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Vishwanath Tripathi

Desh Ke Is Daur Mein

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: परसाई जी पर आपकी किताब मिल गई और पढ़ ली गई। अपने देश व समाज से,मानवता से आप जिस गहराई तक जुड़े हैं, उस पर अचम्भा होता है। आपके लेखन से ताक़तमिलती है। बहुत-सी चीज़ें साफ़ होती हैं। परसाई जी का मैं प्रशंसक हूँ आज से नहीं, बहुत पहले से।हिन्दी में आज तक ऐसा हास्य-व्यंग्यकार नहीं हुआ। आपने बहुत बड़ा काम किया है। परसाई जी की जीवनी और कृतित्व दोनों को मिलाकर एक पुस्तक लिखी जानी चाहिए। —अमरकान्त परसाई पर विश्वनाथ त्रिपाठी ने पहली बार गम्भीरता से विचार किया है। यह अभी तक की एक अनुपम और अद्वितीय पुस्तक है, जिसमें परसाई के रचना-संसार को समझने और उद्‌घाटित करने का प्रयास किया गया है। —ज्ञानरंजन परसाई का लेखन डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी के चिन्तन के क़रीब पड़ता है। वे अपने चिन्तन को परसाई की रचना से पुष्ट और समृद्ध करते हैं। परसाई जी के निबन्धों की उन्होंने बहुत तरह से, बहुतकोणों से जाँच-पड़ताल की है— वर्तमानता की दृष्टि से, मनोविकारों की दृष्टि से, कला की दृष्टि सेऔर रूप की दृष्टि से। —बलीसिंह
Desh Ke Is Daur Mein

Desh Ke Is Daur Mein

Vishwanath Tripathi

125

₹ 100

Vidhaon Ki Virasat

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: प्रगतिशील आलोचना-परम्परा के प्रतिनिधि आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी की यह पुस्तक‘विधाओं की विरासत’न केवल उनकी सूक्ष्म आलोचकीय दृष्टि के कारण बल्कि उनके गद्य की सरस सर्जनात्मकता के कारण भी ध्यान आकृष्ट करती है। साहित्य उनके लिए मानवीयता का विस्तार करने वाली नैतिकता का माध्यम है, रचना सांस्कृतिक प्रक्रिया का हिस्सा और आलोचना महत्त्वपूर्ण सामाजिक दायित्व। इस दायित्व का निर्वाह करते हुए वे रचनाओं की और उनमें वर्णित पात्रों की पृष्ठभूमि और जीवन की खोज करते हैं और उसके सामने अपने जीवनानुभव एवं दृष्टिकोण को रखते हुए पाठक के भाव-बोध को समृद्ध करते हैं। वे भाषा एवं चित्रण-कला के विश्लेषण के माध्यम से भी मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा करते हैं। वे रचनाओं की संरचना को अपने विश्लेषण द्वारा सामाजिकता तथा राजनीति की धार प्रदान करते हैं। राजनीति और रचना बराबर सामाजिकता या सामाजिकता और रचना बराबर राजनीति का सूत्र इस पुस्तक के लेखों, टिप्पणियों आदि में मिलता है। सामाजिकता को वे बोध और संवेदना दोनों मानते हैं। जीवन की विषमता को पाटने की छटपटाहट से रहित रचना उनके लिए साहित्य नहीं हो सकती। उनके मुताबिक, संवेदना जीवन-आचरण और रचना-आचरण के द्वारा संस्कृति में ढलती है और साहित्य की महत्ता अनुभूति की तीव्रता को लेकर नहीं, बल्कि उसे शब्द के माध्यम से असीमित कर देने में है। वे किसी भी रचना की परख ऐसी ही कसौटियों से करते हैं और सांस्कृतिक चेतना के विकास को पहचानने वाली अन्तर्दृष्टि पाठक को प्रदान करते हैं। वस्तुतः यह ऐसी आलोचना है जो स्वयं एक सांस्कृतिक प्रक्रिया है जिसकी आज कहीं अधिक आवश्यकता है।
Vidhaon Ki Virasat

Vidhaon Ki Virasat

Vishwanath Tripathi

695

₹ 556

Premchad : Katha Sunate Huye

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: ‘प्रेमचन्द : कथा सुनाते हुए’ विश्वनाथ त्रिपाठी के निबन्धों का संचयन है। इसके कुछ आलेख लेखकों को लेकर लिखे गए हैं और कुछ पुस्तकों को पढ़ते हुए, उनके बारे में सोचते हुए। जाहिर है दोनों ही में समकालीन साहित्यिक प्रश्नों पर विचार और साहित्य को समझने-जानने की प्रविधियों पर चर्चा भी होती चली है। उदाहरण के लिए, प्रेमचन्द के बारे में बात करते हुए वे लिखते हैं : ‘निर्मल वर्मा ने कहा है कि भारतीय उपन्यास लिखे ही नहीं गए। नामवर जी ने इसका समर्थन किया।’ इस पर अपना पक्ष रखते हुए विश्वनाथ त्रिपाठी का कहना है : ‘प्रेमचन्द का कथाशिल्प ठेठ भारतीय है (जैसे कोई बुजुर्ग अलाव के आसपास हाथ तापते हुए कहानियाँ सुना रहा हो) और फिर उनकी कथावस्तु क्या अभारतीय है? ...जिसे जादुई यथार्थवाद कहा जाता है वह भी अभारतीय नहीं है। प्रेमचन्द की कई कहानियों में यह जादुई यथार्थ मिलता है।’ जैनेन्द्र के ‘त्यागपत्र’ पर विचार करते हुए कहते हैं : ‘जिस तरह मृणाल की मूक सहनशीलता में विद्रोह छिपा है, उसी तरह निर्णायक घटनाओं और पात्रों के नेपथ्य ही में रहने से उनका रूप प्रभावशाली हो जाता है। शब्द मूलतः मूर्तन नहीं करते, वे श्रोता और पाठक को अपने संस्कारों, रुचियों और आवश्यकता के अनुसार कल्पना करने की पूरी छूट देते हैं। इसीलिए अच्छी कहानी या अच्छे उपन्यास पर बनी हुई फ़िल्में प्रायः पाठकों को सन्तुष्ट नहीं कर पातीं।’ यह विचारोत्तेजक है और पाठक को इन बिन्दुओं पर अपने ढंग से सोचने को आमंत्रित करता है। पुस्तक में संकलित अन्य आलेखों में आप ‘राग दरबारी’, ‘लेकिन दरवाज़ा’, ‘गोदान’, ‘सात आसमान’, ‘सारा आकाश’ और ‘मानस का हंस’ जैसे चर्चित उपन्यासों पर उनके सुचिन्तित अवलोकन के अलावा कई अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों पर भी उनके विचारों से अवगत होते हैं।
Premchad : Katha Sunate Huye

Premchad : Katha Sunate Huye

Vishwanath Tripathi

595

₹ 476

Premchand Biskohar Mein

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: ‘प्रेमचन्द बिस्कोहर’ में हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी की कविताओं का संकलन है—कह सकते हैं कि उनका मन, भावों से भरा। लेकिन ये किसी निराकार अनुभूति से उपजे भाव नहीं हैं। इनकी जड़ें हैं—पृथ्वी में, स्मृति में, परिवार में, प्रकृति में और उस इतिहास में जो समय के अंक में बन रहा है, बीत रहा है— फूल में सूरज में मिट्टी में आँखों में झुलसे सँवलाए चेहरों में एक लपट काँपती रहती है| मैं उसी से शब्दों को सुलगा लेता हूँ| ये धीमी आँच में सुलगते हुए शब्द हैं जिनकी उष्मा हमें कुछ देर बाद महसूस होती है और फिर देर तक साथ रहती है, हमें हमारे ऐसे ही क्षणों की ओर लौटाती हुई—अपने स्मृति-वृक्षों के पास। यह देखकर तो किसे अचरज होगा कि वे भाषा से काम भी एक कुशल कारीगर की तरह लेते हैं। वह शब्द-संयम जो मुक्तिबोध और शमशेर में है, यहाँ भी दिखाई देता है; और अनेक ऐसे बिम्ब भी जो केवल यहीं उपलब्ध हैं। मसलन एक बिल्ली है—मैंने उसके अंगों में चुम्बनों की घंटियाँ बाँध दी हैं वह जहाँ होगी, घंटियाँ खनखना रही होंगी। एक पठनीय और संग्रहणीय कविता-संग्रह।
Premchand Biskohar Mein

Premchand Biskohar Mein

Vishwanath Tripathi

495

₹ 396

Kuchh Kahaniyan : Kuchh Vichar

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: रचना और पाठक के बीच समीक्षक या आलोचक नाम की तीसरी श्रेणी ज़रूरी है या नहीं, यह शंका पुरानी है। सामाजिक या राजनीतिक ज़रूरत के रूप में यह श्रेणी अपनी उपादेयता बार-बार प्रमाणित करती रही है। लेकिन साहित्यिक ज़रूरत के रूप में? यह ख़ास ज़रूरत दरअसल न हमेशा पेश आती है और न पूरी होती है। यह ज़रूरत तो बनानी पड़ती है। आलोचना या समीक्षा की विरली ही कोशिशें ऐसी होती हैं जो पाठक को रचना के और-और क़रीब ले जाती हैं, और-और उसे उसके रस में पगाती हैं। ये कोशिशें रचना के समानान्तर ख़ुद में एक रचना होती हैं। मूल के साथ एक ऐसा रचनात्मक युग्म उनका बँटा है कि जब भी याद आती हैं, दोनों साथ ही याद आती हैं।

    इस पुस्तक में संकलित समीक्षाएँ ऐसी ही हैं। बड़बोलेपन के इस ज़माने में विश्वनाथ त्रिपाठी ने एक अपवाद की तरह हमेशा ‘अंडरस्टेटमेंट’ का लहज़ा अपनाया है। उनके लिखे पर ज़्यादा कहना भी अनुचित के सिवाय और कुछ नहीं है। इतना कहना लेकिन ज़रूरी लगता है कि कुछ स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानियों पर लिखी ये समीक्षाएँ पढ़ने के बाद वे कहानियाँ फिर-फिर पढ़ने को जी करता है। हमारे लिए वे वही नहीं रह जातीं, जो पहले थीं।

Kuchh Kahaniyan : Kuchh Vichar

Kuchh Kahaniyan : Kuchh Vichar

Vishwanath Tripathi

300

₹ 240

Prarambhik Awadhi

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: जिन रचनाओं के आधार पर प्रस्तुत अध्ययन किया गया है, वे मोटे तौर पर 1000 ई. से लेकर 1600 ई. तक की हैं। राउरबेल का रचनाकाल 11वीं शती है। इसलिए यदि राउरबेल के प्रथम नखशिख की भाषा को, जिसमें अवधी के पूर्व रूपों की स्थिति मानी गई है, भाषा का प्रतिनिधि मान लिया जाए जिससे अवधी विकसित हुई तो अनुचित नहीं होगा।

    इस पुस्तक में 'अवधी की निकटतम पूर्वजा भाषा’ नामक अध्याय में प्राकृत पैंगलम् के छन्दों, राउरबेल और उक्तिव्यक्तिप्रकरण में से ऐसे रूपों को ढूँढ़ने का प्रयास है जो अवधी में मिलते हैं या जिनका विकास उस भाषा में हुआ है। अगले अध्याय अर्थात् ‘प्रारम्भिक अवधी के अध्ययन की सामग्री’ में प्रकाशित और अप्रकाशित वे रचनाएँ विचार के केन्द्र में हैं जिनके आधार पर प्रारम्भिक अवधी का भाषा सम्बन्धी विवेचन किया गया है।

    ‘ध्वनि विचार’ के अन्तर्गत प्रारम्भिक अवधी के व्यंजनों और स्वरों को निर्धारित करने का प्रयत्न किया गया है। प्रारम्भिक अवधी की ध्वनियों को ठीक-ठीक निरूपित करने के लिए आज हमारे पास कोई प्रामाणिक साधन नहीं है। इसलिए इन पर प्राचीन वैयाकरणों तथा अन्य विद्वानों के मतों के प्रकाश में विचार किया गया है।

    प्रारम्भिक अवधी की क्रियाओं का अध्ययन प्रस्तुत प्रबन्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण अंश समझा जाना चाहिए, क्योंकि प्रारम्भिक अवधी में ऐसे कई क्रिया-रूपों का पता चला है जो परवर्ती अवधी में या तो बहुत कम प्रयुक्त हैं या अप्रयुक्त हैं। ‘उपसंहार’ के अन्तर्गत प्रारम्भिक अवधी की कुछ विशेषताओं को ध्यान में रखकर अवधी काव्यों की भाषा से उसका अन्तर स्पष्ट कर दिया गया है। आशा है, पाठक इस पुस्तक को सार्थक पाएँगे।

Prarambhik Awadhi

Prarambhik Awadhi

Vishwanath Tripathi

995

₹ 796

Hindi Aalochana

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी के विपुल और विविध आलोचना-साहित्य का विकास-क्रम दिखाते हुए उसका विस्तृत विवेचन किया गया है। लेखक ने कोशिश की है कि आलोचना-साहित्य के मूल स्रोतों को देखकर ही उसके विषय में कुछ लिखा जाए।

    यह अध्ययन प्रधानत: शुक्ल और प्रमुख शुक्लोत्तर समीक्षकों पर ही आधारित है। इसमें पं. रामचन्द्र शुक्ल के आलोचक की शक्ति को समझने का उद्यम किया गया है और उन्होंने आलोचक बनने की जो गम्भीर साधना की थी, उस पर प्रकाश डाला गया है। पं. नन्ददुलारे वाजपेयी, पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा डॉ. नगेन्द्र की आलोचनात्मक कृतियों का जायज़ा लिया गया है और प्रगतिशील समीक्षकों में डॉ. रामविलास शर्मा तथा
    डॉ. नामवर सिंह के योगदान पर विचार किया गया है।

    पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग की पत्र-पत्रिकाओं और छायावादी कवियों के आलोचनात्मक विचारों के भी महत्त्व को ठीक ढंग से आँकने का प्रयास है। कुल मिलाकर, पुस्तक में हिन्दी आलोचना को नए ढंग से देखा-परखा गया है।

Hindi Aalochana

Hindi Aalochana

Vishwanath Tripathi

795

₹ 636

Harishankar Parsai : Desh Ke Is Daur Mein

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: देश के इस दौर में हरिशंकर परसाई के व्यंग्य-निबन्धों की विवेचना है। यह वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपनी गहरी अन्तर्दृ​ष्टि के साथ विवेचना की है। परसाई पर केन्द्रित पुस्तकों में इस पुस्तक का अपना अलग स्थान है। बकौल ज्ञानरंजन ‘यह अभी तक की एक अनुपम और अद्वितीय पुस्तक है जिसमें परसाई के रचना-संसार को समझने और उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है।’

    त्रिपाठी जी का मानना है कि ‘परसाई का रचनाकार एक इतिहास-पुरुष है जो अपने समय का सबकुछ देख रहा है, अपने युग का चित्र बना रहा है। विवेक के साथ।’ वे कहते हैं कि ‘परसाई का व्यंग्य असहज-असुन्दर का उद्घाटन करके सहज-सुन्दर को गढ़ने का प्रयास करता है।’

    लगभग चालीस वर्षों में फैली परसाई की रचनात्मकता को इस पुस्तक में विश्वनाथ त्रिपाठी ने जितने आत्मीय ढंग से जान-समझकर हम तक पहुँचाया है, उससे परसाई हमें एक नए सिरे से समझ आते हैं। वर्तमान की उनकी समझ, अपने पात्रों को लेकर उनकी संवेदना की व्यापकता, मनोविकारों का चित्रण, उनके व्यंग्य-निबन्धों के विषयों का असीम संसार, मानवीय करुणा, चरित्र-चित्रण और उनके सौन्दर्यबोध को उद्धरणों के साथ जिस तरह यहाँ विश्लेषित किया गया है, वह अपूर्व है।

    यह इस पुस्तक का परिवर्द्धित संस्करण है जिसमें परसाई के जीवन-वृत्त के साथ भूमिका के रूप में उनके व्यंग्य पर केन्द्रित एक लम्बा आलेख भी शामिल किया गया है।

Harishankar Parsai : Desh Ke Is Daur Mein

Harishankar Parsai : Desh Ke Is Daur Mein

Vishwanath Tripathi

299

₹ 239.2

Bisnath Ka Balrampur

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: ‘नंगातलाई का गाँव’ के बाद ‘बिसनाथ का बलरामपुर’। इसमें विश्वनाथ त्रिपाठी वर्णन कर रहे हैं अपने विद्यार्थी जीवन और उस समय की सामाजिक-राजनीतिक आबोहवा का। आजादी के ठीक पहले का वातावरण जिसे हम इतिहास की पुस्तकों में उस तरह महसूस नहीं कर सकते, जैसे यहाँ कर सकते हैं—इस आख्यान में।

    बलरामपुर यहाँ स्वतंत्रता-पूर्व के मिनी भारत के रूप में दिखाई देता है—वहाँ रियासत है, अंग्रेज अधिकारी हैं, स्वतंत्रता आन्दोलन और उसके नेताओं को लेकर बड़े शहरों जैसी सजगता-सक्रियता है, हिन्दू-मुसलमान के प्रश्न हैं, मुस्लिम लीग है और आर.एस.एस. है जिसके जादुई आकर्षण ने युवा और विचारशील बिसनाथ को सालों बाँधे रखा। वे उसके लिए जेल भी गए, और फिर अपनी विचारशीलता के चलते उससे मुक्त हुए।

    विश्वनाथ त्रिपाठी बतौर आलोचक पाठ की जितनी तहों को देख पाते हैं, रचनात्मक आख्यान में उससे भी ज्यादा समाज की और मनुष्य की परतों को देख लेते हैं, और उसे जिस तरह लिखते हैं, वह उन्हें उत्तम कोटि का किस्सागो बनता है।

    इस स्मृति-यात्रा में उन्होंने पूर्वी अवध के सांस्कृतिक-सामाजिक और राजनीतिक जीवन का अत्यन्त जीवन्त और व्यापक चित्र खींचा है। बच्चों के खेलों से लेकर लोक में रचे-बसे कला-रूपों, गीत-संगीत और जीवन की दैनन्दिनी में दिखाई पड़नेवाली विडम्बनाओं, आपदाओं और संकटों को भी उन्होंने बहुत नजदीक से देखा-जाना है; और यह सब एक सामर्थ्यवान गद्य के रूप में इस पुस्तक के पन्नों पर अंकित हुआ है। ‘संकट के समय में कविता’ शीर्षक अध्याय में उनकी स्मृतियाँ वर्तमान तक चली आती हैं जिसमें उन्होंने कोविड के दौर के साथ-साथ कुछ और मार्मिक क्षणों को भी लिपिबद्ध किया है।

Bisnath Ka Balrampur

Bisnath Ka Balrampur

Vishwanath Tripathi

299

₹ 239.2

Lokvadi Tulsidas

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: कई लोगों का ख़याल है कि तुलसी की लोकप्रियता का कारण यह है कि हमारे देश की अधिकांश जनता धर्म-भीरु है। और क्योंकि तुलसी की कविता भक्ति का प्रचार करती है, इसलिए वह इतनी लोकप्रिय और प्रचलित है।

    लेकिन इस पुस्तक के लेखक का तर्क है कि सभी भक्त-कवि तुलसी-जैसे लोकप्रिय नहीं हैं। यदि धर्मभीरुता ही लोकप्रियता का आधार होती तो नाभादास, अग्रदास, सुन्दरदास, नन्ददास आदि भी उतने ही लोकप्रिय होते।

    वे इस पुस्तक में बताते हैं कि तुलसीदास की लोकप्रियता का कारण यह है कि उन्होंने अपनी कविता में अपने देखे हुए जीवन का बहुत गहरा और व्यापक चित्रण किया है। उन्होंने राम के परम्परा-प्राप्त रूप को अपने युग के अनुरूप बनाया है। उन्होंने राम की संघर्ष-कथा को अपने समकालीन समाज और अपने जीवन की संघर्ष-कथा के आलोक में देखा है। उन्होंने वाल्मीकि और भवभूति के राम को पुन: स्थापित नहीं किया है, बल्कि अपने युग के नायक राम को चित्रित किया है।

    तुलसी की लोकप्रियता का कारण यह है कि यथार्थ की विषमता से देश को उबारने की छटपटाहट उनकी कविता में है। देश-प्रेम इस विषमता की उपेक्षा नहीं कर सकता। इसीलिए तुलसी दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से रहित राम-राज्य का स्वप्न निर्मित करते हैं। यही उनकी कविता की नैतिकता और प्रगतिशीलता है।

Lokvadi Tulsidas

Lokvadi Tulsidas

Vishwanath Tripathi

250

₹ 200

Vyomkesh Darvesh

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: आकाशधर्मा गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने जीवन-काल में ही मिथक-पुरुष बन गए थे। हिन्दी में ‘आकाशधर्मा’ और ‘मिथक’ इन दोनों शब्दों के प्रयोग का प्रवर्तन उन्होंने ही किया था। उनका रचित साहित्य विविध एवं विपुल है। उनके शिष्य देश-विदेश में बिखरे हैं। लगभग साठ वर्षों तक उन्होंने सरस्वती की अनवरत साधना की। उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास का नया दिक्काल एवं प्राचीन भारत का आत्मीय-सांस्कृतिक पर्यावरण रचा। हिन्दी की जातीय संस्कृति के मूल्यों की खोज की, उन्हें अखिल भारतीय एवं मानवीय मूल्यों के सन्दर्भ में परिभाषित किया। परम्परा और आधुनिकता की पहचान कराई। सहज के सौन्दर्य को प्रतिष्ठित किया। वे उन दुर्लभ विद्वान सर्जकों की परम्परा में हैं जिसके प्रतिमान तुलसीदास हैं और जिसमें पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी स्मरणीय हैं। उनका जीवन-संघर्ष विस्थापित होते रहने का संघर्ष है। उनकी जीवन-यात्रा के बारे में लिखना जितना ज़रूरी है उससे ज़्यादा मुश्किल। इस पुस्तक के लेखक को दो दशकों से भी अधिक समय तक उनका सान्निध्य और शिष्यत्व प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। इसलिए पुस्तक को संस्मरणात्मक भी हो जाना पड़ा है। प्रयास किया गया है कि प्रसंगों और स्थितियों को यथासम्भव प्रामाणिक स्रोतों से ही ग्रहण किया जाए। आदरणीयों के प्रति आदर में कमी न आने पावे। काशी की तत्कालीन साहित्य-मंडली, लेखक की मित्र-मंडली अनायास पुस्तक में आ गई है।
Vyomkesh Darvesh

Vyomkesh Darvesh

Vishwanath Tripathi

499

₹ 399.2

Nangatalai Ka Gaon

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: ‘नंगातलाई का गाँव’—इस ‘स्मृति-आख्यान’ में डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी अपने दो लेखकीय रूपों में उपस्थित हैं। पहला—अपनी जीवनी के क़िस्सागो अर्थात् नंगातलाई और दूसरा—इस आख्यान के सजग लेखक यानी बिसनाथ। इस विलक्षण जुगलबन्दी के कारनामे में ‘आत्म’ लेखक का है और ‘कथा’ बिस्कोहर के बहाने भारतीय ग्रामीण जीवन सभ्यता की। ‘आत्म-व्यंग्य’ के कठिन शिल्प में दु:ख को मज़े लेकर कहने का करिश्मा जिस निरायास ढंग से सम्भव हुआ है उससे निराला, परसाई और नागार्जुन का स्मरण हो आता है।

    दस अध्यायों में बमुश्किल समाहित बिस्कोहर कथा में लेखक ने पं. जगदम्बा पांडे जगेश, लक्खाबुआ, बल्दी बनिया, जनक दुलारी, सुग्गनजान, नदवी साहब, कृष्ण मोहम्मद, नैपाले, माने, अम्मा-दादा से लेकर अनेक अविस्मरणीय पात्रों का जो यथार्थ पुनर्सृजन किया है और उसमें उपस्थित-जागृत आम कुँजड़ा, बेड़नी, बनिया, मौलवी, भंगी, ठाकुर, ब्राह्मण आदि वर्ग के जय-पराजय, दु:ख-सुख, हास-परिहास, प्रेम-घृणा, मान-अभिमान, क्रोध-प्रसन्नता, विनम्रता-अहंकार आदि का सजीव उद्घाटन जिस निर्वैयक्तिता में किया है, वह आत्मकथा के आभिजात्य से मुक्ति का ऐसा बिन्दु है जिसमें नंगातलाई की यह कथा महाकाव्यात्मक गाथा के क़रीब पहुँच जाती है।

    इस कालजयी आख्यान में लोक-सौन्दर्य के स्वाभिमान से पगी ऐसी सजल भाषा है जो शोख़, तीखी, मीठी, चोट खाई, लचीली और विदग्ध है। शब्द यहाँ अनेक अदेखी अनूठी भंगिमाओं में अर्थों का नया संसार रचते हैं। शब्दों की विपन्नता के रुदन के बीच यह किताब एक ऐसे आधार ग्रन्थ की तरह है जिसमें पूरबी अवधी का अजाना समृद्ध भाषा-संसार है।

    प्रस्तुत कृति चूँकि लेखक के दो रूपों (जीवनीकार, आत्मकथा-लेखक) से बने प्रयोगधर्मी शिल्प में अपना कथा-विन्यास पाती है, अतः उसमें अतीत से लेकर भूमंडलीकरण तक के प्रभावों का यथार्थ इन्दराज है।

    डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने स्मृति आख्यान की विधा के गौरव को जिस तरह पुनर्स्थापित किया है, वह हमारे समय की अनूठी और अप्रतिम साहित्यिक उपलब्धि मानी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

    —लीलाधर मंडलोई

Nangatalai Ka Gaon

Nangatalai Ka Gaon

Vishwanath Tripathi

150

₹ 120

Guruji Ki Kheti-Bari

  • Author Name:

    Vishwanath Tripathi

  • Book Type:
  • Description: आलोचक के रूप में अपनी सृजनात्मक अप्रोच के लिए सराहे जानेवाले विश्वनाथ त्रिपाठी की सवा-सराहना बतौर गद्यकार हमेशा ही सुरक्षित रहती है। आलोचना से इतर अपनी हर पुस्तक के साथ उन्होंने ‘दुर्लभ गद्यकार' की अपनी पदवी ऊँची की है। उनकी भाषा और कहाँ चलते-फिरते साकार मनुष्य की प्रतीति देती है। ऐसे कम ही लेखक हैं जिनकी लिखी पंक्तियों के बीच रहते हुए आप एक तनहा पाठक नहीं रह जाते, अपने आसपास किसी की उपस्थिति आपको लगातार महसूस होती है।

    इन पृष्ठों में आप राजनीति का वह ज़माना भी देखेंगे जब ‘अनशन, धरना, जुलूस, प्रदर्शन, क्रान्ति, उद्धार-सुधार, विकास, समाजवाद, अहिंसा जैसे शब्दों का अर्थपतन, अनर्थ, अर्थघृणा और अर्थशर्म नहीं हुआ था।’ और विश्वविद्यालय के छात्र मेजों पर मुट्ठियाँ पटक-पटककर मार्क्सवाद पर बहस किया करते थे। जवाहरलाल नेहरू, कृपलानी, मौलाना आज़ाद जैसे राजनीतिक व्यक्तित्वों और डॉ. नागेन्द्र, विष्णु प्रभाकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, शमशेर और अमर्त्य सेन जैसे साहित्यिकों-बौद्धिकों की आँखों बसी स्मृतियों से तारांकित यह पुस्तक त्रिपाठी जी के अपने अध्यापन जीवन के अनेक दिलचस्प संस्मरणों से बुनी गई है। क़िस्म-क़िस्म के पढ़नेवाले यहाँ हैं। हरियाणा से कम्बल ओढ़कर और साथ में दूध की चार बोतलें कक्षा में लेकर आनेवाला विद्यार्थी है तो किरोड़ीमल के छात्र रहे अमिताभ बच्चन, कुलभूषण खरबंदा, दिनेश ठाकुर और राजेन्द्र नाथ भी हैं।

    शुरुआत उन्होंने बिस्कोहर से अपने पहले गुरु रच्छा राम पंडित के स्मरण से की है। इसके बाद नैनीताल में अपनी पहली नियुक्ति और तदुपरान्त दिल्ली विश्वविद्यालय में बीते अपने लम्बे समय की अनेक घटनाओं को याद किया है जिनके बारे में वे कहते हैं : ‘याद करता हूँ तो बादल से चले बाते हैं मजमूँ मेरे आगे।’

Guruji Ki Kheti-Bari

Guruji Ki Kheti-Bari

Vishwanath Tripathi

150

₹ 120

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