Kala Ka Jokhim
Author:
Nirmal VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
‘कला का जोखिम’ में शामिल निबन्धों की मूल चिन्ता समाज, सभ्यता और हमारे जीवन में कला की अवस्थिति को लेकर है, हमारे देखने और जीने में उसकी भूमिका को लेकर है। लेकिन ये निबन्ध इसी विषय पर केन्द्रित किसी शोध या चिन्तन-परियोजना का परिणाम नहीं हैं। इनके विषय अलग-अलग हैं, लेकिन वे सब किसी न किसी तरह इस प्रश्न को छूते हैं कि वर्तमान सभ्यता में कला की क्या जगह है? क्या वह जीवन से कट गई है? और क्या जीवन से कटकर उसने अपनी कोई स्वायत्त सत्ता बनाई है?</p>
<p>‘रचना-चिन्तन’, ‘रचनाकार’ और ‘रचना-यात्रा’ शीर्षक खंडों में विभाजित ये निबन्ध संवेदना, मानवीयता, आंतरिक नैतिकता और रचनात्मकता आदि उन मूल्यों को भी रेखांकित करते हैं जिनसे कला का सम्पूर्ण अनुभव बनता है।</p>
<p>‘रचना-चिन्तन’ के निबन्ध जहाँ साहित्य के आज भी प्रासंगिक प्रश्नों को छूते हैं, तो ‘रचनाकार’ खंड के आलेख रेणु, मुक्तिबोध, अज्ञेय, नाबोकोव जैसे साहित्यकारों तथा भारतीय राजनीति के एकायामी, एकस्तरीय, प्रोफ़ेशनल ढाँचे को तोड़ने का प्रयास करने वाले जयप्रकाश नारायण से हमारा परिचय एक नए रूप में कराते हैं।</p>
<p>‘रचना-यात्रा’ के तहत संकलित निर्मल जी का अत्यन्त चर्चित यात्रा-लेख ‘सुलगती टहनी’भी आप यहाँ पढ़ पाएँगे।
ISBN: 9789360867782
Pages: 182
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी की आधुनिक लेखिकाओं में मृणाल पाण्डे अपने विशिष्ट रचना-संसार के कारण अलग पहचान बनाए हुए हैं। उनका लेखन जीवन की समग्रता का प्रस्तुतीकरण लेकर सामने आता है। उन्होंने स्त्री की पहचान, स्त्री की शक्ति, स्त्री के संघर्ष एवं स्त्री से जुड़े हुए अनेक प्रश्नों का विश्लेषण अपनी रचनाओं में किया है। मृणाल पाण्डे का भारतीय जीवन के नए परिवेश पर गम्भीर पकड़ है, जिसमें भारतीय परिवारों की व्यवस्था करती हुई नारी का यथार्थ-चित्रण है। उनके कथा साहित्य में चित्रित नारी परिवेश, स्थिति और विशिष्ट संवेदनाओं को लेकर सामने आती है।
उनकी रचनाओं में स्वाभाविकता एवं सहजता है। अनुभूति की गहराई एवं नवीन मूल्यों को उभारने का प्रयत्न भी उनकी रचनाओं की प्रमुख विशिष्टता है।
नारी का बदलता रूप, उसका आत्मविश्वास एवं विद्रोह, अपनी अस्मिता की पहचान करती नारी के तमाम नवीन रूप उनके कथा साहित्य में दृष्टिगोचर होते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी मृणाल पाण्डे का कोई जवाब नहीं। किसी मंत्री से राजनीति पर बातचीत हो या भाषा-विवाद या महिला मुद्दा सभी पर उनकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक होती है। पत्रकारिता का कोई भी क्षेत्र उनसे अछूता नहीं।
Main Aryaputra Hoon
- Author Name:
Manoj Singh
- Book Type:

- Description: ‘‘हे आर्य! कोई बाहरी आक्रमणकारी जब किसी अन्य देश में प्रवेश करता है तो बाहर से भीतर आता है या भीतर से बाहर जाता है?’’ ‘‘यह कैसा प्रश्न हुआ, आर्या! स्वाभाविक रूप से बाहर से भीतर आता है।’’ ‘‘और इसी स्वाभाविक तर्क के आधार पर ही मैं भी एक प्रश्न पूछना चाहूँगी। अगर यह मान लिया जाए कि हम आर्य बाहर से आए थे तो पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सर्वप्रथम सिंधु के तट पर बसना चाहिए था और फिर पूरब दिशा की ओर बढ़ना चाहिए था। लेकिन वेद और पुरातत्त्व के प्रमाण कहते हैं कि हम आर्य पहले सरस्वती के तट पर बसे थे, फिर सिंधु की ओर बढ़े। यही नहीं, सरस्वती काल से भी पहले हम आर्यों का इतिहास विश्व की प्राचीनतम नगरी शिव की काशी और मनु की अयोध्या से संबंधित रहा है। और ये दोनों नगर भारत भूखंड के भीतर सरस्वती नदी की पूरब दिशा में हैं अर्थात् हम आर्य पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बढ़े थे।...तो फिर ये कैसे बाहरी (?) आर्य थे जो भीतर से बाहर (!!) की ओर बढ़े थे।...झूठ के पाँव नहीं होते हैं आर्य, ये झूठे इतिहासकार आपके प्रामाणिक प्रश्नों के उत्तर क्या ही देंगे, जब ये मेरे इस सरल तर्क और सामान्य तथ्य पर बात नहीं कर सकते।’’ ‘‘असाधारण तर्क आर्या!’’
Sarjan Aur Rasasvadan : Bhartiya Paksh
- Author Name:
Yogendra Pratap Singh
- Book Type:

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Description:
हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल के अन्तर्गत सन् 1942 तक एक ओर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ‘रस मीमांसा लिखकर समसामयिकता के सन्दर्भ में इसके प्रासंगिक कपाटों को खोलने की चेष्टा की है तो दूसरी ओर नई कविता के आन्दोलन ने रस चिन्तन को रूढ़, प्राचीन, अप्रासंगिक, ऐतिहासिक, मृत आदि घोषित करने की चेष्टा की है और अज्ञेय, लक्ष्मीकान्त वर्मा, जगदीश गुप्त, रामस्वरूप चतुर्वेदी आदि ने इसे उसकी मूल सत्ता से च्युत किया। आधुनिक हिन्दी साहित्य में रस चिन्तन का यह द्वन्द्व, निश्चित ही एक जटिल बनकर हमारे सामने आता है।
मानव जाति के कलात्मक स्वभाव की यह रागात्मक चेतना भारतीय चिन्तन में रस के रूप में व्याख्यायित हुई है और आज उसे आकस्मिक रूप से नई कविता के कवियों तथा समीक्षकों द्वारा मृत घोषित कर दिया जाना, उनकी तथाकथित आधुनिकता के मोह का प्रतिफल है, जो सर्वथा असंगत है।
यही नहीं, आधुनिक युग के सृजनात्मक विस्तार के बीच रस चिन्तन की व्याप्ति की सम्भावनाओं का पुनर्विश्लेषण आवश्यक है। सृजन का सम्बन्ध केवल साहित्य से ही नहीं है, चित्र, वाद्य, नृत्य, संगीत, स्थापत्य आदि कलाएँ आज जो विस्तार प्राप्त कर रही हैं, उनकी सृजनात्मक अभिव्यक्तियाँ आस्वादन की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। सम्पूर्ण कलाओं के आस्वादन फल का ही नाम रस है। मानव मन की रागात्मक चेतना एवं अनुभूति जगत् के विस्तार से रस व्याप्ति की सम्भावनाओं का भी विस्तार हो रहा है और ऐसी स्थिति में, आज उसके बार-बार विश्लेषण की आवश्यकता है, नकारने या पलायन की नहीं।
इस प्रकार, इस कृति का मूल मन्तव्य है, आज की निषेधवादी विचारधाराओं का खंडन करते हुए इसकी सामयिक प्रासंगिकता का विश्लेषण।
Faiz Ki Shakhsiyat : Andhere Main Surkh Lau
- Author Name:
Murli Manohar Prasad Singh +1
- Book Type:

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Description:
फ़ैज़ की शख़्सियत के सभी पहलुओं को उजागर करनेवाली यह किताब हिन्दी-उर्दू क्षेत्र के आम पाठकों के लिए ही तैयार की गई है। इसमें फ़ैज़ की आपबीती दास्तान है, तो उसके साथ ही उनकी पत्नी एलिस फ़ैज़ का दिलचस्प और पारदर्शी-सा अन्तरंग संस्मरण भी है।
रावलपिंडी षड्यंत्र केस के तहत चार साल से अधिक पाकिस्तान की भिन्न-भिन्न जेलों में बीती उनकी ज़िन्दगी के मुश्किल दिनों की यादों को लगभग क़िस्सागोई की शक़्ल में पेश करनेवाले मेजर मुहम्मद इस्हाक़ का वृत्तान्त फ़ैज़ की शख़्सियत के भिन्न-भिन्न पहलुओं को रौशन करता है। रावलपिंडी षड्यंत्र केस का पूरा लेखा-जोखा कांतिमोहन ‘सोज़’ ने इतिहास की सिलसिलेवार घटनाओं के सन्दर्भ में पेश किया है। फ़ैज़ के परिवार के भीतर आत्मीय ढंग की पैठ रखनेवाले आफ़ताब अहमद और इन्द्रकुमार गुजराल के संस्मरण पाकिस्तान के सैनिक शासन को बेपर्द करते हैं, और फ़ैज़ के व्यक्तित्व के जानदार रगरेशे से हमें परिचित कराते हैं। इसी तरह ग़घलाम मुस्तफ़ा ‘तबस्सुम’ के संस्मरण में फ़ैज़ के छात्र जीवन की यादें दिलचस्प घटनाओं के माध्यम से बताई गई हैं।
रूसी भाषा में फ़ैज़ की जीवनी लिखनेवाली रूसी विदुषी लुदमिला वेसिलेवा अपने आलेख के द्वारा पाकिस्तान और देश-विदेश की अन्दरूनी राजनीति और फ़ैज़ की साहित्यिक-सांस्कृतिक अन्तर्दृष्टि से हमें रू-ब-रू कराती हैं। रूसी विद्वान सुर्कोफ़ का साहित्यिक संस्मरण फ़ैज़ की अदबी हैसियत पर प्रकाश डालता है। फ़ैज़ के निजी चिकित्सक और पारिवारिक मित्र अय्यूब मिर्ज़ा का संस्मरण फ़ैज़ की ख़ूबियों और कमज़ोरियों का उद्घाटन करता है। लाहौर और लखनऊ के बीच फ़ैज़ की आवाजाही को एक अफ़साने की शक़्ल में अतुल तिवारी ने पेश किया है।
इन लेखों-संस्मरणों के अलावा इस किताब में फ़ैज़ द्वारा दिए गए तीन इंटरव्यू भी संकलित हैं। इंटरव्यू कला समीक्षक सुनीत चोपड़ा, हिन्दी कवि-पत्रकार इब्बार रब्बी और उर्दू के प्रोफ़ेसर और शायर नईम अहमद द्वारा तैयार किए गए हैं। फ़ैज़ को, ख़तों के आईने में ज़हूर सिद्दीक़ी ने पेश किया है जबकि फ़ैज़ और एलिस फ़ैज़ के रिश्ते की छानबीन उनके ख़तों के आधार पर नूर ज़हीर ने की है। शरद दत्त की रिपोर्ट भी फ़ैज़ की शख़्सियत को बारीक रंगों-रेखाओं में प्रस्तुत करती है।
सम्पादक मंडल के छह विद्वानों की टोली ने इस किताब की सामग्री का संचयन-सम्पादन किया है।
Bhartiya Sahitya Mein Musalmanon ka Avdan
- Author Name:
Zafar Raza
- Book Type:

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Acharya Nand Dulare Vajpeyi
- Author Name:
Vijay Bahadur Singh
- Book Type:

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