Devishanker Awasthi
Sahitya Vidhaon Ki Prakriti
- Author Name:
Devishanker Awasthi
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Book Type:

- Description: यह पुस्तक सृजनात्मक लेखन की सभी विधाओं के मूलभूत स्वरूप, उनके अन्तःतत्त्वों और उनकी प्रकृति का प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत करने के क्रम में विश्व के प्रमुख समीक्षकों के दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक आदि प्रमुख साहित्यिक विधाओं ने किस प्रकार अपने स्वरूप का क्रमिक निर्माण किया है, उनकी प्रकृति में अन्तर्भूत सृजनात्मकता के आयाम किस प्रकार बदलते और जुड़ते रहे हैं तथा जातीय संस्कृति की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में—विधाएँ किस प्रकार प्रमुख या गौण भूमिका निभाती हैं—इन सारे प्रश्नों पर विश्व के प्रमुख चिन्तकों के बीच जो भी मतभेद और सहमति के बिन्दु उपलब्ध हैं, उन्हें एक ग्रन्थ में प्रस्तुत करने का यह एक ऐतिहासिक प्रयास है।
Sahitya Vidhaon Ki Prakriti
Devishanker Awasthi
Nayi Kahani : Sandarbh Aur Prakriti
- Author Name:
Devishanker Awasthi
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Book Type:

- Description:
संसार के साहित्य में एक समर्थ विधा के रूप में अपनी पद-प्रतिष्ठा के लिए कहानी को बीसवीं शताब्दी तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। हिन्दी में तो उसका जन्म ही इस सदी में आकर हुआ। यही कारण है कि मनुष्य की नियति, उसके दुःख और उसकी जिजीविषा को अभिव्यक्ति देनेवाली अनेक कहानियों के सामने आने के बाद भी कहानी को लम्बे समय तक हलके-फुल्के मनोरंजन का साधन ही माना जाता रहा। हिन्दी में यह स्थिति और भी बाद तक रही और स्वातंत्र्योत्तर काल तक में वर्षों तक साहित्य-चिन्तन और आलोचना का केन्द्र कविता ही बनी रही। कहानी को लेकर अगर कोई चर्चा होती भी थी तो वह पाठ्यक्रमों के लिए तैयार किए जानेवाले संग्रहों की भूमिकाओं तक ही सीमित थी।
कहानी की गम्भीर चर्चा सन् 1995 के आसपास ‘कहानी’ पत्रिका के पुनर्प्रकाशन के बाद ही शुरू हुई। उसी समय इस बात को भी गम्भीरता से चिन्हित किया गया कि नई कहानी को समझने-समझानेवाले आलोचकों का प्रायः आभाव है। तब 1959 में ‘कहानी’ पत्रिका ने अपनी पहलक़दमी पर कहानी की तत्कालीन अवस्थिति के उद्घाटन के लिए स्वयं रचनाकारों को प्रोत्साहित किया जिससे नई कहानी के अनेक पहलू स्पष्ट हुए। उसके कुछ सालों बाद कहानी-आलोचना विभिन्न उतार-चढ़ावों से गुज़रती हुई एक ऐसी जगह भी पहुँची जहाँ ‘नई कहानी’ न सिर्फ़ प्रतिष्ठापित हो गई, बल्कि उसने एक प्रतिष्ठान का रूप भी धारण कर लिया। उसके बाद नेत्रृत्व की छीना-झपटी आती है और आते हैं नई कहानी बनाम नई कविता और नई कहानी बनाम सचेतन कहानी जैसे विवाद जिन्हें स्वस्थ आलोचना-विवेक का उदहारण नहीं कहा जा सकता। प्रस्तुत संकलन ‘नई कहानी’ से सम्बन्धित इसी वैचारिक आपाधापी और बेचैनी का जायज़ा लेने का एक प्रयास है। पुस्तक में तत्कालीन विमर्श के तमाम महत्त्वपूर्ण विचार-कोण समाहित किए गए हैं जो आज भी ‘नई कहानी’ की अवधारणा को समझने में मददगार साबित हो सकते हैं।