Leo Tolstoy
Bachpan
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Leo Tolstoy
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तोल्स्तोय विश्व-स्तर पर पढ़े जाने वाले रूसी लेखक हैं। वे दुनिया के उन कुछ लेखकों में शामिल है, जिन्हें हर भाषा और हर देश में अपना मानकर पढ़ा जाता है, जो सम्पूर्ण मानवता की सम्पत्ति हैं।
यह छोटा-सा उपन्यास उनकी आरम्भिक रचना है, जिसमें उन्होंने अपनी दस वर्ष की आयु के बाद के कुछ वर्षों का वर्णन किया है। इसकी रचना उन्होंने तब की थी जब वे सत्ताईस वर्ष के थे। इस आत्मकथात्मक रचना में उन्होंने बालपन की सादगी, भोलेपन और दैनन्दिन जीवन की नाटकीयता को ख़ासतौर पर पकड़ा है। वय:संधि के मोड़ पर खड़े एक किशोर के मन की उथल-पुथल भी इसमें अभिव्यक्त हुई है और एक लेखक के रूप में तोल्स्तोय की प्रतिभा की संभावनाएँ भी उनकी इस रचना में सामने आई थीं जिन्हें उस समय के लेखकों ने विशिष्ट माना था।
निर्मल वर्मा के अनुवादों की शृंखला में भी इस पुस्तक का स्थान बहुत शुरू में आता है। तोल्स्तोय की लेखन-शैली और संवेदना को हिन्दी में प्रस्तुत करते हुए उन्होंने मूल की बारीकियों को सम्प्रेषणीय ढंग से वहन किया है।
Bachpan
Leo Tolstoy
Punarutthan
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Leo Tolstoy
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आधुनिक इतिहास में यदि किसी विचारक-लेखक की ख्याति उसकी ज़िन्दगी में ही पूरी दुनिया में फैल चुकी थी और जीते-जी ही वह एक मिथक बन गया था, तो वे लेव तोल्स्तोय ही थे। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर जिस तरह बाल्ज़ाक छाए हुए थे, उसी तरह उत्तरार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर तोल्स्तोय का प्रभाव-साम्राज्य फैला हुआ था।
‘पुनरुत्थान’ एक नए प्रकार का उपन्यास था जिसमें पात्रों के गहन आत्मसंघर्ष और रूपान्तरण के साथ ही, सेंट पीटर्सबर्ग के दरबार के लोगों और ग्रामीण कुलीनों से लेकर किसानों, क़ैदियों और साइबेरिया-निर्वासन पर जा रहे क़ैदियों के चरित्रों के माध्यम से तत्कालीन रूस के समूचे वैविध्यपूर्ण सामाजिक परिदृश्य को एक इतिहासकार-सदृश वस्तुपरकता और अधिकार के साथ उपस्थित कर दिया गया है। कात्यूशा का मुक़दमा और उसमें जूरी सदस्य के रूप में नेख्लूदोव की उपस्थिति सामाजिक अन्याय पर आधारित जीवन की निरर्थकता और न्यायतंत्र की कुरूपता को एकदम नंगा कर देती है।
‘पुनरुत्थान’ में तोल्स्तोय सरकार, न्यायालय, चर्च, कुलीन भूस्वामियों के विशेषाधिकारियों, भूमि के निजी स्वामित्व, मुद्रा, जेलों और वेश्यावृत्ति की मर्मभेदी आलोचना करते हैं। घनी और शक्तिशाली लोगों द्वारा उत्पीड़ित निम्न वर्गों के प्रति सहानुभूति-प्रदर्शन पर उपन्यास तीखा व्यंग्य करता है। किसानों, क्रान्तिकारियों और निर्वासित अपराधियों सहित सामान्य जनसमुदाय का चित्रण करते हुए तोल्स्तोय का ज़ोर इस बात पर है कि उत्पीड़न और अधिकारहीनता ने आमजन की आत्मिक शक्तियों को पंगु बना डाला है।
Punarutthan
Leo Tolstoy
Cruser Sonata
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Leo Tolstoy
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‘दो हुस्सार’ तोल्स्तोय की पहली गल्प रचना थी जो उनके निजी अनुभवों से इतर विषयवस्तु पर थी। पिता और पुत्र के नितान्त भिन्न व्यक्तित्वों और कारनामों के रूप में तोल्स्तोय ने दो पीढ़ियों को आमने–सामने खड़ा किया है। ‘सुखी दम्पती’ (1859) में तोल्स्तोय ने अपने निजी जीवन की घटनाओं को बड़ी ख़ूबसूरती से कला में ढाला है। कहानी के पहले भाग में एक संवेदनशील सत्रह वर्षीय युवती के मन में अपने से दूनी उम्र के व्यक्ति के लिए उपजते प्रेम का अद्भुत, काव्यात्मक वृत्तान्त है, पर पहले भाग का उल्लासमय, काव्यात्मक माहौल दूसरे भाग में वैवाहिक जीवन के तनावों और खिंचावों से छिन्न–भिन्न हो जाता है।
‘इवान इलिच की मौत’ एक सामान्य आदमी की कहानी है जिसे मौत की दहलीज़ पर अपने व्यतीत जीवन की निरर्थकता का अहसास होता है। इवान इलिच के जीवन के अन्तिम क्षणों की अनुभूति धार्मिक मुक्ति विषयक तोल्स्तोय की अवधारणा को प्रस्तुत करती है, लेकिन इन मिथ्याभासों के ऊपर रचना का गम्भीर मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद हावी है। ‘क्रूज़र सोनाटा’ में ऐन्द्रिक प्यार और वासना के विरुद्ध संघर्ष को विषय बनाया गया है और नि:स्वार्थ प्यार के ईसाई सिद्धान्त की वकालत की गई है, लेकिन यहाँ भी तोल्स्तोय के धर्मोपदेशक के पहलू पर वस्तुस्थिति का आलोचनात्मक यथार्थवादी चित्रण हावी है। ‘इंसान और हैवान’ कहानी का मुख्य ‘नैरेटर’ एक घोड़ा है। तोल्स्तोय की अन्य प्रारम्भिक रचनाओं की तरह इस कहानी में भी मानव समाज की कृत्रिमता और परम्पराबद्धता पर, ख़ासकर सम्पत्ति की संस्था पर व्यंग्य किया गया है। ‘नाच के बाद’ (1903) में पचहत्तर वर्षीय तोल्स्तोय ने एक बार फिर कज़ान विश्वविद्यालय में युवा छात्र के रूप में अपने एक प्रेम सम्बन्ध से प्रेरणा ली है। अपने गहरे यथार्थवाद और मनोवैज्ञानिक पड़ताल के उपकरणों से वह अतीत के वातावरण को बेहद जीवन्त और ताज़गी-भरे ढंग से पाठकों के सामने सजीव करते हैं। लेकिन कहानी के अन्त में तोल्स्तोय पाठकों के मन पर राज्य के प्रति नफ़रत का भाव छोड़ने में सफल रहते हैं जिसे वह न केवल नागरिकों का शोषण करने बल्कि उनके मनोबल को तोड़ डालने की एक साज़िश मानते हैं।
Cruser Sonata
Leo Tolstoy
Anna Karenina : Vols. 1-2
- Author Name:
Leo Tolstoy
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- Description: ‘आन्ना कारेनिना’ महाकाव्यात्मक त्रासदी को नए दिक्-काल सन्दर्भों में पुनर्परिभाषित करने का दबाव बनानेवाला यह महान उपन्यास अपराध या पाप के नैतिक प्रश्न को गहरे ऐतिहासिक-सामाजिक सन्दर्भों में प्रस्तुत करते हुए, समाज और स्वयं अपने जीवन के प्रति प्रत्येक व्यक्ति के उत्तरदायित्व को चिन्तन के केन्द्र में उपस्थित करता है। इसके साथ ही, यह तत्कालीन रूसी जीवन के सभी बुनियादी और केन्द्रीय अन्तर्विरोधों को भी चित्रित करता है। सामाजिक जीवन की समस्याओं तथा कला और दर्शन के प्रश्नों के साथ ही तोल्स्तोय ने इस उपन्यास में परिवार और नैतिक जीवन की समस्याओं पर केन्द्रित करते हुए स्त्री-प्रश्न को भी गहरी दार्शनिक चिन्ता के साथ प्रस्तुत किया है। उल्लेखनीय है कि इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद, तोल्स्तोय गम्भीर विचारधारात्मक संकट के दौर से गुज़रे, जिसकी परिणति के तौर पर, बल के द्वारा बुराई के अप्रतिरोध का सिद्धान्त प्रतिपादित करते हुए भी, वे मौजूदा व्यवस्था की सभी बुनियादों को ख़ारिज करने तथा सामाजिक ढाँचे की निर्मम-बेलाग आलोचना करने की स्थिति तक जा पहुँचे। ‘आन्ना कारेनिना’ का दायरा हालाँकि ‘युद्ध और शान्ति’ की अपेक्षा संकुचित है, लेकिन इस उपन्यास के चरित्र अधिक जटिल हैं। वे अधिक संवेदनशील प्रतीत होते हैं और उनके आन्तरिक तनाव और चिन्ताएँ उपन्यास में समग्र जीवन की अनिश्चितता और अस्थायित्व के परिवेश को परावर्तित करती हैं। ‘आन्ना कारेनिना’ एक हद तक आत्मकथात्मक उपन्यास भी है। इसे लिखते हुए तोल्स्तोय अपने समय और अपने ख़ुद के जीवन के बारे में स्वयं ही स्पष्ट होने की प्रक्रिया से गुज़र रहे थे। उपन्यास में जिन समस्याओं को उठाने और हल करने की कोशिश की गई थी, उनके प्रति तोल्स्तोय के सरोकार ने 1870 के दशक के अन्त में उन्हें एक नए विचारधारात्मक संकट के भँवर में धकेल दिया और पितृसत्तात्मक किसानी नज़रिए के प्रति उनकी पक्षधरता भी संकटग्रस्त हो गई।
Anna Karenina : Vols. 1-2
Leo Tolstoy
Leo Tolstoy Ki Lokpriya Kahaniyan
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Leo Tolstoy
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- Description: "‘‘क्या वे लोग खेत जोत रहे हैं? क्या उन लोगों ने अपना काम खत्म कर लिया?’’ ‘‘उन लोगों ने आधे से अधिक खेत जोत लिये हैं।’’ ‘‘क्या कुछ भी काम बचा नहीं है?’’ ‘‘मुझे तो नहीं दिखा; पर उन्होंने जुताई अच्छी तरह से की है। वे सभी डरे हुए हैं।’’ ‘‘ठीक है। अब तो जमीन ठीक हो गई है न?’’ ‘‘हाँ, अब खेत तैयार हैं और उनमें अफीम के पौधों के बीज डाले जा सकते हैं।’’ मैनेजर थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोला, ‘‘वे लोग मेरे बारे में क्या कहते हैं? क्या वे मुझे गाली देते हैं?’’ बूढ़ा कुछ हकलाने लगा, पर माइकल ने उसे सच बोलने के लिए कहा, ‘‘तुम मुझे सच बताओ। तुम अपने शब्द नहीं, बल्कि किसी और के शब्द बोल रहे हो। यदि तुम मुझे सच-सच बताओगे, तब मैं तुमको इनाम दूँगा; और अगर तुम मुझे धोखा दोगे तो ध्यान रखना, मैं तुम्हें बहुत मारूँगा। कर्तुशा! इसे एक गिलास वोदका दो, ताकि इसमें साहस पैदा हो।’’ —इसी संग्रह से • सुप्रसिद्ध रूसी कथाकार लियो टॉलस्टॉय ने जीवन के सभी पक्षों पर प्रभावी रचनाएँ की हैं। उन्होंने धर्म में व्याप्त पाखंड तथा तत्कालीन कुरीतियों को अनावृत किया। मनोरंजन के साथ-साथ मन को उद्वेलित करनेवाली सरस टॉलस्टॉय की लोकप्रिय कहानियों का संग्रह।"
Leo Tolstoy Ki Lokpriya Kahaniyan
Leo Tolstoy
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