमरीकी और यूरोपीय यात्राओं के दौरान विश्वकवि ने जो विचार प्रकट किए हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय सामाजिक परिवर्तनों में पाश्चात्य प्रभावों के प्रति उनकी गहरी रुचि थी।
स्वाधीनता-प्राप्ति के बाद भारतीय समाज में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया और भी तेज़ हुई है, जिसके व्यापक प्रभावों को सांस्कृतिक जीवन पर स्पष्ट देखा जा सकता है। लेखक ने इन प्रभावों को संस्कृतीकरण और पश्चिमीकरण के सन्दर्भ में व्याख्यायित किया है तथा एक अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता बताई है। उसके अनुसार पश्चिमीकरण भारतीय समाज के किसी विशेष अंश तक सीमित नहीं है और उसका महत्त्व—उससे प्रभावित होनेवालों की संख्या और प्रभावित होने के प्रकार, दोनों ही दृष्टियों से—लगातार बढ़ रहा है। वस्तुत: आधुनिक भारतीय समाज के अन्तर्विकास और उसके अन्तर्विरोधों को समझने के लिए यह एक मूल्यवान पुस्तक है।
Aadhunik Bharat Mein Samajik Parivartan
M.N. Shrinivas
Aadhunik Bharat Mein Jati
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M.N. Shrinivas
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Book Type:

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अथक अध्ययन और शोध के परिणामस्वरूप एम.एन. श्रीनिवास के निबन्ध आकार ग्रहण करते हैं। भारतीय समाज की नब्ज़ पर उनकी पकड़ गहरी और मज़बूत है। उनके लेखन में इतिहास और बुद्धि का बोझिलपन नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में संगृहीत निबन्धों में समाजशास्त्र व नृतत्त्वशास्त्र विषयक समस्याओं के व्यावहारिक पक्षों पर रोशनी डाली गई है। लेखक समस्याओं की तह में जाना पसन्द करता है और उसके विश्लेषण का आधार भी यही है।
हर समाज की अपनी मौलिक संरचना होती है। जिस संरचना को उस समाज के लोग देखते हैं, वह वैसी नहीं होती जैसी समाजशास्त्री शोध और अनुमानों के आधार पर प्रस्तुत करते हैं। भारतीय समाजशास्त्रियों ने जाति- व्यवस्था के जटिल तथ्यों को ‘वर्ण’ की मर्यादाओं में समझने की भूल की और जिसके चलते सामाजिक संरचना का अध्ययन सतही हो गया। गत सौ-डेढ़ सौ वर्षों के दौरान जाति-व्यवस्था का असर कई नए-नए कार्यक्षेत्रों में विस्तृत हुआ है और उसकी ऐतिहासिक व मौजूदा तंत्र की नितान्त नए दृष्टिकोण से विश्लेषण करने की माँग एम.एन. श्रीनिवास करते हैं। हमारे यहाँ जाति-व्यवस्था की जड़ें इतनी गहरी हैं कि बिना इसके सापेक्ष परिकलन किए मूल समस्याओं की बात करना बेमानी है। एम.एन. श्रीनिवास का मानना है कि समाज-वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए राजनीतिक स्तर के जातिवाद तथा सामाजिक एवं कर्मकांडी स्तर के जातिवाद में फ़र्क़ करना ज़रूरी है।
Aadhunik Bharat Mein Jati
M.N. Shrinivas
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