
Kavi Ki Manohar Kahaniyan
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
192
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
384 mins
Book Description
भाषा का क्या अनूठा खेल है, प्रयोग की क्या मोहक ताजगी! </p> <p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>विश्वनाथ त्रिपाठी</strong></p> <p>यशवंत का मास्टर-पीस है। कुछ अंश तो इस क़दर ईर्ष्या पैदा करनेवाले हैं कि काश ये हमने लिखे होते। </p> <p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>ज्ञान चतुर्वेदी</strong></p> <p>ये भीतर उतर जानेवाली अद्भुत काव्यकथाएँ हैं। क्या गजब है कि इनका कवि गहन पाखंड को भी विचार की तरह पेलता है। </p> <p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>सुधीश पचौरी</strong></p> <p>मोती कितने गहरे जाकर मिलते हैं, यह जानना हो तो हर एक को यह किताब जरूर पढ़ना चाहिए।</p> <p style="padding-left: 80px;"> <strong>—</strong><strong>प्रेम जनमेजय</strong></p> <p>ये हमारी जनरेशन की भाषा है। इसके हैशटैग से पिस्तौल चलती है। असली-नक़ली की लाइन क्लियर, तबीयत साफ़ हो जाती है। </p> <p style="padding-left: 80px;"><strong>—</strong><strong>ट्विटर से</strong></p> <p>गुनाह इतने शायराना कभी न थे। </p> <p style="padding-left: 80px;"><strong>—</strong><strong>इंस्टाग्राम से</strong></p> <p>कवि की मनोहर कहानियाँ रिबूट होकर और भी कातिल हो गई हैं। </p> <p style="padding-left: 80px;"><strong>—खटाक कमेंट बॉक्स से</strong>