Garima Shrivastava
Chuppiyaan Aur Daraarein : Stree Aatmakatha : Paath Aur Saiddhantiki
- Author Name:
Garima Shrivastava
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Book Type:

- Description: Literary Criticism on Feminism ‘चुप्पियाँ और दरारें’ भारत की अनेक भाषाओं में लिखी गई स्त्री आत्मकथाओं की न सिर्फ शिनाख्त करती है बल्कि इन आत्मकथाओं में विन्यस्त वैचारिकी का गहन विश्लेषण भी प्रस्तुत करती है। यह न सिर्फ हिन्दी बल्कि किसी भी भारतीय भाषा में अभूतपूर्व कही जाएगी। एक सर्वथा अनूठी पुस्तक। - अशोक वाजपेयी ध्वनि प्रदूषण पर तो आज बहुत चर्चा होती है, लेकिन चुप्पी के प्रदूषण पर नहीं। सच यह है कि जाति, लिंग और धर्म की बंदिशों से घिरे अवर्ण समाज और स्त्रियों की आत्माभिव्यक्ति बहुत कम सामने आती है। इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक में गरिमा श्रीवास्तव ने यह तथ्य पहचाना है और चुप्पी की कारा तोड़ते हुए लिखी गई विभिन्न वर्गों और जातियों से निकली औरतों की आपबीती के मर्म को एक गम्भीर अन्तर्दृष्टि से परखा है। पठनीय और सरस। —मृणाल पांडेय गरिमा श्रीवास्तव की यह किताब ‘चुप्पियाँ और दरारें’ हमारा ध्यान स्त्री आत्मकथाओं की ओर ले जाती है, जहाँ मनुष्य जाति के स्त्री पक्ष के तनिक भिन्न अनुभव से हमारा साक्षात्कार होता है। यह स्त्रियों की अपनी अनुभूति है, उनकी अपनी आत्मस्वीकृतियाँ, पीड़ा और उल्लास है। कभी सिमोन द बोउआर ने ‘द सेकंड सेक्स’ के माध्यम से जेंडर का हाल सुनाया था, कुछ उसी अन्दाज में गरिमा श्रीवास्तव की यह किताब हमें भारतीय स्त्रियों की अनसुनी कहानी बताती है। निःसंदेह पठनीय और संग्रहणीय। —प्रेमकुमार मणि >गरिमा श्रीवास्तव की निगाह हिन्दी पर तो है ही, वे इस बहुभाषी, बहुधार्मिक, बहुजातीय और बहुसामुदायिक महादेश में हिन्दू, मुसलमान, दलित, सवर्ण, बांग्ला, मलयालम और कन्नड़ दायरों में स्त्री आत्मकथाओं के एक ऐसे बहुलतावादी संसार में प्रवेश करती हैं जिसका संधान अभी तक एक साथ एक जगह नहीं किया गया है। अश्वेत स्त्री-आत्मकथाओं पर उनका काम इस बृहद कृति में पाठकों को बोनस की तरह उपलब्ध है। —अभय कुमार दुबे
Chuppiyaan Aur Daraarein : Stree Aatmakatha : Paath Aur Saiddhantiki
Garima Shrivastava
Deh Hi Desh : Croatia Prawas Diary
- Author Name:
Garima Shrivastava
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- Description: इस डायरी में पाठक ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता है, लगता है कोई तेज़ नश्तर उसके सीने पर रख दिया गया है और पृष्ठ-दर-पृष्ठ उसे भीतर उतारा जा रहा है। हिन्दी में ऐसे लेखन और ऐसी यात्राओं का जितना स्वागत किया जाए, कम है। — नित्यानंद तिवारी (आलोचक) यह सिर्फ़ डायरी नहीं यात्रा भी है, बाहर से भीतर और देह से देश की, जो बताती है कि देह पर ही सारी लड़ाइयाँ लड़ी जाती हैं और सरहदें तय होती हैं। — अभय कुमार दुबे(राजनीतिक विश्लेषक) ऐसे लोग जो भीड़ की हिंसा के समर्थन में होते हैं, उन्हें यह डायरीनुमा किताब दी जाए तो वे क्या करेंगे, अपनी चुप्पी पर झुंझलाते हुए इसे जला देंगे? मेरे ख़याल से उन्हें जलाने के लिए ही सही यह डायरी पढ़ — रवीश कुमार (पत्रकार)