Kamlesh Jain
Balatkar Hone Par
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Kamlesh Jain
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Book Type:

- Description: इस पुस्तक का एकमात्र उद्देश्य है समाज को इस अपराध के प्रति जागरूक बनाना, यह बताना कि ख़ुद का बचाव कैसे किया जाए यदि यह हादसा हो ही जाए, किसी के साथ तो, उसकी किस तरह मदद की जाए, उसके आर्थिक, सामाजिक एवं क़ानूनी पक्ष को कैसे सँभाला जाए। इनकी जानकारी के अभाव में हम अपना रुख़ पीड़िता के विरुद्ध कर लेते हैं, उसी को सज़ा देते हैं, उसका अपमान करके, उससे किनारा करके जबकि उसे वैसे भी सहारे की ज़रूरत सबसे ज़्यादा होती है।
Balatkar Hone Par
Kamlesh Jain
Nyayapalika Kasauti Par
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Kamlesh Jain
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‘न्यायपालिका कसौटी पर’ अंग्रेज़ी में छपी लेखिका की पहली पुस्तक ‘ज्यूडिशियरी ऑन ट्रायल’ का हिन्दी अनुवाद है। यह पुस्तक ‘क्रिमिनल ज्यूडिशियल सिस्टम’ की ढहती दीवारों को लेकर चिन्तित आम और ख़ास सभी लोगों का द्वार खटखटाती है।
जेलों में क़ैदियों का जीवन कठिन होता जा रहा है। यह सच वकीलों एवं मुवक्किलों के लिए प्रायः चिन्ता का विषय रहा है। न्यायालयों ने भी यदा-कदा इस विषय पर अपनी चिन्ता ज़ाहिर की है। जेल का उद्देश्य क़ैदी में इस क़दर ‘सुधार’ ला देना है कि वह सज़ा के बाद एक सामान्य नागरिक का जीवन जी सके। पर यह दुर्भाग्य ही है कि सारी चेष्टाओं के बावजूद क़ैदियों का जीवन बद से बदतर होता जा रहा है। यही वह जगह है जहाँ निर्दोष एवं कठोर अपराधी एक-दूसरे से रूबरू होते हैं। यही वजह है कि जेलों में नियम एवं मानवीय अधिकारों का पालन और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है।
पेशे से वकील कमलेश जैन ने जेल के बारे में गम्भीरता से सोचा है। वे मानती हैं कि क़ैदी भी उसी ईश्वर की सन्तान हैं जिसने हम सबको बनाया। उन्होंने क़ैदियों के नज़रिये से सारे ‘क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ को परखा है और इसके चतुर्दिक ह्रास को रेखांकित करते हुए कुछ सुझाव भी दिए हैं। ‘न्यायपालिका कसौटी पर’ उन क़ैदियों के लिए है जो ऐसी परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं जहाँ ‘सुधार’ अनुपस्थित है, सिर्फ़ दमन ही दमन है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए भी है जिनकी मानवीय अधिकारों और मानवीय न्याय में गहरी दिलचस्पी है
Nyayapalika Kasauti Par
Kamlesh Jain
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Kamlesh Jain
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कॉपीराइट यानी प्रतिलिपि अधिकार का जन्म मौलिक सृजन और उसके व्यावसायिक हितों की रक्षा के लिए हुआ था। लेकिन कॉपीराइट के मामले छापाख़ाने के आविष्कार के बाद उठना शुरू हुए। इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय ने पुस्तकों की नक़ल पर रोक लगाने के लिए 1662 में लाइसेंसिंग एक्ट पास किया। लेकिन पहला कॉपीराइट क़ानून 1709 में पास किए गए क़ानून को ही माना जाता है।
कॉपीराइट पुस्तकों का ही नहीं संगीत, गीत, फ़िल्म, फ़ोटोग्राफ़ी, कला, वास्तुकला से लेकर सॉफ़्टवेयर तक हर क्षेत्र में सम्भव है और यह केवल एक देश का मसला नहीं है। 1886 में बर्न सम्मेलन में इसके अन्तरराष्ट्रीय रूप का निर्धारण हुआ। 1995 में विश्व व्यापार संगठन बनने के बाद से इसका और विस्तार हो रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय प्रतिलिपि अधिकार अधिनियम—1957 एवं प्रतिलिपि अधिकार नियमावली—1958 दोनों के उल्लेख हैं। इस अधिनियम की सम्पूर्ण जानकारी होने से रचनाकार यानी कलाकार, संगीतकार, लेखक आदि अपनी बौद्धिक सम्पदा की रक्षा कर सकते हैं। इस अर्थ में इस पुस्तक को सम्पूर्ण मार्गदर्शिका कहा जा सकता है जो लेखक, रचनाकार और प्रकाशक, सभी के लिए उपयोगी साबित होगी।
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Kamlesh Jain
HIV AIDS : Satabdi Ka Sabase Bada Dhokha
- Author Name:
Kamlesh Jain
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अमेरिकी सत्ता, सूचनातंत्र और बौद्धिक समुदाय के अथक प्रयत्न के कारण आज एड्स सारी दुनिया में चिन्ता और चर्चा का मुख्य विषय बन गया है। भारत में एड्स के बारे में लोगों को जानकारी बहुत कम है, लेकिन अफ़वाह की तरह उसका प्रसार और प्रभाव बहुत अधिक है। ऐसी स्थिति में कमलेश जैन ने सहज, सुबोध और जानदार भाषा में ‘एचआईवी/एड्स : शताब्दी का सबसे बड़ा धोखा’ नामक पुस्तक लिखकर एड्स के बारे में प्रचारित अनेक मिथकों का राज-रहस्य खोला है और उसके झूठ-सच से विशेषज्ञों को ही नहीं, सामान्य जनों को भी परिचित कराया है।
यह सतर्क सामाजिक संवेदनशीलता और गहरी मानवीय ज़िम्मेदारी से लिखी गई पुस्तक है। कमलेश जैन की पुस्तक यह साबित करती है कि विज्ञान के क्षेत्र में विचारधारा किस प्रकार काम करती है और यह भी कि विज्ञान को किस तरह जनविरोधी तथा जनता का पक्षधर बनाया जा सकता है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि एड्स के बारे में विभिन्न देशों की सरकारों, ग़ैरसरकारी संगठनों और सूचना साम्राज्य के तंत्रजालों द्वारा जो झूठा सच रोज़-रोज़, बार-बार, लगातार प्रचारित किया जा रहा है; उसके विरुद्ध कुछ सुनना, समझना और स्वीकार करना आसान नहीं है। लेकिन जो एड्स सम्बन्धी जानलेवा झूठ से बचना चाहते हैं और अपने जीवन तथा अपने समाज के जीवन में आस्था रखते हैं, वे इस पुस्तक को ज़रूर पढ़ेंगे और इसके संजीवन सच को स्वीकार करेंगे।
HIV AIDS : Satabdi Ka Sabase Bada Dhokha
Kamlesh Jain
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